रविवार, 17 फ़रवरी 2019

60 साल पहले गजग‍िमिनयॉं

60 साल पहले।
(दिल्‍ली बनारस बस यात्रा के दौरान)
आज तो मेरी गजगमिनियाँ के पाँव ही जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। मुझे बार- बार वाटस्प काल करके कभी अपना लहँगा दिखाती, तो कभी झुमका, टीका, नथिया। बला सी खूब सूरत लग रही थी वो,लगे भी क्यों न आज तो वह मेरी प्रेमिकाओं के बंधन से निकल कर मेरी प्राणो की प्यासी, अरे स्वारी प्राणो की प्यारी पूरीधांगनी बनने जा रही थी। मैं भी सजा-धजा बकलोलपुर एयरपोर्ट पर टहल रहा था, समय काटे नहीं कट रह रहा था। कभी मोबाइल तो कभी घड़ी में समय देखता। अभी तो पूरे 20 मिनट थे मेरी प्लेन आने में, आज उसे भी दुलहन की तरह सजाया जा रहा था। समय पूरा होने को ही था कि जहर से बुझे तीर की तरह मेरे कानो में फ्लाईट के 4 घंटे देर से आने की सूचना मेरे मामा ने दिया। मैं तो उनके पर पिल ही पड़ा '' बड़ी तारीफ करते थे इस बटेसरी फ्लाईट कम्पनी की, कभी देर नही होती हैं, ये है, वो हैं, अब क्या हुआ ? मेरे मामा अचानक ही मेरे द्वारा लगाये इस बाउंसर को संभाल नहीं पाये, वह मामी रूपी हेलमेट को देखने लगे, मामी के चेहरे से शायद उन्‍हें बोलने की प्रेरणा मिल गई, मेरे द्वारा फेंके गये बाउन्‍सर को वह समझ गये और अपने मुहँ रूपी बैट से प्रहार किया'' भानजे ये तो तकनीकि चीज है कभी भी खराब हो सकती है'' इस में कम्‍पनी की क्‍या गलती? जब किसी चीज का रख्‍ा रखाव ठीक नहीं होगा तो ऐसा ही होगा, कम्‍पनी खोलने से पहले तो यह तरह तरह के दावे करते है, मगर जब हकीकत से सामना होता है तो टाॅय, टॉंय फिस'' मैने उखड़ते हुए कहा। अरे भानजे क्‍यों व्‍याकुल हो रहे हो इतना अपनी गजगमिनियॉं से मिलने के लिए जरा इन्‍तजार करों, मैने भी तुम्‍हारी मामी से मिलने के लिए पूरे 24 घंटे ट्रेन में इन्‍तजार किया '' मामा ने मामी के चेहरे की तरफ देखते हुए कहा। मामा मोदी जी की तरह 60 साल और 70 में क्‍या हुआ जैसी बात मत करों, हमने आज की व्‍यवस्‍था देखी है कल की नहीं। हम तुम्‍हारी तरह शादी के बाद मामी का चेहरा नहीं देखेेगें, हमने तो अपनी गजगमिनियॉं को देख कर ही उसे घुघॅंट में लायेगें। तुम्‍हारी बारात बैलगाड़ी से गई तो क्‍या हम ये आशा करें मेरी भ्‍ाी बारात बैलगाड़ी से जायेगी। अब मामा के माथे पर पसीना आ गया, मामी ने आगे बढ़ कर मोर्चा संभाला, बेटा न परेशान हो तुम्‍हारी गजगमिनयॉं अभी तैयार हो रही होगी, बारात आने का समय 10 बजे का था न तो वह 1 बजे से पहले तैयार नहीं होगी, तुम्‍हारे मामा जब मुझे व्‍याह कर लाये थे तो 3 से 6 पिक्‍चर का टिकट लाते और मुझसे 12 से 3 बताते थे, तब भी फिल्‍म शुरू होने के बाद ही मैं पहुँच पाती थी। मैं तो कुछ सुनने को तैयार नहीं था , मेरी निगाहों में तो बस गजगमिनियॉं ही छाई हुई थी। हाय रे मेरी गजगमिनियॉं कितना इन्‍तजार मेरा कर रही होगी, घूप में उसकी रंगत काली हो रही होगी। सही कहा जाता है कि मामा पर भरोसा करके पचताना, न करके पचताना। मैने मामा से फिर पूछा मामा कहॉं है आपकी ज‍हजिया? अब मामा के सब्र का बाध मोदी जी के सर्मथको जैसा टूट चुका था, मेरी बारात 2 दिन में पहुँची थी बैलगाड़ी से और तुम 1 घंटे बर्दाश्‍त नहीं कर सकते हो, मामा ने आव देखा न ताव चिल्‍ला पड़े। गुस्‍सा मुझे भी आ गया, क्‍यों पैदा हुए आप उस जमाने में जब संसाधन नहीं थे आज की तरह, पैसा नहीं था आज की तरह। आज मेरा जमाना है संसाधन है पैसा है तो मैं क्‍यों देर सहूँ, मुझसे बर्दाश्‍त नहीं होता है। मुझे तुरन्‍त पहुँचना है अपनी गजगमिनियाँ के पास। अब आप पर भ्‍ाी विश्‍वास नहीं करेगें। आप को अब हटाना होगा मुझे अपने साथ से। तभ्‍ाी बगल में मामा के मामा उनके समर्थन्‍ा में बोल पड़े, क्‍यो दोष दे रहे हो इनका, इन्‍होनें तो व्‍यवस्‍था किया ही था तेजी का मगर जब प्‍लेन में खराबी आ गई तो क्‍या करेंगे, क्‍या आज पहली बार किसी प्‍लेन में खराबी आई है क्‍या। अब मेरा दिल टूट रहा था, मैने टूटती सॉंस से कहा '' मामा जी जब प्‍लेन कम्‍पनी ये जानती है थी कि संचालन और वक्‍तव्‍य में अन्‍तर होता है तो उसे दावे नहीं करने चाहिए जैसे नेता चुनाव से पहले देते है। ऐसा कुछ नहीं होता भानजें के भानजें तुम्‍हारी ऑंखो पर अभी मेरी होने वाली बहू का पर्दा पड़ा है तुम कुछ देख नहीं पा रहे हो, मामा ने तुम्‍हारे विवाह में कितना कार्य किया है, ये किया वो किया।
आप भी मामा के मोदी भक्‍त हो गये हो क्‍या, मामा ने जो जो कहा वो किया नहीं, जो हमें चा‍हिए था, जिसके लिए हम उनको अपने साथ लाये, उनकी बातें माने, और आप बाते करते हैं, दुनिया जहान की। मुझे जो चाहिए जिसके लिए मैने मामा पर भरोसा किया वो कहॉं है, मुझे पहले वो चाहिए, बाद में सब। बेटा अगर तुम अपने मामा को अपने साथ से हटा दोगो तो क्‍या आने वाला समय तुम्‍हारी समस्‍या दूर कर देगा, मेरे मामा के मामा ने कहा। तभी मेरे मोबाइल की घंन्‍टी बजी, मैं जल्‍दी से मोबाइल लिया, मेेरे गजगमिनियॉं का वीडियों काल था, वह अपने सूपनखे से चेहरे पर गुस्‍सा लिये बोली, जो आदमी विवाह करने में समय से नहीं पहुँच सकता, जो केवल झूठा वादा करता हो मैं उससे विवाह नहीं कर सकती, आज के बाद फोन मत करना,कहते हुए उसने फोन काट दिया, मैने बहुत ही प्रयास किया मगर फोन नहीं उठा। लानत हो ऐसे प्‍लेन कम्‍पनी पर जिसने अपना वादा पूरा न करके मेरा विवाह तोड़वा दिया। हाय रे मेरी गजगमिनयॉं, हाय रे हाय टूटी मेरी शादी। हो गई मेरी बरबादी। हम भी लुट गये वैसे ही जैसा आज मेरा हिन्‍दू समाज लुट गया, कुछ तो आज के काम की तुलना 60 वर्षो से करके अपने मन को शांति देते हैं। मैं कैसे दूँ, 60 साल तो संसाधन बनाने में निकल गये, और फिर हमें आज के आधुनिक जमाने में 60 साल के कामों से तुलना ही करनी होती तो फिर आप की क्‍यों, कोई भी अच्‍छा है, आखिर वह भी तो कुछ करेगा, सबके अपने अपने दिमाग है। तुलना ही तो करनी है, मैं ही प्रधानमंत्री बन जाता हूँ, आखिर मेरी भी गजगमिनियॉं तो मेरे साथ नहीं है।
अखंड गहमरी, गहमर गाजीपुर ।।

गाजीपुर वाले हो क्‍या

होटल चाहिए भाई साहब,तकधनिया रेलवे स्टेशन उतरते एक अंजान आवाज आई।
नही चाहिए , कह मैं आगे बढ़ गया।
देख लो भाई साहब एक से एक होटल हैं.वह शायद मुझे बड़ा आदमी समझ बैठा और मेरे पीछे पड़ गया।
नहीं भाई नहीं चाहिए, मैं डायमेट्री की औकात रखता हूँ मैं बोल चल दिया।
वह आगे बढ़ मेरा बैग पकड़ देख लो साहब. ।
मुझे गुस्सा आ गया, मगर पीते हुए बोला हाँ चाहिए बोलो दिलाओगे।
हाँ दिलायेगें..कैसा चाहिए ? वह ताव में बोला।
मैने अपनी डिमांड बताई..
वो पूस की सुबह आया पसीना पोछते हुए ऐसा होटल तो नहीं मिलेगा तकधनिया में।
बनवाना होगा मुझे, उसने व्यगंय कसते हुए कहा।
मैं जेब से एक दस का नोट निकाल उसे देते हुए
यह लो जब आदमी कोई निर्माण कार्य, बच्चों का शादी-व्याह करता है तो अपनो और गैर से मदद लेता है.. ये लो 10 रूपये
मेरी तरफ से सहयोग और जब होटल बन जाये तौ एक कमरा मैरा परमानेन्ट बुक रखना।
अब वह कभी मुझे देख रहा था कभी उस नोट को.
बड़ी मुश्किल से वह इतना ही कह पाया
गाजीपुर वाले हो क्या?
मैं मुस्कराते हुए बोला हाँ, मगर वह जबाब सुनने के लिए मौजूद नही थाः मैं सामान उठाया और चल दिया रेलवे डारमेट्री की तरफ।।

पत्‍नी का लाइसेंन्‍स

आज न जाने क्यों एक पुरानी घटना बहुत याद आ रही है।
बात 2004 की है, जब मेरे पुत्र का जन्म नहीं हुआ, पत्नी प्रेग्नेंट थी। मेरे पास एक मारूती वैन हुआ करती थी जो कुछ दिनो से खराब थी और मैं उसे बक्सर शहर में जयप्रकाश चौक के पास एक गैरेज में बनने दिया था। एक दिन पत्नी के रूटीन चेकप के लिए बक्सर डाक्टर अनारकली के पास ले जाना था। मेरे मोहल्ले के ही डा. जितेन्द्र सिंह के ससुर जी जिनका आवास पटना है बक्सर में मेडिसिन स्पलायर थे, भीड़ के बावजूद न सिर्फ तुरन्त निरक्षण करवा बल्कि सारी दवाएं भी काफी रियाती दर पर उपलब्ध करवा दी । हमारी कार गैरेज में बन रही थी, जो मिस्तरी 3 बजे तक देने को कहा था। हम लोग उस दिन ट्रेन से बक्सर आये थे, योजना थी कि मेडिकल चेकप के बाद कुछ मारकेटिंग कर कार से लौटते समय , निकटवर्ती गाँव बारा में डाक्टर अमर सिंह के नर्सिंग होम में एडमिट अपनी चचेरी दादी अस्तुरना देवी पत्नी स्व.लालबहादुर सिंह को देखते हुए गहमर चले जायेगें।
मेडिकल चेकप के बाद हम लोग के उस समय के बक्सर के सबसे बडे वीडियो एवं सीडी कैसेट के होलसेलर बाम्बे वीडियो जिनसे मेरा परिवारिक संबंध भी हो गया था, उनके पास चले गये, वही भोजन उपरान्त पत्नी आराम करने लगी और मैं कार के पास आ गया। कार का एक समान पटना से आकर लगना था, मगर वह शाम 4 बजे तक नहीं आ पाया। मैं आकर बाम्बे भाई को बताया तो वह मुझ पर नाराज होने लगे। उन्होनें मुझे अपनी स्कूटर दिया और अँधेरा होने से पहले घर पहुँचने का फरमान सुना दिया। हम लोग बिना मारकेटिंग किये बक्सर से चल दिये। महज 9 किलोमीटर चौसा आने के बाद वह स्कूटर बिगड़ गई। शाम तेजी से ढल रही थी। उस समय शाम 6 बजे के बाद यादवमोड़ जो बक्सर से 11 किलोमीटर था वहाँ से बिहार सीमा पार कर 11 किलोमीटर यूपी में गहमर आने के लिए कोई साधन नहीं मिलता था। हम लोग परेशान।
तभी बक्सर से यादवमोड जाने वाली एक ऊपर नीचे फुल जीप आती दिखाई दी, उसकी हालत देख कर मदद संभव नहीं लगी।
फिर भी मैने हाथ दिया, वह रूक गई। संयोग था कि उस जीप में बक्सर गहमर के बीच चलने वाले जीप के टाइम टेकर बैठे थे। वह तुरन्त उतरे मेरे स्कूटर को सुरक्षित रखवाया, जीप में जगह वनवा कर पत्नी को बैठाया और मुझे पीछे खड़ा कराया।
यादवमोड़ पहुँचते पहुँचते गहमर के सारे साधन जा चुके थे।
मैं परेशान नहीं हुआ। कहा कि रिक्से से पड़ोसी गाँव 4 किमी बारा चले जाते हैं, वहाँ दादी एडमिट है देख कर वहाँ से कोई व्यवस्था हो जायेगी या कोई रिजर्व जीप ले लेगें। तब तक एक रिक्से बाला जो शायद मुझे जानता था बोला ''बिट्टू भाई न परेशान हो , बारा तक चलो अगर वहाँँ से कुछ नहीं मिला तो हम गहमर छोड़ देगें। सूरज डूब चुका था, हम लोग रिक्से से बिहार की सीमा से निकल उत्तर प्रदेश की पहली पुलिस चौकी बारा पहुँचने वाले थे कि कुछ पहले ही बारा फुटबाल मैदान के पास बनी पुलिया पर बैठे दो वर्दीधारियों ने रिक्शे को रूकने का ईशारा किया। रिक्शा रूका लेकिन 5 कदम आगे, यह उन पुलिसकर्मीयों को नागवार लगा, उन्होनें एक भद्दी गाली रसीद की और मुझको बुलाया।
मैं रिक्शे से उतर कर रिक्से वाले को 5 कदम आगे जाने का ईसारा किया और उनके पास पहुँचा। रिक्से को आगे जाते देख कर आग बबुला हो गये। मुझसे पूछा कहा से आ रहे हो, मैने सब बता दिया।
पुलिसकर्मियों ने कहा'' अच्छी कहानी सुनाई''.। वो सवाल करते रहे है मैं जबाब देता रहा।
रिक्से वाला और मेरी पत्नी दोनो जानते थे कि मेरी बर्दाश्त करने की शक्ति अधिक नही है, दोनो उतर कर पास आ गये।
उनमें से एक ने पूछा जो गाड़ी खराब है उसके कागज कहाँ है?
तभी दूसरे ने पूछा कि अच्छा बताओ कि क्या सबूत है कि यह तुम्हारी पत्नी है?
अब मेरा सब्र टूट चुका था, मैने तेज आवाज में चिल्ला कर पूछा ''शासन ने पत्नी को साथ लेकर चलने में कौन कौन से दस्तावेज लेकर चलना अनिर्वाय किया है?
पुलिसकर्मियों का गुस्सा उफान पर आ गया, वह पुल से उतरना चाहे मगर नशे की अधिकता से उतर नहीं पाये।
अब मामला बढ़ता और रात बढ़ती जा रही थी,
अब मेरे और उनके बीच हाथापाई की नौबत आ गई।
तभी बारा इन्टर कालेज बारा के अँग्रेजी के प्रवक्ता आर.के. सिंह एवं बारा इन्टर कालेज के अध्यापक और आज समाचार पत्र के पत्रकार सलीम मास्टर जो शायद टहल कर लौट रहे थे, हमारी आवाज पहचान कर पास आ गये। सब मामला जाना। और मुझे सीधे रिक्शे पर बैठने को कहा, मैं शिक्शे पर बैठने जा रहा था कि उनमें एक पुलिसकर्मी मेरी तरफ दौड़ा , मैं कुछ बोलता तभी आ.के सर ने उसका हाथ पकड़ा, तब तक काफी भीड़ जमा हो गई थी। जिनमें 80% मुझे पहचानते थे। अब मैं रिक्से से अस्पताल पहुँच गया। वहाँ मौजूद अपनी बुआ किरण और चचा कौशलेंद्र सिंह ऊर्फ गुडु जो आर्मी में थे सारी बात बताया। पहले तो दादी और बुआ दोनो मेरे पर नाराज होने लगी कि इतनी रात तक बहू को इस हालत में क्यों बाहर रखें , पापा मम्मी गहमर नहीं हैं,तो क्या हुआ। तभी मेरे चचा जो बात सुन कर ही गुस्से में भरे थे कहे'' चल सालन के खोज के मारल जाये'', हम लोग प्लानिंग कर ही रहे थे कि डाक्टर अमर सिंह आते दिखाई दिये। मैं नमस्कार करता इसके पहले ही वह काफी कड़क और गम्भीर आवाज में बोले'' नीचे बुलोरो खड़ी है, आप तुरन्त घर जाओ, वाइफ को घर छोड़ कर जो करना हो करना।
हम दोनो चल दिये, हम गहमर पहुँचते इससे पहले ही गहमर में यह घटना पहुँच चुकी थी, मैं पत्नी को लेकर थाने में चला गया। उस समय के दरोगा का नाम नही याद आ रहा मगर मुंशी थे कृष्णा अवतार पांडें और रामदुलार यादव थे सब बात बता कर वही थाने में बैठ गया। सब बहुत समझाये मगर मैं दरोगा के आगमन और पत्नी को साथ लेकर चलने वाले कागजातो के बारे में जाने तक बैठने की जिद कर बैठ गया। तभी गाँव के कुछ लोगों के समझाने और उनके थाने में मौजूद रहने के आश्वासन पर मैं बिजली कि गति से पत्नी को घर छोड़ कर थाने में आ गया। सभी मौजूद थे। तब तक थाने के मुशीं कृष्ण अवतार जी ने वायलेस से पूरी जानकारी ले लिये थे, उपरोक्त सिपाही उनसे भी बद्तमीजी से बात कर रहे थे। तब तक दरोगा जी पहुँच चुके थे, संभवत पी.पी सिंह या ईशा खान में कोई एक थे और मेरे पिता जी के बारे में जानते थे, मुझसे पूछा कि यह घटना उनको पता है मैनें कहा नहीं, टेलीफोन हो रहा था मगर लगा नही( उस समय पिता जी बरहज देवरिया में पोस्ट थे, और माता जी भी वही गई थी, मेरे घर में मात्र 0597265213 फोन था) वह दोनो सिपाही लाये दोनो की यह पहली या दूसरी पोस्टिंग थी। रात में उनकी क्लास लगी, और मुझे सुबह आने को बोला गया। मैं सुबह पहुँचा तो सिपाहियों की भाषा बदल चुकी थी, नौकरी जाने , सजा मिलने का खतरा साफ दिख रहा था, रात की हेकड़ी उतर चुकी थी। दरोगा जी ने एक शब्द कहा आप अपलिकेशन लिख कर दो , कार्यवाही हो जाये।
मैं अपलिकेशन लिखता जा रहा था क्रोध से काँपता जा रहा था, लाल होते चेहरे को देख दरोगा जी घबड़ा उठे, पानी मगाँया पिलाया, हाथ मुहँ धुलाया।
अब मैं नार्मल था फिर अपलिकेशन लिखने लगा, तभी उनमें से एक आकार मेरा पैर पकड़ लिया। मैं सोच में पड़ गया उसी समय माता जी का एक शब्द जो हरदम कहती थी '' बेटा किसी के पीठ पर लात मारना, पेट पर नहीं। मैं अप्लीकेशन फाड़ दिया और दरोगा से बोला आप ही सज़ा जो चाहे दे। सभी मेरी तरफ देखने लगे, चूकि मामला भी बड़ा था अन्त में मेरे मुहल्ले के चाचा जो अब नहीं है महेन्द्र सिंह, जिनका नाम गहमर के इतिहास में अमर है, गाजीपुर, बनारस में शायद ही कोई ऐसा पुस्तक व्यवसायी हो जो उनको न जानता हो, गहमर थाने के सामने किताब की दुकान थी और है भी. बोले की पहले तो यह सिपाही सार्वजनिक रूप से बीटू से और घर जा कर बहू से माफी माँगे और इनका तबादला बारा से कर दिया। इस सब सभी सहमत हुए, उनको वारनिंग देकर , तबादला कामाख्या धाम चौकी किया गया, और माँफी मगवाई गई।
परन्तु आज भी सवाल जिंदा है, पत्नी को साथ लेकर चलने के लिए कौन से कागजात चाहिए?
*अखंड गहमरी*

