बुधवार, 4 अगस्त 2021

जो मैं लिखने जा रहा हूँ

 मैं जो लिखने जा रहा हूँ गजगमिनियाँ उसे सुन कर और सुन कर क्या पढ़ कर क्योंकि सुनती तो वह भगवान की भी नहीं पढ़ कर सरेआम मेरी धुलाई अपने बाटा के चरणपादुका से करेगी। क्योंकि एक तो उसका मूड 01 फरवरी से पहले ही खराब है दूसरे मेरा यह लेख।  उसे मेरी सेवा करते देख दिल में दर्द छुपाये रमेश तिवारी कि बहुत सोशलमीडिया पर हमको खींचता है, दो चार चप्पल रसीद करने से नहीं चुकेगें।रमेश तिवारी ही क्या, पंयायत के विरोध में लिखने के कारण मेरी ग्राम प्रधान भी इस सुनहरे मौके का लाभ उठाने से नहीं चुकेगीं। वैसे तय है कि मेरी पूर्व प्रेमिका द्वारा सरकार से  विकास परक देश उत्थान कार्य , रोजगार बढोत्तरी जैसे अनेक विशेषता वाले कार्य करने हेतु महापुरुष की उपाधि देने वाली मेरी माँग के कारण सरेराह लतियावनपुर चौराहे पर होती पिटाई में कई समाजसेवी व संस्थान के साथ बहुत लोग भी बहती गंगा में हाथ धोयेगा। महिलाएं तो मुझे किसी कीमत पर न नहीं छोड़ेगीं। मेरी माँग न जाने क्यों पूर्व प्रेमिका को नागवार लगी जब कि मेरी बात 100  प्रतिशत सही है।
अब देखीये उसके द्वारा किये इस कार्य से कम से कम दो काले कोट का न सिर्फ व्यवसाय चरम पर होता है बल्कि उन को पूरी दुनिया उनके नाम जान जायेगी। न्यायालय के जजों की छोटी से छोटी हलचल पर देश की निगाहें। अब निगाहें रखने वाली जानता की नज़र कमजोर होगी तो वह चश्मा तो खरीदेगा ही, भले टीन का हो। न्यायालय में स्टेशनरी, ओवर टाइम वहाँ आने जाने वाले के लिए संसाधन की व्यवस्था करने वाला, अब जो दिन भर न्यायालय में रहेगा वो भी अपने पेट के साथ अन्याय तो करेगा नहीं तो चाय पान नासँते वालो की चाँदी। अब इतना कुछ होगा तो  मीडिया का काम भी बढ़ेगा और इतना बढ़ेगा कि उसके पत्रकार से लेकर एंकर तक सुबह से शाम तक भागते फिरेगें। नेताओं से लेकर समाजसेवक तक को सुबह से शाम तक दौड़ भाग करने का मौैका जिससे आटो वाले, पेट्रोल पंप वाले, नास्ता-पानी वाले सबका विकास सबका फायदा।  डाक्टरों का फायदा, पुलिस का फायदा। शासन, प्रशासन, नेता, व्यवसायी सबका फायदा। अब आप बताईये इतने लोगो को फायदा देने वाला इस कार्य को करने वाले को लटका कर देश की अर्थव्यवस्था को चौपट करना कहाँ की समझदारी है। समझदारी तो इसमें है कि छेदों की न सिर्फ संख्या बढ़ा  दी जाये, बल्कि उसे और अधिक बड़ा किया जाये ताकि बड़े से बड़े यह कृत्य करने वाले आसानी से निकल जायें।.
अरे इससे एक परिवार ही तो परेशान होता है, न्याय केवल एक को तो नहीं मिलता, और न्याय ऐसे की जरूर ही क्या?  जो होना था वो हो गया, भवावेश में। अब समझना चाहिए कि किसी का दिमाग सनक सकता है, परन्तु होश में आने के बाद उसे भी न्याय का हक है। उसके साथ भी वोट देने वाले हैं। वह भी भारत का ही नागरिक है। तो फिर एक तरफा बात क्यो? सही कहा न मैनें? आपको भी गजगमिनियाँ की तरह  मेरे ऊपर गुस्सा आ रहा है कि नही?
नहीं आ रहा है।  मैं जानता हूँ कि आप अपने प्यारे-प्यारे अखंड गहमरी पर गुस्सा कर ही नहीं सकते। करना भी चाहें तो कैसे करेगें? आप का गुस्सा तो कैंडल मार्च, सोशलमीडिया पर भड़ास, नेताओं और व्यवस्था को गाली देकर निकल चुका है। आप तो अभी तक यह भी नहीं समझ पाये होगें कि मैं इतनी देर से किस विषय पर , किस माँग पर लिखा हूँ जिसे पढ़ कर गजगमिनियाँ ने मेरा हाल बेहाल करने की तैयारी की। समझ तो बस हैदराबाद पुलिस पाई, गुस्सा तो बस उसे आया और उसने मेरे शासन से माँग पर ऐसी प्रतिक्रिया दी जिससे एक निर्भया की माँ को अदालत के चक्कर नहीं काटना पड़ा। एक निर्भया की माँ को सड़क के किनारे बैठ कर न्याय के लिए रोना नहीं पड़ा। किसी नेता को मौका ही नहीं मिला कि वह अपनी राजनीतिक गोटी सेकें। हैदराबाद पुलिस को मेरे ऊपर इतना गुस्सा आया कि उसने मेरी माँग के राजकुमार को इस लायक ही नहीं छोड़ा कि वह अपने चंद लोगो के द्वारा भारतीय न्याय पद्धति को अपने हाथो की कठपुतली बना सके और तारिक पर तारिक और नाबालिग और क्षमायाचना  का खेल , खेल सके।
गुस्सा हैदराबाद पुलिस को जिसने जड़ से ही जड़ को साफ कर दिया। आप मेरे पर गुस्सा करना चाहो तो करो मगर जरा अपने गुस्से की आँच का प्रयोग कर उस कमीयों को जलाने का प्रयास तो कर दो जिसकी छाया में दामिनी का दामन दागदार करने वाले लुकाछिपी का खेल खेल रहे हैं और अखंड गहमरी न्यायालय, मीडिया, एवं अन्य के जेलों और जेलरो को करोड़ो का लाभ देने वाले, जल्दाल को पहचान देने वाले , उस जूताखोर दुश्कर्म जैसा धिनौने  कृत्य करने वाले और कार्य को बलात्कारियों को जूतियावन सम्मान से सम्मानित करने की माँग शासन से करता है।

अखंड गहमरी

आदरणीय केशव भैया

 आदरणीय केशव भैया प्रणाम
हम लोग तो अभी तक  कुशल हैं और आशा करते हैं कि आप भी कुशल ही होगें।
 भैया जी वर्ष 2017 के विधान सभा चुनाव के दौरान जब गाजीपुर आये थे तो  आप ने कहा था कि ''यदि भाजपा की सरकार बनी तो समाजवादी और बसपा के भ्रष्टाचारी जेल में नज़र आयेगें''। आपकी सरकार बनने के बाद  मैं इस बात को पूरी तरह स्वीकार कर चुका था और हूँ कि भाजपा के राज में भ्रष्टाचार खत्म तो नहीं कम जरूर हो गये । भैया चूकि मैं  भारत के संविधान में प्रदत  नागरिकों की श्रेणीयों में निचले पायदान पर आने वाले आम आदमी के श्रेणी में आता हूँ इस लिए पूरे प्रदेश की बात कर नहीं सकता था।  क्योंकि जानकारी का अधिकार नही है।
अब जब गाजीपुर जिले में मेरे गाँव गहमर में मेरे  सामने एक सरकारी काम शुरू हुआ तो निगाह गई, वो भी सरकारी काम आप के ही मंत्रालय का जिसके मंत्री आप हैं। काम भी हजारों में नहीं लाखो में वो भी 90 लाख के समकक्ष मात्र 700 मीटर लम्बी और लगभग 6 मीटर चौड़ी एक छोटी सी ताड़ीघाट-बारा मुख्य मार्ग से गहमर रेलवे स्टेशन तक सड़क व नाला निर्माण का काम।
भैया जी मई के प्रथम सप्ताह में लाकडाउन की अवधि में  89 लाख के जिस कार्य में सड़क का चौड़ीकरण एवं नाले का निर्माण शुरू हुआ है उसका ताड़ीघाट-बारा मार्ग से स्टेट बैंक तक 350 मीटर सड़क अप्रैल 2008 में  सीसी करा कर उसका दोहरीकरण किया जा चुका है। 2013 में इस सड़क का पुन: निर्माण  पूर्व कबीना मंत्री ओम प्रकाश सिंह  के द्वारा मुख्य मार्ग से स्टेशन तक तारकोल वाली सड़क के रूप में कराया गया, उस समय भी यह मुख्य मार्ग से स्टेट बैंक दोहरा किया गया।
आश्चर्य होता है आपके विभाग के उस इंजीनियर या स्टीमेट बनाने वाले व्यक्ति पर जिसने सभी धान को 7 रूपया सेर बेच दिया। शायद भैया वह अंधा था जो उसे दिखाइ नही दिया पहले से बनी और नहीं बनी सड़क।  अब ऐसे में आधी दोहरे सड़क को दुबारा दोहरा करना कुछ तो संदेह देगा ही।ऐसे में जरा आपके द्वारा उस बकलोल की क्लास लेना जरूरी है।
भैया जी आप उप मुख्यमंत्री एवं लोक निर्माण विभाग के कैबिनेट मंत्री दोनो हैं। आपके पूर्व कि सरकारों में जो कार्य प्रणाली थी वह इस बार भी निर्माण में सड़क प्रारंभ से ही दिखाई दे रही है, जो आपके विचारो आपके मानको का विरोध कर रही है। सड़क की खुदाई मानक के अनुसार न हो कर मह़ज 2 से तीन इंच खोद कर और खोदी क्या गई केवल तारकोल का लेयर हटा कर कर उस पर डाला गिट्टी की जगह धूल भरी गिट्टी 700 मीटर में डाल दी गई है। और तो और ट्रको से धूल ला ला कर सड़क पर डाली जा रही है। स्टेट बैंक से आगे दक्षिण की तरफ दोनो तरफ हल्की हल्की खुदाई कर उसमें धूल वाली गिट्टी डाल कर उसकी चौड़ाई बढ़ा दी।
भैया जी आप तो जानते हैं कि मैं किसी दल का नहीं, कोई गोल का नहीं, न मेरे साथ कोई आने वाला, मैं तो बस आपका और योगी बाबा का अंधभक्त हूँ। योगी बाबा राज्य के रथ का सारथी आप हैं और आप भ्रष्टाचारीयों को जेल की बात कर चुके हैं, तो बताना अपना फर्ज समझता हूँ। मैं तो संजय की भाँति ठीकेदार रूपी धृतराष्ट्र को सच दिखाने का कार्य कर रहा हूँ। उन धृतराष्ट्रों को जिन्हें आप 2017 में समझा चुके हैं। वैसे यह भी जानता हूँ कि जो 90 लाख का ठीका लिया है आम आदमी तो होगा नहीं, कई दलो में पहुँच रखता होगा, काफी अनुभवी भी होगा। बेईमान तो पूरा है, इसमें कोई शक नहीं। हमें अपने स्नेही स्वजनो के पास बुला कर डटवा सकता है, समझवा सकता है कुछ भी करा सकता , सांसे बंद करा सकता है। कहा ही गया है कि ''सोर्स इस द फोर्स, मनी इज द पावर।
लेकिन जो हो आपको बताना था ही सो बता दिया। फिर मत कहीयेगा केशव भैया कि गहमरीया तूने बताया नही कि यह सड़क शुरू से भष्टाचार का अखाड़ा बनी तू देखता रहा। सच दिखाया नहीं। खाली पकर पकर करता है। ये नहीं बताया कि
इस 700 मीटर सड़क के पश्चिमी  छोर पर उत्तर से दक्षिण तक तो क्रमसः जूनियन हाई स्कूल, माँ का डिग्री कालेज, गहमर इन्टर कालेज, भारतीय स्टेट बैंक, पोस्ट आफिस, दूर संचार विभाग, दो व्यवसायिक काम्पलेक्स, गेहूँ क्रय केन्द्र एवं रेलवे स्टेशन परिसर है वही पूरब दक्षिण से उतर रिहायशी कालोनी, पिक्चर हाल, एक व्यवसायिक काम्पलेक्स,कुछ नीजी मकान, आरा मशीन, पंचायत भवन और गहमर थाना है।
आपकी सेवा में कुछ फोटो और वीडियो भैया जी आपके अवलोकानार्थ प्रेषित कर रहा हूँ। जरा देख लीजियेगा समय निकाल कर।
शेष बातें फिर कभी, अब नींद आ रही है, सोते हैं। इस लाकडाउन में सब कम्पयूटर सम्पियूटर जल गया है।
अब विशेष क्या कहें समय तो जीवन के प्रतिकूल है, बच बचा के रहीयेगा। काढ़ा साढ़ा दिन में तीन बार पीजियेगा।

आपका छोटा भाई
अखंड गहमरी

व्‍याकुल मन

 आज कई दिनो से मन व्याकुल है। दिमाग परेशान है। कभी बायीं आँख तो कभी बाँया हाथ फड़क रहा है।
दिल का कोना-कोना सुस्त पड़ा है। हालत ऐसी हो गई है कि देख कर मजनूँ भी परेशान था कि यदि कहीं इसका यही हाल रहा तो इतिहास मेरे नाम के ऊपर व्याइटनर लगा कर इसका नाम लिख देगा। मेरी हालत देख कर वाइफ होम ने भी कपड़े सुखाने का काम कम कर दिया। अब मेरे जिम्मे केवल झाडू-पोछा, चौका-बर्तन और कपड़ो की सफाई ही रह गया था।
आज मैनें फैसला कर लिया कि आज अपनी हालत सुधार कर रहूँगा, चाहे इसके लिए कुछ भी करना पड़े।
मैं तीन बजे सुबह उठ कर सारे काम निपटाने लगा। खटर-पटर सुन कर वाइफ होम की नींद खुल गई।
अब आधी नींद पर उठने पर तो फूल भी बम बन जाता है, आप समझ लें मेरी हालत क्या हुई होगी? मगर मर्द को दर्द नहीं होता। मैं लाल चेहरा छुपाये तैयार होकर पहुँच गया गहमर के रूप श्रंगार महल के अरूण सिंह के घर। सुबह सुबह मुझे आये देख कर वह बाहर आये, हाथो में लिये बीम बार को किनारे लगाये। कहो भाई कैसे सुबह सुबह? ये चेहरा क्यों छुपाये हो? उन्होंने साल हटा कर पूछा।
मेरे चेहरे को लाल देख कर थोड़ा उदास होते बोल पड़े, इसमें छुपाना क्या? मेरी भी यही कहानी है, बर्तन धोते समय गिलास गिर पड़ा और फिर एक भी बेलन नीचे नहीं गिरा, उन्होने अपनी पीठ दिखाते कहा।
मैं गर्व से बोला भाई अपनी तुलना मुझसे न करीये मैं सीने पर खाता हूँ, पीठ पर नहीं।
राम की मेहरबानी से चाय आ गई। मैनें बातो बात में अपनी समस्या बताई और मदद स्वरूप एक दिन के लिए चूड़ी,बिंदी सहित श्रंगार के सामान माँगे।
उन्होनें मेरी मदद की, सामान दिया, भगवान उनकी मदद कर और कुछ धोने वाले कपड़ो के गट्ठर बढ़ा दे।
मैं सब सामान ले आया, एक लकड़ी के संदूक में रखा, एक मलीन सी धोती पहनी और गली में श्रृंगार के समान बेचने वाले का रूप बनाया और चुपचाप चल पड़ा।
गली -गली, चौबारे-चौबारे होता मैं पहुँच गया अपनी मंजिल पे।
मंजिल पर पहुँचते ही मेरा हर्ट हर्ट हो गया। वहाँ रोज गूँजने वाली लटकिनिया-भटकिनिया, तोड़ा-मोड़ा जैसे सिरियलो कि आवाज नदारद थी। मेरी मंजिल के 36 घंटे खुले रहने वाले खिड़की दरवाजे बंद थे।
मैं किसी अनहोनी की कल्पना से काँप उठा और दिल को बाँस-बल्ली के सहारे रोक कर दरवाजे पर आवाज दी ''चूड़ी ले लो”, चूड़ी ले लो"।
दरवाजे पर कोई हलचल नहीं हुई।
मैने हार नही मानी फिर जोर लगाया रंग-बिरंगी चूड़ियाँ ले लो, सिनर्जी टेलीकाम की डिजाइनदार चूड़ियाँ।
दरवाजे पर हलचल हुई। दरवाजा खुला। अहोभाग्य मेरे स्वच्छ, सुन्दर, तड़कीली, भड़कीली मेरी पूर्व प्रेमिका गजगमिनियाँ मेरे सामने थे।
हफ्तो बीत गये थे उसकी एक झलक पाने को। वो तो मैं पहले से राँची और आगरा रिर्टन था ही, अब तेजपुर से भी रिर्टन हो गया तो इस दर्द को सह गया।
भागो यहाँ से नहीं चाहिए चूड़ी- तूड़ी।
उसकी तेज आवाज से मैं यर्थाथ मैं लौटा।
ले लो न मैडम जी, तुम्हारे पर बहुत खिलेगीं ।
कह दिया न नहीं चाहिए भागो शोर मत करो , बेटे की परीक्षा है, डिस्टर्ब हो रहा है।
मैं मन ही मन बुदबुदाया परीक्षा तो तुम मेरी ले रही हो प्रिय अपने लाटू बलम की..।
मैं आँखो में अश्क भर बोल पड़ा ले लो आन्टी ....
मेरे शब्द मेरे मुहँ में ही रह गये, उसने चिल्लाते हुए कहा ''क्या बोला आन्टी , अरे अन्धे मैं किस एंगल से तुझे आन्टी लगती हूँ?'' उसने मुझे धकेला।
मैं उसका यह रूप देख कर इतना तो समझ गया कि जो है ठीक है। मैं खुशी से झूम से झूम गया। तभी उसकी निगाहें मेरी निगाह पुरानी फिल्मी स्टाइलिंग में टकरा गई। वह चीख पड़ी अरे मेरे लतखोर बलम, ये क्या हाल बना रखा है।
अब मेरे आँखो के पानी से भारत सरकार की नदी भरो परियोजना सफल होती दिखाई देने लगी। वह पिघलने लगी, पास पड़े गाड़ी साफ करने वाले कपड़े से मेरी आँखे साफ की और बैठ गई चूडियाँ देखने।
मैने धीरे पूछा कहाँ रहती हो आज कल? मेरे प्यार की बगिया के फूल तुम्हारे चरणरज के आभाव में मुरझा रहे हैं।
क्या करूँ? मेरे खनकरू बलम बेटे की हाईस्कूल की परीक्षा जो सर पर आ गयी, उसने मेरे श्रृगांर बक्से में रखे सामानो पर अँगुलियाँ फेरते हुए कहा।
मैं आश्चर्यचकित हो कर उसकी तरफ देखा, न मिल पाने का दर्द उसे भी था..मैने धीरे से कहा ''आज कल मोबाइल भी आफ रहता है, आन लाइन भी नहीं होती हो।
मेरे बक्से में रखी 2:6 की चूडियों को अपनी कलाई में डाल चुडियों की सुन्दरता बढ़ाते हुए बोली, क्या करूँ  मेरे धनसोई बलम? बेटे की परीक्षा के कारण आज कल नेट और डिस रिचार्ज सब बंद हैं, इस लिए आन लाइन भी नहीं आती।
मैं ठहरा हाईस्कूल बार बार फेल आदमी मुझे ये सब समझ नहीं आ रहा था। आखिर बेटे की परीक्षा से ऐसा कौन सा बबाल हो गया जो सारे काम बंद।
मेरे मनोभाव को गजगमिनियाँ पूरी तरह समझ रही थी, परन्तु वह मुझे कैसे समझाये उसे भी नहीं समझ में आ रहा था।
मेरे बक्से से वह कई रंगो की ओठ लाली निकाल कर अपने ओठो पर सजा लिया था, उसके ओठ अब सतरंगी दिख रहे थे। जिसे मैं छुपे कैमरे से कैद करता जा रहा था, ओठलाली नीचे रखते हूए कहा .कन्टोरी मल बेटे की पढ़ाई ऐसे नहीं होती, त्याग करना पड़ना है। हम लोग कही शादी व्याह, आर्टी-पार्टी में नहीं जाते। बस उसकी पढ़ाई पर ध्यान देते हैं।
मैं उसकी बात सुनना और समझ में न आना मेरे राँची, आगरा और तेजपुर रिर्टन होने पर मुहर लगा रहे थे।
मेरी सूरत देख कर मुस्कुरा पड़ी ऐसे लगा जैसे हजारो जरमुंडी के फूल वातारण में बिखर गये। हजारो कप प्लेट आपस में खनकते लड़ पड़े। अपने टुप्पटे को संभाल कर बोली' तुम को समझ में नहीं आयेगा, आज के जमाने में.परीक्षा देता बेटा है , तैयारी पूरा घर करता है। तुम ये पकड़ो । उसने अपने हाथ में मेरे आईने को लेकर पवित्र कर नीचे रखते हुए कहा।
मेरी निद्रा टूटी उसके हाथ में 200 का नया नोट चमक रहा था।
ये क्या है?
ये तुम्हारी चूडियो और लिपिस्टिक की कीमत और अब जाओ, परसो मिलते हैं लतियावन दादा के ढाबे पर , तब समझायूँगी।
मैंने पैसे लेने से इन्कार किये, वह नहीं मानी, पैसे मेरे जेब में डाल कर मुस्कुराती हुई उठी, तिरछी नज़र मुझ पर डाली और बोली मेरे लतखोर बलम ये रूप अच्छा लग रहा है। झक्कास लग रहे हो।
मेरा सीना 57 इंच का हो गया..
परसो पक्का?
हाँ बाबा पक्का. कहते हुए वह अंदर चली गई और दरवाजा बंद कर लिया।
मैं अपना बक्सा उठाये चल पड़ा अरूण भैया के दुकान की तरफ मगर मेरे दिल में गजगमिनियाँ के खुश रहने की खुशी और दिमाग में इस सवाल की खोज की चल रही थी कि आखिर आज की परीक्षा में ऐसी क्या बात है जो पूरा घर अस्त-व्यस्त हो जाता है।
कब होगी परीक्षा समाप्त और होगी मेरी गजगमिनियाँ से रोज मुलाकात।
अखंड गहमरी।

