आज कई दिनो से मन व्याकुल है। दिमाग परेशान है। कभी बायीं आँख तो कभी बाँया हाथ फड़क रहा है।
दिल का कोना-कोना सुस्त पड़ा है। हालत ऐसी हो गई है कि देख कर मजनूँ भी परेशान था कि यदि कहीं इसका यही हाल रहा तो इतिहास मेरे नाम के ऊपर व्याइटनर लगा कर इसका नाम लिख देगा। मेरी हालत देख कर वाइफ होम ने भी कपड़े सुखाने का काम कम कर दिया। अब मेरे जिम्मे केवल झाडू-पोछा, चौका-बर्तन और कपड़ो की सफाई ही रह गया था।
आज मैनें फैसला कर लिया कि आज अपनी हालत सुधार कर रहूँगा, चाहे इसके लिए कुछ भी करना पड़े।
मैं तीन बजे सुबह उठ कर सारे काम निपटाने लगा। खटर-पटर सुन कर वाइफ होम की नींद खुल गई।
अब आधी नींद पर उठने पर तो फूल भी बम बन जाता है, आप समझ लें मेरी हालत क्या हुई होगी? मगर मर्द को दर्द नहीं होता। मैं लाल चेहरा छुपाये तैयार होकर पहुँच गया गहमर के रूप श्रंगार महल के अरूण सिंह के घर। सुबह सुबह मुझे आये देख कर वह बाहर आये, हाथो में लिये बीम बार को किनारे लगाये। कहो भाई कैसे सुबह सुबह? ये चेहरा क्यों छुपाये हो? उन्होंने साल हटा कर पूछा।
मेरे चेहरे को लाल देख कर थोड़ा उदास होते बोल पड़े, इसमें छुपाना क्या? मेरी भी यही कहानी है, बर्तन धोते समय गिलास गिर पड़ा और फिर एक भी बेलन नीचे नहीं गिरा, उन्होने अपनी पीठ दिखाते कहा।
मैं गर्व से बोला भाई अपनी तुलना मुझसे न करीये मैं सीने पर खाता हूँ, पीठ पर नहीं।
राम की मेहरबानी से चाय आ गई। मैनें बातो बात में अपनी समस्या बताई और मदद स्वरूप एक दिन के लिए चूड़ी,बिंदी सहित श्रंगार के सामान माँगे।
उन्होनें मेरी मदद की, सामान दिया, भगवान उनकी मदद कर और कुछ धोने वाले कपड़ो के गट्ठर बढ़ा दे।
मैं सब सामान ले आया, एक लकड़ी के संदूक में रखा, एक मलीन सी धोती पहनी और गली में श्रृंगार के समान बेचने वाले का रूप बनाया और चुपचाप चल पड़ा।
गली -गली, चौबारे-चौबारे होता मैं पहुँच गया अपनी मंजिल पे।
मंजिल पर पहुँचते ही मेरा हर्ट हर्ट हो गया। वहाँ रोज गूँजने वाली लटकिनिया-भटकिनिया, तोड़ा-मोड़ा जैसे सिरियलो कि आवाज नदारद थी। मेरी मंजिल के 36 घंटे खुले रहने वाले खिड़की दरवाजे बंद थे।
मैं किसी अनहोनी की कल्पना से काँप उठा और दिल को बाँस-बल्ली के सहारे रोक कर दरवाजे पर आवाज दी ''चूड़ी ले लो”, चूड़ी ले लो"।
दरवाजे पर कोई हलचल नहीं हुई।
मैने हार नही मानी फिर जोर लगाया रंग-बिरंगी चूड़ियाँ ले लो, सिनर्जी टेलीकाम की डिजाइनदार चूड़ियाँ।
दरवाजे पर हलचल हुई। दरवाजा खुला। अहोभाग्य मेरे स्वच्छ, सुन्दर, तड़कीली, भड़कीली मेरी पूर्व प्रेमिका गजगमिनियाँ मेरे सामने थे।
हफ्तो बीत गये थे उसकी एक झलक पाने को। वो तो मैं पहले से राँची और आगरा रिर्टन था ही, अब तेजपुर से भी रिर्टन हो गया तो इस दर्द को सह गया।
भागो यहाँ से नहीं चाहिए चूड़ी- तूड़ी।
उसकी तेज आवाज से मैं यर्थाथ मैं लौटा।
ले लो न मैडम जी, तुम्हारे पर बहुत खिलेगीं ।
कह दिया न नहीं चाहिए भागो शोर मत करो , बेटे की परीक्षा है, डिस्टर्ब हो रहा है।
मैं मन ही मन बुदबुदाया परीक्षा तो तुम मेरी ले रही हो प्रिय अपने लाटू बलम की..।
मैं आँखो में अश्क भर बोल पड़ा ले लो आन्टी ....