बापू इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी हम आपको नहीं भूलें। आप के दिये जख्‍़मों की आग में हम आज भी जल रहे हैं-अखंड गहमरी

        बापू इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी हम आपको नहीं भूलें। आप के दिये जख्‍़मों की आग में हम आज भी जल रहे हैं। परन्‍तु आज भी अखंड गहमरी सहित पूरा विश्‍व आपका जन्मदिवस धूमधाम से मना रहे हैं। आज भी हम सब आप के जन्मदिवस पर पूर्व प्रधानमंत्री स्‍व0 लाल बहादुर शास्‍त्री जी को गौण कर आपको राष्ट्रपिता कहते हुए यह भूल कर तिरंगे को गगन में फहरा रहे हैं कि आपने किस तरह तिरंगे के नीचे आने वाले हिन्दुओँ और तिरंगे के नीचे से चाँद-तारे के नीचे जाने वाले लोगो के लिए कैसे अपने रूप को बदला। आप जहाँ कहीं, जिस धर्म, जिस जाति में हैं मेरी तरफ से अपने पूर्व अथवा पूर्व के पूर्व जन्मदिवस की बधाई एवं शुभकामनाएं स्वीकार करें। मैनें पूर्व के पूर्व शब्‍द का प्रयोग इस लिए किया कि मोहन दास करम चंद्र गाँधी के रूप में आप अपनी काया नाथू राम गोड़से जी  की कृपा से 30 जनवरी 1948 को त्याग चुके हैं। 

        उस समय को बीते पूरे 72 साल 9 महीने हो चुके हैं। कलयुग में इतना लम्बा जीवन कम ही लोग पाते हैं और कही मैनें पढ़ा था कि आपके मरने पर देवता भी जमीन पर आकर रो रहे थे तो निश्चित ही आप दुबारा- तिबारा क्या अन्नत काल तक मानव में ही जन्म लेगें इस लिए मैने पूर्व के पूर्व वाक्‍य का प्रयोग किया।वैस देवताओं के आप के मृत्यु पर आने पर मुझे संदेह है, इस लिए क्योंकि जिस व्यक्ति के सर पर देवता होने के साथ लाखो हिन्दूओ के साथ नाइंसाफी करने का तथाकथित आरोप लगा हो देवता तो दूर यमराज भी न आवें, वो अखंड गहमरी जैसे किसी पागल को आपको लेने भेज देगें।
स्व. मोहनदास करमचंद गाँधी जी आपका भारत द्वारा पाकिस्तान को पैसे देने, भारत में मस्जिदो में शरण लिये हिन्दूओं को जाड़े की रात की कपकपाती सर्दी में बाहर निकालने और लाशो की शक्ल में आते हिन्दुओ पर पाकिस्तान के प्रति आप का रूख क्या था। मैने सुना है, पढ़ा है, हाँ देखा भले नहीं कि किस प्रकार आपका आजादी पूर्व से लेकर आजादी के बाद भी आपका योगदान हिन्दुओं के विरोध में कम नहीं था । यदि हिन्द के टुकड़े और सरहद पार से आती लाशों का यदि परीक्षण हो, तो शायद उन लाशों के एक-एक रोम से यही निष्कर्ष निकलेगा कि आप भी उनकी हत्या में शामिल हैं। आपको देवता बनने का शौक था। आप जानते थे कि आज 70 प्रतिशत हिन्दू आबादी उसके साथ है अन्ध-भक्त है, ऐसे में यदि इतनी ही मुसलमानो की आबादी को अपने पक्ष में करने में कामयाब हो जायेगें तो जो अपने द्वारा खीचीं गई सरदह पार भी अपने आपको देवता की श्रेणी में स्थापित कर लेगें। मगर आपकी इच्छा, इच्‍छा ही बन कर रह गई। पाकिस्तान ने जीते जी आपको दूध की मक्खी की तरह निकाल फेंका और तो और आपकी मौत के बाद आपकी अस्थियों को पाक की सिन्धु नदी में विसर्जित तक करने नहीं दिया।
पुराने लोग कहते हैं कि उनके जमाने में बच्चे अपने बाबा-पिता-चाचा तो दूर गाँव के हर आदमी से डरते उनका सम्मान करते, वो आज के जमाने की तरह कलयुगी नहीं होते थे ऐसे में आप जो खुद संस्कारी थे, आप के पुत्र और पौत्र के कुपुत्र होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती तो फिर बी.बी.सी को दिये अपने साक्षात्कार में गोपाल दास गाँधी ने क्यों कहा कि आप के पुत्र देवदास गाँधी ने नाथू राम गोड़से की सजा रूकवाने के लिए पूरे तीन महीने तक प्रयास किया। कोई पुत्र अपने पिता के हत्‍यारे को सजा क्‍यों नहीं दिलवाना चाहेगा यह क्‍या सेाचने का विषय नहीं है।
भारत की आजादी की लड़ाई में लाखों शहीद हो गये, सभी के अपने अपने योगदान थे, कोई शान्तिपूर्ण ढ़ग से, कोई उग्रता को अपना कर तो कोई किसी समूह का नेतृत्व कर अपना योगदान परतंत्रता की बेडियां खुलवाने में दिया। किसी का योगदान कम नहीं था, मगर जिस प्रकार आपको आपके तथाकथित योगदान का प्रतिफल मिला, उसके आगे सभी के योगदान बौने सिद्ध हो गये। 

        आजादी की लड़ाई में अपने अपने से आगे होते क्रांतिकारीयों को मौत के मुहँ में धकेल दिया और अपने स्वभाव और अपने अभिमान को नैतिकता का नाम देकर क्रांतिकारीयों के लिए फाँसी की रस्सी का निर्माण किया। मुझे एक बात नहीं समझ में आई ही नहीं कि आजादी की लड़ाई में भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद, मैगर सिंह, सुभाषचंद्र बोस जैसे लाखो उग्र और शांतिपूर्ण आजादी के दिवाने सिपाही अँग्रेजो का शिकार बने वही अपको आपके खतरनाक कामो के बाद भी अँग्रेजो ने केवल बार-बार जेल ही भेज कर छोड़ दिया, न कभी आपको फाँसी की सजा हुई और न कभी अँग्रेज सिपाहियों की गोली आपको छू कर निकली।आजादी के समर में आपके योगदान वास्तव में भूलाया नहीं जा सकता, आपके योगदान को भूलाना माँ भारती का अपमान करने जैसा होगा , परन्तु मगर इतिहास के निष्पक्ष लेखको की माने तो उनके कृत्यों को भी नहीं भुलाया जा सकता।
            आदरणीय मैं सैनिक तो नहीं और न युद्धों के नियम कायदे जानता हूँ परन्तु एक सैनिक बहुल्य गाँव में रहने के कारण लड़ाई का एक निमय जानता हूँ कि हारा हुआ सिपाही, हारा हुआ देश, हारा हुआ राजा कभी शर्त रखने की स्थित में नहीं होता, तो अगर फिरंगियों लड़ाई आपसे हार चुके थे तो फिर कैसे न उन्होंने आजादी के बटवारे की शर्त रखा और मनवाया भी, यही नहीं उन्होंने भारत को आजाद भी नहीं किया, बल्कि 99 साल वर्ष 2046 तक के लिए केवल सत्ता-शासन का हस्तांतरण किया। अब यह भविष्य के गर्भ में है कि 2046 के बाद भी हम आजाद रहेगे या पुनः अंग्रेजो का शासन स्वीकार करेगें। यह तो वही बात हुई आसमान से गिरे खजूर पर लटके।
        आज आधुनिक समाज में जब इतिहास और इतिहासकारों द्वारा श्रेष्ठ लिखे गये कार्यो की विवेचना होने लगी इतिहास के हर पर्त से धूल हटती हुई दिखाई दे रही है। इस हटती धूल के नीचे की चीजों को कोई मान रहा है कोई नहीं मान रहा है।ऐसे परिवेश में जब गाँधी जी आपके जीवन के तमाम राज दूध का दूध पानी का पानी हो रहे हैं, अच्छे -बुरे, जख्म-मलहम, झूठ-सच सब समाने आ रहे हैं, इतिहा और वर्तमान को देखते हुए ये कथन बिल्कुल सत्य हो जाता है कि "बापू हम तुमको नहीं भूले"। हस कर या रोक, आपके दिये जख्मों को नासूर बनता देख कर 'बापू तुमको नहीं भूले।

जय हिन्द
अखंड गहमरी गहमार गाजीपुर।



बापू और गजगमिनियॉं

रात के बारह बजने वाले थे। मैं अपनी डियूटी निभा रहा था। पलंग पर सोई अपनी वाइफ होम के सुन्दर-सलोने पैरो दबा रहा था। कभी-कभी नींद से ऑंखे बंद हो जाती तो वाइफ होम के हाथ मेरे गाल से प्रेम कर बैठते और कुछ देर के लिए निद्रा रानी मुझसे दूर हो जाती। वैसे निद्रा रानी का प्रेम मुझसे कुछ अधिक ही है, वह चली ही आती है। मुझे नींद आ ही गई, मैं बैठे-बैठे सो गया?
बेटा क्या कर रहे हो ? एक बूढ़ी सी काया ने आकर पूछा।
ऑंख नहीं है क्या देखते नहीं ? मैं पत्नी सेवा में व्यस्त हूॅं, मैने झुझलाते हुए जबाब दिया।
बेटा यह काम पुरूषो के लिए नहीं उसने कहा।
जाओ लेक्चर मत दो, ऐसे बोल रहे हो जैसे तुमने यह काम नहीं किया, मैने बुरा सा मुहॅं बनाते हुए कहा।
लगता है तुम मुझे पहचान नहीं पा रहे हो? उस काया ने मेरी तरफ एक सवाल उछाला।
नहीं मेरे पास इतनी फुरसत नहीं जो मैं तुम जैसे को पहचानता फिरूॅं, मैने गुस्से से कहा।
बेटा मैं बापू हूॅं, जिसे तुमने कल यानि 2 अक्टूबर को बड़ी अच्छी बधाई भेजी।
ओह! तो आप बापू है, मेरे पास क्यों आये हैं?
मैं तो तुमसे मिलने आया हूॅं, तुमने ही तो कहा था कि परदेशी लौट के आजा, कल बनेगी दाल तो मैं दाल खाने आया हूॅं।
दाल सुबह बनेगी, सुबह आना जाओ अभी मेरा दिमाग न खाओ, मैने खीजते हुए बोला।
अच्छा ये बताओ टैट का फार्म भर दिये? दो दिन से परेशान हो, उन्होंने संवेदना जताते हुए बोला।
नहीं अभी नहीं भरा गया, कोई आरक्षण वाला इंजिनियर बैठा है साइट डबलप करने। इस लिए रोज साइट क्रैस कर रही है।
बेटा आरक्षण से इतना नाराज क्यों हो, वह तो उनका हक है। वह समाज के दबे कुचले लोग हैं।
ठीक कहा तुमने बापू ये तो उनका हक है मैंने गुस्से से कहा।
गुस्सा क्यों होते हो बेटा, इससे तुमको क्या परेशानी है, मेहनत करो उनसे अधिक काम करो।
ठीक कह रहे हो बापू, मेहनत और पैसे तो केवल सवर्णो के पास है, उसमें गरीब, बेसहारा लोग तो हैं नहीं।
संख्‍या तो दलितो की अधिक है, परेशान तो सबसे अधिक वह है, बापू ने मेरी बात का जबाब देते हुए कहा।
ठीक है आरक्षण को खत्म मत करो बल्कि और बढ़ा दो, लेकिन एक काम करो, मैने अपने रूख को नम्र करते हुए कहा।
बोलो क्या करें ? बापू ने मेरी तरफ प्रश्‍न उछाल दिया।
बापू इतनी व्यवस्था कर दो कि भारत के सभी नेता और आरक्षण पाने वाले आरक्षण प्राप्त डाक्टरो से ही इलाज करायेगें, वह विदेश इलाज के लिए नहीं जा सकते और ना ही समान्य वर्ग के अस्पताल में जा सकेगें। संविधान में ऐसा संसोधन कर दो।
मतलब ? बापू ने मेरी तरफ देखते हुए कहा।
अभी आगे सुनो बापू, मतलब वतलब बाद में पूछना।
सभी नेताओं के बच्चे और आरक्षण पाने वाले, आरक्षण प्राप्त अध्यापको से ही पढ़ेगें वह किसी समान्य जाति के न स्कूल-कालेजो में न पढ़े। ये भी संविधान में डलवा दो।
ऐसा कैसे हो सकता बापू को अब मेरी बात पर गुस्सा आ रहा था।
क्यों नहीं हो सकता है मैने भी थोड़ा गुस्से में कहा।
हो सकता है प्लेन,ट्रेन,बस सब नेताओं एवं आरक्षण पाने वाले तथा न पाने वालो के लिए अलग हो।
मैं तुम्‍हारी बात का मतलब नहीं समझ पा रहा हूँ गहमरी, मेरा सिर पट रहा है साफ- साफ कहो, बापू परेशान होते जा रहे थे।
तब तो पता चले।कितनी योग्‍यता है, और अयोग्‍य कैसे योग्‍य बनते हैं, जब आरक्षण वाले डाक्‍टरो से हारेगी नेताओं की जिन्‍दगीयॉं तभी तो ऑंख खुलेगी। मैं अपने रय में बोले जा रहा था।
यह बात गहमरी जो तुम बोल रहे हो वह कितनी व्यवहारिक है ऐसा कैसे हो सकता है, बापू ने कहा।
क्यों नहीं हो सकता है? कम नम्बर पाकर योग्य होना यह कहॉं का व्यवहारिक है बापू? मैने भी उसी आक्रोश में बोल पड़ा।
क्यों नहीं हैं वह समाज के दबे कुचले लोग हैं बापू फिर बोल पड़े।
बापू तुम्हें लोगो के जेब में, बैंक के लाकरो में, फाईलो और मेज के नीचे, तिजोरीयों में रहते रहते अॅंधेरे की आदत पड़ गई है तुम्हें बाहर की रौशनी नहीं दिखाई देगी, अब मेरा गुस्सा सॉंतवे आसमान पर था।
बापू को मेरी बात लग गई, बोले होश में रहो गहमरी, अपनी औकात से बढ़ रहे हो, मेरे बिना आज तुम्हारे जीवन की कल्पना ही बेमानी है, मैं अॅंधेरे में रहता हूॅं ताकि तुम उजाले में रहो।
बापू जिस उजाले की बात तुम कर रहे हो वह उजाला तो तुम काफी पहले छीन चुके हो, नर्क बना दिया तुमने हिन्दूओं और हिन्दुओं में सवर्ण की जिन्दगी, नर्क बना दिया है। हम तो सूरज के उजाले को भी बादलो के रहम पर पा रहे है, आरक्षण रूपी काले घने बादलो से निकल कर जो हल्‍का सा उजाला आ रहा है उसी से जिन्‍दा है।
अब बापू जान चुके थे कि इस बार पंगा जवाहर से नहीं, अंग्रेजो से नहीं बल्कि एक सिरफिरे अखंड गहमरी से पड़ गया है, धीरे से बोले तुम्हें समझाना ही व्यर्थ है, तुम देश और दलितो के दुश्मन हो, मैं जा रहा हूॅं।
मैं जोर से बोला रूको-रूको कहॉं जा रहे हो अभी तो मेरी बात ही नहीं शुरू हुई।
मैं जोर से बोले जा रहा था।
तब तक मेरी कमर पर एक जोर दार प्रहार हुआ मैं पलंग के नीचे गिर चुका था।
मेरी पत्नी रणचंडी का रूप ले चुकी थी, बापू के चक्‍कर में मेरा हाथ उसके पैरो से बढ़ कर उसके गले तक पहुँच चुका था।
एक काम तुम से ठीक से नहीं होता, पॉंव दबाते दबाते मेरा गला दबाने चल दिये, भागो यहॉं से।
मैं पलंग के नीचे गिरा कभी अपनी चोट को देख रहा था, कभी अपनी रणचंडीका बनी पत्‍नी को, कुछ समझ में नहीं आया धीरे से गेट खोला और बाहर आकर जमीन पर बिस्तर बिछाया और लेट कर बापू और बापू के आरक्षण युक्त भारत के बारे में फिर सोचने लगा जिसका कोई अंत नहीं था।
अखंड गहमरी, गहमर, गाजीपुर

गजगमिनियॉं है दोषी

रावण के साथ जल गई सैकड़ो परिवार की जिन्‍दगीयॉं। हम एक दूसरे पर दोषारोपण करते रह गये। दोषी कौन था इसकी तलाश करते रह गये। सही पूछीये तो दोषी न रेल प्रशासन है, न वह ड्राइवर, न पुलिस, न प्रशासन और ना ही आयोजक। दोषी तो मैं हूँ, अखंड दोषी है इस घटना का,क्‍योंकि वही तो गया था, अपनी गरीबी भूल चंद खुशियों के पल जीने को, ढेले पर बिकते चाट-पकौड़े को पॉंच सितारा होटल के लजीज व्‍यंजन की भॉंति खाने को। वह अखंड भूल गया था कि एक-एक मत पाकर, जिले के, प्रान्‍त के और देश की कमान संभालने वालो की सुरक्षा में लगे सैकड़ो शासन-प्रशासन के कर्मचारीयाें को गरीब जनता की सुरक्षा से कोई सरोकार नहीं।
हादसो का क्‍या है होते रहेगें, जिसका लिखा है वह जाता रहेगा, यह होनी-अनहोनी तो सब काल का चक्र है, इसके लिए क्‍यों कोई दोषी। दोषी हो भी कैसे अखंड जैसे गरीबो के लिए तो संविधान में इतने छेद हैं जिसको देख कर शायद चलनी भी शर्म से पानी-पानी हो जाये।
अखंड को समझना चाहिए था कि रेलवे ट्रैक रेल के लिए होता है, इंसानो के लिए नहीं, उसे समझना चाहिए था कि रावण के जलने के बाद होने वाले धमाको से बचने के लिए वह कहॉं जायेगा। ये गलती उसकी है कि वह ट्रेन की आवाज क्‍यों नहीं सुना। आयोजक, पुलिस तो मुख्‍यअतिथि के सेवा में रहेगें, वह तो बिन बुलाया मेहमान है, जो शायद आयोजको को एक रूपये चंदा भी नहीं दे सकता, ऐसे में अखंड किस अधिकार से किस हक से अपनी सुरक्षा के लिए शासन- प्रशासन पर निर्भर है। दोष अखंड का था सजा उसे मिली, खुद को गँवाकर, अपने परिजनो को गवॉं कर, अपने अंग भंग करा कर। उसे तो खुश भी होना चाहिए कि उसकी गलती पर भी लाशो के सौदागर उसकी लाशो को रूपये से उसे तौल रहे हैं। दिन रात खोज रहे हैं कारण इस घटना का, अपने घर से घटना स्‍थल एक किये हैं, एक दूसरे पर दोषारोपण जैसा महान कार्य कर रहे हैं, ऐसे में आप उनके इस महान कार्य को समझे, उस पर पानी न डाले, उनकी भावनाओं उनके अरमानो को उनपर दोषरोपण कर व्‍यर्थ न जाने दें। मैं जनता से अपील करता हूँ कि गलती किसी की नहीं, गलती केवल उस पागल अखंड की हैं जो अपने खुशियों के चंद पल तलाशने अपने पैरो पर गया था और न जाने किस पर लौट कर आया, अपने घर को सूना कर, चिरागों को बुझा कर।