जिद पर अड़ी गजगमिनियॉं

 जिद पर अड़ी अपनी गजगमिनियॉं को अपनी कंगाली हालत बता कर तौहीन नहीं करना चाहता था। वैसे भी प्रेमिकाओं के आगे मेरी रेपोटेशन अच्छी नहीं है। मेरे प्रेम तो ऐसे टूटते है, जैसे मंन्दिरो में मन्नत के नारियल। कल से वो 7 सितारा होटल में मेरे साथ मुर्ग-मुस्लम खाकर पापिंग डान्स करने की जिद किये बैठी थी। काफी देर बातो में विश्‍व की सैर तो करा कर उसे अपने कांगल बैंक का ही आटा खिलाना चाहा मगर वह कहॉं मानने वाली थी। प्रेम के आगे हार कर चल तो दिया मैं लुटेरपुर 7 सितारा होटल की तरफ उसके गले में हाथ डाले, मगर अभी दिल्ली दूर थी। प्रेम के समुन्दर में गोता लगाते हुए मैं संभावित विकल्‍प तलाशते चला रहा था। तभी बैंड बाजे की आवाज सुनाई दी, शायद नये जमाने की बारात थी। स्‍त्रियॉं अर्धनग्‍न जिस्‍म प्रदर्शन के साथ-साथ हाथो में जाम और सिगरेट के घुँए छोड़ते अपने अपने साथ्‍ाी से लिपटती थिरकती जा रही थी। मैने भी आव देखा न ताव,अपनी गजगमिनियाँ को खीचते पहुँच गया, नागिन डान्सरों के बीच। एक दूसरे के आँखो में आँख डाले पोपिंग पोपिंग डाँन्स करने। मेरे नागिन डान्‍स के आगे सब फेल, वैसे भी कोई गहमरी से मुकाबला करें हो नही सकता। बड़ी तालियाँ बजी, फ्लैश लाइटे चमकी, बारात मेरी कम गजगमिनियाँ की दिवानी अधिक  हुई सब गजगमिनियाँ के हाथो में हाथ डाल कर चलना चाहते थे।
अब हम भी बारात का हिस्सा हुऐ चल दिये शानदार भोजन महल की तरफ। कोई समझता हम वर तो कोई समझता हम कन्या पक्ष के नव ब्याहे युगल हैं। समझता भी क्यो नहीं मेरे जमाने में तो सिन्दूर रेखा की तरह नहीं बिन्दु की तरह लगाकर जुल्फों की छाँव में छुपा दिया जाता है और चुडियाँ तो बस एक ही काफी से भी अधिक है। कुऑंरी और विवाहिता में अन्‍तर विवाह संस्‍कार जैसे मौको पर गहनों के बोझ से ही समझा जा सकता है। छपाक ! मेरी खाने की खुशी समाप्‍त। किसी ने अपने मसाले लगे हाथो से  पानी का गिलास मेरी तरफ उछाल दिया। मेरे झामलाल धोबी से उधार मॉंग कर पहने हुए सूट की तेरही हो गई।  मैंने गुस्‍से से उस तरफ देखा जिधर से गिलास आई थी। अगले ने हड़वडाते हुए कहा स्‍वारी जेैन्‍टलमैंन, मैंने यूज एंड थ्रो गिलास को डस्‍ट बिन में फेका, निशान चूक गया, और आप के कपड़े खराब हो गये''। मैने मन ही मन बडबड़ाया'' गुस्‍साया मगर संभल कर बोला ओके ओक मैं कोई बात नहीं, हो जाता है, गलती आपकी नहीं हवा की और मेरे बदन की है जो आपके गिलास और डस्‍टबिन के बीच आ गया। मेरी गजगमिनियॉं अभ्‍ाी तक खाने में व्‍यस्‍त थी, उसे जाते ही बोली आज लोगो को पता नहीं कैसे किधर क्‍या फेंकना चाहिए, बताओं आपके इतने मँगहें कपड़े खराब हो गये। मैने अपनी गजगमिनियॉं से प्‍यार से बोला ऐसा नहीं जानेमन, हो जाता है, आदमी प्रयोग के बाद हर चीज फेकता तो दूर ही है मगर फेकी चीज किसी दूसरे से लिपट जाती है। अब तो जमाना ही यूज एंड थ्रो का है, कहॉं तक लड़ते फिरोगी।  तुम पागल हो नहीं जानते है, कुछ लोगा अपने आपको बहुत बड़ा समझते है, एडवॉंस समझते है इस लिए हरकत कर जाते है, गजगमिनियॉं गुस्‍से में बोली।
 मैं समझ चुका था कि अब मेरी यह प्रेमिका राज खोलवा कर ही दम लेगी, कि हम बेगानी शादी में अब्‍दुल्‍ला दिवाना है, बिन बुलाये मेहमान है। मैने कहा सुनो डालिंग मैनें उसे समझाने की दुबारा कोशिश की,  देखती नहीं मैं जिससे कोई काम लेना होता है उससे बहुत प्‍यार करता हूँ, सैकड़ो बार फोन करता हूँ, मगर काम निकल जाने के बाद या कोई उससे अच्‍छा मिलने के बाद उसे याद रखता हूँ , नहीं न। कितनो को याद रखॅू, कितनो को साथ रखूँ, उसी तरह आदमी पानी पीने के बाद यदि गिलास को अपने पास रखेगा तो कितना रखेगा। वह तो फेंकेगा ही अब अलग बात है कि वह किसी उपर गिरे या कचरे के डिब्‍बे में और फिर गलत जगह गिर पड़े तो अंग्रेजो का बनाया '' स्‍वारी'' शब्‍द तो जिन्‍दाबाद है ही। चलो अपने उदास से चेहरे को ठीक करों हम चलते है लुटेरपुर 7 सितारा होटल में, डिनर करेंगें, बॉंहो में बाँहें डाल पापिंग पापिंग डान्‍स करेंगें एक दूसरे को प्‍यार करेगें। मुझे कही नही जाना है मैं चली अपने घर। चलो मुझे घर छोड़ो। मैं तो यह सुन कर खुशी से उछल पड़ा है रब ने मेरी पुकार सुन ली। मैने मन ही मन लवगुरू को प्रणाम किया, धन्‍यवाद दिया और उदास मन से कहा '' चलो जैसी तुम्‍हारी इच्‍छा'' मैं तो सीट भी रिर्जव करा दिया था होटल में। इस बारात ने सारा मूड खराब कर दिया। इसके पहले वह कुछ कहती या मूड बदलती मैने तेजी से आटो रोका, नबाबगंज।

अखंड गहमरी, गहमर गाजीपुर।।

एक त ससुरो भव‍ति ना

 एक त ससुरो भवती ना।
बोल्वले प अउती ना ।।
इस कहावत पर भले सभ्य लोग कुछ कह सकते हैं, परन्तु आज मुझ पर और मेरी वाइफ होम पर बैठ रही है सटीक। खास तौर पर आपके अखंड गहमरी पर तो ऐसे बैठ रही है जैसे इमरान खान की गेंद कपिल देव के बल्ले पर चपक सुरीली धुन देते हुए सीमा पार ।
17 फरवरी को जब बंगलौर से गहमर का सीधा आरक्षण नहीं मिला तो अधिक कूद-फांद करने की जगह यशवंतपुर से हाबड़ा सुपर फास्ट एक्सप्रेस में यह सोच कर टिकट ले लिए कि चलो भाई यह ट्रेन 19 को सुबह हाबड़ा पहुँच जायेगी। साथ में वाइफ होम हैं, कुछ बागवां वाला सीन क्रियेट करेंगे।
अभय चाचा के घर जायेगें, सामान-वामान रखेगें खाना पीना खायेगें,  काली जी का दर्शन पूजन होगा, कुछ कोलकाता घूमेगें शाम को बैग उठा कर पंजाब मेल या बिभूति से गहमर पहुँच जायेगें।
वैसे भी मैं तो कहीं घूमता नहीं केवल आता जाता हूँ। जाने वाले शहर के या तो रेलवे स्टेशन से परिचित हूँ या फिर यदि प्रमुख देवस्थल है तो वहाँ माथा टेका है। वह तो भला हो कांति माँ का कि एक बार उन्होनें भोपाल भ्रमण का जबर्दस्ती कार्यक्रम बना दिया। वरना भोपाल के दार्शनिक स्थल भी अखंड गहमरी के दर्शन से वंचित रह जाते।
गहमर के फजीहत भैया के साथ महीनों कलकत्ता रहा। वह पैसा देकर, हड़का कर थक गये मगर क्या मज़ाल जो गहमरी  होटल छोड़ दे।
जब घुमने की सोचा तो हुआ क्या ? बागवान के  अमिताबच्चन और हेमामालिनी की जोड़ी में बच्चे विलयन थे और यहाँ हमारे घूमने के प्रोग्राम में विलनय बन गयी श्रीश्री पियुष गोयल की रेल पार्टी। एक तो मैं घूमने का कार्यक्रम बनाता नहीं और बनाया भी तो पियूष गोयल एंड पार्टी मेरे सारे घूमने का कार्यक्रम मेरे सुपरफास्ट ट्रेन के लेट लतीफी से धोकर रख दिया। और लेटलतीफी भी ऐसी वैसी नहीं। ना आँधी, ना पानी, ना ट्रैक की खराबी, ना कोई बंद, रूट की सारी ट्रेने या तो राइट टाइम या तो एक से डेढ़ घंटा लेट।
और मेरी ट्रेन हा हा हा हा हा हा हा हा पूरे के पूरे ग्यारह घंटे अठ्ठाइस मिनट अंक में बोले तो 11 घंटे 28 मिनट।
सुबह 6:45 की जगह पहुँची शाम 05:53 पर मेरी गहमर की ट्रेन से महज 2 घंटा 7 मिनट पहले।
और इस लेट का कारण आप सुनेगें तो आप को यह एहसास हो जायेगा कि बस पियुष गोयल एंड कम्पनी ने कोई दुश्मनी निभाई है, मेरे घुमने के कार्यक्रम को तोड़ कर। ओम प्रकाश शुक्ल भैया यह आपकी रेल ने मेरे साथ न जाने कितनो को सुना दिया।
दिल के टुकड़े टुकडे़ कर के मुस्कुराते चल दिये। बस गनीमत यह रही कि देर आये पर दुरूस्त आये।
कहानी की शुरुआत ही देर से हुई यशवंतपुर से  मात्र 20 किमी आते आते यह सुपर फास्ट ट्रेन 20 मिनट लेट हो गई। ट्रेन में यशवंतपुर से सवार मेरी वाइफ होम बिल्कुल दिलवाले दुल्हनिया लें जायेगे़ की तरह कोच के गेट पर हाथ बढ़ाये खड़ी थी जैसे मैं कृष्णाराजपुरम में दिखाई दिया  बोगी की तरफ खींच लिया। अब आप सोचते होगें मैं दूसरे स्टेशन पर खड़ा वो दूसरे स्टेशन से ट्रेन में सवार ?  तो यह बड़ी दुख भरी कहानी है। ससुराल में साले दिलकुश की करस्तानी है। पूछीये मत वरना आँखो से आसू आ जायेगें। मैं लिख नहीं पाऊँगा। दिल पर पत्थर कर लिख रहा हूँ।
कहानी की शुरुआत ही देर से हुई यशवंतपुर से  मात्र 20 किमी आते आते यह सुपर फास्ट ट्रेन 20 मिनट लेट हो गई। ट्रेन में यशवंतपुर से सवार मेरी वाइफ होम बिल्कुल दिलवाले दुल्हनिया लें जायेगे़ की तरह कोच के गेट पर हाथ बढ़ाये खड़ी थी जैसे मैं कृष्णाराजपुरम में दिखाई दिया  बोगी की तरफ खींच लिया। अब आप सोचते होगें मैं दूसरे स्टेशन पर खड़ा वो दूसरे स्टेशन से ट्रेन में सवार ?  तो यह बड़ी दुख भरी कहानी है। ससुराल में साले दिलकुश की करस्तानी है। पूछीये मत वरना आँखो से आसू आ जायेगें। मैं लिख नहीं पाऊँगा। दिल पर पत्थर कर लिख रहा हूँ।
कृष्णापुरम से ट्रेन चली , अरमान चले। अरमान हवा से बात कर रहे थे और ट्रेन रूप श्रंगार महल के अरूण सिंह की मोपेड से।  बेखबर अंजान रात भर वाटस्प फेशबुक चलाता मैं ट्रेन का रनिंग स्टेटस देखता जा रहा था। ट्रेन की रफ्तार घट रही थी। विलंबित घंटे बढ़ रहे थे। दोपहर होते होतै ट्रेन पूरे चार घंटे लेट और रफ्तार 50-55 किलोमीटर प्रतिघंटा के बीच। अब 110 किमी प्रतिघंटा की रफ्तार की ट्रेन 50-60 चले तो संदेह लाजिमी था। पता चला कि एक जनरल बोगी में तकनीकी खराबी है। यशवतंपुर में मेंटेनेंस में मरम्मत नहीं हुआ था, विजयवाड़ा, विजयनगर वही बागवान वाला विजयनगर, सब बीत गये लेकिन इस समस्या का समाधान नहीं हुआ। ट्रेन धीरे गति से चलती लेट होती गई। विशाखापत्तनम, भुवनेश्वर, कटक, और न जाने कितने ऐसे स्टेशन रास्ते में आये जो रेलवे के तकनीकी गढ़, कई ट्रेनो जिसम़े गरीबरथ, दुरन्तो, राजधानी जैसी महत्वपूर्ण ट्रेनो के प्रारंभिक एवं समापन स्टेशन थे। न बोगी की मरम्मत की गई न उसे निकाला गया।  हजारो यात्रियों को लाचार छोड़ दिया गया।  यात्रियों को इस देरी से हुई फजीहत का किसी भी रेल कर्मचारियों को दिक्कत नहीं हुई।
एसी कोच के यात्री तो फिर भी आराम से थे। जरा सोचीये जनरल बोगी में बैठे यात्रियों की क्या हालत हुई जो भेड़ बकरियों की तरह एक दूसरे पर चढ़े हुए थे।
किसी होनी अनहोनी रुकावट पर इस तरह की लेटलतीफी तो चल जाती है परन्तु जब इस प्रकार की लापरवाही और अधिकारियों की गैर संवेदनशील दिखाई दे तो दिल के अरमा आँसूओं में बह ही जाते है। ट्रेन 17 फरवरी की रात यशवतंपुर से चल कर भले 19 फरवरी की सुबह की जगह शाम को पहुँची। कटक और जाजपुर रोड के बीच जब स्पीड बढ़ाने की कोशिश की गई तो पूरी ट्रेन काँप कर खड़ी हो गई।
 किसी स्टेशन पर यदि विभाग चाहता तो बोगी बनाई या काट कर दूसरी लगाई जा सकती थी मगर कोई व्यवस्था नहीं की गई की क्योंकि टिकट के पैसे लिये जा चुके थे। अधिकारों कर्मचारियों के वेतन मिलेगा ही। किसी को क्या फर्क पड़ता है। स्वच्छ और सुविधा जनक यात्रा का पोस्ट लगा ही है, दुकान ऊँची है ही और जो भुक्तभोगी हैं वो लाचार हैं ही, जेब में उतने पैसे ध हो तो भूखे तड़पेगे ही। कधेक्टिंग ट्रेन हो तो छूटेगी ही और जाने कितने कैसी कैसी समस्या से जूझेगें। मर कर जी कर लात खाकर जब आप पहुँचायें तब पहुँचेगें ही भले वह पहुँचने के बाद किसी काम के न रहें या बीबी् से लात खायेगें ही। खून के आँसू रोयेगें क्योंकि वह हैं , विश्व की बेहतरीन रेल व्यवस्था म़ें एक बुलेट ट्रेन चलवाने वाली भारतीय रेल के आम यात्री । जिसकी अपनी इच्छा नहीं होती और होती भी है तो बस टूटने के लिए। माननीय नये मकान शौख से बनाये मगर जरा इतिहास की ,अपने नीव की मरम्मत भी कर दें। नहीं तो वी.आई.पीओं को भी  सड़क पर आते देर नही लगती। इतिहास गवाह है।
जय हिंद जय भारत
अखंड गहमरी

वेबसाइट और पत्रकार बनाने के नाम पर होती धाँधली।

 वेबसाइट और पत्रकार बनाने के नाम पर होती धाँधली।
उल्लू बना रही लोगो को कुकरमुत्तों की तरह उगी कम्पनीयाँ।
आज हर काम आनलाइन हो रहा है। वर्तमान परिस्थिति में बहुत से धंधे डूब चुके हैं। मानव 4 रोटी, 01 मकाझ़नन, 02 जोड़ी कपड़े और दवा में संतुष्ट है। बढ़ती आनलाइन व्यवस्था को देखते हुए तमाम कम्पनीयाँ वेबसाइट बनाने, मोबाइल एप्लीकेशन बनाने की काम में जुट गई है। ऐसे लोग जिनको साइवर की दुनिया का ककहरा नहीं मालूम वह लोग मोबाइल के माध्यम से तरह तरह के मैसेज जिसमें सस्ती बेवसाइट बनाने, एस एम एस पैक देने का मैसेज भेज रहे हैं। कुछ तो आपका न्यूज चैनल बना कर आपको पत्रकार बनाने का दावा ठोक रहे हैं। ऐसी कम्पनीयाँ अपने विज्ञा, ण क्षक्षक्ष,पनो में आपकी अच्छी बेवसाइट बनाने की शुरूआत 2000- 2500 में करने का दावा क क्षर रहती है। आपको तरह तरह के प्रलोभन और चौबीस घंटे एक काल पर सपोर्ट का दावा करती हैं। आप भुगतान करके , जैसे जैसे उनके जाल में फँसते जाते हैं वह अपने सुरसा की तरह मुँह खोलने लगते हैं। हालत आपकी ऐसी हो जाती है कि आप लौट भी नहीं सकते। आपके कि हालत का वह जम कर फायदा उठाते हैं, आप के सारे कन्टेन्ट को अलग थलग कर दिया जाता है।
ये कम्पनीयाँ किसी नामचीन कम्पनी से आपका डोमेन नेम रजिस्टर्ड करा कर आपको विश्वास में लेती हैं। जब दस बीस मुल्ले फँस जाते हैं तो किसी अन्य कम्पनी से सर्वर स्पेश खरीद कर आपकी बनाई बेवसाइट उस पर लाँच कर देती है। ये कम्पनीयाँ खुद तो अनलिमिटेड स्पेश को पूरी तरह स्पेश को अनलिमिटेड समझती हैं मगर आपसे एक पेज, एक कालम बढ़ाने के भी पैसे माँगती हैं। यदि आपकी साइट चल जाती है तो यह आपकी साइट में खुद ही तरह तरह की समस्याएं पैदा कर आपसे पैसे माँगती हैं। समस्या आने पर न यह आपके फोन काल को रिसीव करती हैं, न मेल और वाटस्प का जबाब देती है।
इस लिए आनलाइन बिजनेश शुरू करने से पहले और बेबसाइट बनबाने से पहले कुछ बातो का अवश्य ध्यान रखें.
(01) जिस कम्पनी से आप अपनी साइट बनवा रहे हैं, वह कम्पनी किस शहर में है? उसके आफिस की स्थिति क्या है? उसका मालिक/प्रवंधक खुद कितना जानकार है? उसकी योग्यता क्या है? कम्पनी सेवा देने के लिए सरकार से रजिस्टर्ड है कि नही? इत्यादि जैसी महत्वपूर्ण जानकारी प्रथम चरण में प्राप्त कर लें, केवल मोबाइल पर वार्तालाप पर निर्भर न रहें।
(02) जिस कम्पनी से आप अपनी बेवसाइट बनवा रहे हैं उसने पहले से  किस-किस की बेवसाइट बनाई है? संभव हो तो उसके वर्तमान ग्राहको से उसके सपोर्ट, सर्वर, सेवा , व्यवहार की जानकारी लें।
(03) साइट बनवाने से पहले उस पर लगाने वाले सारी कन्टेंट, आपनी चाहत, अपने डिजाइन , प्रदत्त सुविधा का खाका तैयार कर लें जब सब कुछ फाइनल हो जाये तब सेवा देने वाली कम्पनी से विस्तार से बात करें एक एक प्वाइंट पर चर्चा करने और फाइनल रकम तय करें।
(04) जब भी बात करें पूरे साल आने वाले खर्च जिसमें मेन्टेनेंस चार्ज, रिनिवल के साथ साथ यह भी बात कर ले कि भविष्य में पेज, स्पेश या अपडेशन में क्या खर्च आयेगा।
(05) आपको पत्रकार बनाने वाली कम्पनीयाँ आपको गूगल से रजिस्टर्ड बताती है, जबकि गूगल भारत में पत्रकारिता का कोई रजिस्ट्रेन नही करता। वह केवल आपके न्यूज पोर्टल के नाम से सर्वर, डोमेन रजिस्टर्ड कराती हैं।
भारत में केवल RNI ही आपके समाचार पत्र को रजिस्टर्ड करती है।जिसका चरण आपके जिलाधिकारी से शुरू होकर आर.के.पुरम सेक्टर 8 नईदिल्ली तक के 4 चरणों में पूरा होता है। रजिस्ट्रेन नम्बर आने के बाद आपकी योग्यता के आधार पर समाचार पत्र का वह संपादक जो RNI में रजिस्टर्ड है अपने हस्ताक्षर से संवाददाता बना सकता है। इसके बाद ही आप मान्यता प्राप्त पत्रकार की श्रेणी में आ सकते हैं।

