रात
के बारह बजने वाले थे। मैं अपनी डियूटी निभा रहा था। पलंग पर सोई अपनी
वाइफ होम के सुन्दर-सलोने पैरो दबा रहा था। कभी-कभी नींद से ऑंखे बंद हो
जाती तो वाइफ होम के हाथ मेरे गाल से प्रेम कर बैठते और कुछ देर के लिए
निद्रा रानी मुझसे दूर हो जाती। वैसे निद्रा रानी का प्रेम मुझसे कुछ अधिक
ही है, वह चली ही आती है। मुझे नींद आ ही गई, मैं बैठे-बैठे सो गया?
बेटा क्या कर रहे हो ? एक बूढ़ी सी काया ने आकर पूछा।
ऑंख नहीं है क्या देखते नहीं ? मैं पत्नी सेवा में व्यस्त हूॅं, मैने झुझलाते हुए जबाब दिया।
बेटा यह काम पुरूषो के लिए नहीं उसने कहा।
जाओ लेक्चर मत दो, ऐसे बोल रहे हो जैसे तुमने यह काम नहीं किया, मैने बुरा सा मुहॅं बनाते हुए कहा।
लगता है तुम मुझे पहचान नहीं पा रहे हो? उस काया ने मेरी तरफ एक सवाल उछाला।
नहीं मेरे पास इतनी फुरसत नहीं जो मैं तुम जैसे को पहचानता फिरूॅं, मैने गुस्से से कहा।
बेटा मैं बापू हूॅं, जिसे तुमने कल यानि 2 अक्टूबर को बड़ी अच्छी बधाई भेजी।
ओह! तो आप बापू है, मेरे पास क्यों आये हैं?
मैं तो तुमसे मिलने आया हूॅं, तुमने ही तो कहा था कि परदेशी लौट के आजा, कल बनेगी दाल तो मैं दाल खाने आया हूॅं।
दाल सुबह बनेगी, सुबह आना जाओ अभी मेरा दिमाग न खाओ, मैने खीजते हुए बोला।
अच्छा ये बताओ टैट का फार्म भर दिये? दो दिन से परेशान हो, उन्होंने संवेदना जताते हुए बोला।
नहीं अभी नहीं भरा गया, कोई आरक्षण वाला इंजिनियर बैठा है साइट डबलप करने। इस लिए रोज साइट क्रैस कर रही है।
बेटा आरक्षण से इतना नाराज क्यों हो, वह तो उनका हक है। वह समाज के दबे कुचले लोग हैं।
ठीक कहा तुमने बापू ये तो उनका हक है मैंने गुस्से से कहा।
गुस्सा क्यों होते हो बेटा, इससे तुमको क्या परेशानी है, मेहनत करो उनसे अधिक काम करो।
ठीक कह रहे हो बापू, मेहनत और पैसे तो केवल सवर्णो के पास है, उसमें गरीब, बेसहारा लोग तो हैं नहीं।
संख्या तो दलितो की अधिक है, परेशान तो सबसे अधिक वह है, बापू ने मेरी बात का जबाब देते हुए कहा।
ठीक है आरक्षण को खत्म मत करो बल्कि और बढ़ा दो, लेकिन एक काम करो, मैने अपने रूख को नम्र करते हुए कहा।
बोलो क्या करें ? बापू ने मेरी तरफ प्रश्न उछाल दिया।
बापू इतनी व्यवस्था कर दो कि भारत के सभी नेता और आरक्षण पाने वाले आरक्षण प्राप्त डाक्टरो से ही इलाज करायेगें, वह विदेश इलाज के लिए नहीं जा सकते और ना ही समान्य वर्ग के अस्पताल में जा सकेगें। संविधान में ऐसा संसोधन कर दो।
मतलब ? बापू ने मेरी तरफ देखते हुए कहा।
अभी आगे सुनो बापू, मतलब वतलब बाद में पूछना।