रेल राज्‍यमंत्री जी

वर्षो बाद आज माननीय रेल राज्‍यमंत्री जी सकलडीहा से बारा तक करोड़ो रूपये की परियोजनाओं का लोकापर्ण और शिलान्‍यास किये। बहुत ही अच्‍छी बात है , खुशी हुई कि आज चार साल 6 महीने के बाद माननीय मनोज सिन्‍हा जी ने गाजीपुर के पूर्व सांसद राधेमोहन सिंह द्वारा जनवरी 2014 में स्‍वीकृत कराये गये गहमर रेलवे स्‍टेशन की लम्‍बाई एवं सुन्‍दरीकरण के कार्य को पूरा किया । वैसे भी मनेाज सिन्‍हा का इन्‍तजार गहमर गाँव बहुत दिनो से कर रहा था। आज मनोज जी सरकारी कार्यक्रम के तहत गहमर आये और गहमर की जनता की आशाओं पर कितना खरा उतरे वह तो गहमर की जनता ही बता पायेगी क्‍योंकि हम तो ठहरे विरोधी खेमा, हर बात गलत ही लगेगी। वैसे आज मनोज सिन्‍हा जी का यह लोकापर्ण और शिलान्‍यास का सरकारी कार्यक्रम मेरे गले नहीं उतरा। अमृतसर में 19 अक्‍टूबर की रात रावण दहन के दौरान हुए हुए रेल हादसे को अभी 40 घंटे भी नहीं बीते। लोगो की माने तो 13 अप्रैल 1919 के यह दूसरा जलियावाला बाग कांड था। जिसमें सैकड़ो लोग अपनी जान गँवा बैठे। सैकड़ो अपाहिज हो गये। सैकड़ लोग अस्‍पताल में जिन्‍दगी और मौत के बीच में फँसे हुए हैं। ऐसे समय में माननीय मंत्री जी का यह कार्यक्रम मानवीय संवेदनाओं की हद में कहाँ तक उचित है मुझे समझ में नहीं आ रहा है। माननीय रेलमंत्री जी शायद यह भूल गये कि आज हर व्‍यक्ति उस घटना को लेकर दुखी है। हर आदमी चाहे वह किसी दल का हो, किसी जाति का हो इस हृदय विदारक कांड को लेकर आहत है।यही नहीं पंजाब में घटना होने के वाबजूद इसका सीधा असर यूपी और बिहार पर पड़ा है, आप जहाँ के प्रतिनिधि हैं वह गाजीपुर, जौनपुर, आजमगढ़ और पड़ोसी राज्‍य बिहार के न जाने कितने घरो के चुल्‍हें बंद हो गये, रावण के साथ जल गया कितनो का सुहाग, कितनो की गोद, माँ दुर्गा के प्रतिमा के साथ विसर्जित हो गये कितनो के अरमान। ऐसे समय में जब माननीय महोदय को अपने विभागीय कर्मचारीयों के साथ कंधा से कंधा मिला कर पूरे घटना पर निगाहें रखते हुए, पीड़ितो को न्‍याय दिलाना चाहिए आप चुनावी आचार संहिता के डर से अपने वर्षो से लंबित पड़े कार्यो को याद करने चले है। माननीय महोदय मृतको को तो लौटा नहीं सकते, मगर आप की कार्य कुशलता आपका अधिकारीयों,कर्मचारीयों के साथ रहना, अस्‍पताल में निगाह रखना कई लोगो की जिन्‍दगीयों को बचा सकता है। माननीय मंत्री जी भले ही यह कार्यक्रम रेल का नहीं था, ड्राइवर दोषी नहीं था, मगर कही न कही इस घटना का जिम्‍मेदार रेल प्रशासन भी है, रेलवे के क्रिया-कलापो में गड़बडी इस घटना की जिम्‍मेदार है। जिससे आप और आपका विभाग, आपके विभाग के अधिकारी अपना पल्‍ला नहीं झाड़ सकते हैं। आपको भी जिम्‍मेदारी लेनी होगी, आप चाहे या न चाहे। आपको आज घटना स्‍थल या दुखी परिजनो के बीच रहना चाहिए, उनके गमो में शरीक होना चाहिए था, ना कि लोकापर्ण और शिलान्‍यास के कार्यक्रम में। माननीय जी घटना में आहत लोग समाज के गरीब तबके से आते थे, रोजी रोजगार की तलाश में परदेश में थे इस लिए आपके विभाग की जिम्मेदारी और अधिक थी, मगर शायद आपकी सोच रही हो कि यह गरीब आपको दे भी क्या सकते हैं।
माननीय मंत्री जी मैं पूरे गाजीपुर जनपद एवं गहमर की जनता की तरह से एक बात अंहकार और अभिमान के साथ-साथ बहुत ही जिम्‍मेदारी से कहना चाहूँगा कि जब 20 नवम्‍बर 2016 को पुरखाया रेलवे स्‍टेशन के पास दलेलनगर के पास इन्‍दौर पटना एक्‍सप्रेक्‍स दुर्घटना ग्रस्‍त हुई तो उस दिन गहमर में पूर्वांचल बचाओं आन्‍दोलन के तहत रेल रोको योजना थी, परन्‍तु जैसे ही इस घटना की सूचना मिली, गहमर गॉंव के लोगो ने इस रेल रोको आन्‍दोलन का विरोध यह कह कर कर दिया कि आज पूरा देश आहत है और आज यदि यह आंन्‍दोलन होता है तो मेरा मंत्री पूरे देश को क्‍या मुहँ दिखाये कि वह जहाँ से सांसद है वहॉं के लोग ही इस प्रकार अमानवीय हो गये है कि उन्‍हें 152 लोगो की जिन्‍दगी से जाने का कोई गम नहीं, वह स्‍वार्थ हैं। इस लिए आज यदि यह आपका कार्यक्रम निरस्‍त भी होता तो सकलडीहा से लेकर गहमर की जनता आप को जितना सिर माथे पर बैठाई है उतना ही बैठा थी। खैर माननीय सिन्‍हा जी आप के लिए मानवीय मुल्‍य कितनी अहमित रखते हैं मुझे मालूम है, लोकसभा का चुनाव हारने के बाद आप गाजीपुर क्षेत्र से गदहे के सींग की तरह गायब हुए, आप उस दौरान आग से तवाह हुए शेरपुर गॉंव में एक दिन नहीं गये, वर्ष 2013 में बाढ़ से त्रस्‍त गाजीपुर जनपद के गॉंवो में एक दिन आपके चरण नहीं गये। 2005 से 2009 तक गहमर के किसान मारे जा रहे थे मगर आपका आगमन नहीं हुआ। 2013 में गहमर के युवको द्वारा किये गये गहमर बचाओ आन्दोलन की आग लखनऊ तक पहुँच गई, मगर उसकी तपिश को आपने महसूस नहीं किया। ऐसे में आपसे मानवीय संवदेना की बात करना बेमानी है।
आप लगे रहें अब चुनाव नजदीक है, मैं आपके द्वारा किये गये विकास कार्यो पर कोई बहस नहीं करना चाहता, क्योंकि मैं विकास दिखाने में यकीन रखता हूँ और समय आने पर दिखाऊँगा भी। मुझे यह महसूस हो रहा है कि गत 2014 लोकसभा चुनावो की थकावट उतर चुकी है, समय कम बचा है 4 साल 6 महीने का कोटा 3 महीने में पूरा करने में लगे रहीये और कामना करीये कि यह चुनाव कोई लहर या कोई ऐसा दाँव लेकर आये जिससे आप की नैया दुबारा पार लगे।
जय हिन्‍द, जय भारत, जय गहमर।

आदरणीय सुप्रीम कोर्ट जी

आदरणीय सुप्रीमकोर्ट जी
हिन्दू धर्म को छोड़ कर जितने भी संबोधन अन्य धर्मो में सम्मान देने के लिए बने है, उन सारे सम्मान सूचक शब्दो से, वाक्यो से मैं अपना को सम्मान ज्ञापित करता हूँ। हिन्दू धर्म के सम्मान सूचक संबोधनो से आपका सम्मान इस लिये नहीं करूगाँ कि आपको हिन्दू धर्म, इसके त्यौहारो, इसकी संस्कृति से बहुत ही नफरत है।आप के भावनाओं एवं आदेशो का सम्मान करना तो हमारा नैतिक धर्म है, हमारी सभ्यता है, या दूसरे शब्दो में कहें तो हम आम जनता की मजबूरी है। आपके आदेशो को मानना ,उनका सम्मान करना, उसको बिना-सोचे समझे पालन करना केवल आम जनता की ही मजबूरी है, क्योकि नेता और अधिकारी तो आपके आदेशों को जूते की नोंक पर रखते हैं, आपकौ झुनझुने जैसा बजाते हैं, आपके आदेशो का दशको तक अवहेलना करते हैं और आप उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाते। वह तो छात्रो पर, चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी पर, गरीब जनता पर अपनी बात थोपने के लिए आप का सहारा लेते हैं। आप भी अपना रोब उन पर और हिन्दूओं पर दिखाते हैं। आप तो सबसे अधिक लाचार हिन्दू और उसके त्यौहारो को समझते हैं, दही-डाड़ी हो, होली हो, प्रतिमा विसर्जन हो, दिपावली हो सब हिन्दूओं के त्यौहार आप की ढेड़ी नजर के भेट चढ़ चुके हैं। मंदिरो के बाजे, त्यौहारो पर कार्यक्रम के आयोजनो पर आपकी मुहर लग चुकी है। राम मंदिर, आपके कलम के नीचे दबा हुआ है। आपको होली में बहने वाला पानी, दही-डाड़ी की दुर्घटना, दिपावली में प्रदूषण, प्रतिमा विसर्जन से नही दूषित, बाजाओ से शोर आपको दिखाई दिये और आपने उनको बंद करा दिया या उनका स्वरूप बदला या समय की पाबंदी लगाई। बहुत से हिन्दू मान्यता पर कुठाराघात करते हुए आपको जरा भी परेशानी नहीं होती। मगर आपको अन्य धर्मो के बकरीद, जलीलकट्टू, मुहर्रम में मातम का अंदाज सब कुछ आप की निगाह में जाजय है, उसके विषय में आप मौन रहते हैं, आपकी नशे दुखने लगती है।
ऐसे माननीय सर्वोच्च न्यायालय महोदय मैं अखंड गहमरी अभी तक यह सोच रहा हूँ कि आपने हिन्दू महिलाओं द्वारा माथे पर लगाये जाने वाली बिन्दी पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया, उससे चर्म रोग का खतरा बढ़ता है। आप ने अभी तक व्रतो पर पावंदी क्यों नहीं लगाई खाली पेट रहने से गैस होता है। आपने करवा चौथ एवं अन्य वो त्यौहार जिसमें पति पूजे जाते है बराबरी के अधिकार के तहत प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया, ऐसे कई रीति-रिवाजो पर भी प्रतिबंध आपके आदेश की राह देख रहे हैं। हम आप से यह आशा करते हुऐ अपना पत्र समाप्त करते हैं कि आप जल्द से जल्द हिन्दूओ के अन्य त्यौहारो, संस्कृति, आयोजन पद्धति पर प्रतिबंध लगाते हुए हिन्दूओं को अपने ही घर में बेगाना करने की प्रक्रियाओं को जारी रखेंगे तथा अन्य धर्मो, नेताओं एवं अधिकारियों को अपने आदेश को ठेंगे पर रखने हेतु सम्मानित करेगे। उनके विरोध को सिर माथे पर बैठाये, उनके लिए कलम का प्रयोग नहीं करेग।
‌जय हिंद, ,akhand gahmari

नाराज हुई गजगमिनियॉं

एक तो आज सुबह से मेरी वाइफ होम नाराज चल रही थी, बात बात में ताने दे रही थी, मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था उसकी नाराजगी का कारण, तभी मुझसे एक गलती हो गई। मुझे अपने साले ब़जेश का एक परिचय पत्र बनाना था। वह परिचय पत्र मुझे कुछ ही घंटो में उसे भेजना था। मैने सोचा उसका काम जल्‍दी से कर दूँगा तो शायद श्रीमती जी की नाराजगी कुछ कम हो जाये, भाई प्रेम के कारण मेरी मेहनत नज़र आ जाये, चाय पान का बंदोबस्‍त हो जाये। मगर तकदीर को क्‍या कहें, एक फोन आ गया, मैं बातें करता रहा और आई कार्ड बनाता रहा, बना कर उसे भेज दिया, और अपना काम की फेसबुक प्रोफाइल पर पोस्‍ट कर दिया। पोस्‍ट हुए और भेजे दो मिनट नहीं बीते होगें कि मेरी श्रीमती जी का फोन आ गया। मैं तो खुशी से पागल हो गया कि इतनी जल्‍दी रिसपान्‍स मिल गया, मगर अब क्‍या बताये, कसम गजगमिनियॉं की, मेरी पत्‍नी ने फोन पर जो रणचंडिका का रूप अपनाया जैसे लगा फोन में घुस कर मुझे सैडिंलो से पीट देगी। मैने कहा कोई बड़ी गलती नहीं है उसे सुधारा दूगॉं। मगर वह कहॉं मानने वाली थी वह अपने धुन में बोले जा रही थी कि एक तो कोई काम ढ़ग से होता नहीं भैया के आई कार्ड में नाम लिखा उनका और फोटो लगा दिया गदहे कि और दूसरे कौन सी ऐसी आफत आ गई जो करवा चौथ की शाम आप ट्रेन में रहोगें।
मैं सफाई पर सफाई दिये जा रहा था कि तुम्‍हारे भाई की शक्‍ल और गदहे की शक्‍ल में खास र्फक नहीं है दोनो फोटो अगल बगल थी, फोन के चक्‍कर में लग गई मैं उसे सुधार दूगॉं, और ट्रेन में जाना मजबूरी है विदिशा में रेखा आन्‍टी का प्रोग्राम है, दिन में ट्रेन पकडेगें तभी तो पहुँच पायेगें, मगर वह कहॉं मानने वाली थी आफत मचाये रही, मैं तब तक दूसरा आई कार्ड बना चुका था, ठंडे दिमाग से उसे चेक किया, और उसके दूसरे वाटस्‍प पर भेजते हुए कहा कि इसको चेक करों, भाई साहब अब क्‍या बताये वह दूसरा आई-कार्ड देखते ही भड़क हुई, 2 बजे ही स्‍कूल से चल पड़ी और आते ही अपने चरण पादुका का प्रयोग मेरे सिर पर कर दिया, क्‍योंकि मैने अपने साले के दूसरे आई कार्ड में तस्‍वीर गदहे को बदल कर उल्‍लू की लगा दिया और तो और करवाचौथ वाले दिन का टिकट अभी तक जेब में था, जिसका अर्थ वह अपनी बहनो के साथ्‍ा मिल कर गलत लगाये जा रही थी. और अब पता चला उसके तीन दिन से मुहफुलौवल का कारण क्या ? हे अल्‍ला तेरा ही सहारा है।
अखंड गहमरी

गजग‍मिनियॉं का सासंद गांगा पार का

दूल्‍हा गंगापार के।।
तथाक‍थित ईमानदार,स्‍वच्‍छ छवि, विकासपुरूष रेल राज्य एंव दूर संचार मंत्री, सांसद गांगा पार के आदरणीय मनोज सिन्हा जी आपको दिपावली की बधाईयॉं एवं शुभकामनाएं, आशा यही करता हूँ कि इस बार कुछ ऐसा न हो कि आपको मजबूरी में आप को वोट देना पड़े। वैसे माननीय जैसे आप के लिए दो चार गॉंव की नाराजगी खुशी मायने नहीं रखती वैसे ही आपके लिए दो चार दस वोट भी मायने नहीं रखता। इस का मुझे और गहमर वासीयों को फर्क है।
वैसे माननीय इस पोस्‍ट को पढ़ कर आपके और माननीय मोदी जी के भक्‍त और वाराणसी में 9 जुलाई को हुए आई0डी0सेल कार्यकर्ता बैठक में भाग लेने वाले कार्याकर्ता हमारे ऊपर चढ़ बैठने को तैयार है। ओमप्रकाश और कॉंग्रेस की तुलना कर बैठेगें।
माननीय मंत्री जी आपने जनपद का बहुत विकास किया। एक बात कि कसक है कि हमारे गहमर में क्‍या किया आपने, मैं तो माननीय कुएं का मेढ़क हूँ, बस गहमर की बात करता हूँ। ओम प्रकाश सिंह हमारे बिरादर थे, एक ही गोत्र के थे उसके बाद भी हमने टी0वी0 रोड को लेकर जब तक वह मंत्री रहे उनका विरोध किया, टी0वी0रोड बन गया विरोध खत्‍म, वो तो हमारे गहमर के एक ऐसी चीज दे गये जिसकी कल्‍पना भी नहीं था, वह हैं पक्‍का गंगाघाट। हम तो ठहरे घुमक्‍ड प्रवृति के आदमी गौमुख से लेकर गंगासागर तक एक भी ऐसा गॉंव नहीं देखा जहॉं के घाट पक्‍के हो, यह एक अध्‍यया था। हमारा विरोध खत्‍म था और जो उनकी गलतीयॉं थी उसका सबक उनको हारा कर दिया गया। तो माननीय हमारे गहमर को क्‍या दिया आपने। आपने जिस धूमघाम से स्‍टेशन की लम्‍बाई का पीताा काटा उसका श्रेय आप ले लें लेकिन हकीकत तो आप भी जानते है कि वह आपका प्रोजेक्‍ट था ही नहीं वह तो माननीय राधे मोहन सिंह जी का प्रोजेक्‍ट था। गहमर रेलवे स्‍टेशन पर जिस ट्रेन कामाख्‍या एक्‍सप्रेक्‍स के ठहराब का श्रेय लेते है वह भी राधेमोहन सिंह की देन है। आपने दिया क्‍या रलेमंत्री होते भी वही एक साप्‍ताहिक गरीब रथ। आप गहमर आते है तो ट्रेन की मॉंग पर 15 मिनट के नुकसान की बात करते है, तमात ज्ञान की बाते बघारते है, और वही अगले ही दिन कछवा रोड में दो -दो ट्रेन का ठहराब देते हैं, वहॉं आपका ज्ञान कहॉं चला गया, क्‍या वहॉं ट्रेने लेट नहीं होती । गहमर के सेना के जबान वर्षो से देश की सीमाओं पर जाने वाली महत्‍वपूर्ण ट्रेनो का ठहराव मॅागते मॉंगते कु्छ तो सेवानिवृत हो गये, कुछ ने तो कहना छोड दिया। अपने एक इन्‍टर सीटी भी चलाई वो भी राजधानी से कम नहीं। अापने कहा कि हर जगह स्‍टापेज हो जाये तो इन्‍टरसीटी का मतलब क्‍या तो महोदय अन्‍य इन्‍टरसीटियों को भी देख लें जरा। खैर कोई बात नहीं गहमर ने कभी किसी सी भीँख नहीं मॉंगी, न आपसे मॉंगेंगा। आपको दिये अपने पत्रको का जबाब सूद समेत लेगा। महोदय यदि गहमर की रेल सुविधाओं को देखें तो आप से अच्‍छा राधे मोहन सिंह ही थे जो केवल सांसद रहते हए गहमर को दो दो ट्रेने दिये, आरक्षण काउन्‍टर दिये। प्‍लेटफार्म की लम्‍बाई दिये। खैर गहमर की बात छोडीए महोदय दिलदारनगर, जमानियॉं में रेलवे फाटक बंद होने से लम्‍बा लम्‍बा जाम लगता है, मगर आपने एक भी ओवरव्रज बनवाने की बात ही नहीं सोची, जबकि वह एन एच भी है। महोदय हमारे गहमर में पूर्वी पश्‍िचिम दो पम्‍प कैनाल है, मुझे मालूम है कि जब तक उसमें केन्‍द्र का पूर्ण हस्‍तक्षेप न हो न उसकी बोरिंग गंगा में दूर जा सकती है और न उसका जिणोद्वार हो सकता है आपने उसे देखा ही नहीं। गहमर के किसानो ने आपकी ही सरकार के द्वारा तय किये गये एवं बाद में उसे कही और बनवाये गये गांग पर पीपे की पुल की मॉंग आज भी करते है, मगर शायद आपके मन में यह बात गॉंठ कर चुकी है कि मॉंग गहमर ही तो करता है, सुनने समझने की जरूरत ही नहीं। माननीय गहमर ने आपको अकेले 17 वोट दिया था इस लिए माननीय गहमर से आपका बहुत प्रेम है, आप गहमर के लिए जान नेवक्षावर करते हैं, इस लिए तो अपने जगह जगह रेलवे की कई योजनाओं, कारखानो का शिलान्‍यास किया मगर अपने जमानियॉं और गहमर क्षेत्र को इससे विमुख रखा,इसका कारण भी मैं जानता हूँ आपको मालूम है कि यहॉं के लोगो को काम नहीं चाहिए, इस लिए आपकी 70 सालो में नही हुआ तो किसी ने नहीं कहा कि तर्ज पर आपने भी जमानियॉं गहमर को औद्योगिक क्षेत्र बनाने का कोई प्रयास नहीं किया। आने कई महापुरूषो के नाम से गाड़ीयॉं चलाई, सुहेल देव और न जाने कौन कौन मगर भारत में जासूसी उपन्‍यास के जनक गोपाल राम गहमरी, और विश्‍वनाथ सिंह गहमरी दिखाई नहीं दिये। लोग कहते है कि गाजीपुर पर बनने वाला रेलबिज विश्‍वनाथ सिंह के नाम पर होगा, तो माननीय मंत्री जी सपने देखना अच्‍छी बात है। वैसे माननीय मंत्री जी आपके गहमर प्रेम का उदाहरण इससे अच्‍छा क्‍या होगा कि जहॉं तक मेरी यादशास्‍त है आप मंत्रीय बनने के बाद 5 या 6 बार गहमर चार साल में आये, जिसमें तीन बार गहमर रेलवे स्‍टेशन पर लाली पाप देने, एक बार पकड़ीतर अपने स्‍वागत में, एक बार हमारे रोबेट विधायक जी फक्‍शन में औएक आध बार आये होगे आप तो याद नहीं। आप के शासन काल में चार तो मैं अपनी ऑंखो से देख रहा हूँ गहमर, भदौरा, दिलदारनगर, जमानियॉं के दूरसंचार केन्‍द्र किस हालत में है, जमानियॉं दूर संचार केन्‍द्र की तो बिलडिंग में बैठने से डर लगता है। माननीय मंत्री जी अापने कहा कि आप स्‍वर्गीय कल्‍पनाथ राय, स्‍वर्गीर्य कमला पति त्रिपाठी जी के तरह विकास किये है, तो अब यही कहूँगा कि अपने मुहँ मिया मिठू की कहावत चरितार्थ करना मेादी सरकार के मंत्रियों की आदत है। आपके ही के पार्टी के एक वरिष्‍ठ नेता और मेरे बड़े भाई कहते है कि आपने बहुत विकास किया 30-:30 लाख की लागत से टायलेट बना दिया, अच्‍छा किया आपने खाने की व्‍यवस्‍थ्‍ाा भले नहीं किया, निकालने की व्‍यवस्‍था काँफी अच्‍छे तरह से कर दिया।
माननीय मंत्री जी आपके गंगापार के विकास को हम गंगापार वाले वर्षो तक याद रखेगें। वर्ष 1989 में एक फिल्‍म आई थी दूल्‍हा गंगा पर के, उस समय मैं 9 साल था और मैं उस फिल्‍म को नहीं देखा तो इतिहास ने सोचा कि अब यदि वह फिल्‍म इसको दिखाई जाये तो न इसको मजा आयेगा, इस लिए उसने मुझे एक हकीकत के धरातल पर बना मिलते जुलते नाम की एक फिल्‍म बना कर दिखाई, जिसका नाम था सांसद गंगा पार के और आपने अपने कार्य और अपने चरित्र से सिद्व कर दिया कि आप वास्‍तव में सांसद गंगा पर के ही है।
अत: माननीय सांसद गंगा पार के मनोज सिन्‍हा जी पत्र के अंत में यही कामना करते है कि आप इसी तरह गहमरवासीयों को लालीपाप दिया देते रहें और अपना उल्‍लू सीधा करने का प्रयास करते रहें।
जय सांसद गंगापार के, जय आई डी सेल के कार्यकर्ता, जय गहमर।।

