रविवार, 15 अक्टूबर 2017

न देखी थ्‍ाी कभी सूरत

न देखी थी कभी सूरत मगर अपना बना बैठे
खता कुछ हो गई मुझसे तभी तुझको गवा बैठे

सजा कर माँग तेरी मैं तुझे अपना बनाया था
तुम्हारे साथ मिल कर मैं घरौंदा इक बसाया था
खिले जब फूल आँगन में हुआ पूरा सभी सपना

तुम्हारे बिन नहीं कोई जमाने में लगे अपना
मगर ये भूल थी मेरी जो तुम से दिल लगा बैठे
ख़ता कुछ हो गई मुझसे तभी तुझको गवा बैठे
न देखी थी कभी सूरत मगर अपना बना बैठे

बना कर सेज़ फूलों की उसे सबने सजाया था

उठा कर मैं जमीं से फिर तुझे उसपर सुलाया था
किये श्रृंगार तुम सोलह बनी दुल्हन वहाँ सोई
विदा जब हो रही थी तब बता तुम क्यों नहीं रोई
छुपा कर नम हुई आँखें तुझे हम खुद जला बैठे
खता कुछ हो गई मुझसे तभी तुमको गवा बैठे

न देखी थी कभी सूरत मगर अपना बना बैठे

सताये दर्द जब कोई तुम्हारी याद आती है
पड़ी सूनी हमारी सेज सनम मुझको रुलाती है
कटे दिन रात अब कैसे वही से तुम जरा देखो
तुम्हारी याद में कैसे तड़प कर मैं गिरा देखो
कसम तुमको भुलाने की सनम हम क्यों उठा बैठे
खता कुछ हो गई मुझसे तभी तुमको गवा बैठे
न देखी थी कभी सूरत मगर अपना बना बैठे

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