सभी नेताओं के बच्चे और आरक्षण पाने वाले, आरक्षण प्राप्त अध्यापको से ही पढ़ेगें वह किसी समान्य जाति के न स्कूल-कालेजो में न पढ़े। ये भी संविधान में डलवा दो।
ऐसा कैसे हो सकता बापू को अब मेरी बात पर गुस्सा आ रहा था।
क्यों नहीं हो सकता है मैने भी थोड़ा गुस्से में कहा।
हो सकता है प्लेन,ट्रेन,बस सब नेताओं एवं आरक्षण पाने वाले तथा न पाने वालो के लिए अलग हो।
मैं तुम्हारी बात का मतलब नहीं समझ पा रहा हूँ गहमरी, मेरा सिर पट रहा है साफ- साफ कहो, बापू परेशान होते जा रहे थे।
तब तो पता चले।कितनी योग्यता है, और अयोग्य कैसे योग्य बनते हैं, जब आरक्षण वाले डाक्टरो से हारेगी नेताओं की जिन्दगीयॉं तभी तो ऑंख खुलेगी। मैं अपने रय में बोले जा रहा था।
यह बात गहमरी जो तुम बोल रहे हो वह कितनी व्यवहारिक है ऐसा कैसे हो सकता है, बापू ने कहा।
क्यों नहीं हो सकता है? कम नम्बर पाकर योग्य होना यह कहॉं का व्यवहारिक है बापू? मैने भी उसी आक्रोश में बोल पड़ा।
क्यों नहीं हैं वह समाज के दबे कुचले लोग हैं बापू फिर बोल पड़े।
बापू तुम्हें लोगो के जेब में, बैंक के लाकरो में, फाईलो और मेज के नीचे, तिजोरीयों में रहते रहते अॅंधेरे की आदत पड़ गई है तुम्हें बाहर की रौशनी नहीं दिखाई देगी, अब मेरा गुस्सा सॉंतवे आसमान पर था।
बापू को मेरी बात लग गई, बोले होश में रहो गहमरी, अपनी औकात से बढ़ रहे हो, मेरे बिना आज तुम्हारे जीवन की कल्पना ही बेमानी है, मैं अॅंधेरे में रहता हूॅं ताकि तुम उजाले में रहो।
बापू जिस उजाले की बात तुम कर रहे हो वह उजाला तो तुम काफी पहले छीन चुके हो, नर्क बना दिया तुमने हिन्दूओं और हिन्दुओं में सवर्ण की जिन्दगी, नर्क बना दिया है। हम तो सूरज के उजाले को भी बादलो के रहम पर पा रहे है, आरक्षण रूपी काले घने बादलो से निकल कर जो हल्का सा उजाला आ रहा है उसी से जिन्दा है।
अब बापू जान चुके थे कि इस बार पंगा जवाहर से नहीं, अंग्रेजो से नहीं बल्कि एक सिरफिरे अखंड गहमरी से पड़ गया है, धीरे से बोले तुम्हें समझाना ही व्यर्थ है, तुम देश और दलितो के दुश्मन हो, मैं जा रहा हूॅं।
मैं जोर से बोला रूको-रूको कहॉं जा रहे हो अभी तो मेरी बात ही नहीं शुरू हुई।
मैं जोर से बोले जा रहा था।
तब तक मेरी कमर पर एक जोर दार प्रहार हुआ मैं पलंग के नीचे गिर चुका था।
मेरी पत्नी रणचंडी का रूप ले चुकी थी, बापू के चक्कर में मेरा हाथ उसके पैरो से बढ़ कर उसके गले तक पहुँच चुका था।
एक काम तुम से ठीक से नहीं होता, पॉंव दबाते दबाते मेरा गला दबाने चल दिये, भागो यहॉं से।
मैं पलंग के नीचे गिरा कभी अपनी चोट को देख रहा था, कभी अपनी रणचंडीका बनी पत्नी को, कुछ समझ में नहीं आया धीरे से गेट खोला और बाहर आकर जमीन पर बिस्तर बिछाया और लेट कर बापू और बापू के आरक्षण युक्त भारत के बारे में फिर सोचने लगा जिसका कोई अंत नहीं था।
अखंड गहमरी, गहमर, गाजीपुर
बेटा क्या कर रहे हो ? एक बूढ़ी सी काया ने आकर पूछा।
ऑंख नहीं है क्या देखते नहीं ? मैं पत्नी सेवा में व्यस्त हूॅं, मैने झुझलाते हुए जबाब दिया।
बेटा यह काम पुरूषो के लिए नहीं उसने कहा।
जाओ लेक्चर मत दो, ऐसे बोल रहे हो जैसे तुमने यह काम नहीं किया, मैने बुरा सा मुहॅं बनाते हुए कहा।
लगता है तुम मुझे पहचान नहीं पा रहे हो? उस काया ने मेरी तरफ एक सवाल उछाला।
नहीं मेरे पास इतनी फुरसत नहीं जो मैं तुम जैसे को पहचानता फिरूॅं, मैने गुस्से से कहा।
बेटा मैं बापू हूॅं, जिसे तुमने कल यानि 2 अक्टूबर को बड़ी अच्छी बधाई भेजी।
ओह! तो आप बापू है, मेरे पास क्यों आये हैं?
मैं तो तुमसे मिलने आया हूॅं, तुमने ही तो कहा था कि परदेशी लौट के आजा, कल बनेगी दाल तो मैं दाल खाने आया हूॅं।
दाल सुबह बनेगी, सुबह आना जाओ अभी मेरा दिमाग न खाओ, मैने खीजते हुए बोला।
अच्छा ये बताओ टैट का फार्म भर दिये? दो दिन से परेशान हो, उन्होंने संवेदना जताते हुए बोला।
नहीं अभी नहीं भरा गया, कोई आरक्षण वाला इंजिनियर बैठा है साइट डबलप करने। इस लिए रोज साइट क्रैस कर रही है।
बेटा आरक्षण से इतना नाराज क्यों हो, वह तो उनका हक है। वह समाज के दबे कुचले लोग हैं।
ठीक कहा तुमने बापू ये तो उनका हक है मैंने गुस्से से कहा।
गुस्सा क्यों होते हो बेटा, इससे तुमको क्या परेशानी है, मेहनत करो उनसे अधिक काम करो।
ठीक कह रहे हो बापू, मेहनत और पैसे तो केवल सवर्णो के पास है, उसमें गरीब, बेसहारा लोग तो हैं नहीं।
संख्या तो दलितो की अधिक है, परेशान तो सबसे अधिक वह है, बापू ने मेरी बात का जबाब देते हुए कहा।
ठीक है आरक्षण को खत्म मत करो बल्कि और बढ़ा दो, लेकिन एक काम करो, मैने अपने रूख को नम्र करते हुए कहा।
बोलो क्या करें ? बापू ने मेरी तरफ प्रश्न उछाल दिया।
बापू इतनी व्यवस्था कर दो कि भारत के सभी नेता और आरक्षण पाने वाले आरक्षण प्राप्त डाक्टरो से ही इलाज करायेगें, वह विदेश इलाज के लिए नहीं जा सकते और ना ही समान्य वर्ग के अस्पताल में जा सकेगें। संविधान में ऐसा संसोधन कर दो।
मतलब ? बापू ने मेरी तरफ देखते हुए कहा।
अभी आगे सुनो बापू, मतलब वतलब बाद में पूछना।
सभी नेताओं के बच्चे और आरक्षण पाने वाले, आरक्षण प्राप्त अध्यापको से ही पढ़ेगें वह किसी समान्य जाति के न स्कूल-कालेजो में न पढ़े। ये भी संविधान में डलवा दो।
ऐसा कैसे हो सकता बापू को अब मेरी बात पर गुस्सा आ रहा था।
क्यों नहीं हो सकता है मैने भी थोड़ा गुस्से में कहा।