गजगमिनियॉं ने किया बुरा हाल

पिछले दिनो मैं काफी व्‍यस्‍त था। मेरे बेटे के बाबा की पत्‍नी के समधी के बेटे के बाप की बेटी ने और मेरी पूर्वप्रेमिका गजगमिनियॉं ने मिल कर जो मेरा हाल किया था, अल्‍लाह करें वैसा ही हाल आपका भी हो, उससे 20 हो 19 नहीं। सुबह से लेकर शाम तक, शाम से लेकर रात तक मेरी जो हालत हुई, वैसी तो मेरे मित्र गदहे की भी नहीं होती। क्‍या सोचा था क्‍या हो गया, सोचा था कि 26 साल बाद दीपावली मनाने जा रहा हूँ, खूब पटाके छोडूगॉं, झालर बल्‍ब लगाऊगॉं मगर सारे अरमान पर पानी पड़ गया। एक तरफ तो मेरी वाइफ होम ने घर के काम करवा करवा कर मेरी हालत को पंचर से भी बद्तर कर दिया, दूसरी तरफ मेरी पूर्व प्रेमिका गजगमिनियॉं ने मेरी दीपावली पर आये वीडियो पर वीडियो दिखा कर हालत भ्रष्‍ट टायर सी कर दिया। दीपावली पर चाइ‍नीज झालर नहीं लगेंगें दीये की व्‍यवस्‍था और ऐसा गरीब जो दीये बेच कर कपड़ा खरीदे उसे खोजने में मजदनिया पुर की गलियों में खाक छनवा दिया।
जैसे तैसे अपनी वाइफ होम के सारे आदेशो का अक्षरांश पालन कर, अपनी गजगमिनियॉं के घर भारतीय लोकसंस्‍क़ति की दीपावली देखने पहुँच गया। सोचा की बड़ी शान्ति होगी उसके घर, पटाखों का शोर और धूँआ नहीं होगा, चाइनिज झालर के चुभते प्रकाश की जगह, गरीबो की दीपावली मनाने के लिए खरीदे गये मिट़टी के दीये से रौशन होगा उसका घर, बैठ कर आराम से उस दीये की रौशनी में स्‍लेफी लेते हुए मुगले आजम का डायलाग वो जो मुमताज सलीम को देखते हुए मोमबत्‍ती लेकर बोलती है, अच्‍छा आपन को भी नहीं याद, जाने दीजिए हम अपना ही कुछ सोचते हैं, आखिर प्‍यार तो मेरा है न, हॉं ** तुम्‍हारे चॉंद से मुखडा, उजाला कर दिया इतना। दिखे सारा जहॉं मुझको, अधेरी रात शरमाये।।
मैं तो अपने सपने की दुनिया में चला जा रहा था अपने पूर्व प्रेमिका के घर, रास्‍ते में मुझे दीपावली के वाटस्‍प और फेशबुक ज्ञान केन्‍द्र द्वारा फैलाई गई बातो का असर साफ दिख रहा था, जगह जगह मिट्टी के दीये की जगह झालर दिखाई दे रहे थे। पैसे में आग लगाने और न प्रदूषण फैलाने वाले संदशो का असर भीषण आतिशबाजी में साफ दिख रहा था। मैं यह सब देखकर मन ही मन अपनी प्रेमिका को धन्‍यवाद दे रहा था कि कम से कम वह तो इन सब से दूर है। तभी रास्‍ते में मेरी एक और पूर्व प्रेमिका मजगमिनियॉं सोलह श्रंगार किये दिखाई दी, मैं बच कर निकलना चाहा मगर उसने तो मुझे रोक और 5 दिनो से न मिलने की सज़ा के रूप में मुँह से तो कुछ न बोली पर अपने चरण पादुका का प्रयोग मेरे ऊपर कर सीधे चलती बनी। अच्‍छा किया मेरा चेहरा काम की वज़ह से सफेद हो गया था, अब लाल हो गया, जिससे अब मैं बुलंद दिखने लगा। खैर मैं अब अपनी पूर्वप्रेमिका गजगमिनियॉं के प्रवेश द्वार पर पहुँचने वाला था। वह दूर से ही मुझे छत पर दिखाई दे रही थी, उसका चेहरा 3000 हजार वाट की बल्‍की चमक रहा था। तभी उसके छत पर तेज बिजली चमकी और तेज आवाज आई , मुझे लगा कि यह पटाखे की आवाज है मगर मुझे अपने प्‍यार पर भरोसा था। वह मुझे देख चुकी थी, सिलसिला फिल्‍म में रेखा जैसे दौड़ कर अमिताभ को पकड़ी है उसी तरह वह दौड कर नीचे आई, मुझे पकड़ लिया, घर ले गई। उसका पूरा घर झालरो से प्रकाशमान था। जले पटाखो की लम्‍बी कतार और नये पटाखो का पूरा स्‍टाक रखा था।
मैं तो कुछ बोल भी नहीं सकता था, न पूछ सकता था, क्‍योकि आज दीपावली की सुबह वाइफ होम से, शाम को पूर्व प्रेमिका मजगमिनियॉं पीट चुका था, अब रात को गजगमिनियॉं से पीटने की ताकत नहीं बची है, इस लिए आपसे तो कह सकता हूँ कि आप ही मेरी तरफ से उससे पूछ लें कि आखिर सोशलमीडिया और समाज में मिट्टी के दीये, गरीबो की दीपावली और पर्यावरण प्रदूषण की लंम्‍बी लम्‍बी बाते करने वाले आखिर हकीकत के धरातल पर इस को क्‍यों नहीं लाते, क्‍यों बस एक बहाना रह जाता है, क्‍या करें भाई साहब बच्‍चे मानते ही नहीं, उनकी खुशी के लिए थोडा करना पड़ता है और बिना मॉंगे ही देने लगते हैं लम्‍बी चौैड़ी सफाई।
खैर मैं अपनी प्रेमिका की खुशी में अपनी खुशी मानने को मजबूर था, उसके चॉंद से चेहरे में डूब कर, लड्डू और सूरन की सब्‍बी खाने चल दिया। वह मुझे खिलाती मैं उसे खिलाता, हो गई दीवाली, ज्ञान की बाते चंद जगहो पर जलते चंद दीपको और भारी मात्रा में उड़ते राकेटो में जल चुका था। रह गया था तो वही दिखावा वही आडंम्‍ब।
जय हिन्‍द, जय भारत, जय गजगमिनियॉं जय वाइफ होम।।

गजगमिनियॉं का सा‍क्षात्‍मकार

आज ही सुबह मैं तैयार होकर अपने आफिस में बैठ गया था। मेरी पूर्व प्रेमिका गजगमिनियॉं ने बताया था कि आज तुम्‍हारी बढ़ती लोकप्रियता से प्रभावित होकर जलनिस टीवी चैनल वाले तुम्‍हारी साक्षात्‍कार लेने आ रहे हैं।
ठीक 11 बज कर 11 मिनट 11 सेकेन्‍ड 11 पल पर जलनिस टीवी के रिपोर्ट उल्‍टांन बकबकी मेरे धरधरनियॉंपुर वाले आफिस में आ गये। फिर क्‍या था मैं सूट बूट पहन कर गले में फॉंस लगा कर आराम से बिलकुल जेन्‍टीलमैन की तरह बैठ गया। बगल मे मेरी गजगमिनियॉं भी आ चिपकी। मेरी टीवी पर साक्षात्‍कार की खब़र पाकर मेरी एक पूर्व प्रेमिका मजग‍मिनियॉं भी आ गई मगर उसने गजगमिनियॉं को मुझसे चिपकते देख दिया। फिर क्‍या था, गुस्‍से में चेहरा लाल कर वह उल्‍टे पॉंव लौट गई, मैं उसे बुलाने के लिए बाहर निकलने वाला था तब तक लाइटे जल गई, मेरे कालर में एक काला सा छुईमुई कीड़े से कुछ लगा चिपका दिया गया।
तभी बम विस्‍पोट हुआ, मेरी वाइफ होम आ धमकी, मेरी बगल में गजगमिनियॉं को देख कर वह चन्‍द्रमुखी से ज्‍वालामुखी, बंगालामुखी और न जाने कौन कौन सी मुखी बन गई पता ही नहीं चला। इसके पहले कि मेरा पहला साक्षात्कार अंतिम साक्षात्‍कार बनता आज पहली बार हसुआ अपनी तरफ खीचता है कहावत को चरितार्थ होते ‍देखा जब भभुआ से आये डा रमेश तिवारी जी ने बड़ी आसानी से मेरी ज्‍वालामुखी से गिटपिट बात कर उसको कन्‍ट्रोल कर लिया, मैं तो उनकी भाषा भी नहीं समझ पाया, दिमाग था नहीं जो लगाता यह फिर यह सोच कर दोनो एक ही प्रान्‍त के हैं, कुछ कहा सुना होगा, मैं चुप हो गया। मेरी वाइफ होम मेरे बगल मे बैठी और शुरू हुआ मेरा पहला साक्षात्‍कार।
उल्‍आन बकबकी- अापका हमारे न्‍यूज चैनल में स्‍वागत है, आप हमारे दर्शको को ये बताईये कि आप लिखते है
मैं- मैं हिन्‍दी के अक्षर लिखता हूँ।
उलटान बकबकी - मेरा मतलब आप कौन सी विधा लिखते हैं जैसे आप व्‍यंग्‍य लिखते हैं
मैं ' नहीं व्‍यंग्‍य तो सुभाषचंदर सर, गिरीश पंकज सर, अरूर्ण अर्णव खरे सर डा; रमेश तिवारी सर जैसे लोग लिखते हैं।
उलटान बकबकी- तो आप क्‍या लिखते हैं लघुकथा‍ लिखते हैं नहीं
मैं'- वो तो सतीश राज पुष्‍करना सर और योगराज प्रभाकर सर लिखते है,
उलटान बकबकी- वह थोडा गुस्‍से में तो क्‍या समीक्षा लिखते हैं
मैं- नहीं वो तो धनश्‍याम मैथिल अमृत सर लिखते हैं।
उलटान बकबकी'- ओह तो आप काव्‍य लिखते है जैसे गजल।
नही मैं गजल नहीं लिखता वो तो दानिश जयपुरी भोपाल से लिखते है।
उलटान बकबकी - निश्‍चित आप गीतिका लिखते होेगे
मैं नही वो तो प्रोफेसर विश्‍वभर शुक्‍ल लिखते हैं।
उलटान बकबकी - मेरे भाई तब क्‍या तुम गीत लिखते हो
मैं - नहीं रिपोट साहब वह तो मेरी मॉं कान्ति शुक्‍ला लिखती हैं।
उलटान बकबकी' - आखिर मेरे बाप यह बताओं आप क्‍या लिखते हो
मैं'-- बताया तो मैं शब्‍द लिखता हूँ,
उलटान बकबकी-- चिच्‍लाते हुए आखिर उस शब्‍द का कुछ तो नाम होगा।
मैं - हॉं नाम है न क, ख ,ग वही लिखता हूँ।
उलटान बकबकी -मुझे समझाते हुए देखी अक्षरो के समूह से शब्‍द बनाता है ये आप जानते है, और शब्‍दो के समूह से वाक्‍य बनाता है जिसका प्रयोग आपने कक्षा दस मे किया होगा, किया है कि नहीं उसने कहा।
मैं - नहीं किया कक्षा दस में क्‍योकि करता तो हिन्‍दी में तीन साल फेल नहीं होता और चौथे साल हाईस्‍कूल पास भी किया तो चोरी से।
उलटान बकबकी- तो आप लिखते कैसे क्‍या है, पब्लिक पढ़ती क्‍या है आपको कह कर बुलाती हैं।
मैं - उलटान जी नास्‍ते का समय हो गया चलीये नास्‍ता पानी कीजिए फिर बैठेंगें आपके सवालो का जबाब देने ब्रेक के बाद
उलटान बकबकी- मेरे बाप मेरे को अब सवाल नहीं पूछना है, वह बाल नोच चुका था, इसके पहले की वह अपने कपड़े फाड़े में दोपहर के डीनर पर जा रहा हूँ आता हूँ ब्रेकफास्‍ट के बाद।
तब आप सोचीये मैं क्‍या लिखता हूँ।