क्रमसः
अखंड गहमरी।

राणा की बहू

 पूरी रात बदन दर्द से परेशान रहा। पानी का गिलास क्या हाथ से छूट कर टूटा वाइफ होम ने हड्डियों का कचूमर ही निकाल दिया। सुबह उठ कर सबसे पहले लाकडाउन में घर रहने के टैक्स स्वरूप अपने कर्तव्यों की पूर्ति कर संतोष के दुकान पर पान खाने निकल गया। अभी मलतनियापुर चौराहे पर पहुँचा भी नही था कि मेरे एक वरिष्ठ, गरिष्ठ, विशिष्ठ पत्रकार श्री श्री  दुखन्ती,परेशन्ति रोवन्ति सत्या उपाध्याय अपने सेव की तरह लाल लाल चेहरा लिए अखाड़े में कूदते पहलवान की तरह तमतमाते चले आते दिखाई दिये। मुझे देखते ही जैसे पुराने जमाने की रेल इंजन चीखता हो वह चीखे ''कहाँ है आपकी पूर्वप्रेमिका गजगमिनियाँ?'' मैं डर के मारे खड़ी ट्रक के नीचे घुस गया। दिमाग की नशे सुन्न हो गई कि कहीं यह आवाज ब्रह्मांड में गूजँते गूजँते मेरे घर के अंदर राणा सिंह एडवोकेट की बिहारी बहू मेरी वाइफ होम तक पहुँच गई तो वह वैज्ञानिक पागल हो कर अपने उस शोध पत्र को फाड़ कर फेंक देगा जिसमें उसने मानव शरीर में पायी जाने वाली हड्डियों की संख्या अपनी खोज के बाद लिखी थी। वह आगे कुछ बोलते मैं ट्रक के पीछे से भागने लगा, मगर दुर्भाग्य देखीये अभिता बच्चन की तरह लम्बे पत्रकार महोदय ने मेरे गर्दन को ऐसै पकड़ा जैसे मैं अपने प्यारे गदहे बच्चों के मामा का पकड़ता हूँ। मुझे दो हाथ जमीन से ऊठाते फिर चीखे भागते कहाँ हो खंड खंड गहमरी

आज तो पुदीने के पेड़ से कूद

 आज तो पुदीने के पेड़ से कूद जाने का जी कर रहा था।  जुल्म ढा रही थी मेरी पूर्व प्रेमिका गजगमिनियाँ। कसम  वाइफ होम की मैं अगर झूठ बोलू तो मेरे मुहँ में कटहल का आचार चला जाये। मैं उसे देख रहा था, वो मुझे देख रही थी।  मेरे और उसके प्यार के दुबारा दीप जल रहे थे, मगर सोमरूआ का दिल जल रहा था। वो गजगमिनियाँ के सामने ही  मुझे लंगूर उसे हूर कह कर जले दिल को ठंडा करने और अपने उस अपमान का बदला लेने की असफल कोशिश किया , जब अपनी वाइफ फस्ट को लेकर गंगा किनारे टहलते हुए यह भूल गया कि वह अपनी शेरनी के साथ है, मेरी गजगमिनियाँ पर फितरे कस बैठा । कसम गजगमिनियाँ की आखों की उसकी सुन्दरी ने अपने सुन्दर सुन्दर चरणपादुका का प्रयोग कर उसे मस्त कर दिया।
मेरा और उसका  प्यार तो गंगा की तरह पवित्र और निर्मल है, जो कल-कारखानों की गंदगी जैसे गंदे सोमरूवा से दूषित नहीं हो सकता। और फिर  जब मेरे जैसा विद्वान, सुन्दर-सुशील, गबरू नौजवान जब अपनी पूर्व प्रेमिका के साथ बैठा हो तो लोग नज़र लगा ही देते हैं, और उसका खामियाजा आपके इस सीधे साधे भोले  अखंड गहमरी को भोगना पड़ता है। आज भी कुछ ऐसा ही हुआ। न जाने कहाँ से मेरी प्रेमिका के हाथ गौमुख और गंगासागर की वीडियो लग गई। अब वह उसे देख कर जिद पकड़ ली कि हम दोनो जगह जायेगें।
पहले तो वह अपनीं अदाओं से रिझा कर अपनी बात मनवाना चाहती और जब मैं नहीं माना तो वह माँ गंगे में कूदने की धमकी देने लगी। मरता क्या न करता तैयार हो गया चलने को..मेरे तैयार होते ही उसने मेरी तरफ हजारो उछाल दिये.. मैं भी धन्य हो गया।
चल पड़ा मैं सिर पर कफन बाधें। वैसे इसके पहले भी मैं अपनी एक पूर्व प्रेमिका मजगमिनियाँ के साथ आ चुका था, मगर इस बार का मंजर काफी बदला हुआ था
गौमुख से गंगोत्री का मार्ग काफी सरल था, गंगा के किनारे किसी प्रकार का प्रदूषण नहीं था। मैने महसूस किया कि जल की मात्रा भी पहले से तीन गुना अधिक है।
हम लोग एक दूसरे के हाथो में हाथ डाले न जाने कितनी दूर चले आये पता ही नहीं चला। यह तो होना ही था। एक तो गंगा का किनारा दूसरे चाँद हाथो में, दिमाग कहाँ काम करेगा।
हम दोनो रिषिकेश, हरिद्वार होते हुए कानपुर पहुँच चुके थे, जून के महीने में भी कानपुर में  गंगा माता के पाट को स्वच्छ और निर्मल जल से भरा देख कर आँखे खुली की खुली रह गई, गंगा में कोई नाला, केमिकल नहीं गिरता देख मैं और गजगमिनियाँ एक दूसरे की आँखो को मलने लगे कि कहीं स्वपन तो नहीं, परन्तु यह स्वपन नहीं था।
माँ गंगे को प्रणाम कर हम आगे बढ़े और इलाहाबाद पहुँचे।
वाह क्या दृश्य था संगम तट का, चारो तरफ रौशनी, हजारो मटकी लिये नवयौवनाएं, कोई पानी भर रहा है कोई लेकर जा रहा है।
विश्वास ही नहीं हुआ कि आज आरो के युग में ''गंगा का पानी''।
हमने भी अपनी पूर्व प्रेमिका गजगमिनियाँ के साथ संगम में डूबकी लगाई और चला पड़ा बनारस की तरफ।
बनारस के अस्सी घाट पर आते ही मेरे बाबा का चेहरा सामने आ गया जब वह तैराकी सिखाने के लिये हमें गंगा में फेंक दिया करते थे और हम छपर छपर करते किनारे आ जाया करते। आज यहाँ भी गंगा की निर्मलता, पानी और घाटो की सफाई का वर्णन शब्दो में बया ही नहीं कर पा रहा हूँ। हम दोनो अभी बैठे ही थे कि तेज शोर सुनाई दिया, शायद गंगा आरती शुरू हो चुकी थी, हम दोनो माँ गंगे की आरती देख कर
मोटरसाइकिल स्टार्ट कर पटना चल दिये। पटना में भी गंगा अपने पुराने स्वरूप में लौट चुकी थी, घाटो से दूर गंगा घाटो को चूम रहीं। इतनी लम्बी यात्रा में मैं यह नहीं समझ पा रहा था जब हर जगह गंगा इतनी पावन हो गई हैं तो मेरे प्रेमस्थल में गंगा इतनी मलीन क्यो? वहाँ घाटो से दूर क्यों? गन्दगी का अंम्बार क्यो?
इन सवालो का जबाब तलाशते हम दोनो सुल्तानगंज पहुँच चुके थे।मुझे क्या मालूम था सुल्तानगंज जिस अजगैबीनाथ कहा जाता है, वहाँ मेरी पिटाई होने वाली है। सुल्तानगंज पहुच कर अभी हम गंगाघाट पर नजारा देखने ही जा रहे थे कि डबल डेकर ट्रेन जैसी काया की स्वामी मेरी वास्तविक पत्नी की प्रतिरूप मेरी आधी घरवाली ''नीतू'' (वास्तविक नाम) ने अपनी बहन से बेवफाई का दाग मेरे दामन पर लगाते हुए एरियल सर्फ से मेरी सफाई शुरू कर दी.. वो डबल स्टोरी, मैं सिंगल चेचिस किसी तरह कसम वसम खा  खुद और गजगमिनियाँ को बचाया।
मगर आप जानते हैं न जो सुधर जाये वो अखंड गहमरी नही..दुनिया सुधर जाये मगर हम नहीं सुधरेंगे।
हम दोनो चोट खाये प्राणी का आगे सफर जारी रख पाना शायद नहीं निश्चित तौर पर असंभव था। किसी तरह गिरते पड़ते हम लोग सुल्तानगंज के घाटो पर पहुँचे, चारो तरफ गंदगी का अंबार था, पानी भी कोसो दूर, समझ में नहीं आ रहा था कि गंगोत्री से पटना तक गंगा की हालत सच थी या पटना से आगे।
मैं सोच में पड़ा हुआ था , परेशान था, कहूँ तो किससे? मेरी इस उलझन को शायद गजगमिनियाँ जान चुकी थी। वह मेरे चेहरे को अपने हाथो में लेकर बोली '' मेरे मोहन तुम जो सोच रहे हो गलत भी है और सच भी''।
सत्तर सालो से गंगा मैली थी, प्रदूषित थी, लोग उनके नाम पर करोडों खा रहे थे। मगर अब चार साल से गंगा माँ की हितैषी पार्टी की सरकार बनी है। हमारे दौरा मंत्री जी और इन चार सालो में इतनी दूर तक गंगा को निर्मल कर दिये, जलयुक्त कर दिये। अब क्या चाहते हो मेरे जानू मेरे जानम? थोड़ा सब्र रखो गंगा पूरी तरह साफ हो जायेगीं, भागिरथ खुश हो जायेगें, उन्हें गंगा को धरती पर लाने का अफसोस नहीं होगा। दुबारा मोदी जी का करो वेट, अभी नहीं हुआ है लेट।
उसकी बातो में मुझे सच्चाई नज़र आ रही थी, मोदी जी ने चार साल में 70 प्रतिशत गंगा की दूरी पूरी तरह शुद्ध कर दिया तो आगे मौका देने पर तो पूरा हो ही जायेगी। मैं मोदी चचा की जय जय करता अपनी गजगमिनियाँ के ज्ञान पर इतराते हुए उसे लगे से लगा लिया, तभी सामने फिर अपनी डबल डेकर काया वाली साली नीतू को हाथो में दुखहरण सुखदाता लिये आते देखा। मरता क्या न करता जानता था वह तैर तो सकती नहीं, मैं गजगमिनियाँ को लिए गंगा में कूद पड़ा और तैरते हुए गुनगुनाने लगा '' मोदी तेरी गंगा साफ हो गई '।

अखंड गहमरी, गहमर गाजीपुर।

अखबार में एक वाहन चालक

 आप के मन में निश्चित कई दिनो से तहलका मचा है कि मैं अखबार में एक वाहन चालक की नियुक्ति का विज्ञापन देखकर वह क्‍यों बार- बार अपने मित्र के पापा के भाई के बेटे के ससुर की बेटी की बहन के पीछे पड़ा हुआ था?  वाहन चालक की पोस्‍ट को पाने के लिए भटकनियाँगंज से लटकनीयाँगंज, लटकनीयाँगंज से खटकनीयाँगज दौड़ रहा था ? सभी असुरो को मना रहा था। मोदी-योगी जी से क्‍यों यह विनती कर रहा था कि पूरे भारत में उसका ड्राइविंग लाइसेंस छोड़ कर सभी का ड्राइविंग लाइसेंस निरस्‍त कर दें। तो इसका सीधा जबाब है कि क्‍या आपने कभी किसी से प्‍यार किया है ? नहीं ? तो तुरंत करीये। तब आपको पता चलेगा कि वर्तमान भविष्‍य में भूत बन जाता है तो दिल के समुन्‍द्र में कितना बड़ा तूफान आता है। आँखो से सुनामी बह कर गालो को खराब करती गले से नीचे कपड़ो को भीँगाती चली जाती है। रैमंड में बनने वाला रूमाल भी काम नहीं आता है। आप वह काम कर जायेगें जो अखंड गहमरी यानि मैं कर रहा हूँ।  तब बातों की हकीकत पता चल जायेगी।
सटखनीयाँ चाचा के आशीर्वाद से जब मैनें एवरेस्‍ट फतह कर लिया  और बन गया देश की विख्‍यात, कुख्‍यात, प्रख्‍यात, अस्‍त, व्‍यस्‍त, पस्‍त और लस्‍त देश के मंचों की बहुत बड़ी कवयित्री  की गाड़ी का ड्राइवर । तब यह राज खोल रहा हूँ  मैं अपनी पूर्व प्रेमिका गजगमिनियाँ के  जिंन्‍दगी की गाड़ी का ड्राइवर नहीं बन सका इस लिए उसकी गाड़ी का ड्राइवर बनना चाह रहा था । क्यों कि ऐसे समय में जब लोग केवल दो फायदे के लिए परेशान रहते है मुझे तल्‍काल ब्रहम्‍मा, विष्‍णू, महेश की तरह तीन फायदे होते और हुए भी । सबसे पहला और बड़ा फायदा तो यह हुआ कि अब मैं अपनी पूर्व प्रेमिका गजगमिनियाँ के साथ दिन भर रहता हूँ। गाड़ी के बैक मिरर में मैं उसे देखता, वह मुझे देखती। उसकी पंसद का संगीत गाड़ी में बजा देता तो वह भी झूमती और मैं भी झूमता। जहाँ- जहाँ, जिस- जिस रेस्‍ट्रोरेंट में हमने लंच डिनर ब्रेकफास्‍ट किया था, वहाँ फिर जाने लगें। भुगतान पहले भी वह करती आज भी वही करती। बताईये हुआ न फायदा ? दूसरा फायदा यह हुआ कि इस होली के अवसर पर जब कवियों और कवयित्री को सीजन चल रहा है तो मैं उसके साथ । उसे सम्‍मान मिलता वह सब लेती तो मैं चट से इधर से हाथ बढ़ाता वह भी उधर से बढ़ाती, कहा जाता है स्‍पर्श से स्‍नेह बढ़ता है तो यह काम भी हो जाता है। मैं उसको मिले सम्‍मान को अपने हाथो में ऐसे उठाता जैसे हिमालय पर्वत इस दौरान लिये गये अखबारी फोटो में मैं भी रहता जिससे कई बार मेरी फोटो भी कुत्‍ते चाट चुके हैं। यही नहीं मैं उसका टेंड-पेंन्‍ट का सामान लिये कार्यक्रम शुरू होने के बाद ठीक सामने कुर्सी पर बैठ जाता और यकीन जानीये जब वह काव्‍यपाठ शुरू करने से पहले मुझे मंच पर बुलाती तो मेरा सीना 5894 इंच का हो जाता। मैं अपने आपको कार्यक्रम की मुख्‍य अतिथि से कम नहीं समझता। सीना तान कर मंच पर जाता । वह अपने हसीन से मुखड़े का डेंट-पेंट करती, मैं शीशा लिये खड़ा रहता उसे निहारता और फिर लौट आता दर्शक दीर्घा में। मुझे उस समय अपनी कुर्सी जाने का भय नहीं रहता। कुर्सी की लडाई तो आजकल भाजपा वाले करते हैं काव्‍य मंचो पर तो कुर्सीयाँ खाली ही रहती है। अब तो वह समय आने वाला है जब दर्शक पैसे और सम्‍मान देकर बुलाये जायेगें, कवि उनका सम्‍मान करेगें। वैसे कवि आज भी दर्शक का बहुत सम्‍मान करते हैं। आयोजक चाहे लाख पैसा दें दे, व्यवस्था दे दें, वह माईक तक नहीं आयेगें। जब संचालक महोदय उनकी वीरगाथा पढ़ने के बाद दर्शको की चमाचागिरी करेगें कि आप ताली बजाकर उनको मंच पर आने का आदेश दें वह तभी आयेगें। कार्यक्रम की समाप्‍ती पर मैं उसके साथ-साथ चलता तो भीड़ मेरे पीछे रहती , मैं उसके साथ साथ। वह थकी हुई कभी कभी कार में सोती तो मेरे बाहों में आ जाती । मुझे कितना सुख मिलता होगा। वैसे जलीये मत ये मेरी बात है। याद है न पत्नी से पिटने का मज़ा वाली बात। तो वाइफ होम से पिटा मैं तो सुख भी तो मेरा। वैसे मेरी गजगमिनियाँ कोई बहुत बड़ी कवयित्री नहीं है, उसका लेखन और गला भी वैसा नहीं मगर संचालक की कृपा है। वह विशलेषणो से परे विशलेषण है। और जब उसका विशलेषण शुरू होता है तो मेरा सीना 9590इंच का हो जाता है।  दो चार बार दर्शको की ताली का आदेश मिलने के बाद ही वह मंच पर आती है। वह मंच पर क्‍या आती है पूरा मंच ही हिला जाती है। आने के साथ पाँच मिनट तो वह आयोजक और संचलाक और मेरे नाम पर तालीयों  का शोर करा ही देती है। इस कला पर मैं तो लट्टू हूँ। वह काव्‍य पाठ शुरू करने के लिए आदेश के लिए भी ताली बजवाती है। 4अक्षर बोलने के बाद फिर वह ताली बजवाती है। खड़ी तो खड़ी, अंतिम पक्ति तो,  नई कविता शुरू तो यहाँ तक की समाप्त  करने व बैठने के लिए भी ताली बजवाती है। इधर बेचारे संचालक महोदय अपनी छवि बिगड़ते देख कर कुछ देर के लिए कवि सम्‍मेलन के मंच को कौव्‍वाली का मंच बना कर एक दूसरे पर पर बम का गोला फेंकते हैं। वो कहते है न कि सवाल-जबाब करते है। बेचारे दर्शक को फिर संचालक महोदय के लिए भी ताली बजाकर इस बात के लिए आदेशित करना पड़ता है कि वह मेरी गजगमिनियाँ के बात का जबाब दें। पूरे मंच से ताली के रूप में आदेश चाहते हैं। हमारे वीर रस के कवि रमेश तिवारी तो हमारी गजगम‍िनियाँ से भी आगे हैं। अपनी पत्‍नी के साथ हुए झगडे़ को ऐसे चीख-चीख कर ऐसे बतायेगें जैसे पाकिस्‍तान के साथ जंग लड़ रहे हो। वह बात बात में पाकिस्‍तान को लेकर वीरता की बातें करके दर्शको से अनुरोध करते है कि इतनी तेज ताली बजाये कि उनकी ताली की गूँज लाहौर और इस्‍लामाबाद में सुनाई दें। उनकी वीरता के शब्‍दो को सुनकर मंच और माइक तो नहीं हिलता मगर उनकी चीख सुनकर पड़ोस में सोये बच्‍चें जग जाते है और वह किसी के सांस्‍कृतिक कार्यक्रम में व्‍यवधान पैदा कर देते हैं। यह बात मैनें  एक कवि सम्‍मेलन में ही जानी । वह कितने मजबूत है यह आप सब जानते ही है मगर वह मंच पर जरूर कहते हैं कि आपकी तालीयाँ कमजोर हैं। एक दिन वह तालियों के लिए हास्‍य कवि गजोधरन से लड़ बैठे। वाक्‍या बस इतना था कि गजोधरन खडे़ हुए लगातार दस बीस लतीफे पढ़े और कुछ आयोजक पर, कुछ संचालक पर कुछ खुद पर तो कुछ उठ कर जाने वालो पर कमेंट शुरू कर तालीयों पर तालीयॉं पिटवाये जा रहे हैं। अब गजोधर भाई की दुकान जब लतीफो पर चल रही है कविता पाठ वो क्या करेगें। इस मेरी ताली तो मेरी ताली पर भीड़ गये दोनो। वो तो भला हो गजगमिनियाँ का जो बीच में आकर मामले को संभाल ली, नहीं तो व्‍यंग्‍य के कवि पलटनीया मिश्रा के आने से पहले ही तंम्‍बू उखड़ जाता।
बेचारे पलटनीया कवि जी आये पहले तो उन्‍होनें बड़े ही प्‍यार से कई विधाओं की टाँगें तोड़ना प्रारंभ किया और बार बार वह इस बात को लेकर ताली बजवाने लगें कि उनकी आवाज को सदन में मोदी योगी राहुल माया तक पहुँचे।  पहली लाइन के बाद ताली बजवाने के बाद तुरंत वह तपाक से बोल देते हैं कि तालीयाँ तो अब इस बात पर चाहिए कि हम गीदड़ हैं। मतलब पंक्ति के पहले मध्‍य में बाद में बस तालीयों का शोर होना चाहिए।
एक दिन कवि सम्मेलन से लौटते समय  फटफटीयाँ चौराहे गाड़ी हमारे प्यार की तरह ब्रेकडाउन हो गई। मैं आव न देखा ताव बनाने लगा, गाड़ी। मेरी हालत देख वह रो पड़ी। तुरन्त मैकेनिक को फोन किया।  गाड़ी बनती तब तक पर दोनो आइसक्रीम खाने चल दिये। वही सामने एक और कवि सम्मेलन हो रहा था। आइसक्रीम खाते हुए मैनें कवि द्वारा तालीयाें का डिमांड का कारण पूछ ही लिया। वह बड़े ही प्रेम से बोली मेरे साँवरे बलम तुम नहीं समझोंगें इस प्रथा को। जब तुम कवि सम्‍मेलनो में जब माइक बजाया करते थे तो उस समय लेखन हुआ करता था। दर्शक हुए करते थे। गरिमा हुआ करती थी। अब कुछ नहीं बचा, अब तो आरकेस्‍ट्रा और कव्‍वाली के मंचों के बराबर यह कवि सम्‍मेलन का मंच हो गया है। तुम मुझे देखें मेैं कब कि कवयित्री थी, लेखन में हजारो दोष हैं मगर आज मैं मारर्केट में बिक रही हूँ, चल रही हूँ, नाम पैसा शोहरत सब हैं। प्रकाशक आयोजक पीछे हैं, क्‍योंकि मुझे मक्‍खन लगाना आता है, मैं राजनीति समझती हूँ। मैनें घीरे से कहा देखो माई डीयर पटकनीया बलम कई मंचो पर संचालक का काम देख रहा हूँ वह तो बस दूसरो के शेर पढ़ कर, तारीफे करके, ताली बजवाकर , और कवियों पर कमेंट पास कर के चार पाँच कवियों के बराबर समय ले मंच पर खडे़ अपने प्रतिभा का प्रदर्शन करते हैं। इस लिए मुझे संचालक ही बनवा दों। खुदा कसम मेरी इस बात पर उसकी जो हंसी आई डोनाल्‍ड्र ट्रम्‍प का जेट विमान हिल गया। उसने मेरे चाँद से मुखडे़ को हाथो में लेते हुए कहा मेरे लतखोर बलम यह काम इतना आसान नहीं, इसके लिए कलेजा चाहिए, तालमेल चाहिए, मक्‍खन बाजी चाहिए, दूसरो की रचना पढ़ना पडेगा तब रात भर चीखना पडेगा और इस बात का समझौता करना पडेगा कि आज हम जितना पुलिंदा आपका बाँधे उतना मेरा बॉंधो। फिर तुम आयोजक कहाँ से लाओगे।  अब मंच संचालन संचालन नहीं मंचो की राजनीति का सिरमौर हो गया है। इस लिए मेरे साँवरे बलम इस का चक्‍कर छोड़ो चलो गाड़ी चलाओं आज मैं तुम्‍हारे साथ बैठती हूँ यह लो और आईसक्रीम खाओं और भूल जाओं कवि सम्‍मेलन और तालीयों को क्‍योंकि अब कवि सम्‍मेलन में न कविता है न भाव है न संस्‍कृति है न साहित्‍य है। बचा है केवल तो वह है लेन-देन। कविता और मंच व्‍यापार हो गये  इस लिए कवि जी श्रोता की जगह अब शबनम मौसी के रिश्‍तेंदारो के तलबगार हो गये। जो हर बात में कहें, हर बात में बोले...देअअअअताली, बअअअजा ताली..........। इतना सुनने के बाद मैं खुश हो गया कि चलो आज मैं इस भीड़ का हिस्‍सा नहीं, मृतुंजय चचा के स्‍वांत सुखाय का हिस्‍सा हूँ। अपनी प्रेमिका के प्रेम के पीछे भागता हूंँ । लोगो के प्‍यार का दिवाना हूँ।

