मैं जो लिखने जा रहा हूँ गजगमिनियाँ उसे सुन कर और सुन कर क्या पढ़ कर क्योंकि सुनती तो वह भगवान की भी नहीं पढ़ कर सरेआम मेरी धुलाई अपने बाटा के चरणपादुका से करेगी। क्योंकि एक तो उसका मूड 01 फरवरी से पहले ही खराब है दूसरे मेरा यह लेख। उसे मेरी सेवा करते देख दिल में दर्द छुपाये रमेश तिवारी कि बहुत सोशलमीडिया पर हमको खींचता है, दो चार चप्पल रसीद करने से नहीं चुकेगें।रमेश तिवारी ही क्या, पंयायत के विरोध में लिखने के कारण मेरी ग्राम प्रधान भी इस सुनहरे मौके का लाभ उठाने से नहीं चुकेगीं। वैसे तय है कि मेरी पूर्व प्रेमिका द्वारा सरकार से विकास परक देश उत्थान कार्य , रोजगार बढोत्तरी जैसे अनेक विशेषता वाले कार्य करने हेतु महापुरुष की उपाधि देने वाली मेरी माँग के कारण सरेराह लतियावनपुर चौराहे पर होती पिटाई में कई समाजसेवी व संस्थान के साथ बहुत लोग भी बहती गंगा में हाथ धोयेगा। महिलाएं तो मुझे किसी कीमत पर न नहीं छोड़ेगीं। मेरी माँग न जाने क्यों पूर्व प्रेमिका को नागवार लगी जब कि मेरी बात 100 प्रतिशत सही है।
अब देखीये उसके द्वारा किये इस कार्य से कम से कम दो काले कोट का न सिर्फ व्यवसाय चरम पर होता है बल्कि उन को पूरी दुनिया उनके नाम जान जायेगी। न्यायालय के जजों की छोटी से छोटी हलचल पर देश की निगाहें। अब निगाहें रखने वाली जानता की नज़र कमजोर होगी तो वह चश्मा तो खरीदेगा ही, भले टीन का हो। न्यायालय में स्टेशनरी, ओवर टाइम वहाँ आने जाने वाले के लिए संसाधन की व्यवस्था करने वाला, अब जो दिन भर न्यायालय में रहेगा वो भी अपने पेट के साथ अन्याय तो करेगा नहीं तो चाय पान नासँते वालो की चाँदी। अब इतना कुछ होगा तो मीडिया का काम भी बढ़ेगा और इतना बढ़ेगा कि उसके पत्रकार से लेकर एंकर तक सुबह से शाम तक भागते फिरेगें। नेताओं से लेकर समाजसेवक तक को सुबह से शाम तक दौड़ भाग करने का मौैका जिससे आटो वाले, पेट्रोल पंप वाले, नास्ता-पानी वाले सबका विकास सबका फायदा। डाक्टरों का फायदा, पुलिस का फायदा। शासन, प्रशासन, नेता, व्यवसायी सबका फायदा। अब आप बताईये इतने लोगो को फायदा देने वाला इस कार्य को करने वाले को लटका कर देश की अर्थव्यवस्था को चौपट करना कहाँ की समझदारी है। समझदारी तो इसमें है कि छेदों की न सिर्फ संख्या बढ़ा दी जाये, बल्कि उसे और अधिक बड़ा किया जाये ताकि बड़े से बड़े यह कृत्य करने वाले आसानी से निकल जायें।.
अरे इससे एक परिवार ही तो परेशान होता है, न्याय केवल एक को तो नहीं मिलता, और न्याय ऐसे की जरूर ही क्या? जो होना था वो हो गया, भवावेश में। अब समझना चाहिए कि किसी का दिमाग सनक सकता है, परन्तु होश में आने के बाद उसे भी न्याय का हक है। उसके साथ भी वोट देने वाले हैं। वह भी भारत का ही नागरिक है। तो फिर एक तरफा बात क्यो? सही कहा न मैनें? आपको भी गजगमिनियाँ की तरह मेरे ऊपर गुस्सा आ रहा है कि नही?
नहीं आ रहा है। मैं जानता हूँ कि आप अपने प्यारे-प्यारे अखंड गहमरी पर गुस्सा कर ही नहीं सकते। करना भी चाहें तो कैसे करेगें? आप का गुस्सा तो कैंडल मार्च, सोशलमीडिया पर भड़ास, नेताओं और व्यवस्था को गाली देकर निकल चुका है। आप तो अभी तक यह भी नहीं समझ पाये होगें कि मैं इतनी देर से किस विषय पर , किस माँग पर लिखा हूँ जिसे पढ़ कर गजगमिनियाँ ने मेरा हाल बेहाल करने की तैयारी की। समझ तो बस हैदराबाद पुलिस पाई, गुस्सा तो बस उसे आया और उसने मेरे शासन से माँग पर ऐसी प्रतिक्रिया दी जिससे एक निर्भया की माँ को अदालत के चक्कर नहीं काटना पड़ा। एक निर्भया की माँ को सड़क के किनारे बैठ कर न्याय के लिए रोना नहीं पड़ा। किसी नेता को मौका ही नहीं मिला कि वह अपनी राजनीतिक गोटी सेकें। हैदराबाद पुलिस को मेरे ऊपर इतना गुस्सा आया कि उसने मेरी माँग के राजकुमार को इस लायक ही नहीं छोड़ा कि वह अपने चंद लोगो के द्वारा भारतीय न्याय पद्धति को अपने हाथो की कठपुतली बना सके और तारिक पर तारिक और नाबालिग और क्षमायाचना का खेल , खेल सके।
गुस्सा हैदराबाद पुलिस को जिसने जड़ से ही जड़ को साफ कर दिया। आप मेरे पर गुस्सा करना चाहो तो करो मगर जरा अपने गुस्से की आँच का प्रयोग कर उस कमीयों को जलाने का प्रयास तो कर दो जिसकी छाया में दामिनी का दामन दागदार करने वाले लुकाछिपी का खेल खेल रहे हैं और अखंड गहमरी न्यायालय, मीडिया, एवं अन्य के जेलों और जेलरो को करोड़ो का लाभ देने वाले, जल्दाल को पहचान देने वाले , उस जूताखोर दुश्कर्म जैसा धिनौने कृत्य करने वाले और कार्य को बलात्कारियों को जूतियावन सम्मान से सम्मानित करने की माँग शासन से करता है।
अखंड गहमरी
बुधवार, 4 अगस्त 2021
जो मैं लिखने जा रहा हूँ
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