भॉंग पीकर बैठे हैं क्‍या गजगमिनियाँ

कुछ दिनो से मैं बहुत व्यस्त था। अब आप सोच रहे होगें कि कौन सा मैं मोदी जी हूँ जो भ्रमण और मीटिंग के साथ-साथ चुनाव में झूठ बोलो आन्दोलन के तहत व्यस्त हूँ ? तो आप गलत है। मैं उस सेवा में व्यस्त था जो मोदी जी कभी नहीं कर सकते। बिल्कुल सही, बिल्कुल सही सोचा आपने। मैं वास्तव में पत्नी सेवा में वयस्त था। मैं पत्नी सेवा दल के अध्यक्ष रमेश तिवारी जी के कथनानुसार पत्नी सेवा से बढ़ कर संसार में कोई सुख नहीं है, सभी को यह करना चाहिए का न सिर्फ पालन करता हूँ बल्कि 'सुबह- सुबह पत्नी के सैंडिल अथवा झाडू से पिट कर घर से निकलने वाले व्यक्ति के सफलता का प्रतिशत अधिक होता है,चोरियन न्‍यूज चैनल द्वारा कराये गये इस सर्वे पर विश्वास भी करता हूँ ।यही कारण है कि मैं पत्नी साधना में लीन रह कर जो आन्नद ,नूतन कार्य की परिकल्पना मात्र से प्राप्त होता है, प्राप्त करता हूँ। रोज की भाँति आज भी सुबह-सुबह मैं अपने वाइफ होम की सेवा से निवृत होकर बबलू भैया के ईट भट्ठे पर बैठा ही था कि मेरी पूर्व प्रेमिका गजगमिनियाँ दूर से ही विकराल रुप में आती दिखाई दी। उसके विकराल रूप देख कर मैं होने वाले घटना की कल्‍पना मात्र से मैं मन ही मन हनुमान चालीसा का पाठ करने लगा, तभी मन में विचार आया हनुमान जी तो ठहरे बाल ब्रहृमचारी, वो क्यों इस प्रेम प्रसंग के विवाद में पड़ेगे। मैनें कृष्ण भगवान को याद किया उन्होंने भी हाथ खड़े कर दिये। तब तक तूफान सामने आ चुका था और मेरे हसीन से चेहरे पर अपने 9 नम्बर की सेडिंल से कही 9 कही 6 कही 99 कही 96 तो कही 66 और 69 का निशान दे कर चीखते हुए बोल चुका था '' नसपीटे तूँ यहाँ मर रहा है मैं तुझे पागलो सा खोज रही हूँ। मेरी क्या मज़ाल थी जो उसकी चीख को चीख कहता जबकि उसकी चीख से बबलू भैया के भट्टे के ईट के चट्टे चटक कर सैकड़ो ईंटो का मिलाप जमीन से करा चुके थे। मैंने अपने दर्द को पान की गिलौरी में रख कर चबा गया और अदंर से पिपरमिंट की तरह ठंडक लाते हुए उसकी आँखो में आँखे डाल कर'' कहो प्रिय इस चाँद से चेहरे पर सूरज की प्रचंड ज्वाला क्यों? मेरी ने अपना सिर झटक कर गुस्से का इजहार किया। मैने हार नहीं मानी और उसके बालो को सहलाते हुए मसकरी कर बोल पड़ा. हे प्रेम की देवी तुम्हारे इस प्रचंड रूप की ज्वाला में अखंड का दिल खंड- खंड हो रहा है, और ऐसा हो गया तो कहाँ से मजबूत जोड़ो वाला फेविकाल लाओगी..इस लिए अपने क्रोध की अग्नि में मेरे प्रेम का जल प्रवाहित करो प्रिय। पारा कुछ डाउन आया, मुझे संतुष्टि मिली..तभी आग फिर दहकी, मैं ठिठका.. ये बताओ उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्री और अधिकारी कौन सा भाँग पीते हैं? जल्दी बताओ नहीं तो सामने पड़े ईटो से तुम्हारा मुहँ कूच दूँगी.।गजगमिनियाँ का जोर से यह चिल्लाना था कि पास खड़े बबलू भैया अपने को ईंटो के पीछे छुपा लिये। मुझे तौ पता.नहीं है प्रिय, मगर आज तुमको क्या हो गया है, चेहरा लाल और बातें बहकी-बहकी, कहीं आज रंगचोटई बाबा तो नहीं मिल गये? नहीं मुझको कुछ नहीं हुआ, न कोई मिला, तुमसे जो पूछा बस वो बताओ। मेरी गजगमिनियाँ क्रोध से काँपते हुए बोली। मैं समझ चुका था कि आज गजगमिनियाँ का टेंपर हिटलट से अधिक टाइट है। मैंने उसके टैंम्पर को नीचे लाने का एक और प्रयास किया, सुनो मेरी बात , तुम तीन महीने से UpTet की परीक्षा में इस कदर वयस्त थी कि मिली ही नहीं, अब तो पेपर हो गया, चलो लतियावन भाई के होटल में चल कर कैंडल लाइट लंच करते हैं। तड़ाक उसका हाथ घूमा और मेरे प्‍यारे प्‍यारे गालो को लाल कर गया, सीधी बात समझ मे नहीं आती मैं पूछ रही हूँ कुछ, वह चिल्‍लाई।
मैं समझ चुका था कि आज मेरे प्रेम रूपी वर्षा की फुहार उसके अंदर लगी किसी आग को बुझाने में ना काफी है।
तभी उसने मेर गालो को अपने हाथो से सहलाने लगी, उसके ऑंखो में अॉंसू आ गये थे, मैं दहल गया। आज इस शेरनी को क्‍या हो गया। तब तक पास खड़े बबलू भैया ने हमें उसे अंदर अपने शेड में ले जाने का ईशारा किया। मैने उसके हाथो को पकड़ा और उसे अंदर ले आया, पास रखे जल से उसके चॉंद जैसे मुखड़े पर आये अश्‍को की लकीरे साफ कराई।
अब वह मेरे कंधे पर बिलख बिलख कर रोये जा रही थी। कुछ रोने के बाद उसने कहॉं , बताओं मेरे पूर्व प्रेमी खरखड़ी आखिर हम लोगो की खता क्‍या है यही कि हम उत्‍तर प्रदेश में रहते हैं और उत्‍तर प्रदेश की परीक्षाओं पर विश्‍वास करते हैं। मैं समझ चुका था कि उसके टैट के परीक्षा में इस बार भी कुछ गलत हुआ है। ये मेरे प्‍यार की देवी बताओं जरा पूरी बात मैने प्रेम की परिभाषा को प्रदर्शति करते हुए उससे कहा।
मैं बिना रूके पूछ पडा कि परीक्षा कैसी गई। मेरे इतना सुनते ही वह फिर भडक गई, बोली परीक्षा तो तब हो जब परीक्षा लेने वाला परीक्षा को परीक्षा की तहर लें। वह तो बदला निकाल रहा है।
मैं पूरी बात जानना चाहता हूँ मैने भी अब गंम्‍भीरता का लिवाादा ओड़ लिया था। वह बोल पडी पहले परीक्षा मे गलत प्रश्‍न पूछे जाते हैं, एक एक प्रश्‍न जिनके दो-दो, तीन-तीन विकल्‍प सही हो दिये जाते है। और फिर भॉंग पी कर उसकी उत्‍तर सीट जारी की जाती है, जिस पर पहले ही कह दिया जाता है कि आप्‍पति डालो।
मैं उसके चेहरे की तरफ देखे जा रहा था, और वह बोले जा रही थी।
जब आप्‍पति डाली जाती है तो दारू के नशे में बैठे लोग बिना सोचे समझे अंतिम निर्णय सुना दे ते हैं, कि बस एक दो प्रश्‍न ठीक होगें।
मैने कहा कि यह तो प्रकिया है इस में परेशान होने की क्‍या बात है, ये तो‍ पिछले साल भी हुआ था प्रिय, तुम तो इलाहाबाद से दिल्‍ली तक लड़ी, फिर इस बार क्‍या परेशानी है।
हॉं लड़ी थी तुम्‍हारा क्‍या जाता है हम खेत बेच कर लडे, या बच्‍चों की खुशियॉ लुटा कर तुम्‍हारा क्‍या जाता है, तुम तो सरकार हो तुम्‍हारे पास तो फौज है , क्‍या हुआ पिछले साल का सिंगल बेच, डबल ब्रेच, सुप्रीम र्कोट होते हुए आज तक मामला पेडिग, और फिर तैयारी अब वही क्रम की, मन तो करता है कि क्‍या करूँ? बोलते बोलते उसके दॉंत दॉंतो पे चढ गये, क्रोध की अग्‍नी से चेहरा लाल हो गया । मैं 5 कदम पीछे हट गया क्‍योकि अभी तो उसने शब्‍दो से ही मुझे सरकार समझ कर प्रहार किया हैा यदि कही उसने बबलू भैया के पास रखे ईंटो से सरकार समझ कर प्रहार कर दिया ताे मेरी वाइफ होम कहॉं जायेगी मेरे तो चेहरे का इतिहास और भूगोल ही बदल जायेगा।
फिर मुझे भी बैठ कर सड़क के किनारे आते जाते लोगो से कहना पड़ेगा कि मेरी पूर्व प्रेमिका के लिए हुए जख्‍़मों के ईलाज के लिए एक हजार रूपये दे दो बाबा, तुम्‍हें भी तुम्‍हारी पूर्व प्रेमिका मिलेगी। तभी वह चीखी कहॉं खो गये मुगेंरी लाल मेरी बाते सुन भी रहे हो या, आगे के शब्‍द उसने अधूरे छोड दिये
मैं पूरी तन्‍मयता से सुन रहा हूँ प्रिय लोग उतनी तन्‍मयता से कुछ नहीं सुनते ।
तो सुननो, समझो और उपाय बताओं उसे ऑंखे दिखाते हुए कहा।
मैं केवल सर हिला सका। मेरे दिल की मलिका ने फिर कहॉं, कि मैं सुबह घर का काम करती हूँ, स्‍कूल जाती हूँ, पढाती हूँ , बी0एल0ओं की डियुटी और सर्वे करती हूँ, रात में घर का काम और उसमें में समय निकाल कर गॉंव के महोैल में पढाई करती हूँ, न कोचिंग, न टियूशन और जब परीक्षा आता है तो उल्‍टे सीधे प्रश्‍न, उल्‍टे सीधे जबाब, उल्‍टे सीधे आन्‍सर सीट आखिर क्‍या चाहती है तुम्‍हारी सरकारें, ?
मैं मंद मंद मुस्कुराते बोल पड़ा मेरी गजगमिनियाँ गुस्सा थूकँ दो, तुम्हारा गोरा चेहरा काला पड़ जायेगा।
मेरी मुस्कान देख कर वह पागल हो गई, और फिर जो किया आप उसकी कल्पना करें, क्योंकि कभी न कभी तो उस गली से आप भी तो गुजरे ही हैं।
मैं सीधा हुआ, प्रेम दर्शाया, कान पकड़ा तब वह नार्मल हुई।आहिस्ता से बोली सपा, बसपा, भाजपा सबके राज में युवा परीक्षा के बाद उच्च न्यायालय के सिंगल बेंच, डबल बेंच, स्पेशल अपील , फिर उच्चतम न्यायालय के सिंगल बेच , डबल बेचं और स्पेशल अपील लड़ रहे हैं, तुम्ही बताओ सरकार के पास तो अधिवक्ता की फौज और पैसों का सागर है, उसका कुछ बिगड़ना भी नहीऔ, परीक्षा के नाम पर अरबो रूपये अपने कोश में जमा करा लेती है। जानते हो इस इस बार टैट की परीक्षा में कितना धन आया?
मैं शराफत से ना में सिर हिलाया।
दिन भर वाटस्प चैट करते हो, मोबाइल ले कर गिटरपिटर करते हो जरा जानकारी भी रखा करो। वह गुस्से में बोली.
मैं केवल जी कह सका
जोडो 2255569उम्मीदवारों में 400 से गुणा करो और देखो कितना धन आया।
मैं जमीन पर ईंट के टुकड़े लेकर गुणा भाग करने लगा, दस मिनट बीत गया।
उसने अपना सिर पीट लिया और पास खड़े बबलू भैया को देखते हुए कहा '' पता नहीं इस पागल के प्यार में कैसे पड गई? हाय रे मैं, मगर मैं इसको छोड़ भी नहीं सकती, वो जूही चावला कहती है न ढ़ेडा है मगर मेरा हैं.।
मैं और बबलू भैया उसे देख कर मुस्कुरा रहे थे। उसकी नजर हम दोनो के चेहरे पर गई , हमें मुस्कुराते देख वह बनाबटी क्रोध दिखाते हुए बबलू भैया से बोली '' ये तो पागल हैं भैया आप ही बताईंये आज की परीक्षा और परीक्षा के बाद की हालत देख कर आज का युवा अपनी तैयारी कर परीक्षा दे उसके घर बार बेच कर न्यायालय में लड़ाई लड़े या फिर हाथो में तलवार उठा कर अपराधी की संख्‍या में एक और इजाफा करें।
उसकी बातें सुन कर बबलू भैया परेशान हो गये? उसे समझाने लगे, मगर उनकी आवाज से यही लगता था जैसे वह मुर्दे को सास दे रहे हैं, उनकी आवाज उनकी बातो का समर्थन नहीं कर रही थी.. और मैं तो आप जानते ही हैं क्या कर सकता था.. खैर मैने किसी तरह अपनी गजगमिनियाँ को समझाया और फिर न्यायालय में चलने का आश्वासन देकर उसे कैंडिल लाइट लंच के लिए तैयार किया और चल पड़ा उसकी बाहो में बाहो डाले चल पड़ा लतियावन भाई के ढाबे की तरफ , क्योंकि धीरे धीरे मेरा पत्नी सेवा का समय शुरू होने वाला था।
अखंड गहमरी, गहमर गाजीपुर।

राम मंदिर और गजगमिनियॉं

आज सुबह से मैं बहुत खुश हूँ, नहा धो कर इस्नो पाउडर पोत कर, कंधी-संधी करके मलतनियापुर के लातिंग-मुकिंग गार्डेन में.जाने को तैयार हो रहा था, जहाँ मेरी पूर्वप्रेमिका गजगमिनियाँ मेरा बेसब्री से इन्तजार कर रही थी। आज मेरी दोहरी खुशी का एक कारण यह भी था कि आज मुझे अपनी वाइफ होम के प्रताड़ना से सरकारी अवकाश मिला था। वह दो दिनो अपनी बहन की बेकरी की दुकान के उद्घघाटन के मौके पर तकधिनिया पुर गई थी। अब आप ये मत समझ लेना कि मेरी माई हाफ वाइफ यानि श्री श्री साली महोदया शमा बन कर दुकान खोल रही है तो परवाने मडरायेगे। उसके हाथो में तो बस कमान थी, नाचना तो सावन और बादल को है। तो आज इस हसीन पल का फादया उठाते हुए मैं गार्डन पहुँचा। सावला बदन, खुबसूरत सी झीनी काली साड़ी, काले लम्बे बाल, चेहरे पर महिला गैरेज के डेंटिग-पेटिंग का कोई निश़ा नही, फिर भी बला सी खूबसूरती लिये मेरी गजगमिनियाँ दूर से ही मेरे पूर्व के सफेद दाँतो की तरह चमक रही थी।
मैं उत्साहित होकर दूर से बाहे फैलाते उसकी तरफ दौड़ पड़ा , वह भी दौड़ी। बाहे फैलाये। दोनो एक दूसरे के गले लगने वाले थे कि बीच रमेश तिवारी जी आ गये , हम दोनो उनसे लिपट ही पडे। गनीमत यही रही कि कबीर दास की चौपाई '' दो पाटन के बीच में साबुत बचा न कोई '' की कहावत ठगस आफ हिन्दुस्तान'' फिल्म की तरह फ्लाफ कर गई, नहीं तो हम दोनो प्रेम की बगीया से लाल-घर पहुँच जाते। कबाब के बीच में हड्डा कहाँ से आया सोचते हुए आने का कारण जानने के लिए घूमा तो पता चला कि हड्डा गलती से बीच में आया, वह हड्डी तो खुद एक हड्डिनियाँ की तरफ दौड़ रहा था, मगर मेरा और गजगमिनियाँ का प्यार फास्ट निकला और उनका कचूमर बना गया। दोनो आशिक जोड़े संभल चुके थे और अपनी- अपनी , मंजिल की तरफ चल पड़े। मैं भी पास में खड़े एक बादाम वाले से बादाम खरीदा और चल पड़ा , पहाड़ो के पीछे , गजगमिनियाँ के बाहो में बाह डाले। मगर आज मेरे प्यार पर मेरे साढ़ू विक्रम की नजर लग गई थी। पूरा इलाका जहाँ भूत का सन्नाटा रहता है, आज चारो तरफ भगवा ही भगवा, जय श्री राम के नारे से गूँज रहा था। चारो तरफ दो पल प्यार के गुजारने की चाह लिये हम शांत घूम रहे थे, शांत रहते भी क्यों नहीं , तेज आवाज में तो बस यही गूँज रहा था '' राम लला हम आयेगें , मंदिर वहीं बनाये। तभी मेरी निगाह दूर पेड़ पर बैठे दो आकृतियों पर गई, लगा जैसे मंदिर की परिकल्पना में हनुमान जी दल-बदल बैठे हैं। थोड़ा नझदीक गया तो देखा कि रमेश तिवारी और उनकी हड्डिनियाँ बैठ कर गिटरपिटर गिटरपिटर कर रहे हैं। मैं आगे बढ़ गया, तभी कानो में शहद उतरा, सुनो मेरे तलियान डीयर लग रहा है ये भाजपा वाले कितनी बार आने को आना मानते हैं? मैने चट से बोला मतलब मेरी रसभरी। चटाक! ,इसके पहले कि दूसरे भी गाल पर उसकी नाजुक क्लाईयाँ पहुँचती, मैं बोल पड़ा कि मैं मैं समझ गया मतलब.., मगर मेरी मधटपकी इस का जबाब तलाशते तलाशते तो मेरे पिता जी के पिता की समधी की बेटी के पति के बेटे की सास के लड़के के बाबा दहाड़न दास दुनिया से चले गये, पर तुम ये क्यों पूछ रही हो। उसने जबाब दिया मेरी तो खटिया खड़ी हो गई, हाँ राम को तो प्रतिक्षा करने की आदात तो उस समय से ही है जब वह अयोध्या में पैदा हुए। मेरी गजगमिनियाँ मुझे निपट अनाड़ी न समझे मैं झटपट बोल पड़ा बिल्कुल सही कह रही हो, राजगददी के बाद सुग्रीव भी शायद राम को भूल गये थे। बिल्कुल सही मेरे लातन डारलिग तभी तो राम जी ने खबर भेजा था कि सुग्रीवहुं सुधि मोरि बिसारी। पावा राज, कोष पुर नारी।।
वैसी ही मोदी जी भी सत्ता पाने के बाद कालाधन वापस लाने , तीन तलाक बिल और एस सी, एसटी एक्ट में ऐसे उलझे है कि राम मंदिर की याद ही नहीं।
मैने धीरे से अपनी गजगमिनियाँ के जुल्फो को अपने हाथ में लिया और बोला प्रिय परेशान न हो बहुत जल्दी एस सी एस टी एक्ट और तीन तलाक जैसे मामलो पर आया बिल आया है राम मंदिर पर भी आयेगा और फिर मंदिर ही तो बनना है कहीं बने।
मेरी इस बात पर अचानक गजगमिनियाँ का चेहरा लाल हो गया, वह मुझे रूई समझ कर धुनिये की तरह धुन दी। मैं अपने वाक्य में गलतियां खोजने लगा तभी वह चिल्लाई.
ये बटोटरना के नाती तुमको मंदिर और जन्मभूमि में अन्तर नहीं समझ में आता? पागल नसपीटा चिल्लाते एक और झापड़ रसीद की , मंदिर हजारो होगें मगर जन्मभूमि केवल एक, वह राम जी की जन्मभूमि का मंदिर है न कि आम मंदिर, समझे पगले। मैं सर हिलाया, और कर भी क्या सकता था? प्रेमिका है और उसमें भी पूर्व लतिया देती है। मैने कहा छोड़ो डार्लिंग अंदिर मंदिर की बात *आओ प्यार करे, कुछ कुछ होता है
तभी खटाक मैं सिर पकड़ कर बैठ गया एक पत्थर लगा सिर। देखा तो कुछ लोग सफाई अभियान में सड़क का पत्थर साफ करते जा रहे हैं उनके हाथो में अयोध्या मंदिर की मनभावन तस्वीर थी।
मैंने प्रणाम किया, तस्वीर दर्द को खा गया, लेकिन गजगमिनियाँ का सवाल जहाँ का तहाँ था। मैं गम मिटाते हुए बोला प्रिय अभी तो भाजपा न्यायालय-न्यायालय का खेल खेल रही हैं, जैसे हम तुम चोर सिपाही खेलते थे।
गजगमिनियाँ ने हल्की मुसकान बिखेरी, मेरा दिल कुतुबमीनार से कूद पड़ा। मैं बाग बाग हो गया,मैने कहा मेरी फुलवारीहुभाजपा को जब जब आना होगा आयेगी, जाना होगा जायेगी, मगर जब वह राम मंदिर बना ही दे गी, तो तकधिनिया को लुभायेगी कैसे? फिर आयेगी?
ये तकधिनिया कौन है? तवे सा गर्म होते हुए गजगमिनियाँ ने पूछा।
मैं कुछ कहता तभी एक भीड़ राम लला हम आयेगें, मंदिर वही बनायेगें का शोर करते भागने लगी, शायद कोई आ गया।
मैने धीरे से गजगमिनियाँ की तरफ देखते हुए कहा..
राम लला हम आयेगें, मंदिर वही बनायें, लेकिन रखना याद, तारिक नहीं बतायेगें..
अब शोर काफी बढ़ता जा रहा था, सर दर्द होने लगा था।
हम दोनो आज अपने असफल प्रेमवाणी को विराम देते हुए चल पड़े अपनी अपने घरो की तरफ।
अखंड गहमरी।।

