सोमवार, 16 अक्टूबर 2017

दूसरे की रसोई

जब भी मैं अपनी रसोई छोड़ कर जब दूसरे की रसोई का खाना खाता हूँ, तो मेरा दिमाग बुलेट ट्रेन से भी तेज चलता है। आज जब मेरा दिमाग अजानक उड़ने लगा तरह तरह की बातें सोचने लगा तब मेरा ध्‍यान इधर चला आया कि आखिर मेरा दिमाग उड़ा तो उड़ा क्‍यों? तब याद आया ''कि आज घर तो अपना ही था मगर रसोई बदल गई थी''। मैं खाना कहीं और खाया था। हाँ अब ये बात अलग है कि सोचने की दिशा और दशा भोजन पर निर्भर करती है। जैसे दाल ,चावल , रोटी, चोखा हो तो प्रेम से खाईये, कोई डर नहीं होता, मन शातं रहता है, सोचने की दिशा सकारात्‍मक होती है। वही पूड़ी, पराठा या चिकन, मटन हो तो दिमाग भोजन पर कम जाता है, दिल में ईनो, हाजमोला, डायजिन और अधिक होने पर अस्पताल का रहता है। वैेसे मैं आज अनिल भैया के घर की तरह ज्‍यादा भी खाँ लू तो कोई डर नहीं । मेरे बड़े भाई श्री राजेश सिंह का गाजीपुर में सिंह लाइफ केयर सेन्‍टर, शायद यही नाम है, उनके अस्‍पताल का, समस्‍या तुरन्‍त दूर हो जायेगी। अधिक खाकर गाड़ी चलाया नींद सी आई और गिर-विर गया तो एक बड़े भाई आनन्‍द उपाध्‍याया का बनारस में रामबिलास हास्‍पीटल है, हड्डी तुरन्‍त सही। सरकारी अस्‍पताल की तरफ रूख करने से दोनो भाई बचा लेते हैं क्‍योकि इन दोनो की जानकारी अच्‍छी है, हो भी क्यों नहीं 100 में 90 नम्‍बर लाकर डाक्‍टर जो बने हैं । प्राइवेट नसिंग होम है तो सुविधा भी अच्‍छी है।
 सरकारी अस्पताल और सरकारी डाक्‍टरो के रूतबे तो निराले हैं, हनक-खनक सब दिखाते हैं, चिकित्सा की जानकारी के मामले में तो मेरी औकात कुछ कहने की नहीं है। इन दोनो की कृपा से मैं इनसे दूर ही रह जाता हूँ। इनके चोचले नहीं सहना पडता है।
पर एक बात समझ नहीं आई? दोनो इतने तेज थे तो ये सरकारी डाक्‍टर क्‍यों नहीं बने? तभी मेरा दिमाग खुद बोल पड़ा "अरे अखंड-प्रखंड तुम भी एक दम गदहे हो, जानते नहीं हो पहले 1 आता है यानि नम्‍बर वन तो सरकार पहले 1 नम्‍बर वाले को नौकरी देगी कि पहले 90 नम्‍बर वाले को? निहायत उल्‍लू हो तुम अखंड गहमरी। पहले 1 नम्‍बर वाले नौकरी पायेगें न? याद नहीं है? वो क्‍या कहते हैं पी0एम0टी0 और सी0पी0एम0टी में 0 नम्‍बर वालो को भी प्रवेश मिलता है,जीरो कही लगा दो बिल्कुल सेट, अलबेला है जीरो जैसे इसको पाने वाले होते हैं। अब वह 0 नम्‍बर पर प्रवेश पाने वाले कौन हैं यह तो शायद माया बुआ ही बतायेगीं। जब 0 नम्‍बर पाकर जो डाक्‍टरी में प्रवेश लेगा वो क्‍या और कैसे पढ़ेगा ? क्या समझ में आयेगा? कई साल प्रवेश परीक्षा की तैयारी के लिए मिला तो वह आर्याभट्ट जी का अविष्‍कार प्राप्‍त किये और बाबा साहब की कृपा से उनका प्रवेश हो गया , तो वह एक साल में एक वो क्‍या कहते हैं ? हाँ समेस्‍ट कहते हैं , उसे कैसे पास करेगें ? किससे पूछे- किससे पूछे? चलो मुलायम बाबा से पूछे, लेकिन वह बोलेगें तो आधी बात समझ में नहीं आयेगी। तो राहुल चचा से पूछे? लेकिन नहीं सोनिया दादी विदेश गई है, राहुल चचा किससे अनुमति लेगें बताने के लिए। मोदी दादा कि तो सोचना बेकार है वो तो कही भारत की सीमा से दूर ही होगें। चलो छोड़ो अपनी पत्‍नी से पूछ लेता हूँ, गाली भी देगी तो क्‍या हुआ। आधी गाली उसको लगेगी, आधी मुझको, क्‍यो‍कि अर्धगनी जो ठहरी, मगर अगले पल ठिथक गया, फिर उसके सामने अपने ज्ञान का कालर कैसे ऊँचा करेगें। छोड़ो मृतुंन्‍जय चचा से पूछते है, पुराने पतरकार रहे है, नेता भी रहे है, पढ़ने में भी ठीके ठोके ठाक होगें। यानि नई बहू कि तरह सर्वगुण सम्मपन्न।

भारत में बढ़ती तलाक और अलगाव की परम्परा --एक कंलक


मनुष्य में जन्म पाते ही मानव कई प्रकार के बंधनो में बंध जाता है जिसमें से एक संस्कार है विवाह संस्कार जो महज एक संस्कार न होकर तन-मन-का मिलन होता है। सात जन्मों का बंधन कहा जाता है, मगर आज के आधुनिक परिवेश में सात जन्मों का बंधन सात महीने में निभाना मुश्किल हो रहा है। आये दिन न्यायालयों में तलाक के लिये अर्जियॉं लगाई जा रही है। जो परिवार ऐसा नहीं कर पा रहे है वो एक दूसरे से अलग एकाकी जीवन जी रहे है।
इसका क्या कारण है हमारी सभ्‍यता पर हावी होती पश्चिमी सभ्‍यता, बढ़ती महत्वाकांक्षा, माता-पिता द्वारा चयन विवाह, या खुद प्रेम विवाह। मगर यदि इसका दोष प्रेम विवाह को माना जाये तो सबसे अधिक अलगाव और तलाक की घटना गाॅंवो में हो रही है जहाॅं अभी प्रेम विवाह का प्रचलन काफी कम है। फिर ऐसा क्यों। गाॅंवो में बढ़ती यह परम्परा बहुत ही अधिक घातक सिद्व हेा रही है।
ग्रामीण क्षेत्रों में युवा वर्ग अपने माॅं बाप की मर्जी से विवाह तो कर रहा है लेकिन वह एक दूसरे में पश्चिमी करण का मोह नहीं त्याग पा रहे है वह भौतिक सुख सुविधा की चाहत नहीं त्याग पा रहें है। कहा जाये तो हिन्दी फिल्मों के तर्ज पर ही युवा वर्ग अपने साथी को चाहता है। पर अपेक्षाये पूरी न होने पर वह विवाद करने से चूक नहीं रहा है। छोटी से छोटी बात भी पहाड़ो सी नजर आती है। एक दूसरे के जीवन साथी एक दूसरे को देखना पसंद नहीं करते, प्यार मिट जाता दोनो एक दूसरे पर दोषा रोपण करते हुए अलग रहना शुरू कर देते है। यहाॅं तक की समाज,घर परिवार की बाते सुनने को तैयार नहीं होते समझौते के सारे रास्ते बंद कर वह तलाक लेकर अकेले रहने की बात करते है। दाम्प्तय जीवन के बिगड़न के पीछे एक कारण शक भी निभाता है। पुरूष या स्त्री दोनो में कोई अगर गैर पुरूष या स्त्री से बात करे उसके साथ काम करें तो वह अवैध संबंध के दायरे में आ जाता है। बिना हकीकत जाने एक दूसरे पर दोषा रोपण और फिर विवाद नौबत तलाक तक पहुॅंच जाती है। और तलाक लेकर ही वह संतुष्ठ होते है।
आज देखा जाये तो विवाह विच्छेद में मोबाइल, फेसबुक, टिविटर और वाटस्प जैसे सोसल नेटवर्किग साइटो का भी कम योगदान नहीं है। पति घंटों कार्यालय में काम करके आने के बाद मनोरजंन के रूप में देर रात तक सोसल साइटों का इस्तमाल करता है। बाते करता है। कभी कभी वह दूसरो में अपनी पंसद की छवि तलाशते हुए अपने परिवार से दूर होने लगता है। पत्नी दिन भर एकाकी जीवन जीने के बाद रात बिस्तर पर भी अपने को अकेला पाती है। साथ ही दूसरे पक्ष से देखा जाये तो दिन भर घर में अकेली पड़ी स्‍त्रियों ने भी इसका प्रयोग शुरू में अकेला पन काटने के लिये किया मगर धीरे धीरे उनका आर्कषण दूसरो के प्रति बढ़ा और वह अपना अकेला पन दूसरो से बाँटते बाँटते दूसरे के साथ संबंध बना लेती है। राज खुलने पर तलाक या हत्या जैसी वारदार पर खत्म होता है।
आज के युग की यह विडम्बना हो गयी है कि पति-पत्नी दोनो एक दूसरे में राम सीता की छवि देखना तो पंसद करते है, मगर राम-सीता बनना नहीं चाहते है। खुद करें तो सही दूसरा करें तो गलत तो एक विवाद का कारण बनता है।
तलाक के बाद भी युवाओं की मुसकिल आसान नहीं होती। तलाक के बाद दूसरा विवाह करने के पश्चात भी स्त्री और पुरूष दोनो के दिमाग में ‘‘एक हाथ से ताली नहीं बजती ‘‘ की बात घूमते रहती है। शुरू में तो सब ठीक लगता है मगर फिर एक दूसरे पर शक शुरू हो जाता है। ‘‘शायद इसी लिये तलाक हुआ‘‘ जैसा जुमला आम होता है और फिर बात बात में डर की कही इस बार भी नहीं निभ पाया तो क्या होगा, हर तरफ अविश्‍वास ही अविश्वास, जिसका असर संतानो पर भी पडता है।
विवाह विच्छेदन में एक अहम पहलू परिवार भी साबित हेा रहा है पुरूष के परिवार के लोग अपने बेटे-भाई की गलतीयों को मानने को तैयार नहीं होते चाहे वह नशे की हालत में आकर पत्नी को प्रड़ाडित करना हो या पत्नी के इच्छाओं का गला घोटने की बात हो सभी मामलों में लडको के परिवार के लोग लडकेा का ही साथ देते है, जिससे शिकार औरत के मन में ससुराल पक्ष में प्रति नकारत्मक भाव आता चला जाता है और वह अपने पति के साथ साथ अपने ससुराल के लोगो के साथ भी रहना पंसद नहीं करती और पिता के घर चली है, और फिर काफी प्रयास करने पर भी वह जाने को तैयार नहीं होती।
वही दूसरा पहलू यह भी है कि बेटी के परिवार के लोग विवाह के बाद भी पुत्री के परिवार में हस्तक्षेप करने से बाज नहीं आते उनके घर की समस्या में बिना वजह टाॅंग अड़ातेे है और बात बात में लडकी को गलत सलाह दे डालते है। जिससे ससुराल पक्ष के लोग अपनी तौहीन समझते हुए लडकी को और प्रताडित करते है। बात को न समझते हुए पुत्री को अपने पास ले आते है और कानूनी कार्यवाही करने की धमकी देते है।
गाजीपुर जिले के एक गाँव में एक गुप्ता परिवार की एक लडकी ने अपना विवाह केवल इस लिये तोड दिया कि उसका पति उसको अपने माइके में रह कर स्नातक की परीक्षा देने से मना कर दिया और न मानने पर उस के उपर हाथ उठाया दोनो पति अपनी अब एक दूसरे से अगल रहते है लडकी जहा माइके में है वही उसका पति दिल्ली के नीजी संस्थान में कार्य करता है
वही गाजीपुर जिले के ही एक पंडित परिवार की एक लडकी ने अपना ससुराल छोड कर माइके में रह रही है कि दूसरे से प्रेम विवाह करने की चाहत केवल इस लिये रखती है कि उसके परिवार के लोगो को उसका आधुनिक जीवन पंसद नहीं है वह अपने मन पंसद परिधान नहीं पहन सकती ना तो वह अपनी भौतिक आकांक्षो को पूर्ण कर सकती है मगर उस लडकी ने यह सोचने की जहमत नहीं उठाई की उसके पिता ने किसी तहर उसका विवाह किया और उसके बाद उसकी तीन बहने और शादी योग्य है आखिर यह कहा की महत्वाकांक्षा जो अपने स्वार्थ के लिये अपनो की सुख की बलि चढा दे।
आखिर जो भी हो तलाक और विवाह विच्छेद हमारे समाज के लिये एक कंलक है, विवाह आपसी मेल का पर्याय है इसे सोच समझ कर निभाना ही होगा। जिससे एक तरफ तो परिवार टूटने से बचे और दूसरी तरह इस प्रकार के विच्छेद पर होने वाले अपराध को रोका जा सके।