अरे अरे जाइये मत मेरी ड्राइवरी का तीसरा फायदा तो आपने सुना ही नहीं। सही पकड़े बिल्‍कुल सही। अब मैं दिन भर अपनी पूर्व प्रेमिका के साथ रहूँ लेकिन मेरी बाइफ होम अब मुझे मारती नहीं। बस कपड़े बर्तन धुलवा कर, झाडू पोछा करा लेती है, खाना खुद बना देती है। तो अब बताईये इस ड्राइवरी के नौकरी के कितने फायदें है। तो जाईये प्रेमिका बनाईये, उसे पूर्व करीये, ड्राइवर की नौकरी लीजिए और मेरी तरह मजें कीजिए। हम अब चलते है फिर अपनी पूर्व प्रेमिका के बजबजहियॉं कवि सम्‍मेलन में। नमस्‍कार जय हिंद जय भारत।।

अखंड गहमरी

आज सुबह मैं बहुत खुश था

 आज सुबह से मैं बहुत खुश हूँ, नहा धो कर इस्नो पाउडर पोत कर, कंधी-संधी करके मलतनियापुर के लातिंग-मुकिंग गार्डेन में.जाने को तैयार हो रहा था, जहाँ मेरी पूर्वप्रेमिका गजगमिनियाँ मेरा बेसब्री से इन्तजार कर रही थी। आज मेरी दोहरी खुशी का एक कारण यह भी था कि आज मुझे अपनी वाइफ होम के प्रताड़ना से सरकारी अवकाश मिला था। वह दो दिनो अपनी बहन की बेकरी की दुकान के उद्घघाटन के मौके पर तकधिनिया पुर गई थी। अब आप ये मत समझ लेना कि मेरी  माई हाफ वाइफ यानि श्री श्री साली महोदया  शमा बन कर दुकान खोल रही है तो परवाने मडरायेगे। उसके हाथो में तो बस कमान थी, नाचना तो सावन और बादल को है। तो आज इस हसीन पल का फादया उठाते हुए मैं गार्डन पहुँचा। सावला बदन, खुबसूरत काली साड़ी, काले लम्बे बाल,  चेहरे पर महिला गैरेज के डेंटिग-पेटिंग का कोई निश़ा नही, फिर भी बला सी खूबसूरती लिये मेरी गजगमिनियाँ दूर से ही मेरे पूर्व के सफेद दाँतो की तरह चमक रही थी।
 मैं उत्साहित होकर दूर से बाहे फैलाते उसकी तरफ दौड़ पड़ा , वह भी दौड़ी। बाहे फैलाये। दोनो एक दूसरे के गले लगने वाले थे कि बीच रमेश तिवारी जी आ गये , हम दोनो उनसे लिपट ही पडे। गनीमत यही रही कि कबीर दास की चौपाई '' दो पाटन के बीच में साबुत बचा न कोई '' की कहावत ठगस आफ हिन्दुस्तान'' फिल्म की तरह फ्लाफ कर गई, नहीं तो हम दोनो प्रेम की बगीया से लाल-घर पहुँच जाते।
वैसे भी आज मेरे प्यार पर मेरे साढ़ू  विक्रम की नजर लग गई थी। पूरा इलाका जहाँ भूत का सन्नाटा रहता है, आज चारो तरफ भगवा ही भगवा, जय श्री राम के नारे से गूँज रहा था। चारो तरफ दो पल प्यार के गुजारने की चाह लिये हम शांत घूम रहे थे, शांत रहते भी क्यों नहीं , तेज आवाज में तो बस यही गूँज रहा था '' राम लला हम आयेगें , मंदिर वहीं बनाये। तभी मेरी निगाह दूर पेड़ पर बैठे दो आकृतियों पर गई, लगा जैसे मंदिर की परिकल्पना में हनुमान जी दल-बदल बैठे हैं।  थोड़ा आगे जाने पर गजगमिनियाँ ने कहा सुनो मेरे तलियान डीयर लग रहा है ये भाजपा वाले  कितनी बार आने को आना मानते हैं? मैने चट से बोला मतलब 'मेरी रसभरी'। चटाक! ,इसके पहले कि दूसरे भी गाल पर उसकी नाजुक क्लाईयाँ पहुँचती, मैं बोल पड़ा कि मैं  मैं समझ गया मतलब.., मगर मेरी मधटपकी इस का जबाब तलाशते तलाशते तो मेरे पिता जी के पिता की समधी की बेटी के पति के बेटे की सास के लड़के के बाबा दहाड़न दास दुनिया से चले गये, पर तुम ये क्यों पूछ रही हो। उसने जबाब दिया मेरी तो खटिया खड़ी हो गई, हाँ राम को तो प्रतिक्षा करने की आदात तो उस समय से ही है जब वह  अयोध्या में पैदा हुए।  मेरी गजगमिनियाँ मुझे निपट अनाड़ी न समझे, मैं झटपट बोल पड़ा बिल्कुल सही कह रही हो, राजगददी के बाद सुग्रीव भी शायद राम को  भूल गये थे। बिल्कुल सही मेरे लातन डारलिग तभी तो राम जी ने खबर भेजा था कि सुग्रीवहुं सुधि मोरि बिसारी। पावा राज, कोष पुर नारी।।
वैसी ही मोदी जी भी सत्ता पाने के बाद कालाधन वापस लाने , तीन तलाक बिल और एस सी, एसटी एक्ट में ऐसे उलझे है कि राम मंदिर की याद ही नहीं।
मैने धीरे से अपनी गजगमिनियाँ के जुल्फो को अपने हाथ में लिया और बोला प्रिय परेशान न हो बहुत जल्दी एस सी एस टी एक्ट और तीन तलाक जैसे मामलो पर आया बिल आया है राम मंदिर पर भी आयेगा और फिर मंदिर ही तो बनना है कहीं बने।
मेरी इस बात पर अचानक गजगमिनियाँ का चेहरा लाल हो गया, वह मुझे रूई समझ कर धुनिये की तरह धुन दी। मैं अपने वाक्य में गलतियां खोजने लगा तभी वह चिल्लाई.
ये बटोटरना के नाती तुमको मंदिर और जन्मभूमि में अन्तर नहीं समझ में आता? पागल नसपीटा चिल्लाते एक और झापड़ रसीद की , मंदिर हजारो होगें मगर जन्मभूमि केवल एक, वह राम जी की जन्मभूमि का मंदिर है न कि आम मंदिर, समझे पगले। मैं सर हिलाया, और कर भी क्या सकता था? प्रेमिका है और उसमें भी पूर्व लतिया देती है। मैने कहा छोड़ो डार्लिंग अंदिर मंदिर की बात *आओ प्यार करे, कुछ कुछ होता है
 तभी खटाक मैं सिर पकड़ कर बैठ गया एक पत्थर लगा सिर। देखा तो कुछ लोग सफाई अभियान में सड़क का पत्थर साफ करते जा रहे हैं उनके हाथो में अयोध्या मंदिर की मनभावन तस्वीर थी।
मैंने प्रणाम किया, तस्वीर दर्द को खा गया, लेकिन गजगमिनियाँ का सवाल जहाँ का तहाँ था। मैं गम मिटाते हुए बोला प्रिय अभी तो भाजपा न्यायालय-न्यायालय का खेल खेल रही हैं, जैसे हम तुम चोर सिपाही खेलते थे।
गजगमिनियाँ ने हल्की मुसकान बिखेरी, मेरा दिल कुतुबमीनार से कूद पड़ा। मैं बाग बाग हो गया,मैने कहा मेरी फुलवारीहुभाजपा को जब जब आना होगा आयेगी, जाना होगा जायेगी, मगर जब वह राम मंदिर बना ही दे गी, तो तकधिनिया को लुभायेगी कैसे? फिर आयेगी?
ये तकधिनिया कौन है? तवे सा गर्म होते हुए गजगमिनियाँ ने पूछा।
मैं कुछ कहता तभी एक भीड़ राम लला हम आयेगें, मंदिर वही बनायेगें का शोर करते भागने लगी, शायद कोई आ गया।
मैने धीरे से गजगमिनियाँ की तरफ देखते हुए कहा..
राम लला हम आयेगें, मंदिर वही बनायें,  लेकिन रखना याद, तारिक नहीं बतायेगें..
अब शोर काफी बढ़ता जा रहा था, सर दर्द होने लगा था।
हम दोनो आज अपने असफल प्रेमवाणी को विराम देते हुए चल पड़े अपनी अपने घरो की तरफ।
अखंड गहमरी।।

पहली बार जब मैं घर से

 पहली बार जब मैं घर से सूट बूट में निकला या यूँ कहें कि जब पहली बार मैं सूट बूट पहना तो सभी मेरी बलाएं ले रहे थे, खुशी से नाँच गया रहे थे, सारे खुश थे। आज मैं वर्षो बाद एक बार फिर सूट-बूट में क्रीम, पाउडर सेंट मार कर घर से निकल रहा हूँ तो लोग हाय-हाय कर रहे हैं, जल रहे हैं मेरी सुन्दरता से, मेरे कद से मेरी प्रतिष्ठा से। जलें जलें जल कर राख हो जायेगें और कोई माननीय अटल बिहारी वाजपेई जी नहीं हैं वो जो जलने के बाद भी देशाटन का सपना पूरा हो जायेगा। भाजपाई लोटे में भर कर गली-गली घुमा देगें। इस लिए मत जलें और बंद आँखो से मुझे मेरी पूर्व प्रेमिका गजगमिनियाँ  के बाँहो में बाँह डाले, मेरी वाइफ होम की तरह शांति से घघरनियाँपुर रेलवे स्टेशन पर सफाई पखवाड़े का शुभारंभ करने जाते हुए देखें जिसका निमंत्रण मेरे बाबू जी के बाबू जी के समधियाने में समधी के लड़के के दोस्त के चाचा का भांजां घघरनियाँपुर रेलवे स्टेशन पर स्टेशन मास्टर हो कर आये साधू बाबा ने मुझें बहुत बहुत बहुत बड़ा साहित्यकार समझते हुए भेजा है। इसी लिए कल से मेरा कालर टाइट है।  हम तो तय समय से पहले ही स्टेशन पहुँच जाते मगर कीड़े-पड़े सफाईकर्मियों को जो सुबह होने से पहले झाडू लगाने आते ही नहीं, पूरा स्टेशन दुर्गंध युक्त रहता है। चुप चाप इतंजार कर रहे थे,  ये ससुरी घड़ी भी आज दस बजाने में घंटो ले रही थी। मेरा और मेरी गजगमिनियाँ के मेकप की सफाई भाष्कर की तेज किरणें अभी से करने लगी थी।  अचानक मेरा चेहरा खिल उठा, सैकड़ो का काफिला आता दिखा। मेरा भी सीना चौड़ा हो गया लेकिन 56 इंच का नहीं, क्योकि मोदी जी 56 इंच शब्द का जो हाल किया, यह शब्द ही धरने पर बैठ गया। मैं सीना ताने गजगमिनियाँ की हाथ हाथ में लिए खुली जीप में बैठ गया। क्या जलवा था?  जगह जगह स्वागत। मैं भी चेहरे पर गंम्भीरता का लबादा ओढ़े स्टेशन कैंपस में दाखिल हुआ। बेजोड़ स्वागत हुआ।  एसी से आती ठंडी हवा और शिवगति साह के रसोगुल्ले की मौजूदगी में दिव्य नास्ता हुआ, अभी मेरी गजगमिनियाँ ने मात्र 10-12 ही गले के नीचे उतारे थे कि मजधरूआ पोर्टर आकर बतलाया कि सारी तैयारी हो गई।
मैं तो खुशी से पगलाय गया, मगर ऊ कहते हैं न कि मन के भाव को मन में रहने देना चाहिए, वही किया, बेखर अंजान सा सुनता रहता रहा, तभी प्रिंस बाबू आये और बड़ी सालीनता से हमें लौह पथ गामिनी विश्राम स्थल संख्या एक पर चलने का निवेदन करने
लगे। मैने भी एक अदद अंगडाई लिया, एक घूँट पानी पीया और चल दिया, आगे आगे रेलवे स्टाफ, मेरे दलबदलू दल के कार्यकर्ता बीच में मैं।  हम लोग  प्लेटफार्म पर स्थित सफाई अभियान प्रारंभ स्थल पर पहुँच चुके थे जहाँ शानदार सजे हुए कुछ आप के  चुनाव चिन्ह जिन्हें मजबूरी में हाथ से क्या दिल से भी लगाना पड़ा रहा रखे हुए थे और दो बाल्टी कुछ कागज के टुकड़े, कुछ प्लास्टिक, कुछ पत्ते, चाय-पानी के गिलास भरे हुए थे। हम लोगो के पहुँचते ही जिन्दाबाद जिन्दाबाद के नारे शुरू हो गये, मोदी जी जिन्दाबाद होने लगे। उनके सपने को मूर्ति रूप देने के लिए दोनो बाल्टीयों में रखे स्वच्छ और निर्मल कूड़े प्लेटफारम के टाइल्स लगे जगह पर उलाट दिये गये। अब वह कूड़ा मेरै, गजगमिनियाँ, और अन्य लोगो के बीच फुटबाल बनता हुआ बड़े शान से कैमरो में कैद हो रहा था, निगाहे कूड़े पर कम कैमरे पर अधिक थी। दस मिनट  कूडा-कूड़ा खेलते खेलते कैमरो के फ्लैश चमकना बंद होने लगे तब  केजरीवाल के चुनाव चिन्ह को हम लोगो ने  मोदी जी के मंदिर और 370 के वादे की तरह हाथो से मुक्त कर दिया।  अब जोशीले अदांज में लोगो ने मेरी और मैने मोदी जी और स्वच्छता पर फरकट गुरूजी से लिखवाया भाषा जो महीनो से रट रट कर याद किया था दिया। अब बोलने की बारी मैरी गजगमिनियाँ की आने वाली थी,  लेकिन मैं क्या जानता था कि यहाँ भी रमेशाहानाथ मुझसे दुश्मनी निकालेगें।
एक श्याम-स्वेत बालक पीछे से आकर मेरी गजगमिनियाँ के दुपट्टे को खीचने लगा, अभी मैं उस पर अपने क्रोध को प्रकट करने वाला ही था कि मेरी गजगमिनियाँ बैठ कर उसे बात करने लगी और उसके साथ चल दी। अब मेरी कहाँ औकात कि उसके पीछे न जाऊँ। चल दिया उसके पीछे -पीछे। वह दोनो आगे आगे मैं पीछे और पूरा दलबदलू दल पीछे पीछे। यह काफिला उसी प्लेटफार्म के पीछे बने एक शौचालय पर रूका।  तेज दुर्गंध से नाके फटी जा रही थी , हम सभी तेजी से वहाँ से नाके बंद किये आगे निकलना चाहते थे, मगर यह क्या गजगमिनियाँ तो वही रूक गई। इसके पहले कोई कुछ समझ पाता मेरी गजगमिनियाँ ने वहाँ मौजूद सभी के हाथो में दुबारा केजरीवाल का चुनाव चिन्ह पकड़ा दिया। मगर यह क्या? पीछे की भीड़ के हिस्सा फोटोग्राफर, मीडिया कर्मी,  समाजसेवी, अधिकारी सब फरार हो चुके थे। मैं बेचारा गहमरी फँस चुका था। गजगमिनियाँ की चरण पादुका प्रयोग के डर से शौचालय साफ कर रहा था और अब वह दूर खड़ी मीडिया के सामने सफाई के महत्व को बताते हुऐ बार बार मेरी तरफ ईशारे कर रही थी। जैसे तैसे शौचालय सफाई का काम पूरा हुआ।  मैं उसके पास आया, सभी नाके भकौड़ रहे थे। कुछ फ्लैश चमका रहे थे जिनके कैमरे का रूख मेरी तरफ कम गजगमिनियाँ की तरफ अधिक था। मेरे सूट बूट मोदी के वादे की तरह बेवफा हो चुके थे। फिर मैं गजगमिनियाँ की तारीफ में कसीदे पढ़ते कि उसने सही राह दिखाई, मीडिया के सामने आँखो में आये अश्को को छुपाते हुए मोदी की पेट्रोल की कीमतो में कमी करने की कसमें वादे की तरह हमेशा ऐसे ही जरूरमंद जगहो की सफाई करने  कसम की कसम खा रहा था। सफाई के महत्व का गुण गा रहा था और अपनी पूर्व प्रेमिका गजगमिनियाँ को मुस्कुराते हुए देख रहा था।
जय सफाई, जय कैमरा, जय मीडिया और जय सोशलमीडिया।