गजगमिनियॉं की खोज

मिशन गजगमिनियाँ ए खोज
चटाक, उस महिला से एक जबदस्त चाँटा खाकर मैं उसे स्वारी बोलता हूँ आगे बढ़ गया, मगर वो अभी भी मुझे एक से बढ़ कर उपाधियों से नवाजी जा रही थी। ये पहला मौका नहीं था आज गालियां सुनने और पिटने का। आज सुबह से दर्जनो चाँटे और सेडिंल की मार खा चुका था।
अब तो हालत यह थी कि जब भी पुस्तक मेले में एनाउंस होता कि एक आदमी छेडछाड में पिटा, लोग कहते निश्चित अखंड गहमरी होगा, जो सुबह से विश्व पुस्तक मेले में गायब हुई अपनी पूर्व प्रेमिका गजगमिनियाँ को खोजने के चक्कर किसी किसी महिला और पुरूष साहित्यकारो से में पिट रहा है।
मैं पागलो सा इधर उधर भटक रहा था। आँखो में आसूँओ की धार थी। गजगमिनियाँ-गजगमिनियाँ चिल्लाते-चिल्लाते गला सूख चुका था। मगर क्या मजाल जो मैं पानी की एक बूँद भी पी लेता। मैं भटक रहा था तभी रेवडियां चाची जो बिलखेदना के साथ लेकर लतमरूआ साहित्य कि किताबें खोजते 13 नम्बर हाल में मिल गई, मैं उनको देखते टूट गया। गला फाड़ कर रोते रोते सारी बात बताई। वो व्याकुल हो गई और मुझे बीस रूपये के सिक्के देते हुए बोली बेटा अच्छी जगह देख कर ये सिक्के जमीन पर रख कर बैठ जाओ, लोग आते जाते कुछ न कुछ दे जायेगें और यही बैठे बैठे तुम उसको खोज भी लोगे। जब कुछ चंदे की रकम इकट्ठा हो जाये तो एक किताब उसके नाम पर यही किसी प्रकाशक को दे कर छपवा लेना। एक पंथ दो काज हो जायेगें। इतनी नेक सलाह दे कर वह लतमरूआ साहित्य खोजने चली गई। मैं सोचा सलाह अच्छी है अभी खोज और खोज लूँ तीन बजे से उनकी सलाह पर अम्ल भी करूँगा।
मैं अपने मिशन *गजगमिनियाँ की खोज* पर चल दिया। सात से लेकर 12 तक के सभी हाल के एक- एक स्टाल खोज चुका था। वो मिलने का नाम नहीं ले रही थी। इस खोज में अब काजू की बर्फी खाते खाते पेट भी भर चुका था। कुछ लोगो ने मुझे इस स्टाल से उस स्टाल तक सूटिंग-बूटिंग में दौड़ते देख कर बड़ा साहित्यकार कर विमोचन करने और अपनी पुस्तक पर दो शब्द बोलने की जिद करने लगते। मैं भी खुद को गौरवशाली महसूस करता। एक तरफ ये खुशी दूसरी तरफ गजगमिनियाँ को खोने का गम और तीसरी तरफ बार-बार वाइफ होम का '' कहाँ हो का फोन और वीडियो चैट"। अब तो मैनें फैसला कर लिया कि अँग्रेजी प्रकाशन के बैनर के नीचे बैठ कर अपने अश्को के शुद्द जल में सत्तू सान कर खाते हुए गम गीला और पेट ऊँचा करता हूँ। मेरी गजगमिनियाँ जहाँ भी होगी लिखी-पढ़ी है अँग्रेजी साहित्य खोजते जरूर इधर आयेगी। ठूँसने तक नहीं मिली तो रेबड़िया चाची की सलाह पर अमल करेगें, मैने जेब पर हाथ लगा कर उन बीस रूपये के सिक्के जेब में होने की पुष्टि की।
वैसे भी मेरा चेहरा चाँटो और सेंडिलो के निशान से भर चुका है। अब और जगह नहीं बची है। सत्तू निकाला , तड़ाक एक जोरदार चाँटा मुहँ पर ..नसपिटे , भथबोरन, मैं पागलो 12 अंन्डे ,16 रोल आमलेट खा कर पागलो की तरह भूखी तुमको खोज रही हूँ। सूख कर चेहरा फूल से काटाँ हो गया और जनाब यहाँ बैठ कर मजे से वाइफ होम का दिया हुआ सत्तू खा रहे हैं। फटाक, चटाक , भूत की तरह अचानक सामने आई मेरी गजगमिनियाँ मुझे कूटते हुए चिल्लाती जा रही थी।
मैं तड़प रहा था, गजगमिनियाँ कूट रही थी, साहित्यकार मजे ले रहे थे। भला हो रेबडिया चाची का न जाने कहाँ से वो पहुँच गई, और गजगमिनियाँ का हाथ पकड़ ली, मेरी जान में जान आई।
काहे मार रही हो, बेचारा सुबह से खोजते खोजते 70 किलो का हो गया। सुबह से बेचारे ने बीस पच्चीस रोल और दस ग्यारह डोसे छोड कुछ नहीं खाया और तुम इसे पीटने लगी।
इतना सुनते मेरी गजगमिनियाँ इमोशनल हो गई, सैंडिल नीचे रख कर अपने हाथो में लगी सैंडिल की गंदगी मेरे बालो को सहलाते साफ की। दोनो हाथो में मेरे गालो को लेकर बोली, ऐ मेरे खड़पितिया आशिक मेरे खोज में इतना पागल हो गये, इतना कह वह रोने लगी। उसके अश्को से तहलका मच गया, स्टाल वाले दौड़ पड़े, मेला प्रवन्धक दौड़ पड़े। चारो तरफ पानी ही पानी था, बाढ़ का खतरा उत्पन्न हो गया था।सब उसे चुप कराने में लगें। वह किसी तरह चुप हुई और बोली चलो साँवरे बलम कुछ खाते-पीते हैं। दोनो एक दूसरे की बाहो में बाँह डाले चल दिये। दस नम्बर हाल के पास हम लोगे ने पापकार्न खरीदे और और बैठ गये गम गीला करने के लिए गेट नम्बर आठ के पास एक पत्थर पर।
मैने अपने रूमाल से उसके चेहरे को साफ किया, यहाँ फिर गलती हो गई और उसके चेहरे का मेकप भी साफ हो गया। मैं भययुक्त हो गया। पर उसने चरण दास का प्रयोग करने की जगह प्यार से बोला '' मेरे खड़पतिया प्रेमी तुम पर जो साहित्यकारिता का भूत सवार है वो छोड़ दो.तुममे साहित्यकारिता के 9 गुण में से एक भी गुण नही।
ऐसा क्यों कह रही हो प्रिय अभी मेरी बात पूरी भी नही हुई थी कि कुछ लड़ने की आवाज सुनाई दी, मैने पटल कर देखा तो कुछ देर पहले एक मंच पर एक दूसरे की तारीफ करते नहीं थकने वाले बच्चो की तरह लड़ रहे है, एक दूसरे का राज खोल रहे हैं। यह देख कर मेरी गजगमिनियाँ बोल पड़ी, देखा वाइफ होम के साहित्यकार बलम ये है हकीकत, ये है साहित्यकारिता और ये तुम नहीं कर सकते और न तुम नेतागीरी कर सकते हो। साहित्यकारिता में मंच पर प्रेम, पीछे गाली और नेतागिरी में मंच पर गाली पीछे प्रेम का सिद्धांत लवेरिया गुरू द्वारा प्रतिपादित है। यह दोनो काम तुमसे नही होगा। मैं उसकी बात काट कर बोल पड़ा अरे मेरी चकोरी क्यो चौकोर हो रही हो, ये सब तो चलता रहता है, जहाँ प्रेम वही विवाद । अब मेरी गजगमिनियाँ गुस्सा गई , कही तुमको का पता साहित्यकारिता का होती है।
नहीं मेरी धन्नो मुझको तो पता नहीं, मगर तुमको भी तो पता नहीं। मैं तो यह कह कर बिल्ली के गले में घंटी बाध चुका था।
क्या बोले ? मुझको पता नही? तड़ एक लगा मैं चित।
वह बोल पड़ी.. आज मैं दिन भर तुम्हे खोजने में साहित्यकारिता की खोज की हूँ। तमकी लाल, दमकी लाल, मोखारी दूबे सब से मिल गई। तुमको क्या मालूम।
मैने थोड़ा सा मक्खन लगाया , तुम हो ही बला सी खूबसूरत ।
रहने दो रहने दो, वह फुलमतिया की तरह शर्माई और एक प्रश्न उछाला, ये बताओ कि
ईश्वर का दिया शरीर कितने तत्व से बना है ? मैं बोल पड़ा 5
सुनी नही हो. ''क्षिमि जल पावक गगन समीरा, पंच तत्व यह रचित शरीरा''।
तो उस तरह 5 गुणो को रखने वाला ही साहित्यकार होता है।
मैं गजगमिनियाँ के ज्ञान के आगे मेरा ज्ञान बेकार साबित हो रहा था।।
उसने बड़ी शान से कहा , सुनो मेरे खड़पितिया आशिक।
वह दूसरो का लिखा जो शान से मंच पर पढ़े उसे साहित्यकार कहते हैं।
जो कौमी एकता का गुणगान कर हिन्दू धर्म को गाली दे और सहिष्णुता अहिष्णुता का बाजा बजाये वो साहित्यकार है।
अभी उसका इतना कहना था कि चारो तरफ भीड़ लगने लगी, मैं उसे इशारे कर रोकना चाहा, मगर जो मान जाये गजगमिनियाँ नहीं। वह नहीं मानी बोलते जा रही थी।
पी.डी.एफ पेपर में जो छप कर जो सोशलमीडिया पर धडल्ले से महिमामंडन और लतीफे सुना कर, मंच पर चेहरा और हाथ चमकाया करे वो साहित्यकार है।
मंच पर आपसी मुहब्बत और नीचे छीछालेदर जो करे वही साहित्यकार।
मंच के जुगाड़ में दिन रात चमचालोक में रहे, जी हजूरी करे वही साहित्यकार है।
अगल बगल खड़े साहित्यकारो की मुट्ठी तन चुकी थी। इसके पहले कि कुछ और भूंकप आता मैं गजगमिनियाँ को लेकर प्रगति से बाहर निकलने का रास्ता खोजने लगा। सोचने लगा कि जो मेरी कल्पना है वह सत्य या जो उसने कहा वह सत्य।
अखंड गहमरी।।

काश वो लडकी न होती - गजगमिनियॉं

काश वो लड़की न होती
15 जनवरी 2019 को मैं दिलदारनगर से 14056 डा0 ब्रहमपुत्र मेल के बी बन की बर्थ संख्‍या 01 पर सवार हुआ। मैं अपनी बर्थ पर बैठ सकता नहीं था क्‍योकि मीडिल बर्थ पर एक अंकल साेये हुए थे, मैं भी लेट गया। गाडी बक्‍सर रेलवे स्‍टेशन से खुली, अभी कुछ ही दूर गई होगी कि एक लड़की जिसकी उम्र मुझे 24-25 साल लगी, बदहवास सी आई, और बडबडाने लगी। ट्रेन में चल रहे टी0टी0 और पुलिस दोनो उसके पास थे। मेरे सामने बर्थ नम्‍बर 7 पर वो बैठ गई।
उसने सबको बताया कि उसका और उसके पिता जी का रिजेर्वशन 10 मिनट पहले गई हरिद्वार हावडा में था, मगर काफी भीड के कारण वह चढ नहीं पाई, उसका पैर स्लिप कर गया वह ट्रेन के नीचे जाती, इसके पहले किसी लडके ने उसे खीच लिया, उसके पिता जी ट्रेन में चढ गये। वह अब इस ट्रेन से आगे जाकर पिता जी से मिलेगी। सहयात्रियों ने उसे बैठने की जगह दी, और टी0टी0 महोदय ने अगले स्‍टेशन पर सूचना देकर उसके पिता जी को आरा में उतर जाने का मैसेज कराया, क्‍योंकि उस लडकी का मोबाइल काम नहीं कर रहा था। इसके साथ ही टी0टी0 ने रेलवे के नियम के विरूद्व जाते हुए मानवीय आधार पर उसके एवं उसके पिता को एसी कोच में बैठने की व्‍यवस्‍था भी कर दिया।
इन सारे सुविधाओं के बाद जब लडकी कुछ रिलेक्‍श हुई तो उसके मुहँ से निकले शब्‍द सारे यात्रीयों के दिल में छेद कर गये, मगर मेरे सामने के बर्थ पर बैठे एक बंगलादेशी मुल्‍ले परिवार ने उसका समर्थन कर दिया।
उसके शब्‍द थे कि इंडिया में इसी प्रकार की व्‍यवस्‍था है, गंदगी भीड भाड़़ इस लिए मैं यहॉं आना नहीं चाहती, आई हेट इंडिया। जब उसे तीसरी बार यह शब्‍द दुहराया तो मुझसे बर्दाश्‍त नहीं हुआ मैं बोल पडा कि अगर तुम लडकी न होती तो मैं तुम्‍हें ट्रेन से बाहर फेंक देता, इसकी शिकायत उसने टीटी से किया मगर मेरे ऊपर भी उन्‍होनें कुछ नहीं कहा, बस उस लडकी को इतना ही कहा कि आप यहॉं से चले। आपके शब्‍द सब बर्दाष्‍त नहीं कर पायेगा। बक्‍सर में चढने के कारण मुझे अंदाज तो यह हो गया कि वह यही कही कि रहने वाली है, मगर जिस प्रकार उसने आई हेट इंडिया,आई हेट इंडिया बार बार कहा मुझे उसके शिक्षित और आधुनिक होने पर भी शर्म आई।

व्‍याकुल गजगमिनियॉं

आज कई दिनो से मन व्याकुल है। दिमाग परेशान है। कभी बायीं आँख तो कभी बाँया हाथ फड़क रहा है।
दिल का कोना-कोना सुस्त पड़ा है। हालत ऐसी हो गई है कि देख कर मजनूँ भी परेशान था कि यदि कहीं इसका यही हाल रहा तो इतिहास मेरे नाम के ऊपर व्याइटनर लगा कर इसका नाम लिख देगा। मेरी हालत देख कर वाइफ होम ने भी कपड़े सुखाने का काम कम कर दिया। अब मेरे जिम्मे केवल झाडू-पोछा, चौका-बर्तन और कपड़ो की सफाई ही रह गया था।
आज मैनें फैसला कर लिया कि आज अपनी हालत सुधार कर रहूँगा, चाहे इसके लिए कुछ भी करना पड़े।
मैं तीन बजे सुबह उठ कर सारे काम निपटाने लगा। खटर-पटर सुन कर वाइफ होम की नींद खुल गई।
अब आधी नींद पर उठने पर तो फूल भी बम बन जाता है, आप समझ लें मेरी हालत क्या हुई होगी? मगर मर्द को दर्द नहीं होता। मैं लाल चेहरा छुपाये तैयार होकर पहुँच गया गहमर के रूप श्रंगार महल के अरूण सिंह के घर। सुबह सुबह मुझे आये देख कर वह बाहर आये, हाथो में लिये बीम बार को किनारे लगाये। कहो भाई कैसे सुबह सुबह? ये चेहरा क्यों छुपाये हो? उन्होंने साल हटा कर पूछा।
मेरे चेहरे को लाल देख कर थोड़ा उदास होते बोल पड़े, इसमें छुपाना क्या? मेरी भी यही कहानी है, बर्तन धोते समय गिलास गिर पड़ा और फिर एक भी बेलन नीचे नहीं गिरा, उन्होने अपनी पीठ दिखाते कहा।
मैं गर्व से बोला भाई अपनी तुलना मुझसे न करीये मैं सीने पर खाता हूँ, पीठ पर नहीं।
राम की मेहरबानी से चाय आ गई। मैनें बातो बात में अपनी समस्या बताई और मदद स्वरूप एक दिन के लिए चूड़ी,बिंदी सहित श्रंगार के सामान माँगे।
उन्होनें मेरी मदद की, सामान दिया, भगवान उनकी मदद कर और कुछ धोने वाले कपड़ो के गट्ठर बढ़ा दे।
मैं सब सामान ले आया, एक लकड़ी के संदूक में रखा, एक मलीन सी धोती पहनी और गली में श्रृंगार के समान बेचने वाले का रूप बनाया और चुपचाप चल पड़ा।
गली -गली, चौबारे-चौबारे होता मैं पहुँच गया अपनी मंजिल पे।
मंजिल पर पहुँचते ही मेरा हर्ट हर्ट हो गया। वहाँ रोज गूँजने वाली लटकिनिया-भटकिनिया, तोड़ा-मोड़ा जैसे सिरियलो कि आवाज नदारद थी। मेरी मंजिल के 36 घंटे खुले रहने वाले खिड़की दरवाजे बंद थे।
मैं किसी अनहोनी की कल्पना से काँप उठा और दिल को बाँस-बल्ली के सहारे रोक कर दरवाजे पर आवाज दी ''चूड़ी ले लो”, चूड़ी ले लो"।
दरवाजे पर कोई हलचल नहीं हुई।
मैने हार नही मानी फिर जोर लगाया रंग-बिरंगी चूड़ियाँ ले लो, सिनर्जी टेलीकाम की डिजाइनदार चूड़ियाँ।
दरवाजे पर हलचल हुई। दरवाजा खुला। अहोभाग्य मेरे स्वच्छ, सुन्दर, तड़कीली, भड़कीली मेरी पूर्व प्रेमिका गजगमिनियाँ मेरे सामने थे।
हफ्तो बीत गये थे उसकी एक झलक पाने को। वो तो मैं पहले से राँची और आगरा रिर्टन था ही, अब तेजपुर से भी रिर्टन हो गया तो इस दर्द को सह गया।
भागो यहाँ से नहीं चाहिए चूड़ी- तूड़ी।
उसकी तेज आवाज से मैं यर्थाथ मैं लौटा।
ले लो न मैडम जी, तुम्हारे पर बहुत खिलेगीं ।
कह दिया न नहीं चाहिए भागो शोर मत करो , बेटे की परीक्षा है, डिस्टर्ब हो रहा है।
मैं मन ही मन बुदबुदाया परीक्षा तो तुम मेरी ले रही हो प्रिय अपने लाटू बलम की..।
मैं आँखो में अश्क भर बोल पड़ा ले लो आन्टी ....
मेरे शब्द मेरे मुहँ में ही रह गये, उसने चिल्लाते हुए कहा ''क्या बोला आन्टी , अरे अन्धे मैं किस एंगल से तुझे आन्टी लगती हूँ?'' उसने मुझे धकेला।
मैं उसका यह रूप देख कर इतना तो समझ गया कि जो है ठीक है। मैं खुशी से झूम से झूम गया। तभी उसकी निगाहें मेरी निगाह पुरानी फिल्मी स्टाइलिंग में टकरा गई। वह चीख पड़ी अरे मेरे लतखोर बलम, ये क्या हाल बना रखा है।
अब मेरे आँखो के पानी से भारत सरकार की नदी भरो परियोजना सफल होती दिखाई देने लगी। वह पिघलने लगी, पास पड़े गाड़ी साफ करने वाले कपड़े से मेरी आँखे साफ की और बैठ गई चूडियाँ देखने।
मैने धीरे पूछा कहाँ रहती हो आज कल? मेरे प्यार की बगिया के फूल तुम्हारे चरणरज के आभाव में मुरझा रहे हैं।
क्या करूँ? मेरे खनकरू बलम बेटे की हाईस्कूल की परीक्षा जो सर पर आ गयी, उसने मेरे श्रृगांर बक्से में रखे सामानो पर अँगुलियाँ फेरते हुए कहा।
मैं आश्चर्यचकित हो कर उसकी तरफ देखा, न मिल पाने का दर्द उसे भी था..मैने धीरे से कहा ''आज कल मोबाइल भी आफ रहता है, आन लाइन भी नहीं होती हो।
मेरे बक्से में रखी 2:6 की चूडियों को अपनी कलाई में डाल चुडियों की सुन्दरता बढ़ाते हुए बोली, क्या करूँ मेरे धनसोई बलम? बेटे की परीक्षा के कारण आज कल नेट और डिस रिचार्ज सब बंद हैं, इस लिए आन लाइन भी नहीं आती।
मैं ठहरा हाईस्कूल बार बार फेल आदमी मुझे ये सब समझ नहीं आ रहा था। आखिर बेटे की परीक्षा से ऐसा कौन सा बबाल हो गया जो सारे काम बंद।
मेरे मनोभाव को गजगमिनियाँ पूरी तरह समझ रही थी, परन्तु वह मुझे कैसे समझाये उसे भी नहीं समझ में आ रहा था।
मेरे बक्से से वह कई रंगो की ओठ लाली निकाल कर अपने ओठो पर सजा लिया था, उसके ओठ अब सतरंगी दिख रहे थे। जिसे मैं छुपे कैमरे से कैद करता जा रहा था, ओठलाली नीचे रखते हूए कहा .कन्टोरी मल बेटे की पढ़ाई ऐसे नहीं होती, त्याग करना पड़ना है। हम लोग कही शादी व्याह, आर्टी-पार्टी में नहीं जाते। बस उसकी पढ़ाई पर ध्यान देते हैं।
मैं उसकी बात सुनना और समझ में न आना मेरे राँची, आगरा और तेजपुर रिर्टन होने पर मुहर लगा रहे थे।
मेरी सूरत देख कर मुस्कुरा पड़ी ऐसे लगा जैसे हजारो जरमुंडी के फूल वातारण में बिखर गये। हजारो कप प्लेट आपस में खनकते लड़ पड़े। अपने टुप्पटे को संभाल कर बोली' तुम को समझ में नहीं आयेगा, आज के जमाने में.परीक्षा देता बेटा है , तैयारी पूरा घर करता है। तुम ये पकड़ो । उसने अपने हाथ में मेरे आईने को लेकर पवित्र कर नीचे रखते हुए कहा।
मेरी निद्रा टूटी उसके हाथ में 200 का नया नोट चमक रहा था।
ये क्या है?
ये तुम्हारी चूडियो और लिपिस्टिक की कीमत और अब जाओ, परसो मिलते हैं लतियावन दादा के ढाबे पर , तब समझायूँगी।
मैंने पैसे लेने से इन्कार किये, वह नहीं मानी, पैसे मेरे जेब में डाल कर मुस्कुराती हुई उठी, तिरछी नज़र मुझ पर डाली और बोली मेरे लतखोर बलम ये रूप अच्छा लग रहा है। झक्कास लग रहे हो।
मेरा सीना 57 इंच का हो गया..
परसो पक्का?
हाँ बाबा पक्का. कहते हुए वह अंदर चली गई और दरवाजा बंद कर लिया।
मैं अपना बक्सा उठाये चल पड़ा अरूण भैया के दुकान की तरफ मगर मेरे दिल में गजगमिनियाँ के खुश रहने की खुशी और दिमाग में इस सवाल की खोज की चल रही थी कि आखिर आज की परीक्षा में ऐसी क्या बात है जो पूरा घर अस्त-व्यस्त हो जाता है।
कब होगी परीक्षा समाप्त और होगी मेरी गजगमिनियाँ से रोज मुलाकात।
अखंड गहमरी।

आदरणीय प्रधान जी -गजगमिनियॉं

आदरणीया ग्राम प्रधान महोदया, आदरणीया विधायक महोदया, आदरणीय सांसद महोदय।
आप सभी को चरण स्पर्श, प्रणाम, नमन, वंदन, नमस्कार, सत श्री आकाल।
बड़े ही दुःख के साथ आपको सूचित करना पड़ रहा है कि आज मौनी अमवस्या के दिन मेरी वाइफ होम एवं मेरी पूर्व प्रेमिका गजगमिनियॉं ने सुबह-सुबह मेरी कई बार खाटी पिटाई कर दी, जिससे मैं पूरी तहर अखंड से खंड-खंड हो गया हूॅं। मेरी आत्मा को दिल की गहराईयों तक कष्ट हुआ है। वैसे मेरे दिल की गहराई भी अब मॉं गंगा की गहराई की तरह काफी कम हो गई है और ऑंखो का पानी भी मॉं गंगा के पानी की तरह पूरी तरह सूख चुका है। जिस प्रकार मॉं गंगा में अब नदी नालो का ही पानी रह गया है उसी प्रकार मेरी ऑंखो में भी केवल जलन, दुर्भावना और अंहकार का ही पानी रह गया है।
वैसे मुझे अपनी वाईफ होम के द्वारा पीटे जाने का दुःख नहीं हैं, क्योंकि यह सामान्य प्रक्रिया है, दैनिक कार्य है। मैं चोरियन न्यूज चैनल और पत्नी पीड़ित संघ के अध्यक्ष डा. रमेश तिवारी के उस सर्वे और विचार जिसमें कहा गया है कि ‘‘ सुबह-सुबह पत्नी से पिट कर घर से निकलने वालो के सफलता का प्रतिशत 90 प्रतिशत अधिक होता’’ पर न सिर्फ विश्वास करता हूॅं बल्कि उसका पालन करता हूॅं। मुझे तो गम अपनी पूर्व प्रेमिका गजगमिनियॉं के हाथो दो बार पिटने का है।
आदरणीया/आदरणीय मेरी वाइफ होम ने तो मुझे बस इस लिये पीटा की आज सुबह सुबह मैं चार बजे उसकी हूॅं हॉं जो वह मुहॅं की आवाज की जगह सॉंसो में बोल रही थी उसे समझ नहीं पाया और उसे गंगा स्नान के लिए ले जाने के लिए भी अपने नीयत समय से नहीं उठ पाया। मौनी अमवस्या होने के कारण उसे बिना गंगा नहाये कुछ बोलना नहीं था, लिहाजा उसकी सॉंसो की आवाज मैं सुन नहीं पाया, जब उसके चरण पादुका ने मेरे सिर से चार बार प्रेम किया तो मुझे उसकी सारी बातें समझ में आ गयी, मैं चल पड़ा गंगा स्नान कराने।
गंगा घाट पर पूरा अॅंधेरा था, मैं किसी तरह उसे लेकर नीचे पहुॅंचा, उसे बैठाया तभी मेरी पूर्व प्रेमिका गजगमिनियॉं का वास्टप संदेश आ गया।
संदेश पढ़ कर तो इस कडा़के की ठंड में भी पसीना आ गया, ऐसा लगा कि हजारो सूरज चमक पड़े हो। मैं भागा भागा गंगाघाट के ऊपरी छोर पर आ गया। मेरी गजगमिनियॉं मेरे सामने थी, वो भारी सी गठरी उठाये चल रही थी, गंगाघाट पर इतना अॅंधेरा कि कुछ दिखाई नहीं दे रहा था, उसके पैर सीढीयों पर ठीक से नहीं पड़े और वह गिरते गिरते बची, मैं भी अंधकार में उसे देख नही पाया जब तक समझता वह न केवल संभल चुकी थी बल्कि अपने नाजुक नाजुक हाथो का प्रेम कोमल कोमल गालो से प्रेम करा चुकी थी।
उसके गले से मधुर आवाज निकल कर वातावरण में फेल चुके थे,
क्या कर रहे हो मोबाइल से टार्च तक नहीं दिखा सकते, देखते नहीं पूरा घाट अधेरे में डूबा है। मैं एक हाथ से अपना गाल पकड़े दूसरे हाथो से उसे सहारा दिये नीचे उतारने लगा, मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि गंगाघाट पर अॅंधेरा होने की सज़ा मुझे मिली है या सुबह सुबह ठंड में उठ कर आना पड़ा इसकी सजा उसने दिया है। खैर कोई बात नहीं जो प्यार करता है वही पीटता भी है। अब इश्क किया है तो सजा हो या प्यार मुझे ही मिलेगी न की आप प्रधान जी, विधायक जी और सांसद जी को।
अभी सूरज देव के दर्शन नहीं हुए थे इस लिए मेरे गालो की लाली किसी को दिखाई दे इसका डर नहीं था। मैं सीना ताने चल रहा था।
मेरी गजगमिनियॉं नीचे पहुॅंच कर स्नाना इत्यादि कर दान पुण्य भी कर चुकी थी, मैं तो मारे ठंड के उससे दूर ही रहा, इधर उधर मोबाइल से फोटोग्राफी करता रहा, न जाने कब उसका फरमान हो जाये गंगा में डूबकी लगाने का, खैर कसम से तड़तडीयॉं देव की ऐसा कोई फरमान नहीं आया। अब वह घर लौटने को तैयार, मैं सोशलमीडिया पर फोटो डालने को तैयार। तभी तड़ तड़ की आवाज से पूरा ईलाका थर्रा उठा, मैं अगल बलग देखने लगा। तभी मेरी समझ में आया कि यह आवाज मेरी गजगमिनियॉं के चरण पादुका और मेरे गाल तथा पीठ के आपसी मुहब्बत से निकली है। मैं आर्श्चय चकित हो गया, दर्द का एक झोंका महसूस होता इसके पहले एक, आप र्ककश कह सकते हैं, मैं नहीं मेरे लिए तो फूल सी आवाज आई। देखते नहीं हो सामने वह माता जी गिर रही है अॅंधेरे में, उनको पकड़ नहीं सकते। मैं दौड कर माता जी को पकड़ा उठाया, तब तक वह चोट खा कर बैठ चुकी थी। मैं कभी उसकी तरफ देखता तो कभी माता जी की तरफ। मैं धीरे से अॅंधेरे का फायदा उठा कर वहॉं से फरार हो गया। अब मैं अॅंध्ेरे को कोष रहा था, अपने ऑंखो से अश्क गिरा रहा था। तभी न जाने कहॉं से वह फिर पहुॅंच गई। मेरे हाथो को अपने हाथो में देकर प्रेम से बोली में लतखनियॉं प्रेमदेव आज मैंने तुम्हारी दो बार ठुकाई कर दी। मैने कहा कोई बात नही प्रिय एक बार और कर दो। प्रधान जी, विधायक जी, सांसद जी कहा जाता है कि मनुष्य के जुबान पर दिन में एक बार सरस्वती का वाश होता है वह जो कहता है सही हो जाता है, इसका उदाहरण मुझे तत्काल देखने को मिलेगा मैने कल्पना भी नहीं की थी। उसकी निगाह गंगाघाट पर लगे बड़े-बड़े लाइटो एवं सोलर लाइट पर चली गई। अब तो उसका गुस्सा सातवें आसमान पर था। सबके सामने मुझ पर तीसरी बार प्रहार करते हुए बोली‘‘ 9 बजे तक सोयोगें तो तुमको समस्या क्या पता चलेगी।
मैने धीरे से कहा, तेज बोलने की तो औकात नहीं थी, मैने धीरे से कहा‘ प्रिय मेरे 9 बजे तक सोने और यहॉं अॅंधेरे का क्या संबंध।
वह चीखते बोली ‘ देखते नहीं यहॉं इतनी लाइटे लगी हैं, सोलर लगा है , मगर सब बेकार, तुमको पता नहीं था कि आज मौनी अमवस्या है दूर दूर से महिलाएं आयेगीं, पुरूष और बच्चे आयेगें सब अॅंधेरे में गिर के चोटील होगें, ठीक नहीं करवा सकते थे।
प्रिय मैं क्या हूॅं, तुम तो जानती हो कि एक आम आदमी की कीमत आम से भी कम है। मैं भला इसमें क्या कर सकता हॅं, आम आदमी की ताकत तो संविधान में है, हकीकत में क्या है ? तुम ही कहो प्रिय, मैने अपने दर्द को पीते हुए कहा।
अब वह पिघल चुकी थी, उसने अपने गीले पल्लू से मेरे ऑंखो को साफ करते हुए बोली, सही बात है इसमे तुम क्या सकते हो, तुम्हारा क्या कसूर, जाने दो जो हुआ सो हुआ, वह गंगा घाट पर ही वट वृछ की पूजा करने के लिए चल दी, मैं उसे देखने लगा, तभी वह पीछे घूमी मैं खुश हुआ कि वह फिल्मी स्आईल में मेरे पास आयेगी और गले लग जायेगी, मुझसे क्षमा मॉंगेगी, मगर क्या कहें जो हुआ प्रधान जी,विधायक जी एवं सांस्द जी उसने मेर बालो को पकड़ लिया और खीचते हुए बोली कि सुबह उठते, यहॉं आते तो पता रहता न कि यहॉं लाइट नहीं जल रही है उसे लिखते, सबको बताते, जगाते, क्या यह कम था। उसने थोडे सी मंद आवाज में कहा मैं तो हमेशा लिखता हूॅं परन्तु क्या होता है, मैने उसकी बात का जबाब दिया।
सही कर रहे परन्तु जब तुम्हारे जन प्रति ऑंखो में तेल और कानो में रूई डाल कर बैठे हुए हैं तो क्या तुम्हारा फर्ज नहीं उनको जगाने का और प्रयास करों, मैं कुछ नहीं जानती कमी तुम्हारी है तो है। वह मुझे बिना कसूर के सजा देकर छम-छम पायल बजाती वहॉं से चल पड़ी।
अजी सुनते हो कहॉं हो, एक तेज आवाज मेरे कानो में टकराई।
आता हूॅं इतना कह कर मैं गंगाघाट के नीचे भागा।
कहा चले गये थे, ये कपड़े कौन साफ करेगा और ये गंगा जल का डिब्बा कौन ले जायेगा।
मैं धीरे से बोला मेरी प्राण प्रिय तुम चलो मैं सब निपटा कर और मॉं गंगा में डूबकी लगा कर आता हूॅं।
वह चल पड़ी उपर वट वृक्ष पर 51 फेरे लगाने और मैं खड़ा खड़ा सोचने लगा चलो गनीमत है कि मुझे बिना कसूर के फिर पिटने की नौबत नहीं आई। मैं बच गया, बाल बाल बच,जिसके लिए
भगवान को धन्यवाद दिया, मुहॅं में पान डाला और चल अपने अपने वाइफ होम की सेवा में।
अन्‍त में आदरणीया प्रधान जी, आदरणीया विधायक जी, आदरणीय सांसद जी मैं आप सब के स्‍वस्‍थ एवं सुखी जीवन की कामना करते हुए अपना पत्र समाप्‍त करता हूँ। आशा है कि आप हमारे पत्र को कचरे के डिब्‍बे की शोभा बढ़ाने हेतु प्रयोग करेगें।
आपका अखंड गहमरी,
प्रणाम स्‍वीकार करेंा

मुख्‍यअतिथि बन आई गजगमिनियॉं

आज सुबह से मैं बहुत खुश था। उतना खुश तो मैं न अपनी शादी में हुआ न आपकी साली की साली शादी में। अब आप कहेगें कि मेरी साली की शादी में मेरे खुश होने का क्‍या कारण है तो उसका सीधा जबाब है कि मेरी साली की शादी तो घटतालिस साल पहले हो गई थी, ससुराल बिना साली के जाता हूँ, आप जा कर साली के मुहब्‍ब्‍त में पागल होते थे, अब आप भी नहीं होगें। सीधी सी बात है इस संसार में न कोई अपने दुख से दुखी न अपने सुख से सुखी, यहॉं तो सब दूसरे के दुख से सुखी और दूसरे के सुख से दुखी है। तो मैं क्‍यों न उस परम्‍परा का निर्वाह करूँ।
मैं आप सुबह सुबह तीन बजे उठ कर घर ही झाडू पोछा किया, बर्तन की सफाई कर अपनी बाइफ होम की सेवा में बेड टी प्रस्‍तुत कर उससे दिन के सफल होने का आर्शीवाद लेते हुए शाम को स्‍कूल से विलम्‍ब से घर लौटने की परमिशन ग्रांट करने की अर्जी लगाई। परमीशन ग्राटं हुआ मैं खुश हुआ।
परमीशन पाकर आज मैने कचंनीयाँ वाशिंग पाउडर से रगड़-रगड़ कर नहाया, पलटनियॉं सेन्‍ट, और धडकनीया पाउडर मार कर सूटेड-बूटेड हुआ और चल पड़ा अपनी मंजिल की तरफ, लेकिन तभी बिल्‍ली रस्‍ता काट गई। मेरी वाइफ होम टोक गई। उसने अपनी सुर-मधुर आवाज में चरण पादुका दिखाते हुए कहा कि अगर लाटसाहब को लौटने में देर हो तो लटकनियॉ ढाबे से रात का खाना लेते आना, भूलना मत, नहीं तो यह देख लो, 9 नम्‍बर की है, एक तरफ 9 दूसरे तरफ 6 हो जायेगी। मरता क्‍या न करता, शाम को होने वाली दुर्घटना की कल्‍पना मात्र से अपने प्‍यारे प्‍यारे गालो को सहलाया और वही से देवी को प्रणाम करते हुए या जल्‍द आने या खाना लाने का बचन दिया दिया।
घर से निकल कर स्‍कूल पहुॅच चुका था। खास बात यह थी कि अब चुहे से शेर हो चुका था, पहुँचे दहाड़ा, दो विकेट गिरते पड़ते पहुँचे। सारी तैयारी हो चुकी है ? मैं शेर की मानिंद दहाड़ते हुए पूछा। जी सारी तैयारी हो चुकी है, माला, स्‍मृति चिन्‍ह, अंग वस्‍त्र, नास्‍ते सब आ चुके है, चपरासी ब्रजेश ने जबाब दिया। मैं स्‍कूल में ब्रजेश को बहुत परेशान करता। करता भी क्‍यों नहीं ? वह बिहारी घर में मुझे चैन से रहने नहीं देता। सिकन्‍दर जो ठहरा। अब आप कहेंगें कि इस जमाने में सिकन्‍दर कहॉं से आ गया ? तो भाई पुरानी कहावत है कि जिसकी बहन अन्‍दर उसका भाई सिकन्‍दर। घर में वह अपनी बहन के साथ मेरा जीना हराम करता और मैं यहॉं मौका मिलते उसका। ये बात अलग थी कि उसको परेशान करने की सजा मुझे घर पहँचते मिल जाती मगर जंगल में मोर नाचा किसने देखा ?
स्‍कूल में सारी तैयारी हो चुकी थी। मैं खुद ही सारी तैयारी का जायजा ले रहा था। लेता भी क्‍यों नहीं ?आज पटलनियॉं दिवस के अवसर पर मेरी पूर्व प्रेमिका गजगमिनियॉं जो मुख्‍य अतिथि बन कर आ रही थी। जिसकी खुशी में मैं उस दिन से ही पागल था जिस दिन से मुझे प्रिरिंनिसिपल साहेब ने बताया था। स्‍कूल की कई दिवारो पर ईट से दिनो की लकीरे बनाई थी, रोज एक लकीर काटता। मन तो करता कि सारी लकीरे एक ही दिन काट दूँ और उसके आने का दिन जल्‍दी से आ जाये, मगर यहॉं अल्‍ताफ रजा का गाना ईश्‍क और प्‍यार का मजा लीजिए भारी पड़ रहा था।
मैं बार बार घडी देख चुका था अाज जल्‍दी दस भ्‍ाी नहीं बज रहा था, रोज तो दस ऐसे बजता जैसे ऑंखे मटकती थी, मगर आज घडी की सूई ऐसे चल रही थी जैसे चीटीं। भॉंवो के उतार चढाव के बीच दस बज कर गया, माइक से बार बार उद़घोषण हो रही थी कि मुख्‍य अतिथि आने वाली हैं -आने वाली है। स्‍कूल के बच्‍चे परेशान हो रहे थे और मेरी गजगमिनियॉं मेरे दिल का भी ख्‍याल न करते हुए ऐसे चल रही थी जैसे दौरी में पैर। धीरे धीरे बारह बजने को हुए तभी कार की हार्न सुनाई दी, मैं दौड कर गेट पर पहुँचा। कार अन्‍दर आ चुकी थी। मैने तड़ से गेट खोला, वह बाहर निकली। ऩजरे चार हुई , कुछ वो शर्माइ कुछ मैं।उसके साथ चलते हुए मैं मंच तक पहुँच चुका था। संचालक महोदय मेरी गजगमिनियॉं के शान में मेरे लिखे कसीदे पढ़ रहे थे, जिसे सुन कर मेरी गजगमिनियॉं बार बार मेरी तरफ देख रही थी, शायद उसे अंदाज हो गया था कि भाषा तो उसके झनझनियॉं प्रेमी की है भले बोल कोई और रहा है।उसके साथ चलते हुए मैं मंच तक पहुँच चुका था। संचालक महोदय मेरी गजगमिनियॉं के शान में मेरे लिखे कसीदे पढ़ रहे थे, जिसे सुन कर मेरी गजगमिनियॉं बार बार मेरी तरफ देख रही थी, शायद उसे अंदाज हो गया था कि भाषा तो उसके झनझनियॉं प्रेमी की है भले बोल कोई और रहा है।
अब तो स्‍वागत का दौर शुरू हो चुका था। विद्यालय में 24 घंटे में 48 घंटे 60 मिनट दर्शन देने वाले योद्वा माल्‍यापर्ण के लिए बुलाये जा रहे थे। स्‍वागत का दौर खत्‍म हुआ, अब बारी स्‍वागत भाषण की थी, बाई गाड क्‍या बखान हो रहा था मेरी गजगमिनियॉं का, मेरा सीधा तो 59 इंच का हो रहा था। अब बारी आई स्‍मृति चिन्‍ह देने की, बुलाया गया मैं। बिल्‍कुल वैसे तैयार होकर चल दिया जैसे पर जयमाल स्‍टेज पर पहुँच कर जयमाल होने की वाला हो। जैसे शादी मे साली जयमाल देते है वैसे ही चपरासी ने मुझे स्‍मृति चिन्‍ह दिया, मैनै उस साफ स्‍मृति चिन्‍ह को जेब से रूमाल निकाल कर और साफ किया। रूमाल मे साथ एक गुलाब भी उसके साथ निकला। मैने स्‍मृति चिन्‍ह के नीचे छुपा कर उसे भेट किया, उसने स्‍वीकर किया।मगर मेरी किस्‍मत खराब निकली, वाइफ होम से पिटने का जुगाड कर देती, फूल देते समय मेरे चोर से साले ने देख लिया। मैने भी सोचा जो होगा बाद में होगा, पहले तो गुड़ खाया जाये, कान तो बाद में छिदेगा।
अब शुरू हुआ बच्‍चों के कार्यक्रम का दौर। बीस दिन से बच्‍चे तैयारी में लगे थे। एक से एक कार्यक्रम प्रस्‍तुत होने लगे, सभी खुश थे।तालीयॉं बज रही थी। मैं तो केवल अपनी गजगमिनियॉं देखने में बीजी था। होता भी क्‍यों नहीं बहुत दिनो के बाद जो मिली थी आज। मैं उसकी तरफ देखते हुए इस बात का इंतजार कर रहा था कि कब उन बच्‍चों को बुलाया जाये जिन्‍हें मैने अपने प्रेमगीत गाने को दिये थे। इन्‍तजार की घडीयॉं बढ रही थी, उधर बच्‍चे बार बार संचालक के पास पहुँच रहे थे। संचालक महोदय समय कम है समय कम की बार बार रट लगा रहे थे। तभी कुछ बच्‍चे मेरे पास अा गये, सर जी सर जी मेरा कार्यक्रम नहीं होगा, मेरा कार्यक्रम नहीं होगा। मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। संचालक महोदय के पास पहुँचा तो पता चला कि विलम्‍ब होने के कारण बच्‍चों के कई कार्यक्रम रद्व कर दिये गये है।समय कम है समय कम है कहते कहते पूरी बच्‍चो की भावनाओं को ख्‍याल न करते हुए काॅट छॉंट करते हुए मुख्‍यअ‍तिथि और विशिष्‍ठ अतिथि महोदय को आशीर्वाद के लिए बुलाया गया। विशिष्‍ठ अतिथि महोदय ने तो अपने दल के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष से लेकर पलटटनिया पुर के अपने दल के वार्ड मेंम्‍बर तक का नाम लेते हुए समय कम है अधिक समय न लेते हुए, समय कम है अधिक समय न लेते हुए पूरी रामायण सुना डाली और अंत में वह अधिक क्‍या बोलूँ बच्‍चों का कार्यक्रम है कह कर किसी तरह बैठे। अब बारी थी मेरी गजगमिनियॉं की उसने तो समय के नाम पर बस एक घंटे ही लिये, सावन से भादो कम क्‍यों रहे, उसने भी वहॉं मौजूद एक एक बच्‍चे तक का नाम लेते हुए क्‍या नहीं कहा उसने, अपने दल की पुरी कहानी, खैर चूना लगा लगा कर मात्र 50 मिनट में सुनाई, शेष 10 मिनट वह समय कम है समय कम है, और धन्‍यवाद कहती रही। बीच बीच में मेरी तरफ देखने से भी नही चुकती। मेरी तरफ देख कर मुस्‍कुराती जैसे उसकी मुस्‍कुराहट पूछ रही हो कि कहो मेरे झकझनियॉं प्रेमी मैं ठीक बोल रही हूँ न ? अब मेरी कहॉं औकात तो कह देता कि तलतनीयॉं डीयर तुम तो ठीक बोल रही हो, तुम्‍हारे पहले वाले भी ठीक बोले, मगर उन बच्‍चों का क्‍या कसूर जो तुम्‍हारे सामने अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन का करने की तैयारी एक माह पहले से कर रहे थे, और तुम्‍हारा विलम्‍ब से आना, और मेरे विद्यालय की चमचागिरी ने पूरे बच्‍चों का मन तोड़ कर रख दिया। खैर उन बच्‍चों का क्‍या ? उनकी भावना जाये तेल लेने मगर मुख्‍यअतथि का सम्‍मान तो होना चाहिए। मगर गजब की बात देखीये, आपको जलन होने लगेगी, मेरे मन की बात मेरी गजगमिनियॉं तक पहुँच। वाह रे दिलेरी धडधडी वह अपनी बात समाप्‍त कर बैठी। उत्‍सव खत्‍म हुआ, सारे पीछे पीछे उसे कार में छोडने आ गये, वह कार में बैठ चुकी थी, कार र्स्‍टाट होने वाली ही थी कि उसने मुझे देखा और ऑंखो ही ऑंखो में मिलने का ईसारा किया, मैं उसके साथ जाने को तैयार ही था कि मेरी घड़ी ने भी शाम होने का एलार्म बज दिया यानि शेर से चुहा बनने के समय की सूचना पूर्व चेतावनी दिया। उसमें भी आज मुझे अपनी वाइफ होम के हाथो पिटना ही। मैं चल पडा उसके कार के पीछे, कुछ दूर जाने पर उसने मेरा स्‍कूटर साइड कराया और मुझै बैठा लिया अपने कार में। काफी देर मलतनियॉंगंज से खल‍तनियॉं चौराहे घूमते घूमते प्‍यार मुहब्‍ब्‍त की बाते करते, पकघरिया चाट वाले की चाट खाते हम दुबारा उसी जगह पर आ गये जहॉं मेरा स्‍कूटर खड़ा था, मैं उतरने लगा तो उसने घीरे से कहॉ सही कह रहे थे मेरे पटकमरिया प्रेमी, आज हम अपने स्‍वार्थ में बच्‍चो की कोमल भावनाओं का ख्‍याल नहीं करते, हम उनकी तैयारी, उनके सपने केवल मुख्‍यअतिथि के सम्‍मान की भेट चढा देते हैं, और मुख्‍यअतिथियों का तो देर करना एक फैंशन बन गया है और उनकी शान में कार्यक्रम को विलम्‍ब करना एक उनकी मेहमानबाजी का तरीका। हम कैसे बच्‍चों के कोमल मन को मसल देते हैं इसका आभास हमें होते हुए भी नहीं होता। मैने उसे शांत कराया और विदा किया उसके घर की तरफ और खुद अपना बाबा आदम के जमाने का स्‍कूटर निकाला और चल पडा अपनी वाइफ होम के चरण पादुका द्वारा पूजे जाने के पराम्‍परिक कार्यक्रम के श्रीगणेश के लिए अपने आशियाने की तरफ, अपने महल की तरफ जहॉं मेरी दिलजानी, मेरी महरानी मेरी वाइफ होम रहती है। अखंड गहमरी

एक सिर के सपने - गजगमिनियॉं

सुबह से आज बकलडीया पार्क में बैठे हम दोनो लव विक के आनंद में मगसूल थे। रोज डे, चाकलेट से, टैडी डे, हग डे से गजुरते हुए हम वैलेंनटाइन डे तक आ पहुँचे थे। वैसे आज सुबह सुबह वैलेंनटाइन डे मनाने से पहले बेलनटाइट डे मना चुका था। बर्तन धोते समय वह शीशे का कप गिलास जो मेरे साले ने प्‍यार से तिलकोत्‍वस में दिया था आज वह धोते समय ऐसा गिरा कि मेरे वाइफ होम के सारे बेलन मेरे ऊपर ही गिरे। मैं यह सोच कर वाइफ होम के दिये उस गम को भूल बैठा कि जब कुछ अच्‍छा होना होता है तो बुरा होता ही है। मैं अपने दर्द को छुपाये बकलडीया गार्डन में अपनी प्‍यारी प्‍यारी गजगनमिनियॉं के बाहो में बैठ कर ईश्‍क फरमा रहा था।
सुबह से शाम हो गई, हमारे आगे मूॅमफली के छिलको की बाढ आ गई थी, कभी मैं उसे खिलाता कभी वह मुझे खिलाती। अब तो अंगुलीयों में पटटी बधवाने की नौबत आ गई थी, आज मेरी अंगुलीयॉं जल्‍दीबाजी में कई बार उसके दॉंतो के नीचे आ गई खैर कोई बात नहीं प्‍यार किया तो डरना क्‍या।
अब तो बकलडीहा गार्डन के बंद होने का समय भी आ गया, कहते हैं न दिल नहीं भरा वही हाल था मेरा आज दिल नहीं भरा। अब तो एक साल के बाद ही यह दिन आयेगा।सूर्य देवता अपने घर जा चुके थे, हम दोनो भी अपने घर जाने के लिए निकल चुके थे। न कदम उठते थे, न मन, मगर जाना तो था ही चल पड़े अपनी अपनी मंंजिल की तरफ।
मैने अपना मोबाइल जो सुबह से ही वाइफ होम के डर से बंद पड़ा था, खोल लिया। मैसेज आने शुरू हो गये थे। तड-तड-पड़-पड़ लगातार मैसेज आते देख कर तो मेरी गजगनिमियॉं न जाने क्‍यों मेरा मोबाइल अपने हाथो में झपटा मारते हुए ले लिया।
खैर उसने मेरा मोबाइल मेरी तरफ दिखाते हुए बोली यह देख रहे हो, कुत्‍तो ने क्‍या किया, मेरा डर कुछ कम हुआ क्‍योंकि उसने कुत्‍तों ने कहा था, निश्‍चित ही वह पुलिंग शब्‍द का प्रयोग किया तो डर खत्‍म होना स्‍वभाविक था। उसका झपटा देख कर ऐसा लगा जैसे वह औरत न होकर बाज हो, जो चील को देखते ही झपटा मार देती हो। मैसेज मैसेज चेक करती रही, उसकी ऑंखे अंगारे में बदल जा रही थी, मैं डर गया। कही किसी कचगमिनियॉं ने बदमाशी मे आई लव यू तो लिख कर नहीं भेज दिया कि मैं पीटूँ और वह सुबह मेरा हाल पूछने आये। क्‍योंंकि मैं तो अकसर लोगो के साथ ऐसा करता था, तो कही शेर पर कोई सवा शेर तो नहीं मिल गया।
खैर उसने मेरा मोबाइल मेरी तरफ दिखाते हुए बोली यह देख रहे हो, कुत्‍तो ने क्‍या किया, मेरा डर कुछ कम हुआ क्‍योंकि उसने कुत्‍तों ने कहा था, निश्‍चित ही वह पुलिंग शब्‍द का प्रयोग किया तो डर खत्‍म होना स्‍वभाविक था।
मैने उसके हाथो से तेजी से मोबाइल लिया और वह बात देखने लगा जिससे उसका चेहरा गुस्‍से से लाल हो जा रहा था। मोबाइल देखा तो हर तरफ काश्‍मीर में पुलगामा में आतंकवादी हमले में 40 सी आर पी एफ के जवानो की शहादत की खबर थी।
मेरा चेहरा भी गुस्‍से से लाल होने लगा।
तभी एक झापड़ मेरे गाल पर पड़ा मैने हाथ से गालो को सहलाने लगा।
तुम तो कहते थे कि घाटी शांत हो गई है ये क्‍या है, गजगनिमियॉं ने दिन भर का प्‍यार निकले हुए एक झापड रसीद करते हुए पूछा।
घाटी तो शांत थी ही देखो कई दिनो से कोई वारदात नही हो रही थी। मैने धीरे से जबाब दिया, आप तो जानते ही है कि गजगमिनियॉं के आगे बोलने की औकात मेरी नहीं, उसमे भी जोर से ये तो सवाल ही पैदा नही हो सकता।
तो फिर ये क्‍या है।
पागल कुत्‍ते शहर के तरफ दौड रहे हैं, अँधेरे का लाभ उठा कर शेर को काट लिये है, उनकी पूरी विरादरी ही अब नष्‍ट हो जायेगी परेशान न हो, मैने अपनी गजगमिनयॉं को समझाते हुए कहा।
हाय हाय हाय मेरे लतखनीय प्रेमी, कितनी बार कुत्‍तो का कुनवा नष्‍ट किया है तुमने, मैं ने नहीं देखा क्‍या। अब तो गजगमिनियॉं का टेम्‍पर हाई होते जा रहा था। मैने तो समझ नहीं पा रहा था कि क्‍या जबाब दूँ।मैने दंड-बैठक किया, दारा सिंह को याद किया, हिम्‍मत जुटाई और सीधे से बोला मेरी खटखनियॉ डीयर अभी नेताओं ने कड़े शब्‍दो में निंदा किया है, कहा है कि बदला लेगें, एक बदले दस सर लायेगें। शांत रहो तेल देखो, तेल की धार देखो।
नियाहत ही लतखोर आदमी हो तुम मेरे पडपड़ीयॉं डीयर तुम्‍हारे नेताओं की कड़े शब्‍दो की निन्‍दा सुन कर तो पाकिस्‍तान के पैन्‍ट गीले हो गये, जिसको सुखाने के लिए वह तुम्‍हारे यहॉं बार बार बम के धमाके करता है। और रही दस सिर की बात तो इतना कहते हुए उसके दॉंत के ऊपर दॉंत चढ़ गये , मुट्टी बंद होने लगी।
मैं चार कदम पीछे हट गया कही ऐसा न हो वह मुझे ही पाकिस्‍तान समझ कर मेरी कुटाई भरे बाजार कर दें, और पुलिस मुझे लड़की छेडने के आरोप में अन्‍दर कर दें और मुक्‍तक लोक के एडमिन मुझे बाहर कर दें। हे भगवान चारो तरफ से मेरी ही जान आफत में।।
उसने मुझे पीछे हटता देख कर एक कदम आगे बढ़ाया और मेरे कालर पकड़े, कहा कि एक के बदले दस लाओ या पचास हजार, मगर क्‍या उस एक सर से होने वाले सपने को पूरा कर सकते हो, उस एक सर से जो अरमान जुड़ हैं उसे पूरा कर सकते हो। उस एक सर से मिटने वाली सिन्‍दूर की लाली को तुम दस सर से ला सकते हो।
मैं चुपचाप देख रहा था उसके चेहरे को, मेरे जुबान से कोई शब्‍द नहीं निकल रहे थे।
मैं पकपकी दास बिल्‍कुल शांत खडा था, मेरी शांति उसे बर्दाश्‍त नहीं हुई। हम चलते चलते आईक्रीम की दुकान पर पहुँच चुके थे। जाओं एक आईसक्रीम लाओ मेरे लिए उसने फरमान सुनाया, मैं उसे देख रहा था जाडे की रात में वह पसीने से तरबतर है।
मैंने ऑंख नीचे कर धीरे से कहा मेरी घटघटनिया जाड़े में आईक्रीम नहीं खाया जाता, तबीयत खराब हो जायेगी। तड़ तड उसने अपने चरण पादुका से मेरे सिर पर प्रहार करते हुए कहा, बहस नहीं मुझसे, एक दम बहस नहीं जो कह रही हूँ सुनो। मरता क्‍या न करता मैं भागा आईक्रीम लाकर उसकी सेवा में प्रस्‍तुत किया।
तुमको यहॉं जाडा लगा रहा है, कभी कल्‍पना किये हो कि जो सैनिक जीरो से भ्‍ाी नीचे के माहौल में रह कर देश की सुरक्षा करता है उसकी क्‍या हालत होगी।
ह, हा हाा, मेरे जुबान से आवाज नहीं निकल रही थी। ये ह हह हस क्‍या लगा रखा है ? साफ क्‍यों नहीं बोलते? तुम्‍हारे यह नेता एक अपनी सुरक्षा के लिए सैकड़ो गाडीयो का लाव नस्‍कर रख कर चलते हैं, हजारो सुरक्षा कर्मी रखे जाते हैं, क्‍यों क्‍या उनकी जान की बहुत कीमत है ?और एक आम सैनिक की जान की कीमत नहीं ?
है जानू बहुत कीमत है मैने कसाई के आगे बकरे के जैसी गिडगिडाहट लिये कहा।
कुछ कीमत नहीं तुम्‍हारे नेताओं के आगे सैनिको की, उनके जान की, तभी तो ये आये दिन हो रहा है।
काश्‍मीर की घाटी को तुम्‍हारे नेताओं ने वोटो का स्‍वर्ग समझ लिया है। अपनी राजनीति का अखाडा समझ लिया है।
कभी किसी नेता की मॉं, बहन बेटी का सुहाग उजड़ता तो समझ में आता कि एक सैनिक के शहीद होने के बाद उसके परिवार पर क्‍या बीतती है। तब उसके कलेजे को देखती, मगर यहॉं तो बंद कमरो में बैठक राजभोग करते हुए बस चमड़े की जबान चलानी है।
उसके गुस्‍से को देखते हुए आज न सिर्फ मैं वेलेनटाइन भूल चुका था बल्कि सुबह वाइफ होम के बेलनटाइट को भी भूल चुका था।मैं उसके प्‍यारे लम्‍बे घने मुलायम बालो को अपने हाथो में लिया और बोला घर चलो प्रियागंना, अब तुम बनती जा रही हो विरांगना, उसके चेहरे पर हल्‍की हँसी आई, जैसे लगा कि हजारो फूल चमक उठे हो, मेरा दिल बाग बाग होने लगा।
उसने मुस्‍कुराते हुए कहा मेरे बटोरन पूर्व सैंया तुम्‍हारे बस की बात नहीं मेरे अन्‍दर की आग सह जाना , कही तुम न जल आओ।
मैं दहल उठा, अभी तो पल पहले शीतल छॉंव देने वाली प्रेमिका अरे मतलब वही पूर्व प्रेमिका अब मुझे जलाने की बात करने लगी, मैं चार कदम पीछे हट गया, पता नहीं कब रौद्व रूप में आ जाये।
तभी उसकी आईसक्रीम का आधा हिस्‍सा गल कर नीचे गिर गया, उसने उठा कर उसे ऐसे फेंका जैसे वह आईसक्रीम नहीं बम को गालो हो और दूसरी तरफ पाकिस्‍तान हो।
आऊ आऊ मुहँ में की आईसक्रीम तेजी से चबाते हुए बोली। आज तुम्‍हारे नेता पाकिस्‍तान को दोष क्‍यों देते हैं, क्‍यों प्रार्थना करते हुए उससे आतंकवाद बंद करने की, कभी दुश्‍मन से भी निवदेन किया जाता है अगर दुश्‍मन तुम्‍हारी बात मान लें तो फिर वह दुश्‍मन ही कहॉं रहा।
मैने कहा छोडो जाने दो, हम अपनी बात करें, चलते चलते गाने सुने।
अब गाने सुनने लायक भ्‍ीा नहीं रहेगो, जो तुम्‍हारा हाल है वह अब काश्‍मीर तो काश्‍मीर तुम्‍हारे तडतियावनपुर में आंतकवादी घुस कर मारेगें और तुम बस कड़ी निंदा करोगें।
आज तक क्‍या किया तुमने और तुम्‍हारे नेताओं ने
ऐसी बात नहीं गजगमिनियॉं, हमने और हमारे नेता ने पाकिस्‍तान को अलग थलग कर दिया। उसकी कमर तोड़ कर रख दिया।
हा हा हा हा हा कमर तोड कर रख दिया, हा हा हा जब कमर तोड कर रख दिया तो वह टूटी कमर से तुम्‍हारी कोख उजाड रहा है, तुम्‍हारे सिन्‍दुर मिटा रहा है, ये कैसी कमर टूटी है उसकी ।
मैने तो उसकी बाते सुन कर अब संतोष साहिल भाई की तरफ देखने लगा जो काफी देर से खम्‍भे के पीछे खडे हो कर हमारी बातें सुन रहे थे। वह मुझे चुप रहने का ईशारा कर रहे थे, मैं उनकी तरफ देख कर चेहरा हिला रहा था, तभी उसने पूछा क्‍या उधर देख कर ईशारे कर रहे हो, कौन है उधर, इतना सुनने ही संतोष साहिल भाई ईट की दिवार फॉंद कर झाडी में जा छुपे।
मैने धीरे से कहा अब कल बात करते हैं चलो घर चला जाये।
नहीं करनी है मुझे तुमसे बात, बिल्‍कुल नहीं करनी है, जाओ पहले अपने नेताओं से बात करो और पूछो कि काश्‍मीर को भारत का अंग मुहँ से कहते रहेगें या 370 पर कार्यावाही करेगें। भारतीय सेना को गीदड बनाने का काम , उनको मौत में मुख में ढकेले का काम कब तक करेगें।
यह कह कर उसने अपनी कबेरा गाडी स्‍टार्ट की और चल दी अपने घर की तरफ
मैं तो उसकी आवाज से ऐसे ही डरा हुआ था, अब तो उसने मुझपे मिलने पर भी शर्त लगा दी। रात के दस बज चुके थे,सुबह की शुरूआत तो वाइफ होम के बेलन से हुई, आज खाना न बनाने की सजा फिर झाडू से ही मिलेगी, यह सोचते हुए मैं चल पडा अपने घर की ओर।
मुझे तो अब पिटना हैं , घर के काम करने हैं, आप जरा सोचीयेगा कि मेरी गजगमिनियॉं ने जो बात किया वह सही था कि गलत।
अखंड गहमरी