रविवार, 15 अक्टूबर 2017

लगाने पाक का झन्डा, उन्हें कश्मीर में मत दो।
ज़मी यह हिन्द की प्यारी, उन्हें समझा के फिर तू सो।
न माने बात गर तेरी, न वन्देमातरम बोले,
दिखा दो पाक की राहें, अरब के उन लुटेरो को।
अखंड गहमरी।।

लदी है टोकरी सर पे, तड़पता गोद में बालक।
मिटाये भूख कैसे वो, समझ उसकी न कुछ आये।।
बदन पीला पड़ा उसका, न मिलती पेट भर रोटी।
कहाँ से दूध छाती में, वो बालक के लिए लाये।।
अखंड गहमरी


पड़ोसी कर रहा हो घर, अगर रौशन जला दीपक।।
तुम्हारे घर भी आयेगा उजाला, मत जलो उससे।।
अखंड गहमरी।।


स़जा ऐसी मुझे देगी, नहीं मालूम था मुझको।
सहारा प्यार का छीना, न रोने की कस़म देकर।।
जुबा खामोश रखना सीखना मुझको नहीं यारो।
बचे हैं चार दिन इस जिन्दगी के अब करोगे क्या?
अखंड गहमरी।।

जरा अब होश में आओ, दिखाओ हिन्द की ताकत।
बजा शंकर का डमरु तुम, सुनाओ हिन्द की ताकत।।
अगर अब पाक का झन्डा, दिखे कश्मीर में तो तुम..
जला कश्मीरी मुल्लो को, बताओ हिन्द की ताकत।।
अखंड गहमरी।।।

दिया जो जख़्म गाँधी ने, अभी भी भर न पाया वो।
लगा कर आग मुल्लो ने, जला कश्मीर को डाला।।
अखंड गहमरी।।


बता दो याद अब उनकी मिटायूँ मैं कहॉं जाकर
लिखा जो प्‍यार के किस्‍से सुनायूँ मैं कहॉं जाकर
बजाकर जो कभी पायल जिगर के पास आती थी
नज़र उसको लगी मेरी बतायूँ मैं कहाँ जाकर
न मैखाना शहर में है न उसका घर पता मुझको
जरा कोई बताये दिल लगायूँ मैं कहाँ जाकर
न पीया जाम क्‍यों मैने, अगर पूछो न तुम मुझसे
नजर बोतल में आई तुम दिखायूँ मैं कहाँ जाकर
मिला कर जाम में पानी कभी क्‍यूँ मै नहीं पीता
शहर में अश्‍क बहता है मिलायूँ मैं कहॉं जाकर

मुसीबत आ गई है जब, कहो क्‍यो तुम हो घबडाते।।
सबेरा हो न जब तक क्‍या,‍ दिखाने राह रवि आते।।
पराया कोई न हैं जग में,तुम्‍हारे साथ रहते सब।
मगर जब धूप होती तेज, वो बस छॉंव में जाते।।
अखंड गहमरी।।

गहमर कार्यक्रम

गहमर में आयोजित अखिल भारतीय साहित्यकार सम्मेलन अपनी गरिमा लिये आप सभी के सहयोग और आशीर्वाद से समाप्त हो गया। आप सब के मार्गदर्शन का फल था कि मैं इसे आयोजित कर पाया।

इस कार्यक्रम में मैंने कुछ बातें आप सभी के मंच से हट कर आपसी वार्तालाप के दौरान सीखी और कुछ मंच संचालन और आपके गहमर भ्रमण से और कुछ गायकी के कार्यक्रम से महसूस किया।

आप सब ने एक बाते बहुत अच्छी उठाई कि '' आज अधिकांश केवल सुनाना, दिखाना, पढ़ाना तो चाहते हैं, पर दूसरो की सुनने, पढ़ने और देखने को तैयार नहीं," । बहुत यह एक कटू सच है, जिस पर सभी को गम्भीरता से विचार करना होगा। इसका कारण क्या है? यह तो समद नही आ रहा मगर आज इस समस्या के कारण साहित्य की पौधशाला सूखती जा रही है। युवाओं की एक अच्छी फसल तैयार नहीं हो पा रही है। युवा लेखक/ रचना कार सही- गलत का निर्धारण नहीं कर पा रहे हैं। जिससे वह समय से पहले दम तोड़ दे रहे हैं। जो वर्ग कुछ सुन, देख, पढ़ भी रहा है उसम़े से भी अधिकाशं एक कोरम पूरा कर वाह,बधाई और शुभकामनाएं तक ही खुद को समेट ले रहा है। इस समस्या को खोजने और समाप्त करने की दिशा में अग्रज साहित्यकारों को हर हाल में बढ़ना होगा, समाधान चाहे कितना भी जटिल क्यों न हो हम युवावर्ग को साथ लेकर उसे करना होगा, नहीं तो क्षमा के साथ कहना चाहूँगा कि ''आने वाला समय न युवाओं को माफ करेगा न अग्रज साहित्यकारों को''।

दूसरी बात जो मैनें दो सालो में महसूस किया कि '' कभी-कभी हर व्यक्ति अपनी वर्तमान चोले से बाहर आना चाहता है ,जैसै वर्णाली बर्नजी जी, बीना श्रीवास्तव जी और रविता पाठक के भक्ति लोकगीत के प्रस्तुति के बाद के बाद कई साहित्‍यकारों ने न सिर्फ लोकगीतो की प्रस्‍तुति देनी चाही बल्कि वाद्ययन्‍त्र बजाने की भी इच्‍छा जाहिर किया। ठीक वैसे ही जैसे द्वितीय वर्ष अपनी जीवन पर आधारित कहानी सुनाने को कोई तैयार नहीं था और जब कार्यक्रम शुरू हुआ तो साहित्‍यकार तो साहित्‍यकार मेरे गॉंव के मृतुन्‍जय चाचा, धीरेन्‍द्र चचा एवं ग्राम प्रधान मुरली कुशवाहा तक कहानी सुना गये। इस लिए मैं आगामी कार्यक्रम में '' यादो के झरोखें से'' नाम का एक आयोजन जरूर रखने का प्रयास करूगॉं जिसमें आप वाद्ययन्‍त्रों का प्रदर्शन, गायकी, कहानी या मन की बात जरूर रख सकेगें।

तीसरी बात जो गुरूवर आदरणीय विश्‍वभर शुक्‍ल जी एवं आदरणीय संजीव सलिल वर्मा जी ने प्रस्‍ताव दिया कि कार्यक्रम के दौरान गहमर भ्रमण कार्यक्रम में एक सत्र मॉं कामाख्‍या देवी के प्रांगण में जरूर रखा जाये जहॉं केवल माँ कामाख्‍या पर आधारित एक-एक छोटी रचना सभी सुनाये, यह भी निश्‍चित रूप से किया जायेगा। वहॉं एक काव्‍य गोष्‍ठी के बाद सीधे भोजन और तब सम्‍मान समारोह कार्यक्रम स्‍थल पर आयोजित किया जायेगा।

चौथी बात कान्ति मॉं द्वारा कही गई जिसमें उन्‍होनें साफ कहा गया कि यह स्‍थान सिर्फ काव्‍य सम्‍मेलन और सम्‍मान का स्‍थान न बने यह सभी को कुछ सिखाने का स्‍थान बने,निश्चित रूप से सही रहा, इस कार्यक्रम के दौरान विभिन्‍न विषयों पर कम से 2 कार्याशाला जरूर आयोजित किया जायेगा, जिससे में एक लेखन और एक साहित्‍यकारो को नई टेकनालाजी से जोडने की होगी।

पॉंचवी बात प्‍यासा अंजुम सर, और योगराज प्रभाकर सर ने मेरे इस कार्यक्रम को अप्रैल में कराने के निर्णय पर सीधे आदेश दिया कि अप्रैल हर मायने में व्‍यस्‍त महीना रहता रहता है, शिक्षा का नया सत्र, कार्यालयों का नया सत्र, शादी व्‍याह का मोैसम, गर्मी के साथ कठिनाईयॉं आती है। इस लिए यह कार्यक्रम सीधे दिसम्‍बर माह के तीसरे शनिवार,रविवार एवं सोमवार को दोपहर तक आयोजित हो, जिससे सभी को आने का समय मिले, गर्मी की समस्‍या से निजायत मिले, सोमवार को सीधे गहमर भ्रमण, कामाख्‍या काव्‍यगोष्‍ठी, भोजन और विदाई रखी जाये।

इस प्रकार आप सब के सहयोग से जो बाते समाने आई, मैने सीखी वह आपके सामने है। आपके आशीर्वाद का आकाक्षी अखंड गहमरी, गहमर गाजीपुर।

