आज सुबह से मैं बहुत खुश था। उतना खुश तो मैं न अपनी शादी में हुआ न आपकी
साली की साली शादी में। अब आप कहेगें कि मेरी साली की शादी में मेरे खुश
होने का क्या कारण है तो उसका सीधा जबाब है कि मेरी साली की शादी तो
घटतालिस साल पहले हो गई थी, ससुराल बिना साली के जाता हूँ, आप जा कर साली
के मुहब्ब्त में पागल होते थे, अब आप भी नहीं होगें। सीधी सी बात है इस
संसार में न कोई अपने दुख से दुखी न अपने सुख से सुखी, यहॉं तो सब दूसरे के
दुख से सुखी और दूसरे के सुख से दुखी है। तो मैं क्यों न उस परम्परा का
निर्वाह करूँ।
मैं आप सुबह सुबह तीन बजे उठ कर घर ही झाडू पोछा किया, बर्तन की सफाई कर अपनी बाइफ होम की सेवा में बेड टी प्रस्तुत कर उससे दिन के सफल होने का आर्शीवाद लेते हुए शाम को स्कूल से विलम्ब से घर लौटने की परमिशन ग्रांट करने की अर्जी लगाई। परमीशन ग्राटं हुआ मैं खुश हुआ।
परमीशन पाकर आज मैने कचंनीयाँ वाशिंग पाउडर से रगड़-रगड़ कर नहाया, पलटनियॉं सेन्ट, और धडकनीया पाउडर मार कर सूटेड-बूटेड हुआ और चल पड़ा अपनी मंजिल की तरफ, लेकिन तभी बिल्ली रस्ता काट गई। मेरी वाइफ होम टोक गई। उसने अपनी सुर-मधुर आवाज में चरण पादुका दिखाते हुए कहा कि अगर लाटसाहब को लौटने में देर हो तो लटकनियॉ ढाबे से रात का खाना लेते आना, भूलना मत, नहीं तो यह देख लो, 9 नम्बर की है, एक तरफ 9 दूसरे तरफ 6 हो जायेगी। मरता क्या न करता, शाम को होने वाली दुर्घटना की कल्पना मात्र से अपने प्यारे प्यारे गालो को सहलाया और वही से देवी को प्रणाम करते हुए या जल्द आने या खाना लाने का बचन दिया दिया।
घर से निकल कर स्कूल पहुॅच चुका था। खास बात यह थी कि अब चुहे से शेर हो चुका था, पहुँचे दहाड़ा, दो विकेट गिरते पड़ते पहुँचे। सारी तैयारी हो चुकी है ? मैं शेर की मानिंद दहाड़ते हुए पूछा। जी सारी तैयारी हो चुकी है, माला, स्मृति चिन्ह, अंग वस्त्र, नास्ते सब आ चुके है, चपरासी ब्रजेश ने जबाब दिया। मैं स्कूल में ब्रजेश को बहुत परेशान करता। करता भी क्यों नहीं ? वह बिहारी घर में मुझे चैन से रहने नहीं देता। सिकन्दर जो ठहरा। अब आप कहेंगें कि इस जमाने में सिकन्दर कहॉं से आ गया ? तो भाई पुरानी कहावत है कि जिसकी बहन अन्दर उसका भाई सिकन्दर। घर में वह अपनी बहन के साथ मेरा जीना हराम करता और मैं यहॉं मौका मिलते उसका। ये बात अलग थी कि उसको परेशान करने की सजा मुझे घर पहँचते मिल जाती मगर जंगल में मोर नाचा किसने देखा ?