अखंड गहमरी

बाजार की गलियों तक

 
सोशलमीडिया से लेकर बाजार की गलियाँ, सरकारी और गैर सरकारी प्रतिष्ठानो में बड़ी रौनक थी। मेरी पूर्व प्रेमिका गजगमिनियाँ भी बड़ी खुश थी, उसके तो पाँव जमीन पर पड़ ही नहीं रहे थे। पहली बार उसने समाज को काँव-काँव कर बता रही थी कि वह मुझे जानती है। मेरी प्रेमिका मेरी प्रेयसी है। शायद उसे भारत में एक पखवारे के अंदर लगभग 100 करोड़ रूपये के व्यवसाय में से लाख रूपये गटकने का तरीका पता चल गया था। मारीशस से लेकर भारत की गलियों तक वह चीख-चीख कर कौवे जैसी आवाज में उस पखवाड़े की तारीफ करती उसकी शान में अपनी टूटी फूटी जानकारी देती और अंत में प्यार से अपना पर्स खोलती एक लिफाफा अंदर कर चल देती। हाँ मौका मिलते ही अपने कथन और पखवाड़ा भूल कर मुझे मोबाइल पर  Hi Dear My Sweet Heart I love. Good night sweet dream  कहना नहीं भूलती। मैं तो बस सुनता ही रहता क्योंकि मोदी, गजगमिनियाँ और अपनी वाइफ होम के आगे विरोध करने का साहस मुझ में नहीं था।
मैं तो पागल दिल्ली से दौलताबाद घूमता रहता, मगर हर जगह पखवारे के समारोह को बाद ही कोई इसके तरफ ध्यान नहीं देता। वैसे हीआज गजगमिनियाँ ने शाम मेरे साथ गुजारने का वादा किया था, मगर उसका वादा मोदी के वादे की तरह हवा-हवाई निकलना। शाम से रात हो गई  हो गई उसका पता नहीं चला। मैं उदास उस हाल के बाहर बैठा था जहाँ से आज दिन भर उसकी आवाज में हिन्दी को भीगँते देखा, तभी मेरी नज़र सामने उठ गई , देखा कि मेरी एक और पूर्व प्रेमिका मजगमिनियाँ हाफ्ते हुए भागी आ रही है। मुझे देखते ही अपने चरण-दास को निकाल बड़े ही बोली ''अरे गहमरीया तू पागल हो गईल बाड़े का रे, तोरा के कहा कहा खोजली अ तू एइजा मूअत बाड़े, चल हमरा संगे''।
मैं कुछ समझ पाता इससे पहले ही वो मेरा हाथ पकड़ कर पास खड़ी टैक्सी में खींच लिया। टैक्सी कहाँ जायेगी? मुझे क्या करना है कुछ पता नहीं। 10 मिनट के बाद वह एक बड़े मकान के सामने रूकी जहाँ काफी रौनक थी। बाहर बड़े बड़े अच्छरो में बोर्ड लगा था, Welcome To Hindi Divas. गाडी रूकते ही वह मुझे खीच कर अंदर ले गई जहाँ एक आदमी आधी हिन्दी आधी अँग्रेजी में हिन्दी भाषा के प्रयोग का महत्व समझाते हुए हिन्दी का प्रयोग करने और कराने की बात कह रहा था।  मैं बोलते हुए आदमी को पहचानने की कोशिश कर रहा था मगर याद नहीं आ रहा था कहाँ देखा है। अचानक दिमाग में बिजली कौंधी यह तो वही आदमी था बिहरनिया बैंक का मैनेजर एतवरूआ था जो एक दिन मेरे हिन्दी में भरे फार्म को लेने से इन्कार कर दिया और मुझे जाहिल अनपढ़ बता रहा था, अँग्रेजी सीखने की सलाह दे रहा था।  तब तक मेरी प्रेमिका मुझे मंच पर लेकर पहुँच चुकी थी। उसने माइक सीधे माइक लेते हुए और लेते क्या छीनते हुए मेरे शान में बोलना शुरू किया। आज पहली बार उसके मुहँ से पागल, उल्लू, सनकी, दिलजले शब्द को छोड़ तारीफ के शब्द सुन कर मेरा सीना चौड़ा हो गया । मैं अब अपने सीने को 56 इंच का नहीं कहता क्योंकि अकसर 56 इंच का सीना बताने वालो का सीना 5-6 इंच भी नहीं रह जाता है। खैर मैं अभी अपने विचारो में मग्न था कि तालीयों की जोरदार आवाज सुनाई दी और मेरी मजगमिनियाँ ने हिन्दी दिवस पर बोलने के लिए माईक मूझे थमा दिया।
अब मैं क्या बोलता हिन्दी और हिन्दी दिवस पर जब हिन्दी खुद असहाय हो गई है अपने ही देश में, हिन्दी तो उस वाइफ होम की भाँति हो गई है जिसे हम साल में एक बार सजा-सवरा कर निकालते हैं, उसे खिलाते -पिलाते, घुमाते हैं, उसकी तारीफ  करते है, उसके साथ जीने मरने की कसमें खाते हैं, लाखो क्या करोडों के वारे-न्यारे करते है, फिर ढ़केल देते हैं उसी काल कठोरी में और अपनी फैशनेबुल प्रेमिका अंग्रेजी के साथ पूरे 350 दिन ऐश करते हैं।
मैनै तो मन की बात करना तब से छोड़ दिया जब से मन की बात  बदलने लगी। मगर इतना तो मन से मन कहने लगा कि जिस देश में आज तक हिन्दी को पूरे भारत में अनिवार्य नहीं कर सके, हिन्दी कामकाज को सम्मान नहीं दे सके , उस देश में हम राम मंदिर बनने, धारा 370 और आरक्षण हटने जैसे कभी न पूरे होने वाले सपनो की तरह विश्व भाषा बनाने चले हैं।
फिर भी अपनी मजगमिनियाँ को खुश करने के लिए कुछ तो बोलना ही था मैनें उसे अपने पास खींचा, उसकी आँखो में आँखे डाल कर हिन्दी पर बोलना शुरू किया  My Dear gentleman... तभी सामने देखा मेरी पूर्व प्रेमिका गजगमिनियाँ आती दिखाई दी। अब भारत-पाक जैसे युद्ध के हालात होने वाले थे और मैं चीख चीख कर हिन्दी दिवस पर बोले जा रहा था ताकि बम की आवाज से बचा जाये।नहीं तो आज हिन्दी दिवस के खत्म होते होते मेरे काले धने मुलायम बाल भी खत्म होकर हिन्दी की तरह बेचारे हो जायेगें।

अखंड गहमरी,

लतीफेबाज गहमरी

 
आज बैठे बिठाये लतीफों की तरफ ध्यान चला गया। लतीफा,जोक,चुटकुला और न जाने कितने और नाम होगें और इसकी परिभाषा क्या होगी यह तो कोई साहित्यकार या अध्यापक ही बता सकता है, मगर मैं इतना जरूर बता सकता हूँ कि आज जो इसका रूप मेरे समाज में उभर कर आया है ये मेरा किया-धरा है।
मैने लतीफों को केवल एक उद्वेश्‍य पूर्ति का साधन बना कर रख दिया है। सॉंप भी मर जाये लाठी भी न टूटे। अब मैं लतीफे कभी हसाँने के नहीं लिखता, गुददुदाने के लिए नहीं लिखता, मैं तो लतीफो के शक्‍ल में प्रहार करता हूँ हिन्‍दू धर्म पर, सम्‍मानित रिश्‍तों पर, भारत की सभ्‍यता संस्‍कृत पर, पति-प‍त्‍नी, गुरू- श्‍ािष्‍य के रिश्‍तो पर। करूँ भी तो क्‍यों नहीं करूँ, लोग ताली बजाते है, एक दूसरे को भेजते हैं, भले नाम मेरा नहीं आता मगर मेरे विचार तो सब तक पहुँच जाते ही है, तो मैं सफल हो जाता हूँ अपने मकसद में।  किसी को बुरा भी नहीं लगता और मेरी बात भारत ही नहीं वरण पूरे विश्‍व में फैल गई।
हाँ लतीफे मैं मंचो से भी पढ़ता हूँ, कविता के नाम पर परोसता हूँ। परोसें भी क्यों नही? जब उद्देश्य पूर्ति के लिए लिखी गई दो कौड़ी के लतीफे जब मंच पर ताली, माला और दाम दिलातें हैं तो मैं लाखो की कविता क्यो बर्बाद करूँ?  मैं पागल थोडे हूँ कि जिससे आयोजक, संयोजक, साक्षात देवता स्वरूप श्रोता खुश हो रहे हो उसे बंद कर अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारूँ।
ऐसा नहीं है कि सभी को मेरी यह करतूत अच्छी लगती है, कुछ लोग है जिनको नागवार लगती है, मगर बेचारे करे तो क्या? किसका गला पकड़े? भेजने वाले का तो पता है मगर लिखने वाले का तो पता नही? पता चल भी गया तो जब मेरे गले में फूलो का हार हैं तो वह चाह कर भी जूतो का हार मेरे गले म़े नहीं डाल सकते। थक- हार कर विरोध लिखेगें, तो लिखो न भाई विरोध किसने मना किया है। मेरे जैसे लिखने और सोचने वाले तो लाखो हैं और तुम मुट्ठी भर लोग क्या कर लोगे, कितने साथ देगे़ं तुम्हारा? अब ये मत कोई समझे कि हाथी को चीटी सूढ़ में घुस कर मार सकती है। न अब वो चीटी है न अब वो हाथी। लाज-शर्म और संस्कारो की दुहाई देकर भी तुम मुझको मना नही सकते क्योकि मैं लाज-शर्म, संस्कार सब शर्बत बना कर पी चुका हूँ। रिश्तों की अहमियत, मान-मर्यादा सब चुल्हे में भस्म कर चुका हूँ। जानते हैं क्यों?
क्योकि मेरा उद्देश्य ही है, सस्ती लोकप्रियता, हिन्दू धर्म को नीचा दिखा कर महान सेकुलर बनना। मेरा उद्देश्य है गुरु-शिष्य, पति-पत्नी के संबंधो और मर्यादा को तार-तार करना।
तो बताओ क्या होगा मेरा..कुछ नही न...तो बजाओ ताली मेरे नाम पर। महान लतीफेबाज अखंड गहमरी के नाम पर।।
जय अखंड गहमरी, जय लतीफा।
अखंड गहमरी।।

आदरणीय इन्‍द्रदेव जी

 आदरणीय इंद्र देव जी
आपके चरणों में अखंड गहमरी का कोटि कोटि प्रणाम।
हम सब पृथ्वीलोक वासी आपके राज्य में सुखी  हैं आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि आप भी स्वस्थ, सुखी होगें।
वैसे लगता है कि या तो आप की मानसिक स्थिति कुछ ठीक नहीं या फिर आप पर तुलसी दास जी की समरथ के नहीं दोष गोसाई बात को प्रमाणित कर रहे हैं या फिर लगता है कि आप ने भी अपने गुप्तचरों की नियुक्तियां आरक्षण पद्धति के आधार पर कर दी है जो आपको सत्य रिपोर्ट नहीं दे पा रहे हैं। यदि आपकी मानसिक स्थित ठीक नही हैं तो आप गाजीपुर आ जायें यहाँ डा. राजेश सिंह बिना आरक्षण वाले हैं वह आपका सही इलाज कर देगें,क्योंकि जो अंक वह पाये हैं वह असली है। मुझे इन तीन बिंदुओं पर इस लिए प्रकाश डालना पड़ रहा है क्योंकि लगता है आप भी हमारी सरकार की तरह तुष्टिकरण की नीति अपनाये हैं। अमीरो द्वारा किये जा रहें प्रर्यावरण के दोहन की सज़ा आप भारत में राजनीत की धुरी कहे जाने वाले किसानो और मजदूरो को दे रहे हैं।
आप ने जिस पर बैशाख माह को सावन भादो बना दिया है बेचारे किसान मजदूरों का तो जीवन ही बर्बाद होने के कागार पर है। आपको भी लग रहा होगा कि इस लाकडाउन में अखंड गहमरी शराब कहाँ से पा गया ? जो बहकी बहकी बातें कर रहा है। इंद्र देव जी लाकडाउन तो अमीरो , सेलीब्रेटीयों और नेताओं के हाथ की कठपुतली है जैसे चाहा नचा दिया। किसानो और मजदूर तो नियमों के मार खा करती अपने थाली में  एक दाने अन्न को तरसते हैं। जवान बेटी के ब्याह की आशा तो खड़ी फसलो के स्वरूप पर तय करते हैं। सपने जब स्वरूप पर निर्भर हो जाते हैं तो स्वरूप के टूटने पर सपने अखंड नही खंड खंड हो जाते हैं। बताई देव राज इंद्र ये बेमौसम बरसात कर जिन किसान मजदूरो के खेतो का स्वरूप बिगाड़ कर उनके सपनो को सपना बना रहे हैं उनकी खता बस बता दीजिये। अपने इस पागल बऊचट गहमरी को इतना बता दीजिये कि धरती पर उनके मालिकों द्वारा वादो की चासनी में लपेट कर, दिखावे के मंच से दिये गये जख़्मों में कुछ कमी रह गई थी जो आपने भी तैयार फसलों को जलमग्न कर दिया।
महाराज आपके सामने तो यह मानव कुछ नहीं, विधि का विधान कह आप सौ बातों का एक जबाब दे सकते हैं, परन्तु अपराध क्षमा मत करीयेगा मेरा  मैं पूछना चाहता हूँ इन्द्र देव कि.विधि का विधान केवल गरीबो के लिए है या समर्थवान लोगो के लिए भी है।
चलीये भगवन चलता हूँ, अधिक क्या लिखूँ, अधिक बोलूँगा तो आप कहेंगें बोलता है। जरा विचार करीयेगा किसानो मजदूरों पर भी। उनके सपने पर भी।

आपका पुत्र
अखंड गहमरी।

अरे नसपिटना

 अरे नसपिटना तूअ मनबे कि ना मनबेअ बोल त। सनक मत सनक मत। तू जानत नईखे दगनऊ हमके। बबरिया पकड़ के चढ़ जाइब सिनवा व छतिया के बतिया कुल टूट जाई।
तू भेटो हमरा से दोगलऊ। अनेत कइले बाड़अन। तोहरा बुझात नईखे केतना हम मोबअइलिया से बतियाई रे? बोल त। अऊरी माटी लागो इ अमबनिया के नतिया के टवरवा ठीक नईखे करत। उ वीडिइयो प ठीक से लऊकत नईखे। चमकावे ले नथुनी पहिन के त लागे ला पगहा पहिनले बिया। अरे चिनिया के नतिया एक त हमार बियाह तय ना हो त रहे ,  केतना मेहनत से गुलझरिया चाची हमार बियाह तय करवली अपना ननद के लइकी के चचिया सास के पूआ के नंनदोशी के लइकी के लइका के सास के बेटी से मलतनियापुर में। बियाह क दिन पनडी जी के सजाव दही ऊपर से सवा रूपया दछिना दे के चार गो जयहिन बीड़ी पिया के रखवउनी, तू सरऊ आ के कुल मेहनतिये प पानी फेरत हअव?
अरे दूधकटऊ लतकनिया के, भटकनिया के, धनियवा के,सोमरूआ के,  बुधअना के बिहवा त टरवाईये देहलअ।कुल पइसा गइल पानी में। अब हमरो टरवाबे प लागल बाअडअ। दू महीना से रोज खाली मोबाइल प बतियाई ला। भेंट नइखे होत। कइसे जिनगी जीहीं? बताऊ तूही।
मान जो रे त न दिमगवा घूमी त जियते मुह में आग लगा देब मरहूँ ना देब। हमके कनिया ले आबे द नाही त।
अब जा तू भइल पूसे से तू बाड़े बइसाख आ गईल।
जेठ में बियाह बा हमार, ना होई न त तू बूझ लीहे मटिलगनू , चुल्ही में डार देब तोहके।
जा त बानी  बतियाबे के टाइम हो गई अब तू जनहीहअ तोहार काम जानी। तोहार दवाई करेम खाली हमरा बियबा के दिनवा त रह जा तू।
भड़केले बानि बियाह टरला के सोच सोच के, जानत हवे न हमार नाव मरखंड  सिंह ह, तनि कान नाक खोल के सुन ले  मरखंड सिंह
अखंड गहमरी

दिखा कर पाव के कँगना

 लगाये आँख में लाली सुबह वो पास आती है
दिखा कर पाँव के कंगना खुशी से मुस्‍कुराती है।

कहे कैसी सजी हूँ मैं लगा कर मॉंग में काजल
तुम्‍हें मैं प्‍यार करती हूँ समझना मत मुझे पागल
लगाती नाक पर बिन्‍दियॉं अदा उसकी निराली है
जला कर दिन में वो दीपक कहे मुझसे दिवाली है
बजा कर हाथ की पायल मुझे हरदम सताती है
दिखा कर पाँव के कंगना खुशी से मुस्‍कुराती है।
लगाये आँख में लाली सुबह वो पास आती है

न पूछो बात तुम उसकी बड़ी सीधी बड़ी न्‍यारी
लगाये  गाल में अतला मुझे लगती बड़ी प्‍यारी
गुलाबी होठ हैं उसके पहनती है नया झुमका
अगर आवें कभी भाई लगाती झूम के ठुमका
खिलाने को उसे बकरा मुझे चूना लगाती है
दिखा कर पाँव के कंगना खुशी से मुस्‍कुराती है।
लगाये आँख में लाली सुबह वो पास आती है

पहनती नाक गजरा हमेशा लाल फूलों का
टंगी तस्‍वीर पर मेरी चढ़ाती हार शूलों का
मुझे हो दर्द पैरो में, तो गर्दन मेरा वो मलती।
बड़ा अधिकारी बाहर में, मगर घर में नहीं चलती।
बुला कर घर वो सखियों को, मुझे नौकर बताती है।
दिखा कर पाँव के कंगना खुशी से मुस्‍कुराती है।
लगाये आँख में लाली सुबह वो पास आती है

तेज तुफानी हवा

 तेज तुफानी हवा और ठंड के बाद भी मैं पसीने से लथपथ था। हाथो में उसका खत था, आँखो में अश्क। अश्क की कुछ बूँदे उस अनमोल कागज पर गिर कर शब्दों की दशा बिगाड़ रही थी। बाहर का तूफान मेरे दिल के अंदर के तुफान से कमजोर था।
खत में लिखे शब्दो पर भरोसा नही हो रहा था कि मैं जिसे जान से अधिक चाहता वह इस प्रकार मेरे भावनाओं से खेलते हुए आगे निकल जायेगी। कितनी आसानी से लिख दिया उसने कि आज पढ़े लिखे आधुनिक सोच के लोगो का जमाना है। मैं तुम्हारे जैसे कम पढ़े लिखे देहाती से विवाह कर अपने सपनों को जला नहीं सकती। तुम मुझे भूल जाओ तुम मेरे सपने पूरे नहीं करते।
तीर की तरह चुभ रहे थे दिल में यह शब्द। हा हा हा दिल और मेरे पास? ऐसा हो ही नहीं सकता।
अचानक तेज हवा का झोंका मेरे हाथो से वह खत ले उड़ा और बारिस की बून्दों से उसके अस्तित्व को मिटा दिया। अच्छा हुआ दिल दिल ही है तो किसी के साथ प्यार में जीता और किसको दिलजला नाम दे जाता।

अखंड गहमरी

जाम ऑंखो अपनी पिलाओ मुझे

 जाम आँखो से अपने पिलाओ मुझे।
नींद आती नहीं तुम सुलाओ मुझे।।

जुल्फ़ तेरी उड़े तो धड़कता है दिल।
गिरे आँचल तुम्हारा मचलता है दिल।।
पास आ कर गले से लगाओ मुझे.
जाम आँखो से......

लब से लब का मिलन हो चले आओ तुम।
छोड़ मेरा  शहर मत कही जाओ तुम।।
प्यार के छाँव में अब छुपाओ मुझे।
जाम आँखो से अपने.....

है पता तुम न आओगी मेरे सनम ।
प्यार तुमको है मुझसे मेरा वहम ।।
तोड़ सपने सभी तुम जलाओ मुझे
जाम आँखो से अपने...........


अखंड गहमरी

टूटे चश्‍में से

 टूटे चश्में से अखंड गहमरी
कोरोना जी सादर प्रणाम। आज जो मैं लिखने जा रहा हूँ वो आपके जाने के बाद ही नहीं जब तक धरती रहेगी तब तक पढ़ा जायेगा। सोचने पर मजबूर करेगा। मैं आपको बधाई और धन्यवाद देता हूँ  जो आप ने धर्मनिरपेक्ष लोगो , हिंदू-मुसलिम भाई भाई कहने वालों के मुहँ पर ऐसा तमाचा मारा है, जिसकी आवाज और गूँज का जिक्र कर्मा फिल्म में दादा ठाकुर के मारे थप्पड़ पर डाक्टर डैन ने किया था । आपके द्वारा मारे गये तमाचे का असर धर्मनिरपेक्ष ताकतें जन्मजन्मांतर तक याद रखेंगीं। उनके गालों की लाली नहीं जायेगी। परन्तु जिस प्रकार यह अखंड गहमरी अपने वाइफ होम के चरण-पादुका के प्रयोग से गालो और पीठ पर पड़ी लाली को बहाने की चादर का आड़ ले बेसर पैर के दलीलो में छुपाता है, यह ताकते भी आपके द्वारा मारे गये तमाचे की लाली को छुपाने का प्रयास करेगी, दलीले देगीं।
यह दलीलें कितनी उनके आत्मा से निकलेगीं और कितनी उनके गले से यह तो वह खुद समझते होगें मगर मैं दावे के साथ कहता हूँ कि सच वो नहीं होगा जो वह कह रहे होगें। आज पूरा भारत आप से नहीं लड़ रहा। कोरोना जी मैं डंके की चोट पर पहले भी कह चुका हूँ और आज फिर कहता हूँ कि मेरे देश की मिट्टी, मेरे देश की मिट्टी से जुड़े चिकित्सक, मेरे देश का आधात्म और मेरे देश के आयुर्वेद से लड़ कर जीत जाने की औकात आपकी नहीं थी। आपकी  इतनी हैसियत नहीं थी कि हमारे देश की गलियों में प्रवेश कर जिंदा रह जाते क्योंकि हम चाइना, इटली, अमेरिका नहीं। हम तो वह हैं, हमारी प्रतिरोधक क्षमता तो वह है  कि 7 सितारा होटलों में  खाते,फाइलों और कम्प्यूटर के बीच उलक्षते, एसी में जिंदगी बसर करते और बंद लंम्बी गाड़ीयों में घूमते जब गाँव की सरहद में पहुँचे खेतो की मिट्टी को माथे से लगाते हाथ में कुदाल ले उतर जाते हैं. और वही पर रूखा सूखा खा कर लम्बी डकार ओ.....अ....म करते है।  ऐसे भारतवासीओं का आप कुछ न कर पाते। परन्तु आपके साथ वह आये जो खाने की थाली में छेद करना ही अपना फर्ज समझते हैं। भारत की बर्बादी का तरीका खोजते हैं, ऐसे आस्तीन के साँपो ने आपका साथ देकर हमें हराने की पूरी साजिश रच दी। कोरोना जी मगर आप शायद भूल गये, हिन्दुस्तान को बर्बाद करने आज पहली बार आप महजिदो से नहीं निकल रहे आप के पहले भी महजिदो से बंदूक और बम भारत को नेस्तनाबूद करने की चाह में निकल चुकी है। ये पहले भी भारत विरोधी ताकतों का साथ देते हुए हर प्रकार का कृत्य कर चुके हैं मगर देखीये हमारे देश के धर्मनिरपेक्ष ताकतो की चालाकी जो अपने स्वार्थ के रंग में रंग कर इनको बचाने में लग जा रहे थे, पर आज जब सीधे तौर जिंदगी और मौत के बीच की दूरी सिमट कर रह गई है कौन क्या कहेगा? कौन कैसे सफाई देगा मैं नहीं जानता।
कोरोना जी मैं तो बस इतना जानता हूँ कि आज जो देश काँप गया है उसके लिए कोरोना कम मौलाना जिम्मेदार है।.पूरे देश में मंदिर, गुरूद्वारा बंद हैं। रामनवमी जैसा त्यौहार आ कर चला गया, हमारी सदियों से चली आ रही परम्पराओं ने, हमारे मंदिरो में बैठी माँ भगवती ने की पूजा पद्धति को रोकते  हमें आदेशित किया कि मेरे बच्चों  मैं दस रात भूखी रह सकती हूँ मगर तुम्हें तड़पता मरता नहीं। घर में रहो। मगर इन महजिदो ने , इन मौलानाओ ने क्या किया? आपने देखा। कितने मुसलमानों ने अपने महजिदो और मौलानों के इस कृत्य का विरोध किया आपने देखा ही होगा? शायद एक प्रतिशत भी नहीं।  कोरोना जी आज अखंड गहमरी जल रहा है तो इस लिए कि लिखने के सिवा कुछ कर नही सकता और यह लिखा भी पढ़ कर धर्मनिरपेक्ष तो होगें ही हमारे अपने लोग भी भैवें टेरी कर लेगें।  चश्मा टूट गया है, टूटे चश्में से और क्या लिखूँ बस यही कह कर आप से विदा ले रहा हूँ, कि जब तक भारत में मुसलमानों को मसीहा के रूप में देखा जायेगा आप जैसे देश के दुश्मन स्वस्थ, प्रसन्न, मस्त रहेगें मेरे देश और देशवासियों को बर्बाद करते रहेगें, चाहे शासन प्रशासन और यह अशिक्षित बद्तमीज अखंड गहमरी कितना भी जोर लगा लें, चाहे कुछ भी कर ले।  
न वो इसे रोक पायेगा और ना तो यह समझ  पायेगा कि आखिरकार देश में मुसलमानों का विरोध करने पर हमारे देश के लोगो को किस प्रकार का रोग हो जाया है, किस प्रकार उनकी समाजिक और आर्थिक हैसियत में अंतर पड़ता है? क्यों लगाते है लोग मुसलमानों का तेल? क्यों दिखाते हैं खुद को धर्मनिरपेक्ष? क्या वो तब ही सुधरेगें मुस्लमान उनका ही घर जलायेगें?  यदि ऐसा है तो बस कोरोना जी आपका साथ देकर अल्लाह के फ़जल से हमारे देश के शांतिदूतों ने यह काम शुरू कर दिया है। अब देखना है कि उनकी इस आग में केवल अखंड गहमरी जैसे धर्मनिरपेक्षता के विरोधी लोग जलते है या मेरी तीसरी पूर्वप्रेमिका  मजगमिनियाँ भी जलती है।
, जय गहमर, जय वाइफ होम, जय पूर्व प्रेमिका गजगमिनियाँ।

अखंड गहमरी टूटे चश्मे से

पारूल

 बिस्तर पर लेटी हुई उसने आवाज दिया पारूल ओ पारूल जरा इधर आ।
(दूसरे कमरे से पारूल का प्रवेश)
पारूल जी मेम माम साब।
जरा मेरे सिर में बाम लगा दे, बहुत दर्द हो रहा है।
जी मेम साहब (वह बाम लेकर उसे लगाने बैठ जाती है)
पारूल एक बात कहूँ मेम साहब ?
कहो, उसने बेरूखी से बोला।
आप उसे भूल क्यों नहीं जाती?
किसे? बहुत ही धीरे आवाज में उसने पूछा।
वही जिसकी तस्वीर देख कर आप दिन रात अपने अश्क बहाती हैं।
मैं तो कोई तस्वीर नहीं देखती, कोई अश्क नहीं बहाती। तू कैसे कह रही है यह सब?
मेम साहब हम गरीब काम धन के लिए जरूर करते हैं लेकिन दिल लगा के, दिल से।
हाँ हाँ जानती हूँ अब फिर शुरू मत हो जा।
तो भूल जाओ न, क्यों अपने को जला रही हो।
क्या क्या भूल जाऊँ?
मैं अनाथ जिसके जीवन में एक बार प्यार आया ये भूल जाऊँ? इस तन के हर हिस्से पर उसके लिखे नाम भूल जाँऊ?
चलो मान लिया कि सब कुछ भूल गई,(कुछ सोचते हुए उसके मन में कुछ दृश्य चल रहे हैं) मगर उस एहसास को कैसे भूल जाऊँ जो उसने मुझे दिया।
आज भी उसकी गर्म साँसे मेरे तन बदन पर महसूस होती हैं।
पारूल ये कैसा प्यार है मैम जो जाने के बाद भी इतनी तकलीफ दे रहा है।
वो हसते हुए पगली प्यार तो तड़प का दूसरा नाम है।
कभी मिलने की तड़प तो कभी बिछुड़ने की तड़प।
(वो शुन्य में खो जाती है)
खोये खोये..बहुत प्यार करती थी मैं उससे, उस दिन उसे के साथ जलैया ताल जाने का प्रोग्राम था। बड़ी मुश्किल से एक दिन का अवकाश आफिस से मिला था।इस प्राइवेट नौकरी में मालिक खून का आखिरी कतरा नोचनें को आतुर रहता मगर एक दिन अपनी खुशी के लिये दे नहीं सकता..
मैं सुबह से खाना बनाने में व्यस्त थी, खाना भी बनाती तैयार भी होती। निश्चित समय पर वो आ गया..
काली परछाई ...बड़ी सुदंर लग रही हो
कहते वह मुझे पकड़ कर अपने प्रेम के निशा देने
मैं अंदर की तरफ भागी।
वह भी वहाँ पहुँच गया।
तभी एक कर्कश आवाज गूँजी..
मैं जानती थी कि तू फिर उसी अनाथ के घर गया हो गया।
चल यहाँ से जिसके कुल खानदान का पता नहीं मैं उसे अपनी बहू नहीं बना सकती।
माँ उसके हाथो को खीचें ले जा रही थी और वह अपने ओठों से माफ कर देना, माफ कर देना बोले जा रहा था।
मैं खड़ी तमाशा देख रही थी..
कहते कहते वो रो पड़ी उसकी आवाज तेज होने लगी।
पारूल उसे छोड़ कर बाहर निकल गई ताकि उसके दिल की ज्वाला आसूँयों से शांत हो सके।

तुम याद न आया करो

 अश्क से ये हिमालय पिघलता नहीं।
देख कर कौन तुमको मचलता नहीं।।

तुम न आया करो, रात में छत पे अब ।
चाँद छुपता है नभ में निकलता नहीं।।

जुल्फ तुमने बिखेरा मैं घायल हुआ।
दिल सभाँला बहुत पर सभलता नहीं।

प्यार मेरा समझती न तुम खेल तो ।
चैन मिलता मुझे मैं, भटकता नहीं।।

बेवफा अश्क होते न मेरे अगर।
रंग तस्वीर का यूँ बिखरता नहीं।।

बात से बात तेरी मिलाता जो मैं।
नाम मेरा तुम्हें तब खटकता नहीं।

दिल ही रखता न अब दिलजला गहमरी।
पास रहती जो तुम वो बदलता नहीं।।

अखंड गहमरी

न थाना पर न पकड़ीतर

 न थाना पर न पकड़ीतर, न गंगा घाट  ही जाना।
अभी भी लाक डाउन है , पड़े मत रोज समझाना।।

पुलिस वाले लिये डंडा, खडे़ हैं बैंक स्‍टेशन पर।
बनायेगें तुम्‍हें मुर्गा, सुनायेगें तुम्‍हें  गाना।।

पड़ा हैं बंद माँ कामाख्‍या,  का मंदिर ये बता दूँ मैं।
उधर का रूख मत करना, पडे़गा मार ही खाना।।
 
किसानो को न रोका है, किसी ने वो करें खेती।
परेशा पशु के कारण वो, न मितला हेै उसे दाना।।

पुलिस भी अब समझती है, बहाना मत बनाना ये।
निकल कर जा रहे हैं हम, दवा लाने  दवाखाना।

डुबुकिया बाग है सूना,  यही है हाल म‍ठिया का।
न कोई पाठशाला पर, न सोचो पचमुखी आना।।

ऐ बुढ़वा महदेवा जी अब, सुनो अब गहमरी की तुम।
न कोरोना ये फैले अब, विजय इस पर हमें पाना।

अखंड गहमरी

मैं एक किसान हूूँ

 मैं एक किसान हूँ। देश विकसित हो या विकासशील। दुनिया  गरीब हो या अमीर। सुख में हो या दु:ख में, न मेरी उपयोगिता न कम हुई न होगी। मेरे कार्य न कम हुए थे न कम होगें। अगर आज आप की बेटी यह कहे कि पृथ्वी पर जीवन की कल्पना हमारे बिना संभव नही है तो कदापि गलत नहीं होगा।  आज मैं आपके सामने कुछ बहुत आसान सी बातें रखते हुए पूछना चाहती हूँ कि जब संसार को संसाधन, शिक्षा, स्वास्थ, सुरक्षा, भौतिक सुख इत्यादि देने वाले मानवो को महत्वपूर्ण स्थान दिया जाता है, सुख-सुविधा दी जाती तो हम किसान उपेक्षित क्यों हैं? भारत ही नहीं विश्व की राजनीति हम किसानों के इर्दगिर्द मंडराती है, मगर हकीकत के धरातल आते ही दम तोड़ देती है। चावल, गेहूँ, दलहन और फल यही मुख्य रूप से संसार में बनने समस्त व्यंजनो वह फास्ट फूड का आधार हैं। इनको पैदा करने में एक किसान को कितना  शारिरिक व मानसिक श्रम करना पड़ता है वह तो यहाँ बैठे हमारे सम्मानित बुजुर्ग ही समझते हैं। हम नई पीढ़ी तो उसकी कल्पना भी नही कर सकते कि एक प्लास्टिक के बोरे में भरे बीज को कैसी-कैसी परिस्थितियों से गुजरते हुए किसान हमारी उस थाली तक पहुँचाता जिसकी कीमत किसान की मेहनत से नहीं खिलाने वाले की हैसियत से तय होती है। हम यह सोच भी नही पाते कि कैसे महीनों रातों को जग कर । आँधियों-बारिसों में चल कर। ज्येष्ठ की बदन जला देने वाले तेज धूप को सह कर। पूस की रातों में गल कर । संसाधनों का, असुविधाओं का, प्राकृत की मार सह कर, गुमनामी के अँधेरे जीते एक किसान ने इस थाली को यहाँ तक पहुँचाया है। हमारे सोच का दायरा ही इतना बड़ा नहीं कि हम  संजय, सरिता, राजेश, ममता, चन्द्रभान, लक्की जो खुद को समाज के निर्माण की पहली सीढ़ी कहते हैं, पूछे कि बताओ आपने धरती के भर्ता को क्या दिया? लहलहाती फसलों को देख अपनी बेटी के हाथ पीले करने का , अपने बेटो को उच्च शिक्षा दिलाने , पत्नी के बदन को प्रदर्शित करने कपड़ो  और फटे जूते को बदलने का स्वपन जब प्राकृति की मार से टूटता है तो आप उसके लिए क्या करते हो? कैसे समाज को उसके मदद के लिए आगे लाते हो। हम कभी नही पूछ सकते श्रीमती सुनीता सिंह से, श्रीमती मीरा देवी से कि संविधान में किसानो को प्राप्त अधिकारो को , हकीकत की धरातल पर लाकर दो वक्त की चैन की रोटी का, उनकी बर्वाद फसलो का इमानदारी से मुआवजा का क्या प्रवंध किया?
मैं  बैंक में कर्ज के लिए, खाद और बीज के लिए, बेटी के विवाह के लिए दौड़ते किसान को देख राजनीति जलसे में, जाति के जलसे में दौड़ने और आन्दोलन करने वाले आप आम लोगों की आँखे क्यों नही पथराती।
आज  आप की बेटी   यही कहना चाहती है कि राजनीतिक पोस्टरो और भाषणों से,  सरकार की बंद एसी वाले कमरे में बनने वाली बेसिर पैर की योजनाओं से, प्राकृतिक आपदाओं पर दस पैसे  मुआवजे की और समाज के द्वारा हम किसानो की उपेक्षाओं से निकाल कर हमें भी मान सम्मान से जीने का, दो वक्त की रोटी और परिवारिक जिम्मेदारीओं को आसानी से पूरा करने का अधिकार दें, हौसला दें।
क्योंकि हम भी मानव हैं, संवेदना है, सपने हैं, चाहत है।
हम किसान भी आपका ही अंग है। हमें भी दिल में जगह दें।
जय हिंद, जय भारत, जय जवान, जय किसान।

खुश तुम सदा

 खुश रहो तुम सदा, मत दुआ दीजिए।
नाम मेरा ज़हा से , मिटा दीजिए।।

थी ख़ता बस यही, प्यार समझा न मैं।
उस ख़ता की मुझे, कुछ सज़ा दीजिये।।

चाँद मुझको निकल कर, जलाने लगा।
मैं जला हूँ उसे ,यह बता दीजिए।।

अश्क मेरे गिरे , तो हँस पड़ी आप थीं।
याद इसको न रखें, यह भुला दीजिए।।

भूल जायें कभी दिल, दिया था मुझे।।
चोट अपना समझ,  इक नया दीजिए।।

मैं वफ़ा प्यार चाहत, के काबिल नहीं।
गीत लिखकर इसी,  पर सुना दीजिये।।

वेबफा आप को मत , कहे कोई भी।
दोष कुछ गहमरी, पर लगा दीजिए।।

अखंड गहमरी

पिता दिवस पर भी

 कुछ दिन पूर्व माता दिवस पर लिखी कहानी आज पिता दिवस पर भी बिल्कुल वही आभास करायेगी।।।

हजारो लोग के बेरोजगार होने की संभवाना से ही मेरा मन व्याकुल हो रहा था। ये सवाल उठ रहा था कि हर शहर में बनी आधुनिक सुविधाओं से लैस ऊँची ऊँची इमारतो का क्या होगा। क्या आने वाले समय मेंं नगरवासी भूत बंगले के नाम से पहचानेगें या फिर वर्तमान नाम से। मेरी चिन्ता नाजायज नहीं थी, सोसशमीडिया पर आज मैने जो मातृ प्रेम देखा, कुछ दिन पूर्व जो साहित्कारों, नेताओ, युवक-युवकतियों सहित सभी में जो पितृ प्रेम देखा, मुझे लगा कि अब शहर में और शहर क्या विश्व में इनकी कोई जरूरत नहीं है।
घूमते टहलते मैं शहर के एक बड़े हवेली नुमा मकान के पास पहुँच गया, हवेली में बिखरे,फूल, गुलदस्ते, मिठाईयो के साथ- साथ, रंग बिरंगे परिधानो में सथे उस हवेली में महँगी- महँगी गाड़ीयो में आये नये मेहमानो को उस हवेली में रहने वाली दुबली पतली काया जिनके आँखो में वीरानियाँ थी, दर्द थे .शेल्फी लेते, मिठाईयाँ खिलाते देख मन प्रसन्न हो गया। लगा जैसे कुछ ही देर में यह जगह वीरान होने वाली है, ये सोचते सोचते मैं भागवत की दुकान पर पान खाने बढ़ गया। पान की दुकान पर भी वही चर्चा कोई कह रहा कि अब समाज में बढ़ते प्रेम से हालात सुधरेंगे, तो कोई दिखावा मात्र बता रहा था, जितनी मुहँ उतनी बाते। जब कभी मेरी सोच का समर्थन होता मेरा सीना 56 इंच का हो जाता और जब गलत काटी जाती तो मेरी शक्‍ल बिल्‍कुल उल्‍लू के जैसी हो जाती थी। बातो के दौर में वही हुआ जो बहस के दौरान होता है, निकला था घर से 5 मिनट की इजाजत लेकर हो गये पूरे एक घंटे, अब तो गृहलक्ष्‍मी द्वारा चरण पादुका के प्रयोग का भी खतरा सिर पर मढ़राने लगा था।
मैं धीरे धीरे कदमो से वापस उस हवेली के सामने पहुँचा मुझे आशा ही कि अब वह जगह सुनसान हो चुकी होगी, बड़े से गेट में बड़े से ताले लग गये होगें, मैं दुखी था, मगर उस हवेली के सामने पहुँचते मेरी खुशी का ठिकाना ना रहा, हवेली खुली हुई थी, गाड़ीयों की भीड़ जरूर खत्‍म हो गई थी, रंग-बिरंगे परिधानो वाले, शेल्‍फी लेने वाले अब वहॉं ऩजर नहीं आ रहे थे। नज़र आ रहे थे तो बस वो जो वहॉं हमेशा रहते थे, जो एक सेल्‍फी लेने के लिए दिन भर गंदे किये गये उस हवेली को साफ करने में लगे थे।
तभी मेरे कानो में गली से आती हुई एकतेज आवाज गूँजी, वो आवाज सामने एक नये हवेली के शुभारंभ के खुशी में बजाये जा रहे बाजे का शोर था, जिसे सुन कर मेेरे खुशी का ठिकाना ना रहा ,मुझे लगा कि वास्‍तव में आज मानवता जिन्‍दा है, बेरोजगारी खत्‍म होगी, मेरी सोच सही साबित हुई अब भी हवेलीयॉ सूनी नहीं रहेगी, बेरोजगारी बढेगी नहीं , क्‍योकि नये हवेली में बजने वाले बाजे से चीख चीख कह कहा जा रहा था '' आपके माता पिता को घर जैसा माहौल और सेवा देने का वादा करता हूँ अत्‍याधुनिक ''शेल्‍फी ओल्‍ड होम''। आज के समाज की जरूरत'' सेल्‍फी होल्‍ड होम'' आपके सपनो को पूरा करने का अवसर प्रदान करता''शेल्‍फी ओल्‍ड होम।।

