रविवार, 15 अक्टूबर 2017

आरक्षण

आजादी के बाद और पहले और यही नहीं आदि काल से जब से मानव सम्‍यता ने जन्‍म लिया, अमीर-गरीब, छुआ-छूत, जाति-पाति की समस्‍याओं ने उसके साथ जन्‍म लिया। आदि काल से चली आ रही इस समस्‍या को दूर करने एवं समाज में सामंज्‍य स्‍थापित करने के उद्वेश्‍य से अनेको समाज सेवी संगठनों ने, महापुरूषो ने प्रयास किया, परन्‍तु सफल नहीं हो सके। उसी कड़ी में भारत के संविधान निर्माण सभा के अध्‍यक्ष भीम राव अंम्‍बेडकर ने भी प्रयास किया, और आजाद भारत के संविधान में कुछ समय के लिए आरक्षण व्‍यवस्‍था लागू किया। जिससे समाज के नीचे तबके के लोगो को समाज में उचित स्‍थान मिल सके। बाबा साहब ने यह योजना बनाते समय कभी नहीं सोचा होगा कि उनकी यह योजना आने वाले समय में गरीबो, दबे-कुचले लोगो के लिए वरदान बने न बने, मगर भारतीय राजनीति के लिए उनकी यह योजना वरदान बन जायेगी।
भारतीय राजनी‍ति में राजनेताओं, राजनीतिक दलो के जन विकास के योजनओ पर यह आरक्षण व्‍यवस्‍था भारी पड़ेगी। जन-समस्‍याओं को दूर करने में असफल सरकारें इस आरक्षण व्‍यवस्‍था के नाम पर समाज को बॉंट कर पूरी तरह अलग कर देगी, और इसका सुख राजनेता उठा सकेंगें।
वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनावों में मोदी के नेतृत्‍व में जिस प्रकार भाजपा ने देशव्‍यापी समस्‍या सबके सामने रखा और उसको सर्मथन मिला उससे लगा कि यह जाति-पाति की राजनीति के दिन लद गये, एक बार फिर उत्‍तर प्रदेश के चुनावो में यह देखने को मिला और लोगो को विश्‍वास हो गया कि भाजपा सरकार देश से जाति-पाति का नारा मिटा कर विकास के साथ आगे बड़ेगी। मगर देश में यह सोचने वालो को एक बड़ा झटका तब लग जब भाजपा ने प्रमोशन में आरक्षण के लिए सुप्रीमकोर्ट के निर्णय के खिलाफ नीति बनाने की कार्य योजना के बारे में लोगो को जानकारी हुई।
भारत सरकार ने केवल जाति के नाम पर लोगो को फीस में, सुविधा में न सिर्फ छूट दिया बल्कि अनेको व्‍यवस्‍था दी।
मैं मान लेता हूँ कि आप व्‍यवस्‍था दिये, दीजिए हमें कोई आप्‍पति नहीं, मगर प्रतियोगिताओं में तो सबको बराबर का हक दीजिए। कार्य में तो सबको बराबर का हक दीजिए। आप अनसुचित जाति, जन जाति, ओबीसी के लोगो को अच्‍छी सुविधा, अच्‍छी व्‍यवस्‍वथा दीजिए,उनको टियूशन दीजिए,
भारत का सर्वण समाज एक बार आपके पास नहीं जायेगा। मगर जहॉं नम्‍बरो को खेल हो वहॉं तो अपने गंदी राजनीति को किनारा कीजिए। स्‍कूलो में प्रवेश, प्रतियोगिताओं में विजय जैसी संवेदनशील व्‍यवस्‍था पर तो मत आरक्षण जैसी व्‍यवस्‍था को स्‍थान दीजिए। भारत में आरक्षण का लाभ ले चुके परिवार में तो इस व्‍यवस्‍था को बंद कीजिए। भारत की सुरक्षित लोक सभा, विधान सभा, नगर पालिका, ग्राम सभा के सीटो पर जो एक बार आरक्षण कोटे से जीत चुका है उसको तो दुबारा लड़ने पर प्रतिबंध कीजिए, नहीं तो एक के घर भरते चले जा रहे है और एक का घर खाली का खाली पड़ा हुआ है।
भारत में अारक्षण व्‍यवस्‍था के नाम पर उपजे सैकड़ो नेताओं ने अपने घरो को भरने का काम किया मगर अपने विकास की राह देखत आम कार्यकर्ता वही का वही आज भी खड़ा है। आखिर क्‍यों, बडे नेताओं के दरवाजे को यह आरक्षण का विकास पार नहीं कर पा रहा है।
100 में 80 प्रतिशत सवालो के सही जबाब देने वाले आज अपनी प्रतिभा के अनुकूल कार्य को मोहताज है, वही 100 मे 30 प्रतिशत हल करने वाले आज कुर्सीयों की शोभा बढ़ा रहे है।
इतिहास गवाह है कि जब जब सर्वणों के मान-सम्‍मान और उनकी प्रतिभा के साथ अन्‍याय हुआ है वह चुपचाप सहे हैं मगर जब उनके अन्‍दर की ज्‍वाला निकल कर सामने आई है तो उसमें अच्‍छे से अच्‍छे जल कर खाक हो गये हैं तो आज या कल की सरकारो की क्‍या विसात है। आज सवर्ण समाज कई हिस्‍सों में बट कर कार्य कर रहा है, मगर जब उसकी आत्‍मा पर चोट आयेगी तो वह बटॉं हुआ रख कर भी एक जुट होकर मोर्चा खोल देगा, और तब उसे रोक पाना असंभव हो जायेगा।
मै माननीयों से अपील करता हूँ कि आप आरक्षण जैसी व्‍यवस्‍था केवल सुविधा देने के लिए लागू करें न कि कार्य क्षेत्र में, न कि नियुक्ति और प्रमोशन में जिससे समाज का भेदभाव खत्‍म हो सकें, और भारत के विकास के पथ पर चल सके, क्‍योक‍ि विकास आरक्षण नहीं प्रतिभाएं करती है।
अखंंड गहमरी।।

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