पिछले दिनो मैं काफी व्यस्त था। मेरे बेटे के बाबा की पत्नी के समधी के
बेटे के बाप की बेटी ने और मेरी पूर्वप्रेमिका गजगमिनियॉं ने मिल कर जो
मेरा हाल किया था, अल्लाह करें वैसा ही हाल आपका भी हो, उससे 20 हो 19
नहीं। सुबह से लेकर शाम तक, शाम से लेकर रात तक मेरी जो हालत हुई, वैसी तो
मेरे मित्र गदहे की भी नहीं होती। क्या सोचा था क्या हो गया, सोचा था कि
26 साल बाद दीपावली मनाने जा रहा हूँ, खूब पटाके छोडूगॉं, झालर बल्ब
लगाऊगॉं मगर सारे अरमान पर पानी पड़ गया। एक तरफ तो मेरी वाइफ होम ने घर के
काम करवा करवा कर मेरी हालत को पंचर से भी बद्तर कर दिया, दूसरी तरफ मेरी
पूर्व प्रेमिका गजगमिनियॉं ने मेरी दीपावली पर आये वीडियो पर वीडियो दिखा
कर हालत भ्रष्ट टायर सी कर दिया। दीपावली पर चाइनीज झालर नहीं लगेंगें
दीये की व्यवस्था और ऐसा गरीब जो दीये बेच कर कपड़ा खरीदे उसे खोजने में
मजदनिया पुर की गलियों में खाक छनवा दिया।
जैसे तैसे अपनी वाइफ होम के सारे आदेशो का अक्षरांश पालन कर, अपनी गजगमिनियॉं के घर भारतीय लोकसंस्क़ति की दीपावली देखने पहुँच गया। सोचा की बड़ी शान्ति होगी उसके घर, पटाखों का शोर और धूँआ नहीं होगा, चाइनिज झालर के चुभते प्रकाश की जगह, गरीबो की दीपावली मनाने के लिए खरीदे गये मिट़टी के दीये से रौशन होगा उसका घर, बैठ कर आराम से उस दीये की रौशनी में स्लेफी लेते हुए मुगले आजम का डायलाग वो जो मुमताज सलीम को देखते हुए मोमबत्ती लेकर बोलती है, अच्छा आपन को भी नहीं याद, जाने दीजिए हम अपना ही कुछ सोचते हैं, आखिर प्यार तो मेरा है न, हॉं ** तुम्हारे चॉंद से मुखडा, उजाला कर दिया इतना। दिखे सारा जहॉं मुझको, अधेरी रात शरमाये।।
मैं तो अपने सपने की दुनिया में चला जा रहा था अपने पूर्व प्रेमिका के घर, रास्ते में मुझे दीपावली के वाटस्प और फेशबुक ज्ञान केन्द्र द्वारा फैलाई गई बातो का असर साफ दिख रहा था, जगह जगह मिट्टी के दीये की जगह झालर दिखाई दे रहे थे। पैसे में आग लगाने और न प्रदूषण फैलाने वाले संदशो का असर भीषण आतिशबाजी में साफ दिख रहा था। मैं यह सब देखकर मन ही मन अपनी प्रेमिका को धन्यवाद दे रहा था कि कम से कम वह तो इन सब से दूर है। तभी रास्ते में मेरी एक और पूर्व प्रेमिका मजगमिनियॉं सोलह श्रंगार किये दिखाई दी, मैं बच कर निकलना चाहा मगर उसने तो मुझे रोक और 5 दिनो से न मिलने की सज़ा के रूप में मुँह से तो कुछ न बोली पर अपने चरण पादुका का प्रयोग मेरे ऊपर कर सीधे चलती बनी। अच्छा किया मेरा चेहरा काम की वज़ह से सफेद हो गया था, अब लाल हो गया, जिससे अब मैं बुलंद दिखने लगा। खैर मैं अब अपनी पूर्वप्रेमिका गजगमिनियॉं के प्रवेश द्वार पर पहुँचने वाला था। वह दूर से ही मुझे छत पर दिखाई दे रही थी, उसका चेहरा 3000 हजार वाट की बल्की चमक रहा था। तभी उसके छत पर तेज बिजली चमकी और तेज आवाज आई , मुझे लगा कि यह पटाखे की आवाज है मगर मुझे अपने प्यार पर भरोसा था। वह मुझे देख चुकी थी, सिलसिला फिल्म में रेखा जैसे दौड़ कर अमिताभ को पकड़ी है उसी तरह वह दौड कर नीचे आई, मुझे पकड़ लिया, घर ले गई। उसका पूरा घर झालरो से प्रकाशमान था। जले पटाखो की लम्बी कतार और नये पटाखो का पूरा स्टाक रखा था।
मैं तो कुछ बोल भी नहीं सकता था, न पूछ सकता था, क्योकि आज दीपावली की सुबह वाइफ होम से, शाम को पूर्व प्रेमिका मजगमिनियॉं पीट चुका था, अब रात को गजगमिनियॉं से पीटने की ताकत नहीं बची है, इस लिए आपसे तो कह सकता हूँ कि आप ही मेरी तरफ से उससे पूछ लें कि आखिर सोशलमीडिया और समाज में मिट्टी के दीये, गरीबो की दीपावली और पर्यावरण प्रदूषण की लंम्बी लम्बी बाते करने वाले आखिर हकीकत के धरातल पर इस को क्यों नहीं लाते, क्यों बस एक बहाना रह जाता है, क्या करें भाई साहब बच्चे मानते ही नहीं, उनकी खुशी के लिए थोडा करना पड़ता है और बिना मॉंगे ही देने लगते हैं लम्बी चौैड़ी सफाई।
खैर मैं अपनी प्रेमिका की खुशी में अपनी खुशी मानने को मजबूर था, उसके चॉंद से चेहरे में डूब कर, लड्डू और सूरन की सब्बी खाने चल दिया। वह मुझे खिलाती मैं उसे खिलाता, हो गई दीवाली, ज्ञान की बाते चंद जगहो पर जलते चंद दीपको और भारी मात्रा में उड़ते राकेटो में जल चुका था। रह गया था तो वही दिखावा वही आडंम्ब।
जय हिन्द, जय भारत, जय गजगमिनियॉं जय वाइफ होम।।
जैसे तैसे अपनी वाइफ होम के सारे आदेशो का अक्षरांश पालन कर, अपनी गजगमिनियॉं के घर भारतीय लोकसंस्क़ति की दीपावली देखने पहुँच गया। सोचा की बड़ी शान्ति होगी उसके घर, पटाखों का शोर और धूँआ नहीं होगा, चाइनिज झालर के चुभते प्रकाश की जगह, गरीबो की दीपावली मनाने के लिए खरीदे गये मिट़टी के दीये से रौशन होगा उसका घर, बैठ कर आराम से उस दीये की रौशनी में स्लेफी लेते हुए मुगले आजम का डायलाग वो जो मुमताज सलीम को देखते हुए मोमबत्ती लेकर बोलती है, अच्छा आपन को भी नहीं याद, जाने दीजिए हम अपना ही कुछ सोचते हैं, आखिर प्यार तो मेरा है न, हॉं ** तुम्हारे चॉंद से मुखडा, उजाला कर दिया इतना। दिखे सारा जहॉं मुझको, अधेरी रात शरमाये।।
मैं तो अपने सपने की दुनिया में चला जा रहा था अपने पूर्व प्रेमिका के घर, रास्ते में मुझे दीपावली के वाटस्प और फेशबुक ज्ञान केन्द्र द्वारा फैलाई गई बातो का असर साफ दिख रहा था, जगह जगह मिट्टी के दीये की जगह झालर दिखाई दे रहे थे। पैसे में आग लगाने और न प्रदूषण फैलाने वाले संदशो का असर भीषण आतिशबाजी में साफ दिख रहा था। मैं यह सब देखकर मन ही मन अपनी प्रेमिका को धन्यवाद दे रहा था कि कम से कम वह तो इन सब से दूर है। तभी रास्ते में मेरी एक और पूर्व प्रेमिका मजगमिनियॉं सोलह श्रंगार किये दिखाई दी, मैं बच कर निकलना चाहा मगर उसने तो मुझे रोक और 5 दिनो से न मिलने की सज़ा के रूप में मुँह से तो कुछ न बोली पर अपने चरण पादुका का प्रयोग मेरे ऊपर कर सीधे चलती बनी। अच्छा किया मेरा चेहरा काम की वज़ह से सफेद हो गया था, अब लाल हो गया, जिससे अब मैं बुलंद दिखने लगा। खैर मैं अब अपनी पूर्वप्रेमिका गजगमिनियॉं के प्रवेश द्वार पर पहुँचने वाला था। वह दूर से ही मुझे छत पर दिखाई दे रही थी, उसका चेहरा 3000 हजार वाट की बल्की चमक रहा था। तभी उसके छत पर तेज बिजली चमकी और तेज आवाज आई , मुझे लगा कि यह पटाखे की आवाज है मगर मुझे अपने प्यार पर भरोसा था। वह मुझे देख चुकी थी, सिलसिला फिल्म में रेखा जैसे दौड़ कर अमिताभ को पकड़ी है उसी तरह वह दौड कर नीचे आई, मुझे पकड़ लिया, घर ले गई। उसका पूरा घर झालरो से प्रकाशमान था। जले पटाखो की लम्बी कतार और नये पटाखो का पूरा स्टाक रखा था।
मैं तो कुछ बोल भी नहीं सकता था, न पूछ सकता था, क्योकि आज दीपावली की सुबह वाइफ होम से, शाम को पूर्व प्रेमिका मजगमिनियॉं पीट चुका था, अब रात को गजगमिनियॉं से पीटने की ताकत नहीं बची है, इस लिए आपसे तो कह सकता हूँ कि आप ही मेरी तरफ से उससे पूछ लें कि आखिर सोशलमीडिया और समाज में मिट्टी के दीये, गरीबो की दीपावली और पर्यावरण प्रदूषण की लंम्बी लम्बी बाते करने वाले आखिर हकीकत के धरातल पर इस को क्यों नहीं लाते, क्यों बस एक बहाना रह जाता है, क्या करें भाई साहब बच्चे मानते ही नहीं, उनकी खुशी के लिए थोडा करना पड़ता है और बिना मॉंगे ही देने लगते हैं लम्बी चौैड़ी सफाई।
खैर मैं अपनी प्रेमिका की खुशी में अपनी खुशी मानने को मजबूर था, उसके चॉंद से चेहरे में डूब कर, लड्डू और सूरन की सब्बी खाने चल दिया। वह मुझे खिलाती मैं उसे खिलाता, हो गई दीवाली, ज्ञान की बाते चंद जगहो पर जलते चंद दीपको और भारी मात्रा में उड़ते राकेटो में जल चुका था। रह गया था तो वही दिखावा वही आडंम्ब।
जय हिन्द, जय भारत, जय गजगमिनियॉं जय वाइफ होम।।
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