न थाना पर न पकड़ीतर, न गंगा घाट ही जाना।
अभी भी लाक डाउन है , पड़े मत रोज समझाना।।
पुलिस वाले लिये डंडा, खडे़ हैं बैंक स्टेशन पर।
बनायेगें तुम्हें मुर्गा, सुनायेगें तुम्हें गाना।।
पड़ा हैं बंद माँ कामाख्या, का मंदिर ये बता दूँ मैं।
उधर का रूख मत करना, पडे़गा मार ही खाना।।
किसानो को न रोका है, किसी ने वो करें खेती।
परेशा पशु के कारण वो, न मितला हेै उसे दाना।।
पुलिस भी अब समझती है, बहाना मत बनाना ये।
निकल कर जा रहे हैं हम, दवा लाने दवाखाना।
डुबुकिया बाग है सूना, यही है हाल मठिया का।
न कोई पाठशाला पर, न सोचो पचमुखी आना।।
ऐ बुढ़वा महदेवा जी अब, सुनो अब गहमरी की तुम।
न कोरोना ये फैले अब, विजय इस पर हमें पाना।
अखंड गहमरी
बुधवार, 4 अगस्त 2021
न थाना पर न पकड़ीतर
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