अखंड गहमरी गहमर गाजीपुर

गजगमिनियाँ के पर्यावरण दिवस पर अखंड गहमरी की पिटाई

 गजगमिनियाँ के पर्यावरण दिवस पर अखंड गहमरी की पिटाई

कलेजे में बहुत दर्द हो रहा है। बस आप यूँ समझ लें कि दर्द के मारे मेरी हालत वही है जो आप की तब होती है जब आप अपनी घराणी से छुप कर अपनी बहराणी यानि बाहर वाली ने मिलने जाते हैं। वही हालत आज मेरी इस दर्द की है। और देखीये न आपको बता भी नहीं सकता कि यह दर्द क्यों  हो रहा है। एक कहावत है वैधा मारे रोवन न दें। बस समझ लीजिए वही हालत है। आप कहेगें बताओं-बताओं तो आप किसी को बताते हैं क्या किं आपने अपनी पूर्व प्रेमिका का नम्बर किस नाम से मोबाइल में शेव किया है? नही न? तो मैं कैसे बता दूँगा कि आज मेरी वाइफ होम ने जम कर मेरी ठुकाई किया है। आप किसी को बताते हैं कि अपनी आमदनी में से कितने का समान खरीद कर अपन वर्तमान प्रेमिका को देते हैं? नही न?तो मैं कैसे बता दूँ कि बेलन, चप्पल के साथ-साथ, पर्यावरण दिवस प्रयोग दिवस यंत्र  खुरपी और कुदाल से मेरी वाइफ होम ने मेरी ठुकाई किया है। मेरे सर से पर्यावरण का भूत पूरी तरह उतार दिया है।

लेकिन जो हुआ सो हुआ हमारे फटकनियाँपुर में जब बच्चों का कान छिदाया जाता है तो उन्हें पहले गुड़ खिलाया जाता है और बाद में कहा जाता है कि जो गुड़ खायेगा वही कान न छेदवायेगा। तो गुड़ खा लिया हूँ कान छेदाया तो छेदाया। उस गुड़ की कितनी मिठास थी ?आपको पता नहीं।आह! आह!, वाह! वाह! क्या आंनन्द था उस गुड़ का। खुदा भी सोचता होगा क्यों  जमीन से चला गया इस नजारे को देखे बिना। आज मेरी पूर्व प्रेमिका गजगमिनियाँ को देख लेता तो वह भी भूल जाता सब कुछ। क्या  लग रही थी आज हरी-हरी चुनरी साड़ी में हरी साड़ी, हरी ओठलाली, हरी चप्पल, ऊपर से नीचे तक पूरी हरी हरी। बिल्कुल हरी मिर्च सी सूरत थी उसकी। मगर मैं लाल मिर्च सा। सूखा सूखा पूरा उजाड़ खंड। अरे! आज जब वह अपने 6 फुट की कोठी से निकलती तो पूरा मुहल्लाम तो मुहल्ला शहर भी बेहोश होने की हालत था। शेरनी जैसी चाल से वह ज्यों ही कार के पास पहुँचती मैं लपक के कार का दरवाजा खोला। मुझे देखते ही वह शर्माइ, घबड़ाई फिर इतराई, बड़बडाई और फिर धीरे से पूछी यहाँ कैसे मेरे लतखोर बलम? बोलो-बोलो, टेल-टेल।  मैं भी प्यार से जबाब दिया।  देखने चला आया दूर से लग रहा था कोई पेड़ सड़क पर चल रहा है। लोग परेशान थे मगर मैं तो जान गया था कि तुम घर से निकली हो, सो चला आया।

अच्छा किये आ गये तो, चलो मेरे साथ। कहाँ चले जी? मैं तो जा रहा हूँ वाइफ होम के लिए डेटिंग पेटिंग का सामना लेने। मैं कुछ नही जानती बैठो गाड़ी में । उसने गाडी में खीचा और गाड़ी चल पड़ी। मैं कुछ दूर तो कार से खिसटता रहा फिर अंदर आ गया। उसने अपने पर्स से रूमाल निकाला और बड़े ही प्यार से मेरा चेहरा साफ करते हुए बोली हम लोग चल रहे हैं लुटेरन आनलाइट फालतू पंथी स्कूाल, आज पर्यावरण दिवस पर वहाँ व़क्षारोपण करना है।

मैं तो यह सोच कर ही कि आज खाने को मिलेगें डिन्चूलक डिन्चू्क डिस, अखबार मे फोटो आज तो जलवे ही होगें। भूल गया कि वाइफ होम का डेटिंग पेटिंग सामान लेने निकला था।। अभी हमारी गाड़ी  लुटेरन आनलाइन फालतू पंथी स्कूिल से फटकालिस फीट दूर ही थी कि स्कूल में भगदड़ मच गई। दस आगे दस दाये दस बाये बस पीछे चल दौड़ने लगे अगर यह द़ृश्य देख लें तो डोनाल्डक भी शर्म के बारे में चाय की केतली में कूदने को मजबूर हो जायेगें। हमारी गाड़ी रूकी। लपक कर पटबेलन मास्टलर साहब ने गजगमिनियॉं का और सटकेलन मास्टयर साहेब ने मेरा दरवाजा खोला। मैं भी शान से उतरा। मंच तक पहुँचते पहुँचते फूलो की बरसात, स्वा‍गत। जिंन्दगी का मजा आ रहा था। लम्बा-चौड़ा भाषण देकर जब पिरिनिसपल साहेब ने मेरी गजमिनियाँ को बुलाया तो मेरा सीना तो 598 इंच का हो गया। मेरी गजगमिनियाँ भी किसी से कम तो हैं नहीं छक्केे पे छक्काय, अठठे पर अठ्ठा मारे जा रही थी। स्टेडियम में सचिन की आतिशबाजी और ताली फेल, जीरो, शुन्य  मेरी गजगमिनियाँ के आगे। सभा समाप्तआ हुई। अब बारी थी पर्यावरण दिवस पर पौधे की, बड़ी ही शान से हम लोग पहुँचे, एक आम के पेड़ का पौधा तीन लोग उठाये ऐसे चल रहे है जैसे किसी भारी पर्वत को उठाये हो। पौधा जमीन पर रखा गया, उसे पहले से खोदे गड्डे मे डालने के लिए पूरा स्कूस मैनेजमेंट खड़ा गया, बेचारे उस पौधे पर इतनी जगह नहीं बची की उसकी सूरत कोई देख सके। आधे घंटे की जय जयकार के बाद एक पौधा लगा। हम लोग आगे चले। तभी पीछे से एक आवाज आई मैं पटल कर देखा एक मरियल सा पौधा दिखा। मैं सोचा इसकी आवाज नहीं हो सकती। मैं आगे बढ़ा, फिर आवाज आई मैं पटल कर देखा तो वह पौधा ही था जो बोल रहा था उसने मुझे देखते ही कहा अरे खंड खंड गहमरी इसी तामझाम के साथ मैं पिछले साल लगाया था जरा मुझे भी पानी पिला दो। मेरे पिछले साल वाले तो अल्लाह को प्याार हो चुके हैं। मैं उसकी बात सुन कर उसे डाँटते हुए बोला चुप रहो दिमाग खराब है क्या? , अब नये की बारी है।

हाँ सुनो एक बार लगाये पौधै को सीचने देखने की प्रथा नही।

फोटो छप गमा लाइक व कमेंट आ गय काम खत्म। वह कुछ बोलने का मुह् खोला ही था कि

गजगमिनियाँ की आवाज गूँजी कहाँ रह गये?तुम्हारी यही आदत गंदी है चिपक जाते हो।

मैं भाग कर उसके पास पहुँचता उसकी गाड़ी मे बैठने ही जा रहा था कि मुझे वाइफ होम के सामानो की लिस्ट  याद आ गई मैं कार में गजगमिनियाँ को किसी तरह समझा कर भागा, मैं पैदल चल रहा था, सामानो की लिस्ट देखते हुए सोच रहा था कि आज तेरा क्या  होगा अखंड गहमरी बड़ा मनाया पर्यावरण दिवस अब लात दिवस मना, आगे तो जो हुआ आप जानते ही हो।मेरी हालत। दुआ है कि आप की भी यही हालत हो ताकि आप मुझ पर हंसे मत वैसे ये बात तो आप सही कहते है वाइफ होम के हाथो पिटने का मजा की कुछ और है।

अखंड गहमरी

गहमर इंटर कालेज के 3 त्रिदेव

 अखंड गहमरी: भाग एक

गहमर इंटर कालेज गहमर और अखंड गहमरी
आषाढ़ माह में किसानो को  अपनी खेती के साथ-साथ बच्चो की पढ़ाई का भी कार्य देखना पड़ता है।
इस कोरोना काल के दौरान खाद्यान्न दवा छोड़ कर सारे व्यवसाय पूरी तरह बर्बाद हैं।
सरकारी नौकरी व पेंशनभोगियों पर भी संकट कम नहीं। जिनके घर दो कोरोना पेशेंट हो गये और दस दिन ही हास्पिटल में रह गये, वह तो पूरी तरह बर्बाद हैं।
आज इन विषम परिस्थिति में चार साल पूर्व गहमर इंटर कालेज के पूर्व कमेटी को भवन शुल्क के नाम पर, दुर्यव्यवस्था के नाम पर कटघड़े में खड़ी करने वाली गहमर इन्टर कालेज की इमानदार , स्वच्छ छवि वाली कमेटी, अभिवावक संघ और विद्यालय प्रधानाचार्य अब खुद कितना जनहित, छात्रहित का कार्य कर रहे हैं, बताने की जरूरत नहीं है।
जब मैने विद्यालय प्रशासन से कहा कि इस आर्थिक मंदी के दौर में किसान, मजदूर , व्यवसाई सब परेशान हैं, भवन शुल्क को केवल जो अध्यापक रखे गये हैं नीजी तौर उनके मानदेय इतना लेकर शेष इस वर्ष के लिए माफ कर दिया तो इस पर जो जबाब आया वह मैं आपको क्रमवार बतायूँगा।
अखंड गहमरी
[7/8, 15:57] अखंड गहमरी: भाग-3

गहमर इन्टर कालेज गहमर के दूसरे त्रिदेव लाचार अध्यक्ष मृतुंजय सिंह

आना तो पहले नम्बर पर चाहिए लेकिन दूसरे नम्बर पर आ गये विद्यालय के अध्यक्ष मृंतुजय सिंह जी।
बेचारे के पास कई जिम्मेदारीयाँ हैं। पटना की दुकान, गोपाल राम गहमरी संस्थान और विद्यालय की अध्यक्षई। अब वह समय दें तो कहाँ कहाँ? विशेष आयोजनों पर विद्यालय मेहमान की तरह पहुँचते हैं। इनसे उनसे बातें सुनते हैं। विद्यालय के कटरा प्रवंधक जो आर एस एस विचारधारा के है और प्रधानाचार्य जो एक दल के शिक्षक हित दल के पदाधिकारी हैं दोनो के बीच फंसते निकलते हैं और चंद घंटे अपने कर्तव्य की किताबी इतिश्री करने के बाद शाम को पटना पैसेंजर पकड़ कर मुस्कुराते लौट जाते हैं। आखिर वहाँ तो व्यवसाय है। बंद का मतलब घाटा, क्यों एक रूपया नुकसान हो। अब विद्यालय की समस्या गहमर रहें, बच्चों अभिवावको के बीच जायें तो पता चले कि गंगा में कितना पानी है।  उनके अध्यक्ष पद में कितना पावर है? कितना प्रयोग करते हैं? नही करते तो क्यों नहीं करते यह तो समझ से परे है। ऐसा लगता है कि विद्यालय के अध्यक्ष न होकर कोई कठपुतली हों जिसकी डोर कहीं छोर कहीं।
विद्यालय के विल्डिंग फीस पर जब भी बात करो तो बस एक ही जबाब कि देखते है-देखते हैं, अभी तो हम लोग लगे हैं कि जो अध्यापक विद्यालय में रखे गये हैं उन्हें न्यूनतम दैनिक मजदूरी के समान मानदेय दिया जाये।
अब अध्यापकों को न्यूनतम दैनिक मजदूरी मानदेय देने के लिए भी अभिवावको के सर पर बोझ डालना कहाँ तक उचित है यह तो वही बतायेगें। अध्यक्ष होने के कारण वह नेताओं, मंत्रीयों, व्यापारियों इत्यादि से भी तो सहयोग प्राप्त कर सकते हैं।
लेकिन नहीं करते क्योंकि ये करने के लिए विद्यालय में मौजूद रहना होगा, लोगों को बुलाकर  हकीकत दिखानी होगी, विश्वास में लेना होगा, और इतनी जहमत पाले कौन तो उससे अच्छा है बच्चों अभिवावकों को रगड़ो।
अखंड गहमरी
[7/8, 15:57] अखंड गहमरी: भाग-4

गहमर इंटर कालेज के त्रिदेव में तीसरे त्रिदेव विद्यालय के प्रधानाचार्य मारकंडेय यादव की तरफ जिनकी आँखो में दिमाग में फिट है

*अब चलते हैं गहमर इंटर कालेज के तीसरे त्रिदेव की तरफ जिनका नाम हैं श्री मारकंडेय यादव जी आप गहमर इंटर कालेज प्रधानाचार्य हैं।
किसी विषय पर बात करने पहुँचो तो यह युवा स्मार्ट लुक प्रधानाचार्य मुस्कान से ऐसा स्वागत करते हैं कि आधी बात और आधी गर्मी तो आपकी वैसे ही खत्म, उसके बाद आप प्रश्न क्या करेगें आप की समस्या पर आपको ही कहेगें आप खुद को मेरी जगह रख कर देखीये। आप बात करने पहुँचेगें गरीबी रेखा पर और वह आपको घेर कर बात करेगें रेखा की गरीबी पर।
दिमाग के तेज और आँखों में एक्सरे मशीन लगाये यह प्रधानाचार्य महोदय राह देखते हैं कि कौन इनके पास आकर अपनी बेवसी बता कर शुल्क माफी की बात करता है। वह अपने आँखो और दिमाग में लगे मशीन से उसकी वास्तविक स्थिति का सटीक मुल्यांकन कर लेते हैं।
जब मैनें कहा कि आपके सामने मेरी बड़ी इमारत है , समाजिक पहुँच है। आपने देखा है बड़ा व्यवसाय है तो आप तो मेरा अंदाजा आर्थिक सम्पन्नता में लगायेगें जबकि दो साल से मेरा व्यवसाय डूबा है, खाते में 46 रूपया है यदि मेरे दो बच्चे पढ़ रहे हैं तो कैसे जमा होगा?
गुरू जी ने मंद मंद मुस्कुराते हुए जबाब दिया '' अजी आपका क्रेडिट है मार्केट में'।
यानि आपको फीस चाहिए भले ही मैं कर्ज लेकर दूँ।
हमारे प्रधानाचार्य महोदय बिल्कुल मैनेजमेंट के सच्चे सिपाही की तरह भवन शुल्क के खर्च भी आप को गिना देगें।
पहला खर्च तो विद्यालय में आरो मशीन लगनी है। ठीक है भाई मशीन लगवा दो बच्चों के पैसे से, मगर शर्त यह रहेगी स्कूल के अध्यापक और विद्या प्रचारिणी सभा के पदाधिकारियों व सदस्यों को एक बूँद पानी नहीं पीना होगा, क्योंकि दायित्व तो उनका है।  दूसरा खर्च साहब बताते हैं कि तीन साल से विद्यालय में सेंटर नहीं था, इस बार सेंटर आ रहा है इस लिए डबल सी.सी.टी.वी. कैमरा लगना है।
लो कर लो बात भाई, स्कूल का सेंटर मास्टरो की लापरवाही से गया और सी.सी.टी.वी. कैमरा लगेगा अभिवावको की गाढ़ी कमाई से. यानि करे कोई भरे कोई।
मुझे तो इस बात का डर है कि कही स्कूल के अध्यापको व विद्या प्रचारिणी सभा के सदस्यों व पदधिकारीयों के घर बच्चा पैदा होने पर थर्ड जनरेशन को देने और सोहर का पैसा भी भवन शुल्क से मत ले लिया जाये।
विद्यालय के प्रधानाचार्य महोदय भी अपने कटरा मैनेजर के फैसले पर अंगद के पैरो की तरह जमे दिखते हैं। आखिर जमें क्यों नहीं? चोली-दामन का साथ जो ठहरा।

अखंड गहमरी
[7/8, 15:57] अखंड गहमरी: भाग-2

गहमर.इंटर कालेज के त्रिदेव में प्रथम त्रिदेव कटरा मैनेजर मारकंडेय सिंह ऊर्फ मारकंडेय बाबा . बच्चों पर नहीं दिखती इमानदारी ।

 गहमर इंटर कालेज के प्रवंधक की बात करूँ तो इन्हें कटरा प्रवंधक या इस्तीफा प्रवंधक ही कहना उचित होगा।
इस्तीफा प्रवंधक इस लिए क्योंकि वह बात बात में इस्तीफे की पेशकश करते हैं। उनकी ईमानदारी एवं सत्यवादीता की कसम तो स्वयं युद्धिष्ठिर भी खाते हैं। इमानदार इतने की विद्यालय के गेट के लिए आया आठ लाख रूपया कुछ कमीशन देने चक्कर में लौट गया और ऐसा नहीं कि गहमर इंटर के इतिहास में विकास के लिए आया भवन लौट गया हो। इसके पहले भी मान्धाता सिंह की स्मृति में आया एक बड़ा हाल आपसी विवाद में लौट चुका है। मगर इससे क्या मतलब, इमानदारी तो बरकरार है।
यह अलग बात है कि उसकी भरपाई स्थानीय बच्चों व अभिवावक का खून चूस कर होगी।
 यदि शुल्क की तरफ निगाह डालें तो विगत वर्ष भी 2000 हजार बच्चों से 500 रूपये कि दर से वसूली हुई। जिसमें महज अध्यापकों का 11 महीने का लगभग 7 लाख मानदेय दिया गया। शेष रकम लगभग 2.5 से 3 लाख बची है। जहाँ तक मैं देख पा रहा हूँ गहमर इंटर कालेज में कोई भवन निर्माण नहीं हुआ।
ऐसे में इस वर्ष पुनः जब कोरोना माहामारी के संकट से गाँव जूझ रहा है तो क्यों नहीं भवन शुल्क को 500 की जगह 250 -300सौ  किया जा रहा है?
गहमर इंटर कालेज के कटरा प्रवंधक इमानदार कर्मठी हैं बातें तो करते हैं मगर जहाँ अपना हित होता है वहाँ सब कुछ गंगा में बहा.देते हैं। जहाँ कमीशन की माँग पर गेट लौटा देते हैं वही न्यायालय के आदेश के बाद भी गहमर इंटर कालेज में बने 16 कटरो को उच्च पगड़ी यानि धरोहर राशि एवं किराया लेकर नियम के विपरित दुकाने चलवा रहे हैं पूछने पर कहते हैं कि हर जगह यही हाल है।
यही नहीं गरीबो के विवाह में विद्यालय को देने के लिए हजारो नियम बताने वाले कटरा प्रवंधक अपने अनुयायियों और आर.एस.एस के सेमिनार के लिए प्रेम सै देते हैं।
वर्तमान समय में कई चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी होने के बाद भी विद्यालय जंगल से कम नहीं लग रहा है। लम्बा चौड़ा मैदान, जगह जिस पर उत्थान , धनोपार्जन, खेल के कई काम किये जा सकते थे, मगर नहीं। कटरा प्रवंधक को तो बस कटरा और भवन शुल्क ही दिखता है। कुछ भी हो जाये फीस में कोई कमी नहीं। बाबा खून तक चूस लें परेम से।
अखंड गहमरी।
[7/8, 15:57] अखंड गहमरी: भाग-5 अंतिम

भवन शुल्क कम नहीं होगा, यह जाजय है, तो आप सही पिछली कमेटी गलत कैसे? मतलब आपन लइका लइका , दूसरे क लइका जनसंख्या?

वैसै एक बात हम भी कम नहीं, विद्या प्रचारिणी सभा के पदाधिकारी व सदस्य तो माशाल्लाह हैं ही, न जाने कहाँ कहाँ के मेम्बर व पदधिकारी बने बैठे हैं। न विद्यालय देखना हैं, न व्यवस्था न गाँव से मतलब न स्कूल बच्चो से लगाव।   बस वो  कहावत है कि न अईली न गईली, फलाने वो कहईली।
लेकिन हम भी कभी नहीं पूछते कि भाई भवन निर्माण के नाम पर अध्यापको को देने के नाम पर लिया गया पैसा आखिर दूसरे काम में क्यों? जब 2019-20, 2020-2021 में   लिया गये शुल्क के पैसे बचे हैं क्योंकि इन दो तीन वर्षो में कोई भवन निर्माण तो हुआ नहीं, तब इस कोरोना की विषम परिस्थितियों में क्यों पैसा? क्यों शुल्क? क्या सारा पैसा कटरा प्रवंधक ने कटरे पर खर्च कर दिया?
और यदि सारे विद्यालय के काम बच्चों से पैसे वसूल कर करना है तो इस सभा क्या काम, सभा पर दुनिया भर के खर्च क्यों? बुला कर तकतकऊआ पागल को बुलाकर पैसे दे दो वह आप से अच्छा करा लेगा और आप भी फ्री . पैसा रहे तो मैनेंजमेंट कौन नहीं कर लेगा। और जब सारे भवन शुल्क से लिये खर्चे सही हैं तो पिछली कमेटी पर हाय तौबा क्यों हुआ?
मतलब आपन लइका, लइका। दूसरे क लइका जनसंख्या?

कटरा मैनेजर साहब जरा इमानदारी को बच्चों के लिए भी धरातल पर लाईये,  विद्यालय गाँव की जमीन पर गाँव के खून पसीने से बना है। गाँव के गरीब मजदूरों को राहत दें।

अखंड गहमरी

काशी विश्‍वनाथ मंदिर

 श्री काशी विश्वनाथ मंदिर

काशी का मूल विश्वनाथ मंदिर बहुत छोटा था। 17वीं शताब्दी में इंदौर की रानी अहिल्याबाई होल्कर ने इसे सुंदर स्वरूप प्रदान किया। कहा जाता है कि एक बार रानी अहिल्या बाई होलकर के स्वप्न में भगवान शिव आए। वे भगवान शिव की भक्त थीं। इसलिए उन्होंने 1777 में यह मंदिर निर्मित कराया। सिख राजा रंजीत सिंह ने 1835 ई. में मंदिर का शिखर सोने से मढ़वा दिया। तभी से इस मंदिर को गोल्डेन टेम्पल नाम से भी पुकारा जाता है। यह मंदिर बहुत बार ध्वस्त हुआ। आज जो मंदिर स्थित है उसका निर्माण चौथी बार हुआ है। 1585 ई. में बनारस से आए मशहूर व्यापारी टोडरमल ने इस मंदिर का निर्माण करवाया। 1669 ई. में जब औरंगजेब का शासन काल तब भी इस मंदिर को बहुत हानि पहुँचाया गया।

गंगा तट पर सँकरी विश्वनाथ गली में स्थित विश्वनाथ मंदिर कई मंदिरों और पीठों से घिरा हुआ है। यहाँ पर एक कुआँ भी है, जिसे ‘ज्ञानवापी’ की संज्ञा दी जाती है, जो मंदिर के उत्तर में स्थित है। विश्वनाथ मंदिर के अंदर एक मंडप व गर्भगृह विद्यमान है। गर्भगृह के भीतर चाँदी से मढ़ा भगवान विश्वनाथ का 60 सेंटीमीटर ऊँचा शिवलिंग विद्यमान है। यह शिवलिंग काले पत्थर से निर्मित है। हालाँकि मंदिर का भीतरी परिसर इतना इतना व्यापक नहीं है, परंतु वातावरण पूरी तरह से शिवमय है।

#महिमाऔरमुख्य_तीर्थ-

सर्वतीर्थमयी एवं सर्वसंतापहारिणी मोक्षदायिनी काशी की महिमा ऐसी है कि यहां प्राणत्याग करने से ही मुक्ति मिल जाती है। भगवान भोलानाथ मरते हुए प्राणी के कान में तारक-मंत्र का उपदेश करते हैं, जिससे वह आवगमन से छुट जाता है, चाहे मृत-प्राणी कोई भी क्यों न हो। मतस्यपुराण का मत है कि जप, ध्यान और ज्ञान से रहित एवंम दुखों परिपीड़ित जनों के लिये काशीपुरी ही एकमात्र गति है। विश्वेश्वर के आनंद-कानन में पांच मुख्य तीर्थ हैं-

दशाश्वेमघ,

लोलार्ककुण्ड,

बिन्दुमाधव,

केशव और

मणिकर्णिका

ये पाँच प्रमुख तीर्थ हैं, जिनके कारण इसे ‘अविमुक्त क्षेत्र’ कहा जाता है। काशी के उत्तर में ओंकारखण्ड, दक्षिण में केदारखण्ड और मध्य में विश्वेश्वरखण्ड में ही बाबा विश्वनाथ का प्रसिद्ध है। ऐसा सुना जाता है कि मन्दिर की पुन: स्थापना आदि जगत गुरु शंकरचार्य जी ने अपने हाथों से की थी।

ये दुनिया का इकलौता विश्वनाथ मंदिर जहां शक्ति के साथ विराजमान हैं शिव....द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख काशी विश्वनाथ के दरबार में शिवरात्रि पर आस्था का जन सैलाब उमड़ता है। यहां वाम रूप में स्थापित बाबा विश्वनाथ शक्ति की देवी मां भगवती के साथ विराजते हैं। यह अद्भुत है। ऐसा दुनिया में कहीं और देखने को नहीं मिलता है।
 
#काशीविश्वनाथमंदिरसेजुड़े11फैक्ट्स ~
 
1. काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग दो भागों में है। दाहिने भाग में शक्ति के रूप में मां भगवती विराजमान हैं। दूसरी ओर भगवान शिव वाम रूप (सुंदर) रूप में विराजमान हैं। इसीलिए काशी को मुक्ति क्षेत्र कहा जाता है।
 
2. देवी भगवती के दाहिनी ओर विराजमान होने से मुक्ति का मार्ग केवल काशी में ही खुलता है। यहां मनुष्य को मुक्ति मिलती है और दोबारा गर्भधारण नहीं करना होता है। भगवान शिव खुद यहां तारक मंत्र देकर लोगों को तारते हैं। अकाल मृत्यु से मरा मनुष्य बिना शिव अराधना के मुक्ति नहीं पा सकता।  
 
3. श्रृंगार के समय सारी मूर्तियां पश्चिम मुखी होती हैं। इस ज्योतिर्लिंग में शिव और शक्ति दोनों साथ ही विराजते हैं, जो अद्भुत है। ऐसा दुनिया में कहीं और देखने को नहीं मिलता है।

4. विश्वनाथ दरबार में गर्भ गृह का शिखर है। इसमें ऊपर की ओर गुंबद श्री यंत्र से मंडित है। तांत्रिक सिद्धि के लिए ये उपयुक्त स्थान है। इसे श्री यंत्र-तंत्र साधना के लिए प्रमुख माना जाता है।   
 
5. बाबा विश्वनाथ के दरबार में तंत्र की दृष्टि से चार प्रमुख द्वार इस प्रकार हैं :- 1. शांति द्वार। 2. कला द्वार। 3. प्रतिष्ठा द्वार। 4. निवृत्ति द्वार। इन चारों द्वारों का तंत्र में अलग ही स्थान है। पूरी दुनिया में ऐसा कोई जगह नहीं है जहां शिवशक्ति एक साथ विराजमान हों और तंत्र द्वार भी हो।

6. बाबा का ज्योतिर्लिंग गर्भगृह में ईशान कोण में मौजूद है। इस कोण का मतलब होता है, संपूर्ण विद्या और हर कला से परिपूर्ण दरबार। तंत्र की 10 महा विद्याओं का अद्भुत दरबार, जहां भगवान शंकर का नाम ही ईशान है।
 
7. मंदिर का मुख्य द्वार दक्षिण मुख पर है और बाबा विश्वनाथ का मुख अघोर की ओर है। इससे मंदिर का मुख्य द्वार दक्षिण से उत्तर की ओर प्रवेश करता है। इसीलिए सबसे पहले बाबा के अघोर रूप का दर्शन होता है। यहां से प्रवेश करते ही पूर्व कृत पाप-ताप विनष्ट हो जाते हैं।

8. भौगोलिक दृष्टि से बाबा को त्रिकंटक विराजते यानि त्रिशूल पर विराजमान माना जाता है। मैदागिन क्षेत्र जहां कभी मंदाकिनी नदी और गौदोलिया क्षेत्र जहां गोदावरी नदी बहती थी। इन दोनों के बीच में ज्ञानवापी में बाबा स्वयं विराजते हैं। मैदागिन-गौदौलिया के बीच में ज्ञानवापी से नीचे है, जो त्रिशूल की तरह ग्राफ पर बनता है। इसीलिए कहा जाता है कि काशी में कभी प्रलय नहीं आ सकता।
 
9. बाबा विश्वनाथ काशी में गुरु और राजा के रूप में विराजमान है। वह दिनभर गुरु रूप में काशी में भ्रमण करते हैं। रात्रि नौ बजे जब बाबा का श्रृंगार आरती किया जाता है तो वह राज वेश में होते हैं। इसीलिए शिव को राजराजेश्वर भी कहते हैं।

10. बाबा विश्वनाथ और मां भगवती काशी में प्रतिज्ञाबद्ध हैं। मां भगवती अन्नपूर्णा के रूप में हर काशी में रहने वालों को पेट भरती हैं। वहीं, बाबा मृत्यु के पश्चात तारक मंत्र देकर मुक्ति प्रदान करते हैं। बाबा को इसीलिए ताड़केश्वर भी कहते हैं।
 
11. बाबा विश्वनाथ के अघोर दर्शन मात्र से ही जन्म जन्मांतर के पाप धुल जाते हैं। शिवरात्रि में बाबा विश्वनाथ औघड़ रूप में भी विचरण करते हैं। उनके बारात में भूत, प्रेत, जानवर, देवता, पशु और पक्षी सभी शामिल होते हैं।

आज मोबाइल के बारे में लिखा

 मैने आज जो अपने मोबाइल के बारे में लिखा मेरा उद्वेश्‍य सिर्फ उन लोगो को सूचना देना था, जिनसे कल बात नहीं हो पाई आज के वादे पर। मैं यह भी मानता हूँ कि मैं लापरवाह हूँ, लापरवाही का नतीजा रहा मेरा मोबाइल गुम होना, लापरवाही की सजा मिली, मगर मैं एक बात जनाना चाहता हूँ उसके पहले कुछ जानकारी दे दूँ। मैं गाजीपुर से सुहेलदेव एक्‍सप्रेक्‍स से 30 मई को एसी 3 टियर में चल कर 31 को दिल्‍ली पहुँचा, 31 मई को ही दिल्‍ली से भोपाल एक्‍सप्रेक्‍स से चल कर 01 जून को सुबह भोपाल पहुँचा, 01 जून को ही शाम को भोपाल से चल कर मैं 02 जून को सुबह बम्‍बई पहुँचा और वहॉं से 03 जून की रात वापसी गहमर के लिए चल दिया। इन 30 मई से लेकर 05 जून तक मैंने 4000 किलोमीटर का सफर चार ट्रेनो से किया जिसमें 3 सफर 3 एसी का, और एक सफर द्वितीय श्रेणी शयनयान का। हम साधारण टिकट पर साधारण दर्जे में भी सफर कर सकते थे, काफी कम पैसो में, मगर हम रेलवे को अपनी सुविधा और सुरक्षा के लिए अधिक पैसे देकर आराम दायक सफर करते है।

मगर ये आराम दायक और सुरक्षित सफर हो कैसे,
गाजीपुर से लेकर गहमर तक की वापसी मे पूरे रास्‍ते दिन हो या रात एसी में अवैध व्रिेकेताओं का आना जाना लगा रहा। पूरे रास्‍ते कभी कोई स्‍टाफ तो कभी स्‍टाफो के परिवार पैर समेटने का आदेश देते रहे। म‍ैं इन चार हजार किलोमीटर की यात्रा में भोपाल एक्‍सप्रेक्‍स को छोड़ दिया जाये तो एक भी ट्रेन में सुरक्षा दस्‍ता नहीं देखा। बस प्रारम्‍भ के स्‍टेशन पर सीट के नीचे झाकते जवान एक बार जरूर नजर आये।  अटेन्‍डेन्‍ट महोदय आराम से सोते नज़र आये, चाहे बोडिंग हो न हो गेट आराम से खुला हुआ है, सभी आया राम गया राम की तरह आ रहे हैं जा रहे हैं।  मोबाइल तो माना कि जेब में रख लेगें, मगर अटैची, बैग वो कहॉं रखेगें। ट्रेन में हर 8 यात्रीयों पर दो चार्जिग प्‍वाइंट उसमें भी एक सही एक खराब, आखिर एक यात्री का नम्‍बर कब आयेगा।  कहॉं रखेगा वह चार्च पर मोबाइल। अगर सभी मामले में यात्री ही सावधान रहे, तो फिर पुलिस सुरक्षा दस्‍ते का क्‍या काम है। क्‍यो‍ दिया जाता है उन्‍हें वेतन।
मेरी तो किस्‍मत अच्‍छी थी जो जी0 आर0पी प्रभारी दिलदानगर ने प्राथमिकता दर्ज कर ली, मगर सभी की दर्ज हो ऐसा कम ही होता।
मैं तो लापरवाही का जिम्‍मेदार हूँ ही, सजा भी मिली, पर जिसने एसी जैसे विशिष्‍ठ कोच को सामान्‍य श्रेणी की कोच के तरह बना दिया क्‍या उसकी जिम्‍मेदारी या उसका दोष कुछ नही
शायद नहीं, क्‍योंकि 70 सालो से यात्री सुरक्षा नहीं हुई तो 4 सालाे में क्‍यों हम चिल्‍लाये। जय हिन्‍द

जाड़े के मौसम में आग की बात

 जाड़े के मौसम में और उस पर भी तब जब बरसात हो रही हो आग लगने की बात पढ़ना और लिखना अजीब लगता है न ? अब मैं न तो किसी समाचार पत्र का संवाददाता हूँ जो मौसम और घटना समय देख कर लिखने की क्षमता रखूँ और न किसी चैनल का प्रतिनिधि जो घटना होने का इंतजार करूँ और कानो में इयरफोन हाथ में माइक लिये एंकर महोदय के आदेश पर 24 घंटे में 29.59 घंटे बोलता पूछता हूँ। मैं तो ठहरा स्वातं सुखाय वाला एक अड़भंगी मस्त मौला सनकी पन्ने खराब करने वाला अखंड गहमरी जो जब मन तब पन्नें गोंज दिया। जिसने देखा है कि आग केवल सामान, तन व धन ही नहीं जलाती। यह जला देती है जिंदगी, यह जला देती है जिंदगी के सपने। यह खत्म कर देती है हमारी खुशियाँ, हमारे सपने। यह मुलाकात करा देती है उन हकीकतों से जिनसे आप अंजान थे। और इन हकीकत से वाकिफ होने के वाबजूद कभी शासन-प्रशासन अगजनी को रोकने और बचाब का प्रयास क्या इमानदारी से किया? मुझे तो जहाँ तक जानकारी है हकीकत के धरातल पर बिल्कुल नहीं। हाँ कागजातो में इसकी सफलता की कहानी कितनी है, मैं नहीं जानता?
आज मैं आपको गाँवो की राजधानी, सैनिकों एवं साहित्यकारों की भूमि गहमर की पूरी स्थिति से रूबरु कराता हूँ और सबसे पहले ले चलता हूँ सरकारी बैंको की तरफ जहाँ सभी में एक जैसे हालात हैं। गहमर रेलवे स्टेशन रोड पर भारतीय स्टेट बैंक, गाजीपुर-बारा मुख्यमार्ग पर यूनियन बैंक आफ इंडिया एवं पकड़ीतर बाजार में यूनियन बैंक आफ इंडिया की दूसरी शाखा। इन तीनों बैंको में खास तौर से पकड़ीतर बैंक में न सिर्फ जगह कम है बल्कि अन्य दोनो बैंको की भाँति केवल एक चैनल का दरवाजा जो  12 इंच से अधिक खुलता ही नहीं ऐसे में यदि कोई हादसा हो जाता है तो एक साथ दो लोगों का निकल पाना असंभव होगा।
गाँव की गलियाँ इतनी तंग है कि यदि मधुकरराव, गोविंदराव, भैरोराव, टीकाराव एवं उत्तरी छोर  रेवतीपुर-बारा बाईपास के बाहरी इलाके, बक्सबाबा मार्ग को छोड़ दिया तो अंदर गाँव में एक थ्रीव्हीलर का पहुँच पाना संभव ही नही। गलियाँ इस कर पतली हैं कि एक बाइक सवार भी आराम से गलियों में नहीं जा सकता।
गहमर पकड़ीतर से बुढ़ा-महदेवा मंदिर होते गंगाघाट पर जाने का रास्ता हो, डा.राणा की डिस्पेंसरी से मनोज सिंह बबूआ के घर का रास्ता हो, बक्स बाबा मार्ग से बघवा की कोठी, विश्वकर्मा मंदिर होते गंगा घाट जाने का रास्ता हो, छवलकी खोर, खेलू राव, मैगर राव, इलाको में तो चार पहिया गाड़ी भी संभव नहीं। हर घर एक दूसरे से मिले हुए कम एवं सकरे जगह में बने हैं, ऐसे में यदि आगजनी की घटना हो जाये तो तो उस पर काबू पाना लगभग असंभव सी बात होगी यही नहीं जानमाल की छति रोक पाना भी असंभव नहीं। सब कुछ माँ कामाख्या के हवाले।
ऐसा नहीं है कि घटनाएं होती नहीं वर्ष 2013 में ढ़डियाहार हरिजन बस्ती दुर्घटना, 2013 में ही शिवगंगा पव्लिक स्कूल के पास दुर्घटना, हर साल गर्मी के मौसम में खेतों का जलना जैसे कई घटनाएं प्रमाण हैं। इन घटनाओं के बाद भी शासन ने सुध ली हो मेरी जानकारी में नहीं,आपकी जानकारी में हो तो नहीं कह सकता।
सरकारी तंत्र का आलम यह है कि गहमर का नजदीकी फायर ब्रिगेड स्टेशन जिला मुख्यालय गाजीपुर के गोखरपुर-वाराणसी रोड पर पुलिस लाइन के पास स्थित है। जिसकी दूरी लगभग 45 किलोमीटर होगी और उसमें भी उसे गहमर आने के लिए लंका, ओवरब्रिज, रौजा, के भारी जामों में से निकलना होगा। यहीं नही गहमर गाजीपुर के बीच बना गंगापुल 365 दिन में 366 दिन बड़े वाहनो के लिए 24 घंटे बंद रहता है ऐसे में दमकल दनदनाते हुए गहमर कैसे पहुँचेगा, इसकी जानकारी मुझे नहीं। यदि वह किसी तरह पहुँचे भी तो उसके गहमर के किसी घटनास्थल पर आने में 45 मिनट जिसमें सूचना मिलने से लेकर एक नम्बर गियर लगने तक का समय शामिल नहीं है, लग जायेंगे तो आप स्वंय कल्पना करें कि तस्वीर क्या होगी, कितनी भयावह होगी?
ऐसा नहीं है कि ग्रामीणों द्वारा कभी गहमर के निकट फायर ब्रिगेड स्टेशन बनाये जानें की माँग नहीं हुई। वर्ष 2003 में जनसंघर्ष समिति द्वारा , वर्ष 2005 में बलवन्त सिंह द्वारा,एवं समय समय पर समाजसेवीयों द्वारा, संगठनो द्वारा माँग होती रही आव़ाज उठाई जाती । ये आव़ाज शायद तेज हवा के कारण  शासन-प्रशासन के प्रतिनिधियों के कानो तक नहीं पहुँची ऊपर ऊपर निकल गई।
आज तक की हालत तो यही है आगे का हाल पता नहीं, शायद कभी कोई नींद से जाग जाये और इस गंम्भीर समस्या पर गंम्भीरता से बात करे, इसका उपाय करें।

अखंड गहमरी