मेरे शब्द मेरे मुहँ में ही रह गये, उसने चिल्लाते हुए कहा ''क्या बोला आन्टी , अरे अन्धे मैं किस एंगल से तुझे आन्टी लगती हूँ?'' उसने मुझे धकेला।
मैं उसका यह रूप देख कर इतना तो समझ गया कि जो है ठीक है। मैं खुशी से झूम से झूम गया। तभी उसकी निगाहें मेरी निगाह पुरानी फिल्मी स्टाइलिंग में टकरा गई। वह चीख पड़ी अरे मेरे लतखोर बलम, ये क्या हाल बना रखा है।
अब मेरे आँखो के पानी से भारत सरकार की नदी भरो परियोजना सफल होती दिखाई देने लगी। वह पिघलने लगी, पास पड़े गाड़ी साफ करने वाले कपड़े से मेरी आँखे साफ की और बैठ गई चूडियाँ देखने।
मैने धीरे पूछा कहाँ रहती हो आज कल? मेरे प्यार की बगिया के फूल तुम्हारे चरणरज के आभाव में मुरझा रहे हैं।
क्या करूँ? मेरे खनकरू बलम बेटे की हाईस्कूल की परीक्षा जो सर पर आ गयी, उसने मेरे श्रृगांर बक्से में रखे सामानो पर अँगुलियाँ फेरते हुए कहा।
मैं आश्चर्यचकित हो कर उसकी तरफ देखा, न मिल पाने का दर्द उसे भी था..मैने धीरे से कहा ''आज कल मोबाइल भी आफ रहता है, आन लाइन भी नहीं होती हो।
मेरे बक्से में रखी 2:6 की चूडियों को अपनी कलाई में डाल चुडियों की सुन्दरता बढ़ाते हुए बोली, क्या करूँ मेरे धनसोई बलम? बेटे की परीक्षा के कारण आज कल नेट और डिस रिचार्ज सब बंद हैं, इस लिए आन लाइन भी नहीं आती।
मैं ठहरा हाईस्कूल बार बार फेल आदमी मुझे ये सब समझ नहीं आ रहा था। आखिर बेटे की परीक्षा से ऐसा कौन सा बबाल हो गया जो सारे काम बंद।
मेरे मनोभाव को गजगमिनियाँ पूरी तरह समझ रही थी, परन्तु वह मुझे कैसे समझाये उसे भी नहीं समझ में आ रहा था।
मेरे बक्से से वह कई रंगो की ओठ लाली निकाल कर अपने ओठो पर सजा लिया था, उसके ओठ अब सतरंगी दिख रहे थे। जिसे मैं छुपे कैमरे से कैद करता जा रहा था, ओठलाली नीचे रखते हूए कहा .कन्टोरी मल बेटे की पढ़ाई ऐसे नहीं होती, त्याग करना पड़ना है। हम लोग कही शादी व्याह, आर्टी-पार्टी में नहीं जाते। बस उसकी पढ़ाई पर ध्यान देते हैं।
मैं उसकी बात सुनना और समझ में न आना मेरे राँची, आगरा और तेजपुर रिर्टन होने पर मुहर लगा रहे थे।
मेरी सूरत देख कर मुस्कुरा पड़ी ऐसे लगा जैसे हजारो जरमुंडी के फूल वातारण में बिखर गये। हजारो कप प्लेट आपस में खनकते लड़ पड़े। अपने टुप्पटे को संभाल कर बोली' तुम को समझ में नहीं आयेगा, आज के जमाने में.परीक्षा देता बेटा है , तैयारी पूरा घर करता है। तुम ये पकड़ो । उसने अपने हाथ में मेरे आईने को लेकर पवित्र कर नीचे रखते हुए कहा।
मेरी निद्रा टूटी उसके हाथ में 200 का नया नोट चमक रहा था।
ये क्या है?
ये तुम्हारी चूडियो और लिपिस्टिक की कीमत और अब जाओ, परसो मिलते हैं लतियावन दादा के ढाबे पर , तब समझायूँगी।
मैंने पैसे लेने से इन्कार किये, वह नहीं मानी, पैसे मेरे जेब में डाल कर मुस्कुराती हुई उठी, तिरछी नज़र मुझ पर डाली और बोली मेरे लतखोर बलम ये रूप अच्छा लग रहा है। झक्कास लग रहे हो।
मेरा सीना 57 इंच का हो गया..
परसो पक्का?
हाँ बाबा पक्का. कहते हुए वह अंदर चली गई और दरवाजा बंद कर लिया।
मैं अपना बक्सा उठाये चल पड़ा अरूण भैया के दुकान की तरफ मगर मेरे दिल में गजगमिनियाँ के खुश रहने की खुशी और दिमाग में इस सवाल की खोज की चल रही थी कि आखिर आज की परीक्षा में ऐसी क्या बात है जो पूरा घर अस्त-व्यस्त हो जाता है।
कब होगी परीक्षा समाप्त और होगी मेरी गजगमिनियाँ से रोज मुलाकात।
अखंड गहमरी।
बुधवार, 4 अगस्त 2021
व्याकुल मन
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