खिला दुश्मन ज़हर आजाद, कर दे जिन्दगी से पर।
तड़प औ दर्द दे जिन्दा,सदा अपने ही रखते हैं।।
अखंड गहमरी
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पड़ोसी कर रहा हो घर, अगर रौशन जला दीपक।।
तुम्हारे घर भी आयेगा उजाला, मत जलो उससे।।
अखंड गहमरी।।
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स़जा ऐसी मुझे देगी, नहीं मालूम था मुझको।
सहारा प्यार का छीना, न रोने की कस़म देकर।।
जुबा खामोश रखना सीखना मुझको नहीं यारो।
बचे हैं चार दिन इस जिन्दगी के अब करोगे क्या?
अखंड गहमरी।।
महीना जून का पावन ,मुझे तो खूब है भाता।
मगर इसका मुझे है ग़म ,हमेशा ये नही आता।।
बला बीबी टले इस माह, पीहर वो चली जाती।
सुबह से शाम तक करती ,परेशा सर जो है खाती।
यही इक माह है ऐसा ,खुशी जो साथ में लाता।।
महीना जून का पावन ,मुझे तो खूब है भाता।। लड़ाता जाम विस्की के ऩज़र रखता पडोसन पे। न खाना मैं बनाता हूँ मगाता रोज होटल से।। पिटाई भी नही होती, जली रोटी नहीं खाता।। महीना जून का पावन, मुझे तो खूब है भाता।। सुबह से शाम बाते प्यार से, वो फोन पे करती । दिखाता प्यार मै झूठा,खुशी में आह वो भरती।। कहूँ जब मैं तुम्हारे बिन, रहा मुझसे नही जाता।। महीना जून का पावन मुझे तो खूब है भाता।। अखंड गहमरी।।गहमर गाजीपुर ।
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7 June
हिन्दूओं
की भावना का खून बहाने वाले, सर्द रात में अपने स्वार्थ के लिए महजिदो
से हिन्दुओं को बाहर कराने वाले, अपने स्वार्थ के लिए भारत के दो भाग कर
मुसलमानो को दान देने वाले,लाखो हिन्दुओं के हत्यारे, तथाकथित
राष्ट्रपिता के विषय में किसी ने एक सही वाक्य क्या कह दिया, जलजला आ
गया। वाह रे वाह।
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जरा अब होश में आओ, दिखाओ हिन्द की ताकत। बजा शंकर का डमरु तुम, सुनाओ हिन्द की ताकत।। अगर अब पाक का झन्डा, दिखे कश्मीर में तो तुम.. जला कश्मीरी मुल्लो को, बताओ हिन्द की ताकत।। अखंड गहमरी।।।
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29 June
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दिया जो जख़्म गाँधी ने, अभी भी भर न पाया वो। लगा कर आग मुल्लो ने, जला कश्मीर को डाला।। अखंड गहमरी।।
लगाने पाक का झन्डा, उन्हें कश्मीर में मत दो। ज़मी यह हिन्द की प्यारी, उन्हें समझा के फिर तू सो। न माने बात गर तेरी, न वन्देमातरम बोले, दिखा दो पाक की राहें, अरब के उन लुटेरो को। अखंड गहमरी।।
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लदी है टोकरी सर पे, तड़पता गोद में बालक। मिटाये भूख कैसे वो, समझ उसकी न कुछ आये।। बदन पीला पड़ा उसका, न मिलती पेट भर रोटी। कहाँ से दूध छाती में, वो बालक के लिए लाये।। अखंड गहमरी
उठाना लाज का पहरा ,बहुत आसान है लेकिन। बचा कर लाज रिश्तों का ,निभाना है नहीं आसां।। गरीबो के बस्ती में, लगा लो लाख मेले तुम। मगर इक प्यार की रोटी, खिलाना है नहीं आसां।। अखंड गहमरी
हुआ हज पर अगर हमला, कभी कश्मीर की माटी में। तिलक मारा न जाये फिर, कभी कश्मीर की घाटी में।।
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बदन लिपटा तिरंगें में, कही दिखता न उनका सिर। गरज बेशर्म खादी तब, गिराती दुश्मनो के घर। अखंड गहमरी
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