मिशन गजगमिनियाँ ए खोज
चटाक, उस महिला से एक जबदस्त चाँटा खाकर मैं उसे स्वारी बोलता हूँ आगे बढ़ गया, मगर वो अभी भी मुझे एक से बढ़ कर उपाधियों से नवाजी जा रही थी। ये पहला मौका नहीं था आज गालियां सुनने और पिटने का। आज सुबह से दर्जनो चाँटे और सेडिंल की मार खा चुका था।
अब तो हालत यह थी कि जब भी पुस्तक मेले में एनाउंस होता कि एक आदमी छेडछाड में पिटा, लोग कहते निश्चित अखंड गहमरी होगा, जो सुबह से विश्व पुस्तक मेले में गायब हुई अपनी पूर्व प्रेमिका गजगमिनियाँ को खोजने के चक्कर किसी किसी महिला और पुरूष साहित्यकारो से में पिट रहा है।
मैं पागलो सा इधर उधर भटक रहा था। आँखो में आसूँओ की धार थी। गजगमिनियाँ-गजगमिनियाँ चिल्लाते-चिल्लाते गला सूख चुका था। मगर क्या मजाल जो मैं पानी की एक बूँद भी पी लेता। मैं भटक रहा था तभी रेवडियां चाची जो बिलखेदना के साथ लेकर लतमरूआ साहित्य कि किताबें खोजते 13 नम्बर हाल में मिल गई, मैं उनको देखते टूट गया। गला फाड़ कर रोते रोते सारी बात बताई। वो व्याकुल हो गई और मुझे बीस रूपये के सिक्के देते हुए बोली बेटा अच्छी जगह देख कर ये सिक्के जमीन पर रख कर बैठ जाओ, लोग आते जाते कुछ न कुछ दे जायेगें और यही बैठे बैठे तुम उसको खोज भी लोगे। जब कुछ चंदे की रकम इकट्ठा हो जाये तो एक किताब उसके नाम पर यही किसी प्रकाशक को दे कर छपवा लेना। एक पंथ दो काज हो जायेगें। इतनी नेक सलाह दे कर वह लतमरूआ साहित्य खोजने चली गई। मैं सोचा सलाह अच्छी है अभी खोज और खोज लूँ तीन बजे से उनकी सलाह पर अम्ल भी करूँगा।
मैं अपने मिशन *गजगमिनियाँ की खोज* पर चल दिया। सात से लेकर 12 तक के सभी हाल के एक- एक स्टाल खोज चुका था। वो मिलने का नाम नहीं ले रही थी। इस खोज में अब काजू की बर्फी खाते खाते पेट भी भर चुका था। कुछ लोगो ने मुझे इस स्टाल से उस स्टाल तक सूटिंग-बूटिंग में दौड़ते देख कर बड़ा साहित्यकार कर विमोचन करने और अपनी पुस्तक पर दो शब्द बोलने की जिद करने लगते। मैं भी खुद को गौरवशाली महसूस करता। एक तरफ ये खुशी दूसरी तरफ गजगमिनियाँ को खोने का गम और तीसरी तरफ बार-बार वाइफ होम का '' कहाँ हो का फोन और वीडियो चैट"। अब तो मैनें फैसला कर लिया कि अँग्रेजी प्रकाशन के बैनर के नीचे बैठ कर अपने अश्को के शुद्द जल में सत्तू सान कर खाते हुए गम गीला और पेट ऊँचा करता हूँ। मेरी गजगमिनियाँ जहाँ भी होगी लिखी-पढ़ी है अँग्रेजी साहित्य खोजते जरूर इधर आयेगी। ठूँसने तक नहीं मिली तो रेबड़िया चाची की सलाह पर अमल करेगें, मैने जेब पर हाथ लगा कर उन बीस रूपये के सिक्के जेब में होने की पुष्टि की।
वैसे भी मेरा चेहरा चाँटो और सेंडिलो के निशान से भर चुका है। अब और जगह नहीं बची है। सत्तू निकाला , तड़ाक एक जोरदार चाँटा मुहँ पर ..नसपिटे , भथबोरन, मैं पागलो 12 अंन्डे ,16 रोल आमलेट खा कर पागलो की तरह भूखी तुमको खोज रही हूँ। सूख कर चेहरा फूल से काटाँ हो गया और जनाब यहाँ बैठ कर मजे से वाइफ होम का दिया हुआ सत्तू खा रहे हैं। फटाक, चटाक , भूत की तरह अचानक सामने आई मेरी गजगमिनियाँ मुझे कूटते हुए चिल्लाती जा रही थी।
मैं तड़प रहा था, गजगमिनियाँ कूट रही थी, साहित्यकार मजे ले रहे थे। भला हो रेबडिया चाची का न जाने कहाँ से वो पहुँच गई, और गजगमिनियाँ का हाथ पकड़ ली, मेरी जान में जान आई।
काहे मार रही हो, बेचारा सुबह से खोजते खोजते 70 किलो का हो गया। सुबह से बेचारे ने बीस पच्चीस रोल और दस ग्यारह डोसे छोड कुछ नहीं खाया और तुम इसे पीटने लगी।
इतना सुनते मेरी गजगमिनियाँ इमोशनल हो गई, सैंडिल नीचे रख कर अपने हाथो में लगी सैंडिल की गंदगी मेरे बालो को सहलाते साफ की। दोनो हाथो में मेरे गालो को लेकर बोली, ऐ मेरे खड़पितिया आशिक मेरे खोज में इतना पागल हो गये, इतना कह वह रोने लगी। उसके अश्को से तहलका मच गया, स्टाल वाले दौड़ पड़े, मेला प्रवन्धक दौड़ पड़े। चारो तरफ पानी ही पानी था, बाढ़ का खतरा उत्पन्न हो गया था।सब उसे चुप कराने में लगें। वह किसी तरह चुप हुई और बोली चलो साँवरे बलम कुछ खाते-पीते हैं। दोनो एक दूसरे की बाहो में बाँह डाले चल दिये। दस नम्बर हाल के पास हम लोगे ने पापकार्न खरीदे और और बैठ गये गम गीला करने के लिए गेट नम्बर आठ के पास एक पत्थर पर।
मैने अपने रूमाल से उसके चेहरे को साफ किया, यहाँ फिर गलती हो गई और उसके चेहरे का मेकप भी साफ हो गया। मैं भययुक्त हो गया। पर उसने चरण दास का प्रयोग करने की जगह प्यार से बोला '' मेरे खड़पतिया प्रेमी तुम पर जो साहित्यकारिता का भूत सवार है वो छोड़ दो.तुममे साहित्यकारिता के 9 गुण में से एक भी गुण नही।
ऐसा क्यों कह रही हो प्रिय अभी मेरी बात पूरी भी नही हुई थी कि कुछ लड़ने की आवाज सुनाई दी, मैने पटल कर देखा तो कुछ देर पहले एक मंच पर एक दूसरे की तारीफ करते नहीं थकने वाले बच्चो की तरह लड़ रहे है, एक दूसरे का राज खोल रहे हैं। यह देख कर मेरी गजगमिनियाँ बोल पड़ी, देखा वाइफ होम के साहित्यकार बलम ये है हकीकत, ये है साहित्यकारिता और ये तुम नहीं कर सकते और न तुम नेतागीरी कर सकते हो। साहित्यकारिता में मंच पर प्रेम, पीछे गाली और नेतागिरी में मंच पर गाली पीछे प्रेम का सिद्धांत लवेरिया गुरू द्वारा प्रतिपादित है। यह दोनो काम तुमसे नही होगा। मैं उसकी बात काट कर बोल पड़ा अरे मेरी चकोरी क्यो चौकोर हो रही हो, ये सब तो चलता रहता है, जहाँ प्रेम वही विवाद । अब मेरी गजगमिनियाँ गुस्सा गई , कही तुमको का पता साहित्यकारिता का होती है।
नहीं मेरी धन्नो मुझको तो पता नहीं, मगर तुमको भी तो पता नहीं। मैं तो यह कह कर बिल्ली के गले में घंटी बाध चुका था।
क्या बोले ? मुझको पता नही? तड़ एक लगा मैं चित।
वह बोल पड़ी.. आज मैं दिन भर तुम्हे खोजने में साहित्यकारिता की खोज की हूँ। तमकी लाल, दमकी लाल, मोखारी दूबे सब से मिल गई। तुमको क्या मालूम।
मैने थोड़ा सा मक्खन लगाया , तुम हो ही बला सी खूबसूरत ।
रहने दो रहने दो, वह फुलमतिया की तरह शर्माई और एक प्रश्न उछाला, ये बताओ कि
ईश्वर का दिया शरीर कितने तत्व से बना है ? मैं बोल पड़ा 5
सुनी नही हो. ''क्षिमि जल पावक गगन समीरा, पंच तत्व यह रचित शरीरा''।
तो उस तरह 5 गुणो को रखने वाला ही साहित्यकार होता है।
मैं गजगमिनियाँ के ज्ञान के आगे मेरा ज्ञान बेकार साबित हो रहा था।।
उसने बड़ी शान से कहा , सुनो मेरे खड़पितिया आशिक।
वह दूसरो का लिखा जो शान से मंच पर पढ़े उसे साहित्यकार कहते हैं।
जो कौमी एकता का गुणगान कर हिन्दू धर्म को गाली दे और सहिष्णुता अहिष्णुता का बाजा बजाये वो साहित्यकार है।
अभी उसका इतना कहना था कि चारो तरफ भीड़ लगने लगी, मैं उसे इशारे कर रोकना चाहा, मगर जो मान जाये गजगमिनियाँ नहीं। वह नहीं मानी बोलते जा रही थी।
पी.डी.एफ पेपर में जो छप कर जो सोशलमीडिया पर धडल्ले से महिमामंडन और लतीफे सुना कर, मंच पर चेहरा और हाथ चमकाया करे वो साहित्यकार है।
मंच पर आपसी मुहब्बत और नीचे छीछालेदर जो करे वही साहित्यकार।
मंच के जुगाड़ में दिन रात चमचालोक में रहे, जी हजूरी करे वही साहित्यकार है।
अगल बगल खड़े साहित्यकारो की मुट्ठी तन चुकी थी। इसके पहले कि कुछ और भूंकप आता मैं गजगमिनियाँ को लेकर प्रगति से बाहर निकलने का रास्ता खोजने लगा। सोचने लगा कि जो मेरी कल्पना है वह सत्य या जो उसने कहा वह सत्य।
अखंड गहमरी।।
चटाक, उस महिला से एक जबदस्त चाँटा खाकर मैं उसे स्वारी बोलता हूँ आगे बढ़ गया, मगर वो अभी भी मुझे एक से बढ़ कर उपाधियों से नवाजी जा रही थी। ये पहला मौका नहीं था आज गालियां सुनने और पिटने का। आज सुबह से दर्जनो चाँटे और सेडिंल की मार खा चुका था।
अब तो हालत यह थी कि जब भी पुस्तक मेले में एनाउंस होता कि एक आदमी छेडछाड में पिटा, लोग कहते निश्चित अखंड गहमरी होगा, जो सुबह से विश्व पुस्तक मेले में गायब हुई अपनी पूर्व प्रेमिका गजगमिनियाँ को खोजने के चक्कर किसी किसी महिला और पुरूष साहित्यकारो से में पिट रहा है।
मैं पागलो सा इधर उधर भटक रहा था। आँखो में आसूँओ की धार थी। गजगमिनियाँ-गजगमिनियाँ चिल्लाते-चिल्लाते गला सूख चुका था। मगर क्या मजाल जो मैं पानी की एक बूँद भी पी लेता। मैं भटक रहा था तभी रेवडियां चाची जो बिलखेदना के साथ लेकर लतमरूआ साहित्य कि किताबें खोजते 13 नम्बर हाल में मिल गई, मैं उनको देखते टूट गया। गला फाड़ कर रोते रोते सारी बात बताई। वो व्याकुल हो गई और मुझे बीस रूपये के सिक्के देते हुए बोली बेटा अच्छी जगह देख कर ये सिक्के जमीन पर रख कर बैठ जाओ, लोग आते जाते कुछ न कुछ दे जायेगें और यही बैठे बैठे तुम उसको खोज भी लोगे। जब कुछ चंदे की रकम इकट्ठा हो जाये तो एक किताब उसके नाम पर यही किसी प्रकाशक को दे कर छपवा लेना। एक पंथ दो काज हो जायेगें। इतनी नेक सलाह दे कर वह लतमरूआ साहित्य खोजने चली गई। मैं सोचा सलाह अच्छी है अभी खोज और खोज लूँ तीन बजे से उनकी सलाह पर अम्ल भी करूँगा।
मैं अपने मिशन *गजगमिनियाँ की खोज* पर चल दिया। सात से लेकर 12 तक के सभी हाल के एक- एक स्टाल खोज चुका था। वो मिलने का नाम नहीं ले रही थी। इस खोज में अब काजू की बर्फी खाते खाते पेट भी भर चुका था। कुछ लोगो ने मुझे इस स्टाल से उस स्टाल तक सूटिंग-बूटिंग में दौड़ते देख कर बड़ा साहित्यकार कर विमोचन करने और अपनी पुस्तक पर दो शब्द बोलने की जिद करने लगते। मैं भी खुद को गौरवशाली महसूस करता। एक तरफ ये खुशी दूसरी तरफ गजगमिनियाँ को खोने का गम और तीसरी तरफ बार-बार वाइफ होम का '' कहाँ हो का फोन और वीडियो चैट"। अब तो मैनें फैसला कर लिया कि अँग्रेजी प्रकाशन के बैनर के नीचे बैठ कर अपने अश्को के शुद्द जल में सत्तू सान कर खाते हुए गम गीला और पेट ऊँचा करता हूँ। मेरी गजगमिनियाँ जहाँ भी होगी लिखी-पढ़ी है अँग्रेजी साहित्य खोजते जरूर इधर आयेगी। ठूँसने तक नहीं मिली तो रेबड़िया चाची की सलाह पर अमल करेगें, मैने जेब पर हाथ लगा कर उन बीस रूपये के सिक्के जेब में होने की पुष्टि की।
वैसे भी मेरा चेहरा चाँटो और सेंडिलो के निशान से भर चुका है। अब और जगह नहीं बची है। सत्तू निकाला , तड़ाक एक जोरदार चाँटा मुहँ पर ..नसपिटे , भथबोरन, मैं पागलो 12 अंन्डे ,16 रोल आमलेट खा कर पागलो की तरह भूखी तुमको खोज रही हूँ। सूख कर चेहरा फूल से काटाँ हो गया और जनाब यहाँ बैठ कर मजे से वाइफ होम का दिया हुआ सत्तू खा रहे हैं। फटाक, चटाक , भूत की तरह अचानक सामने आई मेरी गजगमिनियाँ मुझे कूटते हुए चिल्लाती जा रही थी।
मैं तड़प रहा था, गजगमिनियाँ कूट रही थी, साहित्यकार मजे ले रहे थे। भला हो रेबडिया चाची का न जाने कहाँ से वो पहुँच गई, और गजगमिनियाँ का हाथ पकड़ ली, मेरी जान में जान आई।
काहे मार रही हो, बेचारा सुबह से खोजते खोजते 70 किलो का हो गया। सुबह से बेचारे ने बीस पच्चीस रोल और दस ग्यारह डोसे छोड कुछ नहीं खाया और तुम इसे पीटने लगी।
इतना सुनते मेरी गजगमिनियाँ इमोशनल हो गई, सैंडिल नीचे रख कर अपने हाथो में लगी सैंडिल की गंदगी मेरे बालो को सहलाते साफ की। दोनो हाथो में मेरे गालो को लेकर बोली, ऐ मेरे खड़पितिया आशिक मेरे खोज में इतना पागल हो गये, इतना कह वह रोने लगी। उसके अश्को से तहलका मच गया, स्टाल वाले दौड़ पड़े, मेला प्रवन्धक दौड़ पड़े। चारो तरफ पानी ही पानी था, बाढ़ का खतरा उत्पन्न हो गया था।सब उसे चुप कराने में लगें। वह किसी तरह चुप हुई और बोली चलो साँवरे बलम कुछ खाते-पीते हैं। दोनो एक दूसरे की बाहो में बाँह डाले चल दिये। दस नम्बर हाल के पास हम लोगे ने पापकार्न खरीदे और और बैठ गये गम गीला करने के लिए गेट नम्बर आठ के पास एक पत्थर पर।
मैने अपने रूमाल से उसके चेहरे को साफ किया, यहाँ फिर गलती हो गई और उसके चेहरे का मेकप भी साफ हो गया। मैं भययुक्त हो गया। पर उसने चरण दास का प्रयोग करने की जगह प्यार से बोला '' मेरे खड़पतिया प्रेमी तुम पर जो साहित्यकारिता का भूत सवार है वो छोड़ दो.तुममे साहित्यकारिता के 9 गुण में से एक भी गुण नही।
ऐसा क्यों कह रही हो प्रिय अभी मेरी बात पूरी भी नही हुई थी कि कुछ लड़ने की आवाज सुनाई दी, मैने पटल कर देखा तो कुछ देर पहले एक मंच पर एक दूसरे की तारीफ करते नहीं थकने वाले बच्चो की तरह लड़ रहे है, एक दूसरे का राज खोल रहे हैं। यह देख कर मेरी गजगमिनियाँ बोल पड़ी, देखा वाइफ होम के साहित्यकार बलम ये है हकीकत, ये है साहित्यकारिता और ये तुम नहीं कर सकते और न तुम नेतागीरी कर सकते हो। साहित्यकारिता में मंच पर प्रेम, पीछे गाली और नेतागिरी में मंच पर गाली पीछे प्रेम का सिद्धांत लवेरिया गुरू द्वारा प्रतिपादित है। यह दोनो काम तुमसे नही होगा। मैं उसकी बात काट कर बोल पड़ा अरे मेरी चकोरी क्यो चौकोर हो रही हो, ये सब तो चलता रहता है, जहाँ प्रेम वही विवाद । अब मेरी गजगमिनियाँ गुस्सा गई , कही तुमको का पता साहित्यकारिता का होती है।
नहीं मेरी धन्नो मुझको तो पता नहीं, मगर तुमको भी तो पता नहीं। मैं तो यह कह कर बिल्ली के गले में घंटी बाध चुका था।
क्या बोले ? मुझको पता नही? तड़ एक लगा मैं चित।
वह बोल पड़ी.. आज मैं दिन भर तुम्हे खोजने में साहित्यकारिता की खोज की हूँ। तमकी लाल, दमकी लाल, मोखारी दूबे सब से मिल गई। तुमको क्या मालूम।
मैने थोड़ा सा मक्खन लगाया , तुम हो ही बला सी खूबसूरत ।
रहने दो रहने दो, वह फुलमतिया की तरह शर्माई और एक प्रश्न उछाला, ये बताओ कि
ईश्वर का दिया शरीर कितने तत्व से बना है ? मैं बोल पड़ा 5
सुनी नही हो. ''क्षिमि जल पावक गगन समीरा, पंच तत्व यह रचित शरीरा''।
तो उस तरह 5 गुणो को रखने वाला ही साहित्यकार होता है।
मैं गजगमिनियाँ के ज्ञान के आगे मेरा ज्ञान बेकार साबित हो रहा था।।
उसने बड़ी शान से कहा , सुनो मेरे खड़पितिया आशिक।
वह दूसरो का लिखा जो शान से मंच पर पढ़े उसे साहित्यकार कहते हैं।
जो कौमी एकता का गुणगान कर हिन्दू धर्म को गाली दे और सहिष्णुता अहिष्णुता का बाजा बजाये वो साहित्यकार है।
अभी उसका इतना कहना था कि चारो तरफ भीड़ लगने लगी, मैं उसे इशारे कर रोकना चाहा, मगर जो मान जाये गजगमिनियाँ नहीं। वह नहीं मानी बोलते जा रही थी।
पी.डी.एफ पेपर में जो छप कर जो सोशलमीडिया पर धडल्ले से महिमामंडन और लतीफे सुना कर, मंच पर चेहरा और हाथ चमकाया करे वो साहित्यकार है।
मंच पर आपसी मुहब्बत और नीचे छीछालेदर जो करे वही साहित्यकार।
मंच के जुगाड़ में दिन रात चमचालोक में रहे, जी हजूरी करे वही साहित्यकार है।
अगल बगल खड़े साहित्यकारो की मुट्ठी तन चुकी थी। इसके पहले कि कुछ और भूंकप आता मैं गजगमिनियाँ को लेकर प्रगति से बाहर निकलने का रास्ता खोजने लगा। सोचने लगा कि जो मेरी कल्पना है वह सत्य या जो उसने कहा वह सत्य।
अखंड गहमरी।।
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