आभार

अखिल भारतीय साहित्यकार सम्मेलन 2017 गहमर में आये आप सभी अतिथियों को प्रणाम। आशा है कि आप सभी अपने अपने निवास स्थान पर पहुँच चुके होगें। अपनी उच्च स्तर की सुविधा छोड़ गहमर की भीषण गर्मी में आप सब ने न सिर्फ पसीना बहाया बल्कि अपने रहन सहन के स्तर से नीचे जाकर 3 दिन निवास किया, ये आप सब की महानता और प्रेम था। आप के सहयोग से ये तीन दिन कैसे बीत गये पता ही नहीं चला। कार्यक्रम के दौरान आप सब की सुविधाओं का प्रर्याप्त ख्याल रखने का प्रयास किया गया, परन्तु निश्चित रूप से वहाँ कमीयाँ हुई, जिसके लिए हम सब क्षमाप्रार्थी हैं। यह केवल एक सम्मेलन नहीं होता बल्कि यह एक यज्ञ होता है जिसमें मैं अपने कर्तव्यों और परिश्रम की आहुति देकर आप सब का आशीर्वाद प्राप्त करने की कोशिश करता हूँ। उपरोक्त कार्यक्रम ट्रनो के परिचालन और कुछ मेरी नादानियों के कारण काफी विलम्ब से शुरू हुआ.जिसके कारण कई प्रायोजित कार्यक्रम नहीं हो पाये। विमोचन के कार्यक्रम में श्री उमेश कुमार श्रीवास्तव एवं अशोक कुमार गुप्त जी को अपनी किताब के बारे में बोलने का मौका नहीं मिल पाया।श्री प्यासा अंजुम जी कि किताब का विमोचन नहीं हो पाया। प्रो.विश्वम्मर शुक्ल जी को द्वितीय दिन कवि सम्मेलन के बाद दिये जाने वाला साहित्य सरोज सम्मान नहीं दे पाया, इसके लिऐ मैं आप से क्षमायाचक हूँ।
मैं क्षमा याचक हूँ संजीव सलिल वर्मा जी से जिनके छंद लेखन पर आधारित कार्यशाला नहीं हो पाई।
मैं क्षमायाचक हूँ आदरणीया ई.आशा जी , आ. रविता पाठक जी से जो मेरे अकुशल नेतृत्व क्षमता एवं विभिन्न कारणों से अपनी प्रस्तुतियां नहीं दे पाई। मैं क्षमायाचक हूँ कमलापति गौतम और उनके परिवार से जो मेरे सौपी गई एक जिम्मेदारी को निभाने में काफी परेशान हुए।
कई अव्यवस्थाओ के बीच मेरे लिए सुखद ये रहा कि आप सब ने मुझको ऐसे ऐसे ज्ञान दिये जिसको अपना कर न सिर्फ कार्यक्रम को सुखद बना सकूँगा, बल्कि जीवन में उतार आगे बढ़ सकूँगा। मैं आप सब के साथ उदय प्रताप पब्लिक स्कूल पब्लिक स्कूल की बच्चीयों का आभारी हूँ जो कठिनाइयों को झेलते हुए भी गहमर पहुँचीं और अपना बेमिशाल कार्यक्रम प्रस्तुत किया। मैं वर्णाली बर्नजी और बुन्देलखण्ड से आई महिला का विशेष आभारी हूँ जिसने लोकगायन प्रस्तुत कर स्थानीय बच्चों में उत्साह पैदा कर उनको मंच पर आने की प्रेरणा दी।
मैं आभारी हूँ अपने गुरू श्री योगराज प्रभाकर जी का, गिरीश पंकज जी का, ब्रजेश सिंह ब्रजेश जी का, वीर सिंह मार्तण्य जी का, श्रवण कुमार उर्मलिया जी का,गंगा राम शर्मा जी का, राधेश्याम बंधु जी का जिन्होंने समय समय पर मार्ग दर्शन दिया। मैं आप सब आये हुए, अतिथि नीलम श्रीवास्तव जी, समीर परिमल जी, सरोज तिवारी जी, डा.चेतना उपाध्यक्ष जी , बीना श्रीवास्तव जी, सुलक्षणा अहलावत जी, रीता जय हिन्द जी, डा.रश्मी जी, डा.मुक्ता जी, श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय जी, बसंत कुमार शर्मा जी, विनोद पान्डें जी, कपिल कुमार जी, रमेश कुमार सिंह जी, पूनम आन्नद जी, श्रीधर द्विवेदी जी, शान्ति कुमार स्याल जी, देवशरण शर्मा जी,विनय राय बबुरंग जी,ऋचा आर्या जी,कान्ता राँय जी, सुधीर सिंह , श्रीमन्नारायण चारी विराट जी,भवर जी, सन्नी कुमार जी, भोला जी सहित उन सबका आभारी हूँ जो इस कार्यक्रम में उपस्थित हुए और उनका नाम मैं नहीं लिख सका।
मैं आभारी हूँ गहमर के हिन्दुस्तान समाचार पत्र, दैनिक जागरण, राष्ट्रीय सहारा के स्थानीय पत्रकारों का जिन्होनें तैयारी से लेकर समाप्ति तक शानदार कवरेज किया। मैं माँ श्रीमती कान्ति शुक्ला और सुभाषचंदर सर को चरण स्पर्श करता हूँ जिन्होनें हर समय मेरा मार्ग दर्शन किया।
अन्त में आप सबको हुई परेशानीयों के लिए क्षमा याचना करते हुए ये निवेदन करता हूँ कि आप एक स्मरण जरूर लिखें, जिसमें कमियाँ, कष्ट, सुझाव जरूर लिखें।

आप सबको नमन करते हुए अखंड गहमरी।

गहमर पर गीत रमा

रमा दीदी द्वारा गहमर पर लिखा एक नवगीत

गहमर की माटी
सौंधी सौंधी
खुशबू से महके देखो

इस धरती से होकर गुजरे
माँ गंगा की
पावन धारा ...
चाँद और सूरज
नजर उतारे
आशीष पाए गहमर सारा ......
हवा बजाये ढोल मजीरे
कलियाँ सारी चहके देखो |

कामाख्या माँ इसी गाँव में
आन बिराजी
भाग्य हमारे .....
जिनके आशीर्वाद से
उन्नत गाँव हो रहा
साँझ सकारे ...
धूप दीप से हवा सुगन्धित
दीया बाती लहके देखो |

इस माटी में जन्मे
वीरों ने गहमर का
मान बढाया ....
देश की रक्षा की खातिर
सरहद पर जाकर
वचन निभाया ....
देश प्रेम के
जिनकी आँखों में
अंगारे दहके देखो |

यहीं हुए थे पैदा
गोपाल राम गहमरी
सुनो बताऊँ ...
उनके लिक्खे जासूसी
किस्से पढ़ पढकर
आज सुनाऊं ....
जिनके गीतों
में हिंदी और
भोजपुरी भी बहके देखो |

हरियाली की गोद में
बसे हुए गहमर की
बात है न्यारी ....
हवा चैन की बहे
यहाँ के गाँव गली की
छटा है प्यारी....
सदा करोगे याद
आप कुछ दिन
गहमर में रहके देखो |

रमा प्रवीर वर्मा ..........

गहमर पर गीत

गहमर के कुछ इतिहास को एक गीत के माध्‍यम से बताने की कोशिश।

कहानी आज गहमर की सुनो सबको सुनाते हैं!
बना तस्‍वीर इक प्‍यारी सभी को हम दिखाते है!

बकस बाबा का है मंदिर, लिये बस नाम जो आता!
न मरता साँप का काटा, खुशी मन से वो घर जाता!
बचाने में गऊ माँ को, गई थी जान ही जिनकी!
न उस बरसाल को भूलें, करें पूजा सभी उसकी
हमारे गाँव में गंगा, लगे मेला यहाँ हरदम!
बने हैं घाट सब पक्के, न शहरो से दिखे कुछ कम!
निराली है छटा छठ की, सभी दीपक जलाते हैं!
कहानी आज गहमर की.......

बसा पन्‍द्रह सौ पैतिस में, जगह ये नाम था गहमर!
बसाया था इसे जिसने, हुए वो धाम देव अमर !
बना कर वो यहॉं मंदिर, बसाये मॉं का'माख्‍या को!
करे विश्‍वास माँ में जो, कभी उसको न दुख इक हो।।;
तभी से रोज पूजा हो, कभी खंडित नही होती!
निराली मॉं की' महिमा है, निराली उसकी' है ज्‍योती!
लगे नवरात में मेला, हजारो भक्‍त आते हैं!
कहानी आज गहमर की......

यहॉं अंग्रेज की कोठी, जिसे मैगर जलाये थे!
नदी में जान अपनी कूद,तब गोरे बचाये थे!
बचाने मान भारत की,लुटा ने जान सरदह पे।
खडे़ है आज सीमा पे,हजारो वीर गहमर के।।
बयालिस में लिया लोहा,यहॉं के वीर गोरो से
किये थे तीस दिन शासन, बनाये अपने' नियमो पे!
हिफाजत देश की कैसे,करे सबको सिखाते हैं!
कहानी आज गहमर की.......

खिला दुश्मन ज़हर आजाद, कर दे जिन्दगी से पर।
तड़प औ दर्द दे जिन्दा,सदा अपने ही रखते हैं।।
अखंड गहमरी

पड़ोसी कर रहा हो घर, अगर रौशन जला दीपक।।
तुम्हारे घर भी आयेगा उजाला, मत जलो उससे।।

अखंड गहमरी।।

अखंड गहमरी updated his status.
स़जा ऐसी मुझे देगी, नहीं मालूम था मुझको।
सहारा प्यार का छीना, न रोने की कस़म देकर।।
जुबा खामोश रखना सीखना मुझको नहीं यारो।
बचे हैं चार दिन इस जिन्दगी के अब करोगे क्या?

अखंड गहमरी।।
महीना जून का पावन ,मुझे तो खूब है भाता।
मगर इसका मुझे है ग़म ,हमेशा ये नही आता।।

बला बीबी टले इस माह, पीहर वो चली जाती।
सुबह से शाम तक करती ,परेशा सर जो है खाती।
यही इक माह है ऐसा ,खुशी जो साथ में लाता।।
महीना जून का पावन ,मुझे तो खूब है भाता।।

लड़ाता जाम विस्‍की के ऩज़र रखता पडोसन पे।
न खाना मैं बनाता हूँ मगाता रोज होटल से।।
पिटाई भी नही होती, जली रोटी नहीं खाता।।
महीना जून का पावन, मुझे तो खूब है भाता।।

सुबह से शाम बाते प्‍यार से, वो फोन पे करती ।
दिखाता प्यार मै झूठा,खुशी में आह वो भरती।।
कहूँ जब मैं तुम्हारे बिन, रहा मुझसे नही जाता।।
महीना जून का पावन मुझे तो खूब है भाता।।

अखंड गहमरी।।गहमर गाजीपुर ।
7 June

हिन्‍दूओं की भावना का खून बहाने वाले, सर्द रात में अपने स्‍वार्थ के लिए म‍हजिदो से हिन्‍दुओं को बाहर कराने वाले, अपने स्‍वार्थ के लिए भारत के दो भाग कर मुसलमानो को दान देने वाले,लाखो हिन्‍दुओं के हत्‍यारे, तथाकथित राष्‍ट्रपिता के विषय में किसी ने एक सही वाक्‍य क्‍या कह दिया, जलजला आ गया। वाह रे वाह।


जरा अब होश में आओ, दिखाओ हिन्द की ताकत।
बजा शंकर का डमरु तुम, सुनाओ हिन्द की ताकत।।
अगर अब पाक का झन्डा, दिखे कश्मीर में तो तुम..
जला कश्मीरी मुल्लो को, बताओ हिन्द की ताकत।।

