मैं एक किसान हूँ। देश विकसित हो या विकासशील। दुनिया गरीब हो या अमीर। सुख में हो या दु:ख में, न मेरी उपयोगिता न कम हुई न होगी। मेरे कार्य न कम हुए थे न कम होगें। अगर आज आप की बेटी यह कहे कि पृथ्वी पर जीवन की कल्पना हमारे बिना संभव नही है तो कदापि गलत नहीं होगा। आज मैं आपके सामने कुछ बहुत आसान सी बातें रखते हुए पूछना चाहती हूँ कि जब संसार को संसाधन, शिक्षा, स्वास्थ, सुरक्षा, भौतिक सुख इत्यादि देने वाले मानवो को महत्वपूर्ण स्थान दिया जाता है, सुख-सुविधा दी जाती तो हम किसान उपेक्षित क्यों हैं? भारत ही नहीं विश्व की राजनीति हम किसानों के इर्दगिर्द मंडराती है, मगर हकीकत के धरातल आते ही दम तोड़ देती है। चावल, गेहूँ, दलहन और फल यही मुख्य रूप से संसार में बनने समस्त व्यंजनो वह फास्ट फूड का आधार हैं। इनको पैदा करने में एक किसान को कितना शारिरिक व मानसिक श्रम करना पड़ता है वह तो यहाँ बैठे हमारे सम्मानित बुजुर्ग ही समझते हैं। हम नई पीढ़ी तो उसकी कल्पना भी नही कर सकते कि एक प्लास्टिक के बोरे में भरे बीज को कैसी-कैसी परिस्थितियों से गुजरते हुए किसान हमारी उस थाली तक पहुँचाता जिसकी कीमत किसान की मेहनत से नहीं खिलाने वाले की हैसियत से तय होती है। हम यह सोच भी नही पाते कि कैसे महीनों रातों को जग कर । आँधियों-बारिसों में चल कर। ज्येष्ठ की बदन जला देने वाले तेज धूप को सह कर। पूस की रातों में गल कर । संसाधनों का, असुविधाओं का, प्राकृत की मार सह कर, गुमनामी के अँधेरे जीते एक किसान ने इस थाली को यहाँ तक पहुँचाया है। हमारे सोच का दायरा ही इतना बड़ा नहीं कि हम संजय, सरिता, राजेश, ममता, चन्द्रभान, लक्की जो खुद को समाज के निर्माण की पहली सीढ़ी कहते हैं, पूछे कि बताओ आपने धरती के भर्ता को क्या दिया? लहलहाती फसलों को देख अपनी बेटी के हाथ पीले करने का , अपने बेटो को उच्च शिक्षा दिलाने , पत्नी के बदन को प्रदर्शित करने कपड़ो और फटे जूते को बदलने का स्वपन जब प्राकृति की मार से टूटता है तो आप उसके लिए क्या करते हो? कैसे समाज को उसके मदद के लिए आगे लाते हो। हम कभी नही पूछ सकते श्रीमती सुनीता सिंह से, श्रीमती मीरा देवी से कि संविधान में किसानो को प्राप्त अधिकारो को , हकीकत की धरातल पर लाकर दो वक्त की चैन की रोटी का, उनकी बर्वाद फसलो का इमानदारी से मुआवजा का क्या प्रवंध किया?
मैं बैंक में कर्ज के लिए, खाद और बीज के लिए, बेटी के विवाह के लिए दौड़ते किसान को देख राजनीति जलसे में, जाति के जलसे में दौड़ने और आन्दोलन करने वाले आप आम लोगों की आँखे क्यों नही पथराती।
आज आप की बेटी यही कहना चाहती है कि राजनीतिक पोस्टरो और भाषणों से, सरकार की बंद एसी वाले कमरे में बनने वाली बेसिर पैर की योजनाओं से, प्राकृतिक आपदाओं पर दस पैसे मुआवजे की और समाज के द्वारा हम किसानो की उपेक्षाओं से निकाल कर हमें भी मान सम्मान से जीने का, दो वक्त की रोटी और परिवारिक जिम्मेदारीओं को आसानी से पूरा करने का अधिकार दें, हौसला दें।
क्योंकि हम भी मानव हैं, संवेदना है, सपने हैं, चाहत है।
हम किसान भी आपका ही अंग है। हमें भी दिल में जगह दें।
जय हिंद, जय भारत, जय जवान, जय किसान।
बुधवार, 4 अगस्त 2021
मैं एक किसान हूूँ
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