हो सकता है प्लेन,ट्रेन,बस सब नेताओं एवं आरक्षण पाने वाले तथा न पाने वालो के लिए अलग हो।
मैं तुम्हारी बात का मतलब नहीं समझ पा रहा हूँ गहमरी, मेरा सिर पट रहा है साफ- साफ कहो, बापू परेशान होते जा रहे थे।
तब तो पता चले।कितनी योग्यता है, और अयोग्य कैसे योग्य बनते हैं, जब आरक्षण वाले डाक्टरो से हारेगी नेताओं की जिन्दगीयॉं तभी तो ऑंख खुलेगी। मैं अपने रय में बोले जा रहा था।
यह बात गहमरी जो तुम बोल रहे हो वह कितनी व्यवहारिक है ऐसा कैसे हो सकता है, बापू ने कहा।
क्यों नहीं हो सकता है? कम नम्बर पाकर योग्य होना यह कहॉं का व्यवहारिक है बापू? मैने भी उसी आक्रोश में बोल पड़ा।
क्यों नहीं हैं वह समाज के दबे कुचले लोग हैं बापू फिर बोल पड़े।
बापू तुम्हें लोगो के जेब में, बैंक के लाकरो में, फाईलो और मेज के नीचे, तिजोरीयों में रहते रहते अॅंधेरे की आदत पड़ गई है तुम्हें बाहर की रौशनी नहीं दिखाई देगी, अब मेरा गुस्सा सॉंतवे आसमान पर था।
बापू को मेरी बात लग गई, बोले होश में रहो गहमरी, अपनी औकात से बढ़ रहे हो, मेरे बिना आज तुम्हारे जीवन की कल्पना ही बेमानी है, मैं अॅंधेरे में रहता हूॅं ताकि तुम उजाले में रहो।
बापू जिस उजाले की बात तुम कर रहे हो वह उजाला तो तुम काफी पहले छीन चुके हो, नर्क बना दिया तुमने हिन्दूओं और हिन्दुओं में सवर्ण की जिन्दगी, नर्क बना दिया है। हम तो सूरज के उजाले को भी बादलो के रहम पर पा रहे है, आरक्षण रूपी काले घने बादलो से निकल कर जो हल्का सा उजाला आ रहा है उसी से जिन्दा है।
अब बापू जान चुके थे कि इस बार पंगा जवाहर से नहीं, अंग्रेजो से नहीं बल्कि एक सिरफिरे अखंड गहमरी से पड़ गया है, धीरे से बोले तुम्हें समझाना ही व्यर्थ है, तुम देश और दलितो के दुश्मन हो, मैं जा रहा हूॅं।
मैं जोर से बोला रूको-रूको कहॉं जा रहे हो अभी तो मेरी बात ही नहीं शुरू हुई।
मैं जोर से बोले जा रहा था।
तब तक मेरी कमर पर एक जोर दार प्रहार हुआ मैं पलंग के नीचे गिर चुका था।
मेरी पत्नी रणचंडी का रूप ले चुकी थी, बापू के चक्कर में मेरा हाथ उसके पैरो से बढ़ कर उसके गले तक पहुँच चुका था।
एक काम तुम से ठीक से नहीं होता, पॉंव दबाते दबाते मेरा गला दबाने चल दिये, भागो यहॉं से।
मैं पलंग के नीचे गिरा कभी अपनी चोट को देख रहा था, कभी अपनी रणचंडीका बनी पत्नी को, कुछ समझ में नहीं आया धीरे से गेट खोला और बाहर आकर जमीन पर बिस्तर बिछाया और लेट कर बापू और बापू के आरक्षण युक्त भारत के बारे में फिर सोचने लगा जिसका कोई अंत नहीं था।
अखंड गहमरी, गहमर, गाजीपुर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें