जाड़े के मौसम में और उस पर भी तब जब बरसात हो रही हो आग लगने की बात पढ़ना और लिखना अजीब लगता है न ? अब मैं न तो किसी समाचार पत्र का संवाददाता हूँ जो मौसम और घटना समय देख कर लिखने की क्षमता रखूँ और न किसी चैनल का प्रतिनिधि जो घटना होने का इंतजार करूँ और कानो में इयरफोन हाथ में माइक लिये एंकर महोदय के आदेश पर 24 घंटे में 29.59 घंटे बोलता पूछता हूँ। मैं तो ठहरा स्वातं सुखाय वाला एक अड़भंगी मस्त मौला सनकी पन्ने खराब करने वाला अखंड गहमरी जो जब मन तब पन्नें गोंज दिया। जिसने देखा है कि आग केवल सामान, तन व धन ही नहीं जलाती। यह जला देती है जिंदगी, यह जला देती है जिंदगी के सपने। यह खत्म कर देती है हमारी खुशियाँ, हमारे सपने। यह मुलाकात करा देती है उन हकीकतों से जिनसे आप अंजान थे। और इन हकीकत से वाकिफ होने के वाबजूद कभी शासन-प्रशासन अगजनी को रोकने और बचाब का प्रयास क्या इमानदारी से किया? मुझे तो जहाँ तक जानकारी है हकीकत के धरातल पर बिल्कुल नहीं। हाँ कागजातो में इसकी सफलता की कहानी कितनी है, मैं नहीं जानता?
आज मैं आपको गाँवो की राजधानी, सैनिकों एवं साहित्यकारों की भूमि गहमर की पूरी स्थिति से रूबरु कराता हूँ और सबसे पहले ले चलता हूँ सरकारी बैंको की तरफ जहाँ सभी में एक जैसे हालात हैं। गहमर रेलवे स्टेशन रोड पर भारतीय स्टेट बैंक, गाजीपुर-बारा मुख्यमार्ग पर यूनियन बैंक आफ इंडिया एवं पकड़ीतर बाजार में यूनियन बैंक आफ इंडिया की दूसरी शाखा। इन तीनों बैंको में खास तौर से पकड़ीतर बैंक में न सिर्फ जगह कम है बल्कि अन्य दोनो बैंको की भाँति केवल एक चैनल का दरवाजा जो 12 इंच से अधिक खुलता ही नहीं ऐसे में यदि कोई हादसा हो जाता है तो एक साथ दो लोगों का निकल पाना असंभव होगा।
गाँव की गलियाँ इतनी तंग है कि यदि मधुकरराव, गोविंदराव, भैरोराव, टीकाराव एवं उत्तरी छोर रेवतीपुर-बारा बाईपास के बाहरी इलाके, बक्सबाबा मार्ग को छोड़ दिया तो अंदर गाँव में एक थ्रीव्हीलर का पहुँच पाना संभव ही नही। गलियाँ इस कर पतली हैं कि एक बाइक सवार भी आराम से गलियों में नहीं जा सकता।
गहमर पकड़ीतर से बुढ़ा-महदेवा मंदिर होते गंगाघाट पर जाने का रास्ता हो, डा.राणा की डिस्पेंसरी से मनोज सिंह बबूआ के घर का रास्ता हो, बक्स बाबा मार्ग से बघवा की कोठी, विश्वकर्मा मंदिर होते गंगा घाट जाने का रास्ता हो, छवलकी खोर, खेलू राव, मैगर राव, इलाको में तो चार पहिया गाड़ी भी संभव नहीं। हर घर एक दूसरे से मिले हुए कम एवं सकरे जगह में बने हैं, ऐसे में यदि आगजनी की घटना हो जाये तो तो उस पर काबू पाना लगभग असंभव सी बात होगी यही नहीं जानमाल की छति रोक पाना भी असंभव नहीं। सब कुछ माँ कामाख्या के हवाले।
ऐसा नहीं है कि घटनाएं होती नहीं वर्ष 2013 में ढ़डियाहार हरिजन बस्ती दुर्घटना, 2013 में ही शिवगंगा पव्लिक स्कूल के पास दुर्घटना, हर साल गर्मी के मौसम में खेतों का जलना जैसे कई घटनाएं प्रमाण हैं। इन घटनाओं के बाद भी शासन ने सुध ली हो मेरी जानकारी में नहीं,आपकी जानकारी में हो तो नहीं कह सकता।
सरकारी तंत्र का आलम यह है कि गहमर का नजदीकी फायर ब्रिगेड स्टेशन जिला मुख्यालय गाजीपुर के गोखरपुर-वाराणसी रोड पर पुलिस लाइन के पास स्थित है। जिसकी दूरी लगभग 45 किलोमीटर होगी और उसमें भी उसे गहमर आने के लिए लंका, ओवरब्रिज, रौजा, के भारी जामों में से निकलना होगा। यहीं नही गहमर गाजीपुर के बीच बना गंगापुल 365 दिन में 366 दिन बड़े वाहनो के लिए 24 घंटे बंद रहता है ऐसे में दमकल दनदनाते हुए गहमर कैसे पहुँचेगा, इसकी जानकारी मुझे नहीं। यदि वह किसी तरह पहुँचे भी तो उसके गहमर के किसी घटनास्थल पर आने में 45 मिनट जिसमें सूचना मिलने से लेकर एक नम्बर गियर लगने तक का समय शामिल नहीं है, लग जायेंगे तो आप स्वंय कल्पना करें कि तस्वीर क्या होगी, कितनी भयावह होगी?
ऐसा नहीं है कि ग्रामीणों द्वारा कभी गहमर के निकट फायर ब्रिगेड स्टेशन बनाये जानें की माँग नहीं हुई। वर्ष 2003 में जनसंघर्ष समिति द्वारा , वर्ष 2005 में बलवन्त सिंह द्वारा,एवं समय समय पर समाजसेवीयों द्वारा, संगठनो द्वारा माँग होती रही आव़ाज उठाई जाती । ये आव़ाज शायद तेज हवा के कारण शासन-प्रशासन के प्रतिनिधियों के कानो तक नहीं पहुँची ऊपर ऊपर निकल गई।
आज तक की हालत तो यही है आगे का हाल पता नहीं, शायद कभी कोई नींद से जाग जाये और इस गंम्भीर समस्या पर गंम्भीरता से बात करे, इसका उपाय करें।
अखंड गहमरी
बुधवार, 4 अगस्त 2021
जाड़े के मौसम में आग की बात
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