रविवार, 15 अक्टूबर 2017

हुआ जब भूत से सामना

आज जो मैं लिखने जा रहा हूँ हो सकता है इस भौतिकवादी युग में हँसी का पात्र बन जाये, इसको पढ़ने के बाद हँसी रूकने का नाम न ले, मगर मेरे द्ष्‍ट्रीकोण से यह बात उतनी ही सत्‍य है जितनी मानव जीवन का आधार सॉंसे। मैं परमपिता परमेश्‍वर के प्रदत इस जीवन में जीवन की किसी कठिनाइ से पीछा छुडा कर भागना जानता ही नहीं, अंत समय तक लड़ने का हौसला रखता हूँ, डरना तो सीखा ही नहीं। संसार में कुछ ऐसी प्राकृतिक चीजें हैं जिनसे मानव जीवन रक्षा के लिए डरना पड़ता है। मानवजाति से संबंध रखने के कारण मैं भी कुछ चीजो से डरता हूँ। जिसमें प्रथम है 'पायल की आवाज'' मुझे जिन्‍दगी में सबसे अधिक डर लगता है तो पायल की आवाज से और दूसरी चीज है आकाशीय बिजली की चमक और आवाज़ से। मेरे सामने से अगर पायल की आवाज आई तो मैं सामान्‍य जीवन भूल जाता हूँ, हालत ऐसी हो जाती है कि एक कदम चलना, भी पहाड़ पर चढ़ने जैसा हो जाता है, न खाने का मन, न पीने का मन, बस डर से दुबकने और चेहरा लाल। वही हाल बिजली चमकने पर भी होता है। कल कुछ ऐसा ही हुआ, जब मैं बाजार की तरफ जा रहा था, पीछे से एक पायल की अावाज काफी दूर तक मेरे साथ रही, मैं बाजार न जाकर उलटे पाव लौट आया, कटी हुई सब्‍जी और सने हुए आटे के वावजूद मुझे न खाने का मन हुआ न बनाने का, मैं सने हुए आटे को एक टीफिन में रख दिया, और कटी हुई सब्‍जी से हल्‍की सी तहरी बना कर रख दिया। कहा जाता है कि सना हुआ आटा रात में नहीं रखना चाहिए, मैं इसे अंधविश्‍वास की श्रेणी में रखता था, मगर कल की रात जो मैने स्‍वपन देखा, वो इस बात को प्रमाणित करने के लिए पर्याप्‍त था कि गुथा हुआ आटा नहीं रखना चाहिए। मैने देखा कि अचानक मौसम में परिवर्तन हो रहा है, और आकाश सफेद हो गया है, काफी देर तक बिजली की चमक आकाश मेें है, सभी भाग रहे है, धरती हिलने लगी, सब तरफ शोर। ऐसा डरावना स्‍वपन मैने पहले कभी नहीं देखा। इस स्‍वप्‍न ने मुझे इस बात को सोचने पर मजबूर कर दिया कि पायल की आवाज से डर और गुथे आटे का राज क्‍या है। मैं इसे तलाश रहा हूॅ। अखंड गहमरी गहमर गाजीपुर

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