अश्क से ये हिमालय पिघलता नहीं।
देख कर कौन तुमको मचलता नहीं।।
तुम न आया करो, रात में छत पे अब ।
चाँद छुपता है नभ में निकलता नहीं।।
जुल्फ तुमने बिखेरा मैं घायल हुआ।
दिल सभाँला बहुत पर सभलता नहीं।
प्यार मेरा समझती न तुम खेल तो ।
चैन मिलता मुझे मैं, भटकता नहीं।।
बेवफा अश्क होते न मेरे अगर।
रंग तस्वीर का यूँ बिखरता नहीं।।
बात से बात तेरी मिलाता जो मैं।
नाम मेरा तुम्हें तब खटकता नहीं।
दिल ही रखता न अब दिलजला गहमरी।
पास रहती जो तुम वो बदलता नहीं।।
अखंड गहमरी
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