अखंड गहमरी।।।
29 June
अखंड गहमरी updated his status.
दिया जो जख़्म गाँधी ने, अभी भी भर न पाया वो।
लगा कर आग मुल्लो ने, जला कश्मीर को डाला।।
अखंड गहमरी।।
 
लगाने पाक का झन्डा, उन्हें कश्मीर में मत दो।
ज़मी यह हिन्द की प्यारी, उन्हें समझा के फिर तू सो।
न माने बात गर तेरी, न वन्देमातरम बोले,
दिखा दो पाक की राहें, अरब के उन लुटेरो को।
अखंड गहमरी।।
अखंड गहमरी updated his status.
लदी है टोकरी सर पे, तड़पता गोद में बालक।
मिटाये भूख कैसे वो, समझ उसकी न कुछ आये।।

बदन पीला पड़ा उसका, न मिलती पेट भर रोटी।
कहाँ से दूध छाती में, वो बालक के लिए लाये।।
अखंड गहमरी
उठाना लाज का पहरा ,बहुत आसान है लेकिन।
बचा कर लाज रिश्तों का ,निभाना है नहीं आसां।।
गरीबो के बस्ती में, लगा लो लाख मेले तुम।
मगर इक प्यार की रोटी, खिलाना है नहीं आसां।।

अखंड गहमरी
हुआ हज पर अगर हमला, कभी कश्मीर की माटी में।
तिलक मारा न जाये फिर, कभी कश्मीर की घाटी में।।
 बदन लिपटा तिरंगें में, कही दिखता न उनका सिर।
गरज बेशर्म खादी तब, गिराती दुश्‍मनो के घर।
अखंड गहमरी

मुझे रब नींद वो दे दो, जगा कोई नहीं पाये।
ख्‍ुाली हो ऑंख मेरे पर, नज़र कोई नहीं आये।।
जलाया प्‍यार में जिसने, उसे ऐसे बुला मरघट
जले जब तक न दिल मेरा, नही वो लौट कर जाये।।
15 May
अखंड गहमरी updated his status.
बना कर दर्द को स्‍याही, लिखा कोरा मैं इक कागज।
गिरा कर अश्‍क अपने वो, लिखा था जो मिटा बैठी।।
अखंड गहमरी updated his status.
खुशी मेरी हंसी मेरी, किसी को क्यों नही भाती।
जलाने याद में अपनी , हमेशा वो चली आती।।
सज़ा तो जिन्‍दगी ने ही,मुहब्‍बत का दिया लेकिन
अभी भी याद उसकी दिल, से मेरे क्‍यों नहीं जाती।।

अखंड गहमरी
अखंड गहमरी updated his status.
कसम कोई न दे मुझको , कसम सब तोड़ बैठूगाँ।
सभी खुशियॉं सभी सपने,अभी मैं छोड़ बैठूगाँ।
जरा उनको बुला दो यार मेरे पूछ लू मैं कुछ
नहीं मैं मौत से यारी, कभी भी जोड़ बैठूगॉं।।

अखंड गहमरी ।।
 
चोट खाता रहा मुस्‍कुराता रहा
प्‍यार के फूल हस कर खिलाता रहा
अब भरोसा न है जिन्‍दगी का मुझे
इस लिये मैं उसे बस मनाता रहा

जिन्‍दगी प्‍यार मुझको सिखाती रही
और मैं जिन्‍दगी को भुलाता रहा
साथ वो चल दिये हैं किसी गैर के
प्रीत की रीत पर मैं निभाता रहा
आज की रात आखिरी होगी मेरी
पास अपने उसे मैं बुलाता रहा
बात जब है चली बेवफाई की तो
बेवफा कह मुझे वो बुलाता रहा
बात मुझसे करें वो कभी भी न पर
याद मे अश्‍क उनकी बहाता रहा।
24 May
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बता दो याद अब उनकी मिटायूँ मैं कहॉं जाकर
लिखा जो प्‍यार के किस्‍से सुनायूँ मैं कहॉं जाकर

बजाकर जो कभी पायल जिगर के पास आती थी
नज़र उसको लगी मेरी बतायूँ मैं कहाँ जाकर

न मैखाना शहर में है न उसका घर पता मुझको
जरा कोई बताये दिल लगायूँ मैं कहाँ जाकर

न पीया जाम क्‍यों मैने, अगर पूछो न तुम मुझसे
नजर बोतल में आई तुम दिखायूँ मैं कहाँ जाकर

मिला कर जाम में पानी कभी क्‍यूँ मै नहीं पीता
शहर में अश्‍क बहता है मिलायूँ मैं कहॉं जाकर
21 May
अखंड गहमरी updated his status.
मुसीबत आ गई है जब, कहो क्‍यो तुम हो घबडाते।।
सबेरा हो न जब तक क्‍या,‍ दिखाने राह रवि आते।।
पराया कोई न हैं जग में,तुम्‍हारे साथ रहते सब।
मगर जब धूप होती तेज, वो बस छॉंव में जाते।।

अखंड गहमरी।।
 

चित्रहार

समझना है नहीं आसान उनकी मुस्‍कुराहट को
जला भी मुस्‍कुराये वो, मिटा भी मुस्‍कुराते हैं।

अखंड गहमरी गहमर गाजीपुर

अखंड गहमरी updated his status.
करू मैं प्‍यार की बातें, कहूँ उनसे लिपट मुझसे।
मगर क्‍यों बात दिल की वो, छुपा दिल में न कुछ कहते।।
अखंड गहमरी updated his status.
कदम अपने बढ़ा कर वो, नहीं क्‍यों साथ देते हैं।
यही तकदीर क्‍या मेरी, समझ वो चाह चुप रहते।
बताना तो उसे चाहा, हमेशा हाल दिल का मैं।
गवाही दिल न दे मेरा, डरें वो रूठ मत जाये।
 

मुझे आशिक दिया है नाम जिसने ये जरा सुन ले ।
न है दिल जिस्‍म में मेरे, न किस्‍मत प्‍यार पाने की ।।
 

कफन में मैं लिपट कर पास से तेरे अगर गुजरूँ।।
बता कीमत चुकाऊ क्‍या, वहॉं से दूर जाने की।
 
पलें जो भीख पर मेरे, वही गाली सुनाते हैं
बना जो प्‍यार का मंदिर वहॉं दुश्‍मन बुलाते हैं
तवायफ जिस्‍म बेचे तो, कहे उसको बुरा लेकिन
वतन जो बेचता उसको,गले हम सब लगाते हैं।
 
न जाने क्‍यों थमी साँसे, अभी तो छॉंव पे हक था।
बुलायूँगा किसे अब मॉं, भवंँर में जब फसूँगा मैं।
 

कुछ सुना दीजिए
गम मिटा दीजिए
क्‍या लिखू मैं उसे
ये बता दीजिए।।
 

दवा की चाह में जिसके गया था पास मैं वो भी।
बता कर दिल जला मुझको, नया इक जख़्म दे बैठे।।
30 March 2017 22:10
अगर वो स्वपन में भी जिन्दगी का ख्वाब कह दे तो...
भुला कर गम सभी अपने, हकीकत में बदल दूगाँ।।
30 March 2017 11:22
हमेशा राह उसकी देखा, उसने कुछ नहीं बोला
कभी भी जिन्‍दगी के राज उसने क्‍यो नहीं खोला
किसी से प्‍यार करने का नही है हक मुझे लेकिन
न देखू एक दिन उसको, बने दिल आग का गोला।।
 

मिले गर जख्‍़म कुछ मुझसे, उन्‍हें तुम भूल मत जाना।
मुझे ऐसी सजा देना, तड़पता ही रहूँ हर दम।।
अखंड गहमरी

भरोसा अब न करना जिन्‍दगी का दोस्‍त मेरे तुम।
न जाने बंद कब हो ऑंख मेरी मैं चला जाऊँ।।
अखंड गहमरी

न सपने ही किया पूरा, न कोई गम मिटा पाया।
किया था प्यार म़ै जिससे, न चाहत ही जगा पाया।।
अखंड गहमरी

न कोई चाह दिल में अब, न सुख को ही तलाशूँ मैं।
न मिलती मौत है जब तक, मुझे तन्‍हा ही रहना है।।

अखंड गहमरी,

पता जब से चला उनको, वही है जिन्‍दगी मेरी।
नज़ाकत आ गई उनमें, वो मुझसे दूर रहती हैं।।
अखंड गहमरी

अगर ले जा सका तो मैं तुम्हारी याद ले जाऊँ।
नहीं फिर आपकी दुनिया में मैं तो लौट कर आऊँ।।
बचा कर अश्क अपने आप अपनो के लिए रखना..
गिरे गर अश्क मुझ पर तो, नहीं मैं चैन पाऊँगा।
अखंड गहमरी।।।
30 April
अखंड गहमरी updated his status.
भराेसा जुल्‍फ वालो का अगर तुमने किया तो फिर ।
कटोरा हाथ लेकर जिन्‍दगी भर तुम खुशी मॉंगें।।

अखंड गहमरी
अखंड गहमरी updated his status.
न लेना प्‍यार का तुम नाम, ये पागल बना देती।
दवा मिलती नहीं इसकी, न जाने कब रूके सॉंसे।।

अखंड गहमरी
अखंड गहमरी updated his status.
बची है चार दिन की जिन्दगी वो छीन लो तुम अब।
ज़हर खा कर मरा तो दोष तुमको दे बैठेगें सब।
मिलेगा चैन फिर मुझको, नहीं तड़पू वहाँ भी मैं..
न जाने बात मेरी मान कर तुम मौत दोगी कब।।

अखंड गहमरी
अखंड गहमरी updated his status.
मुझे वो दूर होकर दर्द से पहचान करवाये।
जलाते किस तरह से दिल, जला कर मुझको दिखलाये।
न करना प्यार अब तुम जिन्दगी में प्यार की खातिर-
लगा कर आग खुशियों में, मुझे वो आज सिखलाये।।

अखंड गहमरी।।
अखंड गहमरी updated his status.
सितारो को कहाँ हक है, करे वो चाँद से शिकवा।
उसे तो चाँद की महफिल, में बस खुद को सजाना है।।
अखंड गहमरी
April 2017
30 April
नहीं है प्‍यार करने का, मुझे हक भूल ये बैठा।
पड़े साया जहॉं मेरा, वहॉं बस शूल उगते हैं।
अखंड गहमरी
 
जरा लब खोल दो अपने, सुना दो बात दिल की तुम।।
चले जाना जरा रूक कर, अभी तो रात बाकी है।
अखंड गहमरी
 
एक ग़ज़ल.....काफी लम्बे अन्तराल के बाद...

मुझे वो प्यार करती है,जमाने से मगर डरती।।
हजारो बात है दिल में, सुनाने से मगर डरती।।

वफा की बात पर मेरे, भरोसा दिल करे उसका।
जुब़ा वो खोल कर बाते, बताने से मगर डरती।।

हजारो रंग के सपने , बुने मेरे लिए उसने।।
दिखाना चाहती मुझको, दिखाने से मगर डरती।।

न आई चाहते मुझमें, कहा नैना झुका मुझसे।।
लिपटना चाहती है वो , लिपटने से मगर डरती।।

तड़पती प्यार म़े वो भी, हकीकत गहमरी समझो।
मिटाना चाहती दूरी, मिटाने से मगर डरती।।

अखंड गहमरी
 
काफी लम्‍बें अन्‍तराल के बाद एक गी‍त लिखने की कोशिश

तड़पता हूँ तड़प दिल की, मिटाने तुम चली आओ।
लगी है आग दिल में जो, बुझाने तुम चली आओ।।

न दिल जलता, न जाती याद, ये है जिन्दगी कैसी।
तड़प दिल की न मिटती है, चुभे वो शूल के जैसी।।
मुझे गर प्यार के काबिल , न समझो तो मिटा देना।
ख़ता मत माफ़ करना और मुझको तुम सज़ा देना।।
कहे जो दिल अभी मेरा, सुनाने तुम चली आओ।
तड़पता हूँ तड़प दिल की, मिटाने तुम चली आओ।
लगी है आग दिल में जो, बुझाने तुम चली आओ।

खफा है लेखनी भी क्‍यों, नहीं मालूम है मुझको।
बता दो दोष मेरा तुम अगर मालमू है तुमको।।
कहे दुनिया न रोता हूँ, हकीकत पर न जाने सब
न है जब अश्‍क ऑंखो में गिरेगें वो कहॉं से अब
नही वो प्‍यार देती है, दिलाने तुम चली आओ
तड़पता हूँ तड़प दिल की, मिटाने तुम चली आओ।
लगी है आग दिल में जो, बुझाने तुम चली आओ।।

सुबह से शाम तक मैं जाम पीता ही चला आया।
नशे में डूब कर भी मैं नहीं उसको भुला पाया
गिरा हूँ याद में उसकी, बदन भी जल रहा मेरा
मगर उसने नहीं पूछा, बताओं हाल क्‍या तेरा ।।
मुझे बस चैन की नीदें,सुलाने तुम चली आओ
तड़पता हूँ तड़प दिल की, मिटाने तुम चली आओ।
लगी है आग दिल में जो, बुझाने तुम चली आओ।।

अखंड गहमरी
 
 
लगेगी आग दिल में जब, नजारा आप देखेगें।
अभी तो दर्द का मुझको, ठिकाना खोज लेने दें।।
अखंड गहमरी।। 
 
7 May 2017 00:36
बताओ दिलजले मुझको, कहा से दर्द लाते हो।
बडे़ ही प्‍यार से पूछा, किसी ने आज ये मुझसे।।
अखंड गहमरी
 

न कोई दर्द दे दिलको, मगर ये मिल ही जाता है ।
छुपा कर लाख रख ले, अश्‍क ये छुप ही न पाता है।।
किया अब प्‍यार दिल ने तो, उसे खुद मैं जला दूगॉं -
मिलेगा दर्द उसको प्‍यार में क्‍यों समझ न पाता है।

अखंड गहमरी।।
 
ज़हर से मारने का अब ,जमाना लद गया यारो।
मरेगा वो तड़प कर उससे, करो बस बेवफाई तुम।।

अखंड गहमरी
 
तुम्‍हारे पास हूँ मैं आज भी वो छुप के है कहती।
सही है बात ये उसकी, हमेशा पास ही रहती ।।
मगर आवाज जब देता उसे मैं माँ कभी कह कर..
न मेरे सामने आती, नदी आँखो से है बहती ।।
अखंड गहमरी।।

न जाने क्‍यों थमी साँसे, अभी तो छॉंव पे हक था।
बुलायूँगा किसे अब मॉं, भवंँर में जब फसूँगा मैं।
अखंड गहमरी।।
 
 
 
 
 

मैं और देव

कुछ साल पहले की बात हैं जब मैं और गहमर भाजपा के देव कुमार उपाध्‍याय एक सैलून में अचानक आमने समाने हो गये। मैं तो उस सैलून के बगल में ही रहता था, वो भी किसी आवश्‍यक कार्य थे आये थे। वर्ष 2012 के चुनाव में जब भाजपा का प्रत्‍याशी दल, बल और धन में कमजोर था, चंद लोग उसके साथ थे, उसमें ये भी थे, इस लिए इस दल का समर्पित कार्यकर्ता के रूप में उनके साथ कभी-कभी बिना चाय की चुस्‍कीयों के राजनैतिक चर्चा भी कर लेता हूँ। मोदी सरकार के कार्यो पर चर्चा शुरू हो गयी । वह साल मोदी सरकार का पहला साल था, फिर भी लोगो की अपेक्षा अौर शिकायतो का दौर शुरू हो चुका था, आरोप प्रत्‍यारोप किये जाने पर भी हम लोगों के बीच गहरी प्रतिक्रिया हुई। चुकि जिस तहर मैं वर्ष 2017 में योगी के मुख्‍यमंत्री बनने लालसा के बावजूद जमानियॉं विधान सभा के प्रत्‍याशी एवं वर्तमान विधायक सुनीता‍ सिंह का विरोध किया उसी तरह वर्ष 2014 के चुनाव में भी मैने मोदी का समर्थन किया मगर वर्तमान तत्‍थाकथित विकास पुरूष मनोज सिन्‍हा का व्‍यापक विरोध अपने नीजी विचारों के आधार पर किया था, इस लिए वो मेरी सभी मेरी बातो को काटते जा रहे थे, तब मैने कहा था कि समय आने दीजिए देखा जायेगा, गंगा में कितना पानी बहता है और क्‍या रंग दिखाता है।

आज गंगा में बहुत पानी बह चुका है, मैं व्‍यक्तिगत तौर पर मोदी सरकार का सर्मथन, काश्‍मीर के मुद्वद्वे, राम मंदिर का मुद्वदा, पाकिस्‍तान को जबाब, गंगा मुक्ति, आतंकवाद, नक्‍सलवाद, देशद्रोहीयों का दमन, मंदिरों की सुरक्षा, घोटालो की जॉंच, सैनिको का सम्‍मान, जैसी गृह मुदद्वो पर किया था। ये मानता था कि पलक झपकते सभी को रोजगार, महगॉंई, काला बाजारी एवं भ्रष्‍टाचार जैसी समस्‍याओं से मुक्ति नहीं मिल सकती, मगर कुछ समस्‍याएे ऐसी थी जिनको 56 इंच के सीने से दो-तीन साल के भीतर दूर किया जा सकता है। कुछ समस्‍याएं अगले 5 साल में दूर होगी।

आज मोदी सरकार स्‍वच्‍छ भारत, नोटबंदी पर ही पूरी अपनी पीठ आप वैसे ही थपथपा रहे हैं, जैसे बिहार में नीतिश बाबू दारूबंदी से। आप भी पुरानी लोक लुभावन जातियों को तोड़ने वाली आरक्षण की राजनीति पर चलने लगे, और वोट बैंक बनाने लगे। आपके लोग कहते है भारत की विश्‍व में इज्‍जत मान बढ़ा है, वैसा इज्‍जत मान किस काम का जब आप के कहने से आप का पड़ोसी शांत न ही हो रहा है। कई देश आपके अपराधीयों और भगोड़ो को छुपा कर बैठे है, और आप की बात एक कान से सुन कर दूसरे कान से निकाल ले रहे हैं। कागज पर चाहे जितना निवेश हुआ हो मगर हकीकत के धरातल पर आपका निवेश ऩजर नहीं आता। मोदी जी देश का युवा आपको फायर बिग्रेड नेता के रूप में देखा था, हिन्‍दुओं ने आपको अपने सिर का ताज बनाया था आपको, आपके नाम पर एक जुट होकर उत्‍तर प्रदेश का इतिहास बदल दिया, आपको सारी की सारी लोकसभा सीट दे दी, जाति पाति, अमीर-गरीब से ऊपर उठकर , क्‍या बच्‍चे क्‍या बूढे़ सब एक जुट मोदी मोदी। फिर क्‍या कमी थ्‍ाी मोदी जी कि'' जहॉं हुए बलिदान मुखर्जी ---- आप भूल गये।

यहॉं यह भी कहना चाहूँगा कि मोदी सरकार ने जिस मनरेगा का विरोध चुनाव के पूर्व किया उसको न बंद करने की कोशिश किया और न तो उसमें सुधार करने की कोशिश किया, जब की ये बात आम हो चुकी है कि मनरेगा प्रधानो और अन्‍य अधिकारीयों के लिए भ्रष्‍टाचार का एक ऐसा कुॅआ है जिसमे सब कुछ बड़ी आसानी से छिप जाता है। मनमोहन सरकार की जिस जी0एस0टी0 बिल का विरोध आपने किया उसे लागू कर रहे हैं और लागू करन भ्‍ाी रहें हैं अभी तक कड़ाई से उसका पालन करने पर राज्‍य सरकारो को बाध्‍य नहीं कर पाये। बाजार का नीजी करण हो या रेल का मामला हर जगह वो सुविधा जिसका असर सीधे जनता पर पड़ता है आप बुरी तरह नाकाम रहे। मोदी जी आकड़ो की बाजीगरी तो कोई भी कर सकता है, मगर हकीकत के धरातल पर उतर देखीये, आपके अपने शासन और पूर्व सरकारो के शासन मे कोई फर्क नज़र नहीं आयेगा।

अब तीन साल बीतने के बाद मोदी सरकार भले जी ज़श्‍न मना लें, मगर मेरे जैसा आम आदमी मोदी सरकार को सफलता के ईनाम के नाम पर कुछ नहीं दे सकता। काश्‍मीर का हाल वही है जो 14 से पहले था, राम मंदिर पर तो बोलना ही छूट गया, पाकिस्‍तान की हरकत से सैकड़ो शहीद हो चुके है, गंगा माई का हाल आप बहुत दूर नहीं गाजीपुर और गहमर में ही देख लें, आतंकवादी जब जहॉं चाहे बजा दें, देशद्रोही नारे कोई भी कही आसानी से लगा दें, जब केन्‍द्र सरकार के नाक के नीचे विश्‍वविद्यालय में लगता है, तो गहमर गाजीपुर की बात ही अलग है। वैसे गहमर गाजीपुर में तो औकात नहीं है किसी की। मंदिरो का हाल भी देख लें, घोटालो की कोई जॉंच चल भी रही है कि नहीं पता नहीं, कामनवेल्‍थ और कोयला घोटाले जैसे आरोपी आराम से भाजपा जनो के साथ मुर्ग मुस्‍सलम खा रहे है, ये वो बातें हैं जिस पर आप कभी गरजते थे, बरसते थे, आग उगलते थे। कहॉं गया आप का डीजिटल इंडिया। मोदी जी देश एक जुट होकर आपके नोटबंदी जैसे परेशान कर देने वाले फैसले में भी आपके साथ कंन्‍धे से कंन्‍धा मिला कर चल रहा था, वह आपके इन फैसलो पर विपक्षीयों के विरोध के वाबजूद आपके साथ होता, आपको सर्मथन देता, क्‍योंकि आज हम जितने महगॉंई से, बेरोजगार से , भ्रष्‍टाचार से परेशान नहीं उतना उन समस्‍याओं से है जिसके लिए आप को लाये थे, आपके उन फैसलो पर हम सिर उठा कर कहते '' 56 इंचो वाला ग्रेट मोदी।।

