बुधवार, 4 अगस्त 2021

तेज तुफानी हवा

 तेज तुफानी हवा और ठंड के बाद भी मैं पसीने से लथपथ था। हाथो में उसका खत था, आँखो में अश्क। अश्क की कुछ बूँदे उस अनमोल कागज पर गिर कर शब्दों की दशा बिगाड़ रही थी। बाहर का तूफान मेरे दिल के अंदर के तुफान से कमजोर था।
खत में लिखे शब्दो पर भरोसा नही हो रहा था कि मैं जिसे जान से अधिक चाहता वह इस प्रकार मेरे भावनाओं से खेलते हुए आगे निकल जायेगी। कितनी आसानी से लिख दिया उसने कि आज पढ़े लिखे आधुनिक सोच के लोगो का जमाना है। मैं तुम्हारे जैसे कम पढ़े लिखे देहाती से विवाह कर अपने सपनों को जला नहीं सकती। तुम मुझे भूल जाओ तुम मेरे सपने पूरे नहीं करते।
तीर की तरह चुभ रहे थे दिल में यह शब्द। हा हा हा दिल और मेरे पास? ऐसा हो ही नहीं सकता।
अचानक तेज हवा का झोंका मेरे हाथो से वह खत ले उड़ा और बारिस की बून्दों से उसके अस्तित्व को मिटा दिया। अच्छा हुआ दिल दिल ही है तो किसी के साथ प्यार में जीता और किसको दिलजला नाम दे जाता।

अखंड गहमरी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें