रविवार, 15 अक्टूबर 2017

गहमर कार्यक्रम

गहमर में आयोजित अखिल भारतीय साहित्यकार सम्मेलन अपनी गरिमा लिये आप सभी के सहयोग और आशीर्वाद से समाप्त हो गया। आप सब के मार्गदर्शन का फल था कि मैं इसे आयोजित कर पाया।

इस कार्यक्रम में मैंने कुछ बातें आप सभी के मंच से हट कर आपसी वार्तालाप के दौरान सीखी और कुछ मंच संचालन और आपके गहमर भ्रमण से और कुछ गायकी के कार्यक्रम से महसूस किया।

आप सब ने एक बाते बहुत अच्छी उठाई कि '' आज अधिकांश केवल सुनाना, दिखाना, पढ़ाना तो चाहते हैं, पर दूसरो की सुनने, पढ़ने और देखने को तैयार नहीं," । बहुत यह एक कटू सच है, जिस पर सभी को गम्भीरता से विचार करना होगा। इसका कारण क्या है? यह तो समद नही आ रहा मगर आज इस समस्या के कारण साहित्य की पौधशाला सूखती जा रही है। युवाओं की एक अच्छी फसल तैयार नहीं हो पा रही है। युवा लेखक/ रचना कार सही- गलत का निर्धारण नहीं कर पा रहे हैं। जिससे वह समय से पहले दम तोड़ दे रहे हैं। जो वर्ग कुछ सुन, देख, पढ़ भी रहा है उसम़े से भी अधिकाशं एक कोरम पूरा कर वाह,बधाई और शुभकामनाएं तक ही खुद को समेट ले रहा है। इस समस्या को खोजने और समाप्त करने की दिशा में अग्रज साहित्यकारों को हर हाल में बढ़ना होगा, समाधान चाहे कितना भी जटिल क्यों न हो हम युवावर्ग को साथ लेकर उसे करना होगा, नहीं तो क्षमा के साथ कहना चाहूँगा कि ''आने वाला समय न युवाओं को माफ करेगा न अग्रज साहित्यकारों को''।

दूसरी बात जो मैनें दो सालो में महसूस किया कि '' कभी-कभी हर व्यक्ति अपनी वर्तमान चोले से बाहर आना चाहता है ,जैसै वर्णाली बर्नजी जी, बीना श्रीवास्तव जी और रविता पाठक के भक्ति लोकगीत के प्रस्तुति के बाद के बाद कई साहित्‍यकारों ने न सिर्फ लोकगीतो की प्रस्‍तुति देनी चाही बल्कि वाद्ययन्‍त्र बजाने की भी इच्‍छा जाहिर किया। ठीक वैसे ही जैसे द्वितीय वर्ष अपनी जीवन पर आधारित कहानी सुनाने को कोई तैयार नहीं था और जब कार्यक्रम शुरू हुआ तो साहित्‍यकार तो साहित्‍यकार मेरे गॉंव के मृतुन्‍जय चाचा, धीरेन्‍द्र चचा एवं ग्राम प्रधान मुरली कुशवाहा तक कहानी सुना गये। इस लिए मैं आगामी कार्यक्रम में '' यादो के झरोखें से'' नाम का एक आयोजन जरूर रखने का प्रयास करूगॉं जिसमें आप वाद्ययन्‍त्रों का प्रदर्शन, गायकी, कहानी या मन की बात जरूर रख सकेगें।

तीसरी बात जो गुरूवर आदरणीय विश्‍वभर शुक्‍ल जी एवं आदरणीय संजीव सलिल वर्मा जी ने प्रस्‍ताव दिया कि कार्यक्रम के दौरान गहमर भ्रमण कार्यक्रम में एक सत्र मॉं कामाख्‍या देवी के प्रांगण में जरूर रखा जाये जहॉं केवल माँ कामाख्‍या पर आधारित एक-एक छोटी रचना सभी सुनाये, यह भी निश्‍चित रूप से किया जायेगा। वहॉं एक काव्‍य गोष्‍ठी के बाद सीधे भोजन और तब सम्‍मान समारोह कार्यक्रम स्‍थल पर आयोजित किया जायेगा।

चौथी बात कान्ति मॉं द्वारा कही गई जिसमें उन्‍होनें साफ कहा गया कि यह स्‍थान सिर्फ काव्‍य सम्‍मेलन और सम्‍मान का स्‍थान न बने यह सभी को कुछ सिखाने का स्‍थान बने,निश्चित रूप से सही रहा, इस कार्यक्रम के दौरान विभिन्‍न विषयों पर कम से 2 कार्याशाला जरूर आयोजित किया जायेगा, जिससे में एक लेखन और एक साहित्‍यकारो को नई टेकनालाजी से जोडने की होगी।

पॉंचवी बात प्‍यासा अंजुम सर, और योगराज प्रभाकर सर ने मेरे इस कार्यक्रम को अप्रैल में कराने के निर्णय पर सीधे आदेश दिया कि अप्रैल हर मायने में व्‍यस्‍त महीना रहता रहता है, शिक्षा का नया सत्र, कार्यालयों का नया सत्र, शादी व्‍याह का मोैसम, गर्मी के साथ कठिनाईयॉं आती है। इस लिए यह कार्यक्रम सीधे दिसम्‍बर माह के तीसरे शनिवार,रविवार एवं सोमवार को दोपहर तक आयोजित हो, जिससे सभी को आने का समय मिले, गर्मी की समस्‍या से निजायत मिले, सोमवार को सीधे गहमर भ्रमण, कामाख्‍या काव्‍यगोष्‍ठी, भोजन और विदाई रखी जाये।

इस प्रकार आप सब के सहयोग से जो बाते समाने आई, मैने सीखी वह आपके सामने है। आपके आशीर्वाद का आकाक्षी अखंड गहमरी, गहमर गाजीपुर।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें