एक त ससुरो भवती ना।
बोल्वले प अउती ना ।।
इस कहावत पर भले सभ्य लोग कुछ कह सकते हैं, परन्तु आज मुझ पर और मेरी वाइफ होम पर बैठ रही है सटीक। खास तौर पर आपके अखंड गहमरी पर तो ऐसे बैठ रही है जैसे इमरान खान की गेंद कपिल देव के बल्ले पर चपक सुरीली धुन देते हुए सीमा पार ।
17 फरवरी को जब बंगलौर से गहमर का सीधा आरक्षण नहीं मिला तो अधिक कूद-फांद करने की जगह यशवंतपुर से हाबड़ा सुपर फास्ट एक्सप्रेस में यह सोच कर टिकट ले लिए कि चलो भाई यह ट्रेन 19 को सुबह हाबड़ा पहुँच जायेगी। साथ में वाइफ होम हैं, कुछ बागवां वाला सीन क्रियेट करेंगे।
अभय चाचा के घर जायेगें, सामान-वामान रखेगें खाना पीना खायेगें, काली जी का दर्शन पूजन होगा, कुछ कोलकाता घूमेगें शाम को बैग उठा कर पंजाब मेल या बिभूति से गहमर पहुँच जायेगें।
वैसे भी मैं तो कहीं घूमता नहीं केवल आता जाता हूँ। जाने वाले शहर के या तो रेलवे स्टेशन से परिचित हूँ या फिर यदि प्रमुख देवस्थल है तो वहाँ माथा टेका है। वह तो भला हो कांति माँ का कि एक बार उन्होनें भोपाल भ्रमण का जबर्दस्ती कार्यक्रम बना दिया। वरना भोपाल के दार्शनिक स्थल भी अखंड गहमरी के दर्शन से वंचित रह जाते।
गहमर के फजीहत भैया के साथ महीनों कलकत्ता रहा। वह पैसा देकर, हड़का कर थक गये मगर क्या मज़ाल जो गहमरी होटल छोड़ दे।
जब घुमने की सोचा तो हुआ क्या ? बागवान के अमिताबच्चन और हेमामालिनी की जोड़ी में बच्चे विलयन थे और यहाँ हमारे घूमने के प्रोग्राम में विलनय बन गयी श्रीश्री पियुष गोयल की रेल पार्टी। एक तो मैं घूमने का कार्यक्रम बनाता नहीं और बनाया भी तो पियूष गोयल एंड पार्टी मेरे सारे घूमने का कार्यक्रम मेरे सुपरफास्ट ट्रेन के लेट लतीफी से धोकर रख दिया। और लेटलतीफी भी ऐसी वैसी नहीं। ना आँधी, ना पानी, ना ट्रैक की खराबी, ना कोई बंद, रूट की सारी ट्रेने या तो राइट टाइम या तो एक से डेढ़ घंटा लेट।
और मेरी ट्रेन हा हा हा हा हा हा हा हा पूरे के पूरे ग्यारह घंटे अठ्ठाइस मिनट अंक में बोले तो 11 घंटे 28 मिनट।
सुबह 6:45 की जगह पहुँची शाम 05:53 पर मेरी गहमर की ट्रेन से महज 2 घंटा 7 मिनट पहले।
और इस लेट का कारण आप सुनेगें तो आप को यह एहसास हो जायेगा कि बस पियुष गोयल एंड कम्पनी ने कोई दुश्मनी निभाई है, मेरे घुमने के कार्यक्रम को तोड़ कर। ओम प्रकाश शुक्ल भैया यह आपकी रेल ने मेरे साथ न जाने कितनो को सुना दिया।
दिल के टुकड़े टुकडे़ कर के मुस्कुराते चल दिये। बस गनीमत यह रही कि देर आये पर दुरूस्त आये।
कहानी की शुरुआत ही देर से हुई यशवंतपुर से मात्र 20 किमी आते आते यह सुपर फास्ट ट्रेन 20 मिनट लेट हो गई। ट्रेन में यशवंतपुर से सवार मेरी वाइफ होम बिल्कुल दिलवाले दुल्हनिया लें जायेगे़ की तरह कोच के गेट पर हाथ बढ़ाये खड़ी थी जैसे मैं कृष्णाराजपुरम में दिखाई दिया बोगी की तरफ खींच लिया। अब आप सोचते होगें मैं दूसरे स्टेशन पर खड़ा वो दूसरे स्टेशन से ट्रेन में सवार ? तो यह बड़ी दुख भरी कहानी है। ससुराल में साले दिलकुश की करस्तानी है। पूछीये मत वरना आँखो से आसू आ जायेगें। मैं लिख नहीं पाऊँगा। दिल पर पत्थर कर लिख रहा हूँ।
कहानी की शुरुआत ही देर से हुई यशवंतपुर से मात्र 20 किमी आते आते यह सुपर फास्ट ट्रेन 20 मिनट लेट हो गई। ट्रेन में यशवंतपुर से सवार मेरी वाइफ होम बिल्कुल दिलवाले दुल्हनिया लें जायेगे़ की तरह कोच के गेट पर हाथ बढ़ाये खड़ी थी जैसे मैं कृष्णाराजपुरम में दिखाई दिया बोगी की तरफ खींच लिया। अब आप सोचते होगें मैं दूसरे स्टेशन पर खड़ा वो दूसरे स्टेशन से ट्रेन में सवार ? तो यह बड़ी दुख भरी कहानी है। ससुराल में साले दिलकुश की करस्तानी है। पूछीये मत वरना आँखो से आसू आ जायेगें। मैं लिख नहीं पाऊँगा। दिल पर पत्थर कर लिख रहा हूँ।
कृष्णापुरम से ट्रेन चली , अरमान चले। अरमान हवा से बात कर रहे थे और ट्रेन रूप श्रंगार महल के अरूण सिंह की मोपेड से। बेखबर अंजान रात भर वाटस्प फेशबुक चलाता मैं ट्रेन का रनिंग स्टेटस देखता जा रहा था। ट्रेन की रफ्तार घट रही थी। विलंबित घंटे बढ़ रहे थे। दोपहर होते होतै ट्रेन पूरे चार घंटे लेट और रफ्तार 50-55 किलोमीटर प्रतिघंटा के बीच। अब 110 किमी प्रतिघंटा की रफ्तार की ट्रेन 50-60 चले तो संदेह लाजिमी था। पता चला कि एक जनरल बोगी में तकनीकी खराबी है। यशवतंपुर में मेंटेनेंस में मरम्मत नहीं हुआ था, विजयवाड़ा, विजयनगर वही बागवान वाला विजयनगर, सब बीत गये लेकिन इस समस्या का समाधान नहीं हुआ। ट्रेन धीरे गति से चलती लेट होती गई। विशाखापत्तनम, भुवनेश्वर, कटक, और न जाने कितने ऐसे स्टेशन रास्ते में आये जो रेलवे के तकनीकी गढ़, कई ट्रेनो जिसम़े गरीबरथ, दुरन्तो, राजधानी जैसी महत्वपूर्ण ट्रेनो के प्रारंभिक एवं समापन स्टेशन थे। न बोगी की मरम्मत की गई न उसे निकाला गया। हजारो यात्रियों को लाचार छोड़ दिया गया। यात्रियों को इस देरी से हुई फजीहत का किसी भी रेल कर्मचारियों को दिक्कत नहीं हुई।
एसी कोच के यात्री तो फिर भी आराम से थे। जरा सोचीये जनरल बोगी में बैठे यात्रियों की क्या हालत हुई जो भेड़ बकरियों की तरह एक दूसरे पर चढ़े हुए थे।
किसी होनी अनहोनी रुकावट पर इस तरह की लेटलतीफी तो चल जाती है परन्तु जब इस प्रकार की लापरवाही और अधिकारियों की गैर संवेदनशील दिखाई दे तो दिल के अरमा आँसूओं में बह ही जाते है। ट्रेन 17 फरवरी की रात यशवतंपुर से चल कर भले 19 फरवरी की सुबह की जगह शाम को पहुँची। कटक और जाजपुर रोड के बीच जब स्पीड बढ़ाने की कोशिश की गई तो पूरी ट्रेन काँप कर खड़ी हो गई।
किसी स्टेशन पर यदि विभाग चाहता तो बोगी बनाई या काट कर दूसरी लगाई जा सकती थी मगर कोई व्यवस्था नहीं की गई की क्योंकि टिकट के पैसे लिये जा चुके थे। अधिकारों कर्मचारियों के वेतन मिलेगा ही। किसी को क्या फर्क पड़ता है। स्वच्छ और सुविधा जनक यात्रा का पोस्ट लगा ही है, दुकान ऊँची है ही और जो भुक्तभोगी हैं वो लाचार हैं ही, जेब में उतने पैसे ध हो तो भूखे तड़पेगे ही। कधेक्टिंग ट्रेन हो तो छूटेगी ही और जाने कितने कैसी कैसी समस्या से जूझेगें। मर कर जी कर लात खाकर जब आप पहुँचायें तब पहुँचेगें ही भले वह पहुँचने के बाद किसी काम के न रहें या बीबी् से लात खायेगें ही। खून के आँसू रोयेगें क्योंकि वह हैं , विश्व की बेहतरीन रेल व्यवस्था म़ें एक बुलेट ट्रेन चलवाने वाली भारतीय रेल के आम यात्री । जिसकी अपनी इच्छा नहीं होती और होती भी है तो बस टूटने के लिए। माननीय नये मकान शौख से बनाये मगर जरा इतिहास की ,अपने नीव की मरम्मत भी कर दें। नहीं तो वी.आई.पीओं को भी सड़क पर आते देर नही लगती। इतिहास गवाह है।
जय हिंद जय भारत
अखंड गहमरी
बुधवार, 4 अगस्त 2021
एक त ससुरो भवति ना
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें