सोमवार, 16 अक्टूबर 2017

दूसरे की रसोई

जब भी मैं अपनी रसोई छोड़ कर जब दूसरे की रसोई का खाना खाता हूँ, तो मेरा दिमाग बुलेट ट्रेन से भी तेज चलता है। आज जब मेरा दिमाग अजानक उड़ने लगा तरह तरह की बातें सोचने लगा तब मेरा ध्‍यान इधर चला आया कि आखिर मेरा दिमाग उड़ा तो उड़ा क्‍यों? तब याद आया ''कि आज घर तो अपना ही था मगर रसोई बदल गई थी''। मैं खाना कहीं और खाया था। हाँ अब ये बात अलग है कि सोचने की दिशा और दशा भोजन पर निर्भर करती है। जैसे दाल ,चावल , रोटी, चोखा हो तो प्रेम से खाईये, कोई डर नहीं होता, मन शातं रहता है, सोचने की दिशा सकारात्‍मक होती है। वही पूड़ी, पराठा या चिकन, मटन हो तो दिमाग भोजन पर कम जाता है, दिल में ईनो, हाजमोला, डायजिन और अधिक होने पर अस्पताल का रहता है। वैेसे मैं आज अनिल भैया के घर की तरह ज्‍यादा भी खाँ लू तो कोई डर नहीं । मेरे बड़े भाई श्री राजेश सिंह का गाजीपुर में सिंह लाइफ केयर सेन्‍टर, शायद यही नाम है, उनके अस्‍पताल का, समस्‍या तुरन्‍त दूर हो जायेगी। अधिक खाकर गाड़ी चलाया नींद सी आई और गिर-विर गया तो एक बड़े भाई आनन्‍द उपाध्‍याया का बनारस में रामबिलास हास्‍पीटल है, हड्डी तुरन्‍त सही। सरकारी अस्‍पताल की तरफ रूख करने से दोनो भाई बचा लेते हैं क्‍योकि इन दोनो की जानकारी अच्‍छी है, हो भी क्यों नहीं 100 में 90 नम्‍बर लाकर डाक्‍टर जो बने हैं । प्राइवेट नसिंग होम है तो सुविधा भी अच्‍छी है।
 सरकारी अस्पताल और सरकारी डाक्‍टरो के रूतबे तो निराले हैं, हनक-खनक सब दिखाते हैं, चिकित्सा की जानकारी के मामले में तो मेरी औकात कुछ कहने की नहीं है। इन दोनो की कृपा से मैं इनसे दूर ही रह जाता हूँ। इनके चोचले नहीं सहना पडता है।
पर एक बात समझ नहीं आई? दोनो इतने तेज थे तो ये सरकारी डाक्‍टर क्‍यों नहीं बने? तभी मेरा दिमाग खुद बोल पड़ा "अरे अखंड-प्रखंड तुम भी एक दम गदहे हो, जानते नहीं हो पहले 1 आता है यानि नम्‍बर वन तो सरकार पहले 1 नम्‍बर वाले को नौकरी देगी कि पहले 90 नम्‍बर वाले को? निहायत उल्‍लू हो तुम अखंड गहमरी। पहले 1 नम्‍बर वाले नौकरी पायेगें न? याद नहीं है? वो क्‍या कहते हैं पी0एम0टी0 और सी0पी0एम0टी में 0 नम्‍बर वालो को भी प्रवेश मिलता है,जीरो कही लगा दो बिल्कुल सेट, अलबेला है जीरो जैसे इसको पाने वाले होते हैं। अब वह 0 नम्‍बर पर प्रवेश पाने वाले कौन हैं यह तो शायद माया बुआ ही बतायेगीं। जब 0 नम्‍बर पाकर जो डाक्‍टरी में प्रवेश लेगा वो क्‍या और कैसे पढ़ेगा ? क्या समझ में आयेगा? कई साल प्रवेश परीक्षा की तैयारी के लिए मिला तो वह आर्याभट्ट जी का अविष्‍कार प्राप्‍त किये और बाबा साहब की कृपा से उनका प्रवेश हो गया , तो वह एक साल में एक वो क्‍या कहते हैं ? हाँ समेस्‍ट कहते हैं , उसे कैसे पास करेगें ? किससे पूछे- किससे पूछे? चलो मुलायम बाबा से पूछे, लेकिन वह बोलेगें तो आधी बात समझ में नहीं आयेगी। तो राहुल चचा से पूछे? लेकिन नहीं सोनिया दादी विदेश गई है, राहुल चचा किससे अनुमति लेगें बताने के लिए। मोदी दादा कि तो सोचना बेकार है वो तो कही भारत की सीमा से दूर ही होगें। चलो छोड़ो अपनी पत्‍नी से पूछ लेता हूँ, गाली भी देगी तो क्‍या हुआ। आधी गाली उसको लगेगी, आधी मुझको, क्‍यो‍कि अर्धगनी जो ठहरी, मगर अगले पल ठिथक गया, फिर उसके सामने अपने ज्ञान का कालर कैसे ऊँचा करेगें। छोड़ो मृतुंन्‍जय चचा से पूछते है, पुराने पतरकार रहे है, नेता भी रहे है, पढ़ने में भी ठीके ठोके ठाक होगें। यानि नई बहू कि तरह सर्वगुण सम्मपन्न।

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