बुधवार, 4 अगस्त 2021

बाजार की गलियों तक

 
सोशलमीडिया से लेकर बाजार की गलियाँ, सरकारी और गैर सरकारी प्रतिष्ठानो में बड़ी रौनक थी। मेरी पूर्व प्रेमिका गजगमिनियाँ भी बड़ी खुश थी, उसके तो पाँव जमीन पर पड़ ही नहीं रहे थे। पहली बार उसने समाज को काँव-काँव कर बता रही थी कि वह मुझे जानती है। मेरी प्रेमिका मेरी प्रेयसी है। शायद उसे भारत में एक पखवारे के अंदर लगभग 100 करोड़ रूपये के व्यवसाय में से लाख रूपये गटकने का तरीका पता चल गया था। मारीशस से लेकर भारत की गलियों तक वह चीख-चीख कर कौवे जैसी आवाज में उस पखवाड़े की तारीफ करती उसकी शान में अपनी टूटी फूटी जानकारी देती और अंत में प्यार से अपना पर्स खोलती एक लिफाफा अंदर कर चल देती। हाँ मौका मिलते ही अपने कथन और पखवाड़ा भूल कर मुझे मोबाइल पर  Hi Dear My Sweet Heart I love. Good night sweet dream  कहना नहीं भूलती। मैं तो बस सुनता ही रहता क्योंकि मोदी, गजगमिनियाँ और अपनी वाइफ होम के आगे विरोध करने का साहस मुझ में नहीं था।
मैं तो पागल दिल्ली से दौलताबाद घूमता रहता, मगर हर जगह पखवारे के समारोह को बाद ही कोई इसके तरफ ध्यान नहीं देता। वैसे हीआज गजगमिनियाँ ने शाम मेरे साथ गुजारने का वादा किया था, मगर उसका वादा मोदी के वादे की तरह हवा-हवाई निकलना। शाम से रात हो गई  हो गई उसका पता नहीं चला। मैं उदास उस हाल के बाहर बैठा था जहाँ से आज दिन भर उसकी आवाज में हिन्दी को भीगँते देखा, तभी मेरी नज़र सामने उठ गई , देखा कि मेरी एक और पूर्व प्रेमिका मजगमिनियाँ हाफ्ते हुए भागी आ रही है। मुझे देखते ही अपने चरण-दास को निकाल बड़े ही बोली ''अरे गहमरीया तू पागल हो गईल बाड़े का रे, तोरा के कहा कहा खोजली अ तू एइजा मूअत बाड़े, चल हमरा संगे''।
मैं कुछ समझ पाता इससे पहले ही वो मेरा हाथ पकड़ कर पास खड़ी टैक्सी में खींच लिया। टैक्सी कहाँ जायेगी? मुझे क्या करना है कुछ पता नहीं। 10 मिनट के बाद वह एक बड़े मकान के सामने रूकी जहाँ काफी रौनक थी। बाहर बड़े बड़े अच्छरो में बोर्ड लगा था, Welcome To Hindi Divas. गाडी रूकते ही वह मुझे खीच कर अंदर ले गई जहाँ एक आदमी आधी हिन्दी आधी अँग्रेजी में हिन्दी भाषा के प्रयोग का महत्व समझाते हुए हिन्दी का प्रयोग करने और कराने की बात कह रहा था।  मैं बोलते हुए आदमी को पहचानने की कोशिश कर रहा था मगर याद नहीं आ रहा था कहाँ देखा है। अचानक दिमाग में बिजली कौंधी यह तो वही आदमी था बिहरनिया बैंक का मैनेजर एतवरूआ था जो एक दिन मेरे हिन्दी में भरे फार्म को लेने से इन्कार कर दिया और मुझे जाहिल अनपढ़ बता रहा था, अँग्रेजी सीखने की सलाह दे रहा था।  तब तक मेरी प्रेमिका मुझे मंच पर लेकर पहुँच चुकी थी। उसने माइक सीधे माइक लेते हुए और लेते क्या छीनते हुए मेरे शान में बोलना शुरू किया। आज पहली बार उसके मुहँ से पागल, उल्लू, सनकी, दिलजले शब्द को छोड़ तारीफ के शब्द सुन कर मेरा सीना चौड़ा हो गया । मैं अब अपने सीने को 56 इंच का नहीं कहता क्योंकि अकसर 56 इंच का सीना बताने वालो का सीना 5-6 इंच भी नहीं रह जाता है। खैर मैं अभी अपने विचारो में मग्न था कि तालीयों की जोरदार आवाज सुनाई दी और मेरी मजगमिनियाँ ने हिन्दी दिवस पर बोलने के लिए माईक मूझे थमा दिया।
अब मैं क्या बोलता हिन्दी और हिन्दी दिवस पर जब हिन्दी खुद असहाय हो गई है अपने ही देश में, हिन्दी तो उस वाइफ होम की भाँति हो गई है जिसे हम साल में एक बार सजा-सवरा कर निकालते हैं, उसे खिलाते -पिलाते, घुमाते हैं, उसकी तारीफ  करते है, उसके साथ जीने मरने की कसमें खाते हैं, लाखो क्या करोडों के वारे-न्यारे करते है, फिर ढ़केल देते हैं उसी काल कठोरी में और अपनी फैशनेबुल प्रेमिका अंग्रेजी के साथ पूरे 350 दिन ऐश करते हैं।
मैनै तो मन की बात करना तब से छोड़ दिया जब से मन की बात  बदलने लगी। मगर इतना तो मन से मन कहने लगा कि जिस देश में आज तक हिन्दी को पूरे भारत में अनिवार्य नहीं कर सके, हिन्दी कामकाज को सम्मान नहीं दे सके , उस देश में हम राम मंदिर बनने, धारा 370 और आरक्षण हटने जैसे कभी न पूरे होने वाले सपनो की तरह विश्व भाषा बनाने चले हैं।
फिर भी अपनी मजगमिनियाँ को खुश करने के लिए कुछ तो बोलना ही था मैनें उसे अपने पास खींचा, उसकी आँखो में आँखे डाल कर हिन्दी पर बोलना शुरू किया  My Dear gentleman... तभी सामने देखा मेरी पूर्व प्रेमिका गजगमिनियाँ आती दिखाई दी। अब भारत-पाक जैसे युद्ध के हालात होने वाले थे और मैं चीख चीख कर हिन्दी दिवस पर बोले जा रहा था ताकि बम की आवाज से बचा जाये।नहीं तो आज हिन्दी दिवस के खत्म होते होते मेरे काले धने मुलायम बाल भी खत्म होकर हिन्दी की तरह बेचारे हो जायेगें।

अखंड गहमरी,

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