बुधवार, 4 अगस्त 2021

पारूल

 बिस्तर पर लेटी हुई उसने आवाज दिया पारूल ओ पारूल जरा इधर आ।
(दूसरे कमरे से पारूल का प्रवेश)
पारूल जी मेम माम साब।
जरा मेरे सिर में बाम लगा दे, बहुत दर्द हो रहा है।
जी मेम साहब (वह बाम लेकर उसे लगाने बैठ जाती है)
पारूल एक बात कहूँ मेम साहब ?
कहो, उसने बेरूखी से बोला।
आप उसे भूल क्यों नहीं जाती?
किसे? बहुत ही धीरे आवाज में उसने पूछा।
वही जिसकी तस्वीर देख कर आप दिन रात अपने अश्क बहाती हैं।
मैं तो कोई तस्वीर नहीं देखती, कोई अश्क नहीं बहाती। तू कैसे कह रही है यह सब?
मेम साहब हम गरीब काम धन के लिए जरूर करते हैं लेकिन दिल लगा के, दिल से।
हाँ हाँ जानती हूँ अब फिर शुरू मत हो जा।
तो भूल जाओ न, क्यों अपने को जला रही हो।
क्या क्या भूल जाऊँ?
मैं अनाथ जिसके जीवन में एक बार प्यार आया ये भूल जाऊँ? इस तन के हर हिस्से पर उसके लिखे नाम भूल जाँऊ?
चलो मान लिया कि सब कुछ भूल गई,(कुछ सोचते हुए उसके मन में कुछ दृश्य चल रहे हैं) मगर उस एहसास को कैसे भूल जाऊँ जो उसने मुझे दिया।
आज भी उसकी गर्म साँसे मेरे तन बदन पर महसूस होती हैं।
पारूल ये कैसा प्यार है मैम जो जाने के बाद भी इतनी तकलीफ दे रहा है।
वो हसते हुए पगली प्यार तो तड़प का दूसरा नाम है।
कभी मिलने की तड़प तो कभी बिछुड़ने की तड़प।
(वो शुन्य में खो जाती है)
खोये खोये..बहुत प्यार करती थी मैं उससे, उस दिन उसे के साथ जलैया ताल जाने का प्रोग्राम था। बड़ी मुश्किल से एक दिन का अवकाश आफिस से मिला था।इस प्राइवेट नौकरी में मालिक खून का आखिरी कतरा नोचनें को आतुर रहता मगर एक दिन अपनी खुशी के लिये दे नहीं सकता..
मैं सुबह से खाना बनाने में व्यस्त थी, खाना भी बनाती तैयार भी होती। निश्चित समय पर वो आ गया..
काली परछाई ...बड़ी सुदंर लग रही हो
कहते वह मुझे पकड़ कर अपने प्रेम के निशा देने
मैं अंदर की तरफ भागी।
वह भी वहाँ पहुँच गया।
तभी एक कर्कश आवाज गूँजी..
मैं जानती थी कि तू फिर उसी अनाथ के घर गया हो गया।
चल यहाँ से जिसके कुल खानदान का पता नहीं मैं उसे अपनी बहू नहीं बना सकती।
माँ उसके हाथो को खीचें ले जा रही थी और वह अपने ओठों से माफ कर देना, माफ कर देना बोले जा रहा था।
मैं खड़ी तमाशा देख रही थी..
कहते कहते वो रो पड़ी उसकी आवाज तेज होने लगी।
पारूल उसे छोड़ कर बाहर निकल गई ताकि उसके दिल की ज्वाला आसूँयों से शांत हो सके।

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