स्‍वच्‍छ भारत के नाम पर हाथो में झाडू लिये फोटो के बीच आप जहॉं से चले थे वही खड़े होकर यदि सफलता के ज़श्‍न मना रहे है तो मैं अपनी शुभकामनाएं आपको देता हूँ। आप से वादा करता हूँ कि अगले दो साल तक आप के वादो के पिटारे पूरे होने की राह देखता हूँ साथ ही मॉं कामाख्‍या से प्रार्थना करूगॉं कि वह भारतीय जनता पार्टी को एक बार फिर माननीय अटल बिहारी वाजपेई जी की पुरानी वाली भाजपा बना दें, और इस बार उसके खेवइया मोटीजी आप हो।
जय हिन्‍द जय भारत जय गहमर,

अखंड प्रताप सिंह,ऊर्फ अखंड गहमरी, गहमर,गाजीपुर उत्‍तर प्रदेश 232327 मोबाइल 9451647845, अच्‍छा लगे तो नाम के साथ शेयर करें।।।
हमेशा राह उसकी देखा, उसने कुछ नहीं बोला
कभी भी जिन्‍दगी के राज उसने क्‍यो नहीं खोला
किसी से प्‍यार करने का नही है हक मुझे लेकिन
न देखू एक दिन उसको, बने दिल आग का गोला।।

अगर वो स्वपन में भी जिन्दगी का ख्वाब कह दे तो...
भुला कर गम सभी अपने, हकीकत में बदल दूगाँ।

न जाने क्‍यों थमी साँसे, अभी तो छॉंव पे हक था।
बुलायूँगा किसे अब मॉं, भवंँर में जब फसूँगा मैं।

कुछ शेर

अगर वे वक्‍त दुनिया से चला ये गहमरी जाये। कमस है प्‍यार की तुमको, बहाना अश्‍क मत अपने।
गरीबो को कहाँ हक है किसी का प्यार पाने का। उन्हें तो प्यार तब मिलता, ज़हाँ को जब दिखाना हो।।

वफा करना नहीं मुझसे, न मुझसे प्‍यार ही करना । न मेरी चाहतो पे ही, सनम तुम तो कभी मरना ।। मुझे तन्‍हा अकेला छोड़ दो मर जाने दो मुझको-- नहीं अब जिन्‍दगी से है, मुझे अपने लिए लड़ना।। ✏✏✏✏✏ ✏ किसी की याद ऐसे क्‍यों सताती है। हंसी देती नहीं केवल रूलाती है।। अगर है प्‍यार करना जुर्म तो बोलो -- किताबे प्‍यार करना क्‍यों सिखाती हैं। अखंड गहमरी।।।

बुरा जिसको समझ कर सब, दिये वर्षो तलक गाली। कहा सबने किया उसने वतन की रात सब काली। मगर वर्षो दबा जब राज, खुल सब सामने आया- किया था काम वो अच्छा, बजाते कह सभी ताली।। अखंड गहमरी

तुम्हारी याद आती है, चुनावों में यही क्या कम। बनायें आप का मंदिर, नहीं है राम मुझमें दम।। मुझे भगवा बड़ा प्यारा, कहा था आप से मैने- मगर सत्ता कि खातिर आप, को छोड़ा न इसका गम।। अखंड गहमरी

कभी तो जिन्‍दगी अपना, समझ कर ये खुशी देगी । बुला कर मौत को मेरी, विदा मुझको करेगी वो ।।

किसी इक खास को वो तो, बताता बात था दिल की। मगर कैसे पता चलती, शहर में बात उसकी सब।। सभी रिश्तो से न्यारा इक, बना इक आम से रिश्ता। मगर वो खास बन बैठी हुआ कैसे न जाने कब।। छुपा कर दिल में वो रखती, कभी सपने नहीं कहती।। खुशी का दिन तलाशू मैं, सभी सपने बताये जब ।। मुझे तो शौक है काटो भरी हर राह चलने का। मिलेगी ही मुझे मंजिल, वो कब तक दूर जायेगी। अखंड गहमरी--- गजल के चंद शेर।

समझना है नहीं आसान उनकी मुस्‍कुराहट को जला भी मुस्‍कुराये वो, मिटा भी मुस्‍कुराते हैं। अखंड गहमरी गहमर गाजीपुर

बड़ी मुश्किल से मिलते, खुशी के चार पल मुझको।। उन्हें भी छीन लेती हो, बताओ क्या ख़ता मेरी।। अखंड गहमरी, गहमर, गाजीपुर

कदम अपने बढ़ा कर वो, नहीं क्‍यों साथ देते हैं। यही तकदीर क्‍या मेरी, समझ वो चाह चुप रहते।

करू मैं प्‍यार की बातें, कहूँ उनसे लिपट मुझसे। मगर क्‍यों बात दिल की वो, छुपा दिल में न कुछ कहते।।

बताना तो उसे चाहा, हमेशा हाल दिल का मैं। गवाही दिल न दे मेरा, डरें वो रूठ मत जाये।

कफन में मैं लिपट कर पास से तेरे अगर गुजरूँ।। बता कीमत चुकाऊ क्‍या, वहॉं से दूर जाने की

मुझे आशिक दिया है नाम जिसने ये जरा सुन ले । न है दिल जिस्‍म में मेरे, न किस्‍मत प्‍यार पाने की ।।

पलें जो भीख पर मेरे, वही गाली सुनाते हैं बना जो प्‍यार का मंदिर वहॉं दुश्‍मन बुलाते हैं तवायफ जिस्‍म बेचे तो, कहे उसको बुरा लेकिन वतन जो बेचता उसको,गले हम सब लगाते हैं। अखंड गहमरी, गहमर, गाजीपुर।। 945164784

दवा की चाह में जिसके गया था पास मैं वो भी। बता कर दिल जला मुझको, नया इक जख़्म दे बैठे।।

हुआ जब भूत से सामना

आज जो मैं लिखने जा रहा हूँ हो सकता है इस भौतिकवादी युग में हँसी का पात्र बन जाये, इसको पढ़ने के बाद हँसी रूकने का नाम न ले, मगर मेरे द्ष्‍ट्रीकोण से यह बात उतनी ही सत्‍य है जितनी मानव जीवन का आधार सॉंसे। मैं परमपिता परमेश्‍वर के प्रदत इस जीवन में जीवन की किसी कठिनाइ से पीछा छुडा कर भागना जानता ही नहीं, अंत समय तक लड़ने का हौसला रखता हूँ, डरना तो सीखा ही नहीं। संसार में कुछ ऐसी प्राकृतिक चीजें हैं जिनसे मानव जीवन रक्षा के लिए डरना पड़ता है। मानवजाति से संबंध रखने के कारण मैं भी कुछ चीजो से डरता हूँ। जिसमें प्रथम है 'पायल की आवाज'' मुझे जिन्‍दगी में सबसे अधिक डर लगता है तो पायल की आवाज से और दूसरी चीज है आकाशीय बिजली की चमक और आवाज़ से। मेरे सामने से अगर पायल की आवाज आई तो मैं सामान्‍य जीवन भूल जाता हूँ, हालत ऐसी हो जाती है कि एक कदम चलना, भी पहाड़ पर चढ़ने जैसा हो जाता है, न खाने का मन, न पीने का मन, बस डर से दुबकने और चेहरा लाल। वही हाल बिजली चमकने पर भी होता है। कल कुछ ऐसा ही हुआ, जब मैं बाजार की तरफ जा रहा था, पीछे से एक पायल की अावाज काफी दूर तक मेरे साथ रही, मैं बाजार न जाकर उलटे पाव लौट आया, कटी हुई सब्‍जी और सने हुए आटे के वावजूद मुझे न खाने का मन हुआ न बनाने का, मैं सने हुए आटे को एक टीफिन में रख दिया, और कटी हुई सब्‍जी से हल्‍की सी तहरी बना कर रख दिया। कहा जाता है कि सना हुआ आटा रात में नहीं रखना चाहिए, मैं इसे अंधविश्‍वास की श्रेणी में रखता था, मगर कल की रात जो मैने स्‍वपन देखा, वो इस बात को प्रमाणित करने के लिए पर्याप्‍त था कि गुथा हुआ आटा नहीं रखना चाहिए। मैने देखा कि अचानक मौसम में परिवर्तन हो रहा है, और आकाश सफेद हो गया है, काफी देर तक बिजली की चमक आकाश मेें है, सभी भाग रहे है, धरती हिलने लगी, सब तरफ शोर। ऐसा डरावना स्‍वपन मैने पहले कभी नहीं देखा। इस स्‍वप्‍न ने मुझे इस बात को सोचने पर मजबूर कर दिया कि पायल की आवाज से डर और गुथे आटे का राज क्‍या है। मैं इसे तलाश रहा हूॅ। अखंड गहमरी गहमर गाजीपुर

न देखी थ्‍ाी कभी सूरत

न देखी थी कभी सूरत मगर अपना बना बैठे
खता कुछ हो गई मुझसे तभी तुझको गवा बैठे

सजा कर माँग तेरी मैं तुझे अपना बनाया था
तुम्हारे साथ मिल कर मैं घरौंदा इक बसाया था
खिले जब फूल आँगन में हुआ पूरा सभी सपना

तुम्हारे बिन नहीं कोई जमाने में लगे अपना
मगर ये भूल थी मेरी जो तुम से दिल लगा बैठे
ख़ता कुछ हो गई मुझसे तभी तुझको गवा बैठे
न देखी थी कभी सूरत मगर अपना बना बैठे

बना कर सेज़ फूलों की उसे सबने सजाया था

उठा कर मैं जमीं से फिर तुझे उसपर सुलाया था
किये श्रृंगार तुम सोलह बनी दुल्हन वहाँ सोई
विदा जब हो रही थी तब बता तुम क्यों नहीं रोई
छुपा कर नम हुई आँखें तुझे हम खुद जला बैठे
खता कुछ हो गई मुझसे तभी तुमको गवा बैठे

न देखी थी कभी सूरत मगर अपना बना बैठे

सताये दर्द जब कोई तुम्हारी याद आती है
पड़ी सूनी हमारी सेज सनम मुझको रुलाती है
कटे दिन रात अब कैसे वही से तुम जरा देखो
तुम्हारी याद में कैसे तड़प कर मैं गिरा देखो
कसम तुमको भुलाने की सनम हम क्यों उठा बैठे
खता कुछ हो गई मुझसे तभी तुमको गवा बैठे
न देखी थी कभी सूरत मगर अपना बना बैठे

मेरी अंग्रेजी

गाधी, भगत सिंह जैसे सारे स्वतनत्रता संग्राम सेनानी मिल कर भी जब अंग्रेजो को नही भगा सके तो सबका दिल टूट गया। भारत के भविष्य को लेकर सारे परेशान थे। अखंड भारत की अखंडता वापस आने का सबका अरमान दिल में रह गया था। उसी समय भारत का दिल कहे जाने वाले गहमर में अखंड गहमरी के रूप में मैने ''अवतार'' लिया। मेरे अवतार लेने की खबर चारो तरफ फैल गई, अभी मैं अवतार लेकर घर के बाहर पान खाने निकला ही था कि गाँधी , पहुँच गये, उनके साथ भगत जी, आजाद जी, चन्द्रेशखर जी, सब थे।।
गाँधी जी ने मुझे पूछा कैसे हो..
मैने कहा,, आई ऐम बहुत अच्छींग बट यू बताईंग आप कैसे हैइंग।।
मेरी अंग्रेजी सुनते गाँधी जी प्रसन्न हो गये और कहा .अब भारत आजाद होकर रहेगा और वह पहुँच गये अंग्रेजो के पास और बोले कि अगर आपको भारत में रहना है तो आपको अखंड के साथ अंग्रेजी में बात कर जीतना होगा नहीं तो भारत छोडना होगा। अंग्रेज तैयार हो गये..
मेरे साथ अंग्रेजो की जंग हुई मैने पहुचते ही अंग्रेजो से कहा....
यू आर कइसन काइसन खराब खराब काम करिंग, वी आर परेशान होईंग।

इतना सुनते ही अंग्रेजो का माथा घूम गया और उन्होनें कहा
my फादर माफ करो तुम भारत में रहो, ऐसी अंग्रेजी बोलो और पढो हम चले वापस इग्लैन्ड।।
इस प्रकार मेरी अंग्रेजी से प्रताड़ित होकर अंग्रेज भारत से भागे।।मगर कमीने जाते जाते चाल खेल गये, अखंड भारत को खंड खंड कर गये।। ख़ड खंड कर गये।

अखंड गहमरी

डाला छठ

,महापर्व डाला छठ पर दिन वार पूजा पद्वित के साथ विशेष प्रस्‍तुति।
गाजीपुर। बिहार प्रान्त एवं उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र से चल कर पूरे भारत में प्रसिद्ध होने वाले इस पर्व को महापर्व का क्यों  जाता है, इसका पता आपको इस व्रत की पूजा पद्वति से पता चल जायेगा। छठ पर्व छठ, षष्टी का अपभ्रंश है। कार्तिक मास की अमावस्या को दीवाली मनाने के तुरत बाद मनाए जाने वाले इस चार दिवसीय  व्रत की सबसे कठिन और महत्वपूर्ण रात्रि कार्तिक शुक्ल षष्ठी की होती है। इसी कारण इस व्रत का नामकरण छठ व्रत हो गया।

लोक-परंपरा के अनुसार सूर्य देव और छठी मइयाका संबंध भाई-बहन का है। लोक मातृका षष्ठी की पहली पूजा सूर्य ने ही की थी। एक मान्यता के अनुसार लंका विजय के बाद राम-राज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान राम और माता सीता ने उपवास किया और सूर्यदेव की आराधना की थी। सप्तमी को सूर्योदय के समय पुनः अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था। एक अन्य मान्यता के अनुसार सबसे पहले सूर्य पुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा शुरू की। कर्ण भगवान सूर्य का परम भक्त था। वह प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देता था। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बना था। आज भी छठ में अर्घ्य की यही पद्धति प्रचलित है। कुछ कथाओं में पांडवों की पत्नी द्रौपदी द्वारा सूर्य की पूजा करने का भी उल्लेख है। वे अपने परिजनों के उत्तम स्वास्थ्य की कामना और लंबी उम्र के लिए नियमित सूर्य पूजा करती थीं। जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा था। उसकी मनोकामनाएँ पूरी हुईं तथा पांडवों को राजपाट वापस मिल गया था। एक अन्य कथा के अनुसार राजा प्रियंवद की कोई संतान नहीं थी। महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए बनाई गई खीर दी। इसके प्रभाव से उन्हें पुत्र हुआ परंतु वह मृत पैदा हुआ। प्रियंवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त भगवान की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुई और कहा कि "सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूँ। राजन तुम मेरा पूजन करो तथा और लोगों को भी प्रेरित करो।"  राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी।

कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी प्रारम्भ होने वाले इस पर्व का प्रथम दिन लौकी-भात (बिहार के कुछ क्षेत्र में नहाय-खाय) होता है। इस पूजा दिन से यह व्रत पारम्भ हो जाता है और सप्तमी तिथि को उगते हुए सूर्च की आराधना के साथ खत्म होता है। उत्सव के केंद्र में छठ व्रत है जो एक कठिन तपस्या की तरह है। यह प्रायः महिलाओं द्वारा किया जाता है किंतु कुछ पुरुष भी यह व्रत रखते हैं। व्रत रखने वाली महिला को परवैतिन कहा जाता है। चार दिनों के इस व्रत में व्रती को लगातार उपवास करना होता है। भोजन के साथ ही सुखद शैय्या का भी त्याग किया जाता है। पर्व के लिए बनाए गए कमरे में व्रती फर्श पर एक कंबल या चादर के सहारे रात बिताता है। इस उत्सव में शामिल होने वाले लोग नए कपड़े पहनते हैं। पर व्रती ऐसे कपड़े पहनते हैं, जिनमें किसी प्रकार की सिलाई नहीं की होती है। महिलाएं साड़ी और पुरुष धोती पहनकर छठ करते हैं। ‘शुरू करने के बाद छठ पर्व को सालोंसाल तब तक करना होता है, जब तक कि अगली पीढ़ी की किसी विवाहित महिला को इसके लिए तैयार न कर लिया जाए। घर में किसी की मृत्यु हो जाने पर यह पर्व नहीं मनाया जाता है।’ऐसी मान्यता है कि छठ पर्व पर व्रत करने वाली महिलाओं को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। किंतु पुरुष भी यह व्रत पूरी निष्ठा से रखते हैं।छठ पर्व मूलतः सूर्य की आराधना का पर्व है, जिसे हिंदू धर्म में विशेष स्थान प्राप्त है। हिंदू धर्म के देवताओं में सूर्य ऐसे देवता हैं जिन्हें मूर्त रूप में देखा जा सकता है
पहला दिन

व्रत का पहला दिन लौका-भात या लौकी-भात का होता है। व्रती सुबह उठकर पूजन इत्यादि कर लौकी की सब्जी, चना की दाल एंव चावल खाते है।  जब तक व्रत करने वाला भोजन नहीं कर लेता इस दिन परिवार का कोई सदस्य भोजन नही करता। व्रती के भोजन के बाद गेहूँ एवं अन्य प्रसाद बनाये जाने वाले अन्न को धो कर धूप में सुखाया जाता है। आज का भोजन परम्परा के अनुसार आम की लकड़ी पर बनता है। अब कई घरो में आम की लकड़ी के आभाव में गैस चुल्हे की सफाई कर भोजन बनाने की प्रथा शुरू हो गई है।

दूसरा दिन

आज का दिन खरना के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन सुबह से व्रती निरजला व्रत रखते हैं और रात को केले के पत्ते पर, परिवार के सदस्यो की संख्या के हिसाब से पूड़ी, गुड की बनी खीर, ठेकुआ और फल रख कर छठ माँ की आराधना करते हैं। आराधना के उपरान्त चढ़ाई हुई पूरी और खीर खुद खाती हैं। व्रती के भोजन के दौरान कोई भी जाने-अंजाने व्रती का नाम लेकर पुकारता है और व्रती के कानो में अगर वह आवाज चली गयी तो व्रत उसी समय भोजन करना छोड देगी चाहे वह एक निवाला भी नही खाया हो । और इसके बाद परिवार के सभी सदस्य उस पूजन स्थल पर सिर नवा कर प्रसाद ग्रहण करते है। इस प्रकार पर्व का दूसरा दिन खराना पूरा हो जाता है।

तीसरा दिन

आज का दिन अद्भूत होता है। सुबह से ही प्रसाद खरीदने वालो की भीड़ बाजारों में दिखाई देने लगती है। बाजार में चारो तरफ फल-फूल, गन्ना, दउरा, कोशी इत्यादि दिखाई देते हैं। घरों के अन्दर महिलाओं द्वारा प्रसाद के रूप में ठेकुआ इत्यादि आम की लकड़ी जला कर चूल्हे पर बनाया जाता है। दोपहर होते ही सारा प्रसाद एक दउरे या बाँस की ढाल में रख कर कर उसे साफ कपड़े से बाँधने का कार्य शुरू हो जाता है। लगभग तीन बजे घर की महिलायें व्रती को साथ लेकर गंगा या किसी अन्य जलाशय की तरफ प्रस्थान कर जाती है। छठ के पराम्परिक गीत गाते हुए गंगा घाट पर जाती औरतें, घर से नंगे पावों सिर पर डाल और दऊरा उठाये गंगा घाट जाते युवक, सोलह शृंगार में सजी हुई नव-विवाहिताये होती हैं। हर तरफ मंत्र-मुग्ध कर देने वाला वातावरण होता है। सूर्य देव के क्षितिज की राह पकड़ते ही व्रती गंगा या जलाशय में खड़े होकर कठिन अराधना के साथ दूध का अर्घ्य देना शुरू कर देते हैं। जिसके घर में जितने पुरूष होते है सूपो की संख्या उतनी ही होती है। हर सूप को गंगा के पानी से सटा कर उस पर दूध से अर्घ्य दिया जाता है। इस पूजा के बाद गंगा घाट पर आज की पूजा सम्पन्न हो जाती है। सभी अपने अपने घर को चले जाते है । जिन परिवारो में पूरे साल कुछ भी शुभ हुआ रहता है वह परिवार आज शाम को कोसी भरते है।

कोषी भरने की रस्म

अगर परिवार में कोई शुभ काम, शादी-विवाह, वंश वृद्धि हुई है तो रात में कम से कम 5 औरतें मिल कर घर के आगँन में छठ मईया के गीत गाते हुये पाँचों खोइछा (एक कपड़े में हल्दी, दूभ, कुछ पैसे, कुछ फल रख कर बाँध दिया जाता है) बँधे हुए गन्ने आपस में जोड कर  कर खड़े कर दिये जाते है। खड़े गन्ने की बीच की जगह में  कोषी में दीप प्रज्जवलित कर फल-प्रसाद रख दिया जाता है। जिससे कोषी भरना कहा जाता है। इस कोषी केा सुबह फल फूल सहित गंगा में प्रवाहित कर दिया जाता है।

चौथा या अंतिम दिन

छठ पूजा का चौथा और अंतिम दिन काफी सुहावना होता है। सुबह तड़के परिवार के सदस्य स्नान-ध्यान करके डाल-दउरा उठा कर घाट की तरफ चल देते हैं। आज का दिन विशेष कर बच्चों के लिए खुशियो का दिन होता है। घर में बन रहे पकवानो, प्रसादो एवं रखे फल-फूल जिस पर उनकी नज़रे रहती थी, जिसे वह छू भी नहीं सकते थे,आज वह उसे खा सकेगें। व्रती एवं उसके परिवार की अन्य महिलाएं पारम्परिक गीत खाते हुए गंगा घाट पर पहुँचती हैै। सूर्य देव के उदय के समय व्रती गंगा के पानी में खडे़ हेाकर सूर्य की उपासना करते हैं।। सूर्य उदय के बाद दूध उनको अर्घ्य देते हैं। नदी के किनारे ही हवन पूजन कर के व्रत समाप्त करते है। सुबह के पूजन के उपरान्त बच्चे ही नहीं बड़े लोग भी घाट पर घूम कर सबसे प्रसाद माँग कर खाते हुए देखे जाते है। घर आकर व्रती कोषी भरने वाली औरतो केा प्रसाद देती है। और उसके बाद भेाजन कर व्रत खत्म करती है। उसके बाद यह महापर्व समाप्त हो जात है।

छठ पूजा की कुछ विशेष बातें

गेहूँ चावल या अन्य कोई सामाग्री धोने से पूर्व स्नान कर साफ कपड़े पहनना जरूरी होता है।
गेहूँ या अन्य कुछ भी सुखवाते समय ध्यान रखना चाहिए कि उसे कोई जूठा न करें यहाॅं तक की पशु-पक्षी भी नहीं।
खरना व्रत के दिन रात को व्रती के भोजन के समय किसी प्रकार की आवाज़ न हो इस का ध्यान रखना चाहिए।
पूजा के पहले अर्घ्य के दिन जो डाल में जो प्रसाद जलाशय पर जाता है, उसे सुबह के अर्घ्य पर नहीं ले जाना चाहिए । डाल और सूप के सारे प्रसाद बदल कर नये रख देने चाहिए।
सूप पर प्रयास यह करें कि अर्घ्य देते समय दीपक जलता रहे।
प्रसाद यथा शक्ति ही चढ़ायें, पूजा प्रसाद से नहीं भाव से होती है।
सूपो की संख्या परिवार के पुरूष सदस्यों के संख्या के बराबर होती है।
अगर उस साल परिवार में कोई मौत होती है तो छठ का व्रत नहीं किया जायेगा। परन्तु अगर व्रती चाहे तो वह अपने माइके, या किसी अन्य परिजन के घर जाकर छठ व्रत कर सकती है।

पराम्‍परिक कथा पर आधारित अखंड गहमरी

भारत के मुसलमान

भारत के मुसलमान कहते हैं कि देश की आजादी में उनका योगदान था, उन्होंने भी खून बहाया, अब इन अरब के लुटेरे गद्दारो को कौन समझाने जाये कि 835 में भारत आने के बाद तुमने खून की नदी बहाई, और फूट डाला राज किया और 1947 में अपने खून के बदले भारत के टुकड़े कर पाकिस्तान लिया और कुछ गद्दार भारत के पूरे हिस्से को लेने भारत में रूक गये जो अब भारत की कुल आबादी का 13.84 हो गये। जो भारत से गद्दारी करना अपना धर्म समझते है, और समझे भी क्यो नही पूरी दुनिया जानती है इस्लाम मतलब होता ही आतंकवाद है।खून के बदले देश लेने के बाद भी मुसलमान चुप नही है, आतंकवाद फैला रहे है, देश की आजादी में बहाये खून का कर्ज ले रहे हैं और भाई भाई का नारा भी साथ में दे रहे है। अरे भाई देश ले ही लिया तो कैसा भाई और कैसा भाईचारा।

अपने गाँव से दूर बाहर रहने वालों को समर्पित एक गीत ।


चले आयो तुझे अपने, सभी मिलकर बुलाते है
गुजारे तुम जहॉं बचपन, वो टूटा घर दिखाते हैं

निकल कर गॉंव के घर से, गये ऐसे न फिर आये
न जाने दूर रह मुझसे, भला सुख कौन सा पाये।।
तुम्‍हारी राह तकती है, अभी भी गॉंव की गलियॉं
तुम्‍हारे याद में पागल ,न खिलती बाग में कलियॉं
महकता था कभी जो घर, वहाँ मकड़े बुने जाले ।।
न दीपक अब वहाँ जलता, लगे हर ओर हैं ताले।
तुम्हें बीते दिनो की याद, चाचा हम दिलाते है
चले आयो तुझे अपने, सभी मिलकर बुलाते है
गुजारे तुम जहॉं बचपन, वो टूटा घर दिखाते हैं।

बहन की जब उठी डोली, तुम्हें रो रो बुलाती थी।
तुम्ही हो तात सम भ्राता, सभी को वो बताती थी
जला पाती न अब चुल्‍हा, तुम्‍हारी माँ रहे भूखी
पड़ोसी की दया पर ही , मिले रोटी उसे सूखी
हजारो दर्द से तड़पे नहीं वो रात भर सोती
बदन पीला पडा उसका गिरे आँखो से बस मोती
पडे सुनसान घर के अब उसे कोने रूलाते है
चले आयो तुझे अपने सभी मिल कर बुलाते है
गुजारे तुम जहॉं बचपन, वो टूटा घर दिखाते है।।

अभी भी है खड़ा पीपल जहाँ तुम रोज थे खेले
मगर लाचार दिखता है, न लगते अब वहाँ मेले
किनारा भी नदी का तो, बहाता अश्क है अपने।
जिसे करते परेशा तुम, वो बाबा देखे ये सपने।।
चुरा कर आम अमरूद और लीची बाग से खाये।।
लगे क्यों गहमरी को ये, तुम्हें वो दिन न अब भाये।।
यही त्यौहार का मौसम, जुदाई में जलाते हैं।
चले आयो तुझे अपने सभी मिल कर बुलाते है
गुजारे तुम जहॉं बचपन, वो टूटा घर दिखाते है।।
अखंड गहमरी।।।

आरक्षण

आजादी के बाद और पहले और यही नहीं आदि काल से जब से मानव सम्‍यता ने जन्‍म लिया, अमीर-गरीब, छुआ-छूत, जाति-पाति की समस्‍याओं ने उसके साथ जन्‍म लिया। आदि काल से चली आ रही इस समस्‍या को दूर करने एवं समाज में सामंज्‍य स्‍थापित करने के उद्वेश्‍य से अनेको समाज सेवी संगठनों ने, महापुरूषो ने प्रयास किया, परन्‍तु सफल नहीं हो सके। उसी कड़ी में भारत के संविधान निर्माण सभा के अध्‍यक्ष भीम राव अंम्‍बेडकर ने भी प्रयास किया, और आजाद भारत के संविधान में कुछ समय के लिए आरक्षण व्‍यवस्‍था लागू किया। जिससे समाज के नीचे तबके के लोगो को समाज में उचित स्‍थान मिल सके। बाबा साहब ने यह योजना बनाते समय कभी नहीं सोचा होगा कि उनकी यह योजना आने वाले समय में गरीबो, दबे-कुचले लोगो के लिए वरदान बने न बने, मगर भारतीय राजनीति के लिए उनकी यह योजना वरदान बन जायेगी।
भारतीय राजनी‍ति में राजनेताओं, राजनीतिक दलो के जन विकास के योजनओ पर यह आरक्षण व्‍यवस्‍था भारी पड़ेगी। जन-समस्‍याओं को दूर करने में असफल सरकारें इस आरक्षण व्‍यवस्‍था के नाम पर समाज को बॉंट कर पूरी तरह अलग कर देगी, और इसका सुख राजनेता उठा सकेंगें।
वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनावों में मोदी के नेतृत्‍व में जिस प्रकार भाजपा ने देशव्‍यापी समस्‍या सबके सामने रखा और उसको सर्मथन मिला उससे लगा कि यह जाति-पाति की राजनीति के दिन लद गये, एक बार फिर उत्‍तर प्रदेश के चुनावो में यह देखने को मिला और लोगो को विश्‍वास हो गया कि भाजपा सरकार देश से जाति-पाति का नारा मिटा कर विकास के साथ आगे बड़ेगी। मगर देश में यह सोचने वालो को एक बड़ा झटका तब लग जब भाजपा ने प्रमोशन में आरक्षण के लिए सुप्रीमकोर्ट के निर्णय के खिलाफ नीति बनाने की कार्य योजना के बारे में लोगो को जानकारी हुई।
भारत सरकार ने केवल जाति के नाम पर लोगो को फीस में, सुविधा में न सिर्फ छूट दिया बल्कि अनेको व्‍यवस्‍था दी।
मैं मान लेता हूँ कि आप व्‍यवस्‍था दिये, दीजिए हमें कोई आप्‍पति नहीं, मगर प्रतियोगिताओं में तो सबको बराबर का हक दीजिए। कार्य में तो सबको बराबर का हक दीजिए। आप अनसुचित जाति, जन जाति, ओबीसी के लोगो को अच्‍छी सुविधा, अच्‍छी व्‍यवस्‍वथा दीजिए,उनको टियूशन दीजिए,
भारत का सर्वण समाज एक बार आपके पास नहीं जायेगा। मगर जहॉं नम्‍बरो को खेल हो वहॉं तो अपने गंदी राजनीति को किनारा कीजिए। स्‍कूलो में प्रवेश, प्रतियोगिताओं में विजय जैसी संवेदनशील व्‍यवस्‍था पर तो मत आरक्षण जैसी व्‍यवस्‍था को स्‍थान दीजिए। भारत में आरक्षण का लाभ ले चुके परिवार में तो इस व्‍यवस्‍था को बंद कीजिए। भारत की सुरक्षित लोक सभा, विधान सभा, नगर पालिका, ग्राम सभा के सीटो पर जो एक बार आरक्षण कोटे से जीत चुका है उसको तो दुबारा लड़ने पर प्रतिबंध कीजिए, नहीं तो एक के घर भरते चले जा रहे है और एक का घर खाली का खाली पड़ा हुआ है।
भारत में अारक्षण व्‍यवस्‍था के नाम पर उपजे सैकड़ो नेताओं ने अपने घरो को भरने का काम किया मगर अपने विकास की राह देखत आम कार्यकर्ता वही का वही आज भी खड़ा है। आखिर क्‍यों, बडे नेताओं के दरवाजे को यह आरक्षण का विकास पार नहीं कर पा रहा है।
100 में 80 प्रतिशत सवालो के सही जबाब देने वाले आज अपनी प्रतिभा के अनुकूल कार्य को मोहताज है, वही 100 मे 30 प्रतिशत हल करने वाले आज कुर्सीयों की शोभा बढ़ा रहे है।
इतिहास गवाह है कि जब जब सर्वणों के मान-सम्‍मान और उनकी प्रतिभा के साथ अन्‍याय हुआ है वह चुपचाप सहे हैं मगर जब उनके अन्‍दर की ज्‍वाला निकल कर सामने आई है तो उसमें अच्‍छे से अच्‍छे जल कर खाक हो गये हैं तो आज या कल की सरकारो की क्‍या विसात है। आज सवर्ण समाज कई हिस्‍सों में बट कर कार्य कर रहा है, मगर जब उसकी आत्‍मा पर चोट आयेगी तो वह बटॉं हुआ रख कर भी एक जुट होकर मोर्चा खोल देगा, और तब उसे रोक पाना असंभव हो जायेगा।
मै माननीयों से अपील करता हूँ कि आप आरक्षण जैसी व्‍यवस्‍था केवल सुविधा देने के लिए लागू करें न कि कार्य क्षेत्र में, न कि नियुक्ति और प्रमोशन में जिससे समाज का भेदभाव खत्‍म हो सकें, और भारत के विकास के पथ पर चल सके, क्‍योक‍ि विकास आरक्षण नहीं प्रतिभाएं करती है।
अखंंड गहमरी।।