खुश रहो तुम सदा, मत दुआ दीजिए।
नाम मेरा ज़हा से , मिटा दीजिए।।
थी ख़ता बस यही, प्यार समझा न मैं।
उस ख़ता की मुझे, कुछ सज़ा दीजिये।।
चाँद मुझको निकल कर, जलाने लगा।
मैं जला हूँ उसे ,यह बता दीजिए।।
अश्क मेरे गिरे , तो हँस पड़ी आप थीं।
याद इसको न रखें, यह भुला दीजिए।।
भूल जायें कभी दिल, दिया था मुझे।।
चोट अपना समझ, इक नया दीजिए।।
मैं वफ़ा प्यार चाहत, के काबिल नहीं।
गीत लिखकर इसी, पर सुना दीजिये।।
वेबफा आप को मत , कहे कोई भी।
दोष कुछ गहमरी, पर लगा दीजिए।।
अखंड गहमरी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें