रविवार, 17 फ़रवरी 2019

पत्‍नी का लाइसेंन्‍स

आज न जाने क्यों एक पुरानी घटना बहुत याद आ रही है।
बात 2004 की है, जब मेरे पुत्र का जन्म नहीं हुआ, पत्नी प्रेग्नेंट थी। मेरे पास एक मारूती वैन हुआ करती थी जो कुछ दिनो से खराब थी और मैं उसे बक्सर शहर में जयप्रकाश चौक के पास एक गैरेज में बनने दिया था। एक दिन पत्नी के रूटीन चेकप के लिए बक्सर डाक्टर अनारकली के पास ले जाना था। मेरे मोहल्ले के ही डा. जितेन्द्र सिंह के ससुर जी जिनका आवास पटना है बक्सर में मेडिसिन स्पलायर थे, भीड़ के बावजूद न सिर्फ तुरन्त निरक्षण करवा बल्कि सारी दवाएं भी काफी रियाती दर पर उपलब्ध करवा दी । हमारी कार गैरेज में बन रही थी, जो मिस्तरी 3 बजे तक देने को कहा था। हम लोग उस दिन ट्रेन से बक्सर आये थे, योजना थी कि मेडिकल चेकप के बाद कुछ मारकेटिंग कर कार से लौटते समय , निकटवर्ती गाँव बारा में डाक्टर अमर सिंह के नर्सिंग होम में एडमिट अपनी चचेरी दादी अस्तुरना देवी पत्नी स्व.लालबहादुर सिंह को देखते हुए गहमर चले जायेगें।
मेडिकल चेकप के बाद हम लोग के उस समय के बक्सर के सबसे बडे वीडियो एवं सीडी कैसेट के होलसेलर बाम्बे वीडियो जिनसे मेरा परिवारिक संबंध भी हो गया था, उनके पास चले गये, वही भोजन उपरान्त पत्नी आराम करने लगी और मैं कार के पास आ गया। कार का एक समान पटना से आकर लगना था, मगर वह शाम 4 बजे तक नहीं आ पाया। मैं आकर बाम्बे भाई को बताया तो वह मुझ पर नाराज होने लगे। उन्होनें मुझे अपनी स्कूटर दिया और अँधेरा होने से पहले घर पहुँचने का फरमान सुना दिया। हम लोग बिना मारकेटिंग किये बक्सर से चल दिये। महज 9 किलोमीटर चौसा आने के बाद वह स्कूटर बिगड़ गई। शाम तेजी से ढल रही थी। उस समय शाम 6 बजे के बाद यादवमोड़ जो बक्सर से 11 किलोमीटर था वहाँ से बिहार सीमा पार कर 11 किलोमीटर यूपी में गहमर आने के लिए कोई साधन नहीं मिलता था। हम लोग परेशान।
तभी बक्सर से यादवमोड जाने वाली एक ऊपर नीचे फुल जीप आती दिखाई दी, उसकी हालत देख कर मदद संभव नहीं लगी।
फिर भी मैने हाथ दिया, वह रूक गई। संयोग था कि उस जीप में बक्सर गहमर के बीच चलने वाले जीप के टाइम टेकर बैठे थे। वह तुरन्त उतरे मेरे स्कूटर को सुरक्षित रखवाया, जीप में जगह वनवा कर पत्नी को बैठाया और मुझे पीछे खड़ा कराया।
यादवमोड़ पहुँचते पहुँचते गहमर के सारे साधन जा चुके थे।
मैं परेशान नहीं हुआ। कहा कि रिक्से से पड़ोसी गाँव 4 किमी बारा चले जाते हैं, वहाँ दादी एडमिट है देख कर वहाँ से कोई व्यवस्था हो जायेगी या कोई रिजर्व जीप ले लेगें। तब तक एक रिक्से बाला जो शायद मुझे जानता था बोला ''बिट्टू भाई न परेशान हो , बारा तक चलो अगर वहाँँ से कुछ नहीं मिला तो हम गहमर छोड़ देगें। सूरज डूब चुका था, हम लोग रिक्से से बिहार की सीमा से निकल उत्तर प्रदेश की पहली पुलिस चौकी बारा पहुँचने वाले थे कि कुछ पहले ही बारा फुटबाल मैदान के पास बनी पुलिया पर बैठे दो वर्दीधारियों ने रिक्शे को रूकने का ईशारा किया। रिक्शा रूका लेकिन 5 कदम आगे, यह उन पुलिसकर्मीयों को नागवार लगा, उन्होनें एक भद्दी गाली रसीद की और मुझको बुलाया।
मैं रिक्शे से उतर कर रिक्से वाले को 5 कदम आगे जाने का ईसारा किया और उनके पास पहुँचा। रिक्से को आगे जाते देख कर आग बबुला हो गये। मुझसे पूछा कहा से आ रहे हो, मैने सब बता दिया।
पुलिसकर्मियों ने कहा'' अच्छी कहानी सुनाई''.। वो सवाल करते रहे है मैं जबाब देता रहा।
रिक्से वाला और मेरी पत्नी दोनो जानते थे कि मेरी बर्दाश्त करने की शक्ति अधिक नही है, दोनो उतर कर पास आ गये।
उनमें से एक ने पूछा जो गाड़ी खराब है उसके कागज कहाँ है?
तभी दूसरे ने पूछा कि अच्छा बताओ कि क्या सबूत है कि यह तुम्हारी पत्नी है?
अब मेरा सब्र टूट चुका था, मैने तेज आवाज में चिल्ला कर पूछा ''शासन ने पत्नी को साथ लेकर चलने में कौन कौन से दस्तावेज लेकर चलना अनिर्वाय किया है?
पुलिसकर्मियों का गुस्सा उफान पर आ गया, वह पुल से उतरना चाहे मगर नशे की अधिकता से उतर नहीं पाये।
अब मामला बढ़ता और रात बढ़ती जा रही थी,
अब मेरे और उनके बीच हाथापाई की नौबत आ गई।
तभी बारा इन्टर कालेज बारा के अँग्रेजी के प्रवक्ता आर.के. सिंह एवं बारा इन्टर कालेज के अध्यापक और आज समाचार पत्र के पत्रकार सलीम मास्टर जो शायद टहल कर लौट रहे थे, हमारी आवाज पहचान कर पास आ गये। सब मामला जाना। और मुझे सीधे रिक्शे पर बैठने को कहा, मैं शिक्शे पर बैठने जा रहा था कि उनमें एक पुलिसकर्मी मेरी तरफ दौड़ा , मैं कुछ बोलता तभी आ.के सर ने उसका हाथ पकड़ा, तब तक काफी भीड़ जमा हो गई थी। जिनमें 80% मुझे पहचानते थे। अब मैं रिक्से से अस्पताल पहुँच गया। वहाँ मौजूद अपनी बुआ किरण और चचा कौशलेंद्र सिंह ऊर्फ गुडु जो आर्मी में थे सारी बात बताया। पहले तो दादी और बुआ दोनो मेरे पर नाराज होने लगी कि इतनी रात तक बहू को इस हालत में क्यों बाहर रखें , पापा मम्मी गहमर नहीं हैं,तो क्या हुआ। तभी मेरे चचा जो बात सुन कर ही गुस्से में भरे थे कहे'' चल सालन के खोज के मारल जाये'', हम लोग प्लानिंग कर ही रहे थे कि डाक्टर अमर सिंह आते दिखाई दिये। मैं नमस्कार करता इसके पहले ही वह काफी कड़क और गम्भीर आवाज में बोले'' नीचे बुलोरो खड़ी है, आप तुरन्त घर जाओ, वाइफ को घर छोड़ कर जो करना हो करना।
हम दोनो चल दिये, हम गहमर पहुँचते इससे पहले ही गहमर में यह घटना पहुँच चुकी थी, मैं पत्नी को लेकर थाने में चला गया। उस समय के दरोगा का नाम नही याद आ रहा मगर मुंशी थे कृष्णा अवतार पांडें और रामदुलार यादव थे सब बात बता कर वही थाने में बैठ गया। सब बहुत समझाये मगर मैं दरोगा के आगमन और पत्नी को साथ लेकर चलने वाले कागजातो के बारे में जाने तक बैठने की जिद कर बैठ गया। तभी गाँव के कुछ लोगों के समझाने और उनके थाने में मौजूद रहने के आश्वासन पर मैं बिजली कि गति से पत्नी को घर छोड़ कर थाने में आ गया। सभी मौजूद थे। तब तक थाने के मुशीं कृष्ण अवतार जी ने वायलेस से पूरी जानकारी ले लिये थे, उपरोक्त सिपाही उनसे भी बद्तमीजी से बात कर रहे थे। तब तक दरोगा जी पहुँच चुके थे, संभवत पी.पी सिंह या ईशा खान में कोई एक थे और मेरे पिता जी के बारे में जानते थे, मुझसे पूछा कि यह घटना उनको पता है मैनें कहा नहीं, टेलीफोन हो रहा था मगर लगा नही( उस समय पिता जी बरहज देवरिया में पोस्ट थे, और माता जी भी वही गई थी, मेरे घर में मात्र 0597265213 फोन था) वह दोनो सिपाही लाये दोनो की यह पहली या दूसरी पोस्टिंग थी। रात में उनकी क्लास लगी, और मुझे सुबह आने को बोला गया। मैं सुबह पहुँचा तो सिपाहियों की भाषा बदल चुकी थी, नौकरी जाने , सजा मिलने का खतरा साफ दिख रहा था, रात की हेकड़ी उतर चुकी थी। दरोगा जी ने एक शब्द कहा आप अपलिकेशन लिख कर दो , कार्यवाही हो जाये।
मैं अपलिकेशन लिखता जा रहा था क्रोध से काँपता जा रहा था, लाल होते चेहरे को देख दरोगा जी घबड़ा उठे, पानी मगाँया पिलाया, हाथ मुहँ धुलाया।
अब मैं नार्मल था फिर अपलिकेशन लिखने लगा, तभी उनमें से एक आकार मेरा पैर पकड़ लिया। मैं सोच में पड़ गया उसी समय माता जी का एक शब्द जो हरदम कहती थी '' बेटा किसी के पीठ पर लात मारना, पेट पर नहीं। मैं अप्लीकेशन फाड़ दिया और दरोगा से बोला आप ही सज़ा जो चाहे दे। सभी मेरी तरफ देखने लगे, चूकि मामला भी बड़ा था अन्त में मेरे मुहल्ले के चाचा जो अब नहीं है महेन्द्र सिंह, जिनका नाम गहमर के इतिहास में अमर है, गाजीपुर, बनारस में शायद ही कोई ऐसा पुस्तक व्यवसायी हो जो उनको न जानता हो, गहमर थाने के सामने किताब की दुकान थी और है भी. बोले की पहले तो यह सिपाही सार्वजनिक रूप से बीटू से और घर जा कर बहू से माफी माँगे और इनका तबादला बारा से कर दिया। इस सब सभी सहमत हुए, उनको वारनिंग देकर , तबादला कामाख्या धाम चौकी किया गया, और माँफी मगवाई गई।
परन्तु आज भी सवाल जिंदा है, पत्नी को साथ लेकर चलने के लिए कौन से कागजात चाहिए?
*अखंड गहमरी*

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