स्कूल में सारी तैयारी हो चुकी थी। मैं खुद ही सारी तैयारी का जायजा ले रहा था। लेता भी क्यों नहीं ?आज पटलनियॉं दिवस के अवसर पर मेरी पूर्व प्रेमिका गजगमिनियॉं जो मुख्य अतिथि बन कर आ रही थी। जिसकी खुशी में मैं उस दिन से ही पागल था जिस दिन से मुझे प्रिरिंनिसिपल साहेब ने बताया था। स्कूल की कई दिवारो पर ईट से दिनो की लकीरे बनाई थी, रोज एक लकीर काटता। मन तो करता कि सारी लकीरे एक ही दिन काट दूँ और उसके आने का दिन जल्दी से आ जाये, मगर यहॉं अल्ताफ रजा का गाना ईश्क और प्यार का मजा लीजिए भारी पड़ रहा था।
मैं बार बार घडी देख चुका था अाज जल्दी दस भ्ाी नहीं बज रहा था, रोज तो दस ऐसे बजता जैसे ऑंखे मटकती थी, मगर आज घडी की सूई ऐसे चल रही थी जैसे चीटीं। भॉंवो के उतार चढाव के बीच दस बज कर गया, माइक से बार बार उद़घोषण हो रही थी कि मुख्य अतिथि आने वाली हैं -आने वाली है। स्कूल के बच्चे परेशान हो रहे थे और मेरी गजगमिनियॉं मेरे दिल का भी ख्याल न करते हुए ऐसे चल रही थी जैसे दौरी में पैर। धीरे धीरे बारह बजने को हुए तभी कार की हार्न सुनाई दी, मैं दौड कर गेट पर पहुँचा। कार अन्दर आ चुकी थी। मैने तड़ से गेट खोला, वह बाहर निकली। ऩजरे चार हुई , कुछ वो शर्माइ कुछ मैं।उसके साथ चलते हुए मैं मंच तक पहुँच चुका था। संचालक महोदय मेरी गजगमिनियॉं के शान में मेरे लिखे कसीदे पढ़ रहे थे, जिसे सुन कर मेरी गजगमिनियॉं बार बार मेरी तरफ देख रही थी, शायद उसे अंदाज हो गया था कि भाषा तो उसके झनझनियॉं प्रेमी की है भले बोल कोई और रहा है।उसके साथ चलते हुए मैं मंच तक पहुँच चुका था। संचालक महोदय मेरी गजगमिनियॉं के शान में मेरे लिखे कसीदे पढ़ रहे थे, जिसे सुन कर मेरी गजगमिनियॉं बार बार मेरी तरफ देख रही थी, शायद उसे अंदाज हो गया था कि भाषा तो उसके झनझनियॉं प्रेमी की है भले बोल कोई और रहा है।
अब तो स्वागत का दौर शुरू हो चुका था। विद्यालय में 24 घंटे में 48 घंटे 60 मिनट दर्शन देने वाले योद्वा माल्यापर्ण के लिए बुलाये जा रहे थे। स्वागत का दौर खत्म हुआ, अब बारी स्वागत भाषण की थी, बाई गाड क्या बखान हो रहा था मेरी गजगमिनियॉं का, मेरा सीधा तो 59 इंच का हो रहा था। अब बारी आई स्मृति चिन्ह देने की, बुलाया गया मैं। बिल्कुल वैसे तैयार होकर चल दिया जैसे पर जयमाल स्टेज पर पहुँच कर जयमाल होने की वाला हो। जैसे शादी मे साली जयमाल देते है वैसे ही चपरासी ने मुझे स्मृति चिन्ह दिया, मैनै उस साफ स्मृति चिन्ह को जेब से रूमाल निकाल कर और साफ किया। रूमाल मे साथ एक गुलाब भी उसके साथ निकला। मैने स्मृति चिन्ह के नीचे छुपा कर उसे भेट किया, उसने स्वीकर किया।मगर मेरी किस्मत खराब निकली, वाइफ होम से पिटने का जुगाड कर देती, फूल देते समय मेरे चोर से साले ने देख लिया। मैने भी सोचा जो होगा बाद में होगा, पहले तो गुड़ खाया जाये, कान तो बाद में छिदेगा।
अब शुरू हुआ बच्चों के कार्यक्रम का दौर। बीस दिन से बच्चे तैयारी में लगे थे। एक से एक कार्यक्रम प्रस्तुत होने लगे, सभी खुश थे।तालीयॉं बज रही थी। मैं तो केवल अपनी गजगमिनियॉं देखने में बीजी था। होता भी क्यों नहीं बहुत दिनो के बाद जो मिली थी आज। मैं उसकी तरफ देखते हुए इस बात का इंतजार कर रहा था कि कब उन बच्चों को बुलाया जाये जिन्हें मैने अपने प्रेमगीत गाने को दिये थे। इन्तजार की घडीयॉं बढ रही थी, उधर बच्चे बार बार संचालक के पास पहुँच रहे थे। संचालक महोदय समय कम है समय कम की बार बार रट लगा रहे थे। तभी कुछ बच्चे मेरे पास अा गये, सर जी सर जी मेरा कार्यक्रम नहीं होगा, मेरा कार्यक्रम नहीं होगा। मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। संचालक महोदय के पास पहुँचा तो पता चला कि विलम्ब होने के कारण बच्चों के कई कार्यक्रम रद्व कर दिये गये है।समय कम है समय कम है कहते कहते पूरी बच्चो की भावनाओं को ख्याल न करते हुए काॅट छॉंट करते हुए मुख्यअतिथि और विशिष्ठ अतिथि महोदय को आशीर्वाद के लिए बुलाया गया। विशिष्ठ अतिथि महोदय ने तो अपने दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर पलटटनिया पुर के अपने दल के वार्ड मेंम्बर तक का नाम लेते हुए समय कम है अधिक समय न लेते हुए, समय कम है अधिक समय न लेते हुए पूरी रामायण सुना डाली और अंत में वह अधिक क्या बोलूँ बच्चों का कार्यक्रम है कह कर किसी तरह बैठे। अब बारी थी मेरी गजगमिनियॉं की उसने तो समय के नाम पर बस एक घंटे ही लिये, सावन से भादो कम क्यों रहे, उसने भी वहॉं मौजूद एक एक बच्चे तक का नाम लेते हुए क्या नहीं कहा उसने, अपने दल की पुरी कहानी, खैर चूना लगा लगा कर मात्र 50 मिनट में सुनाई, शेष 10 मिनट वह समय कम है समय कम है, और धन्यवाद कहती रही। बीच बीच में मेरी तरफ देखने से भी नही चुकती। मेरी तरफ देख कर मुस्कुराती जैसे उसकी मुस्कुराहट पूछ रही हो कि कहो मेरे झकझनियॉं प्रेमी मैं ठीक बोल रही हूँ न ? अब मेरी कहॉं औकात तो कह देता कि तलतनीयॉं डीयर तुम तो ठीक बोल रही हो, तुम्हारे पहले वाले भी ठीक बोले, मगर उन बच्चों का क्या कसूर जो तुम्हारे सामने अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन का करने की तैयारी एक माह पहले से कर रहे थे, और तुम्हारा विलम्ब से आना, और मेरे विद्यालय की चमचागिरी ने पूरे बच्चों का मन तोड़ कर रख दिया। खैर उन बच्चों का क्या ? उनकी भावना जाये तेल लेने मगर मुख्यअतथि का सम्मान तो होना चाहिए। मगर गजब की बात देखीये, आपको जलन होने लगेगी, मेरे मन की बात मेरी गजगमिनियॉं तक पहुँच। वाह रे दिलेरी धडधडी वह अपनी बात समाप्त कर बैठी। उत्सव खत्म हुआ, सारे पीछे पीछे उसे कार में छोडने आ गये, वह कार में बैठ चुकी थी, कार र्स्टाट होने वाली ही थी कि उसने मुझे देखा और ऑंखो ही ऑंखो में मिलने का ईसारा किया, मैं उसके साथ जाने को तैयार ही था कि मेरी घड़ी ने भी शाम होने का एलार्म बज दिया यानि शेर से चुहा बनने के समय की सूचना पूर्व चेतावनी दिया। उसमें भी आज मुझे अपनी वाइफ होम के हाथो पिटना ही। मैं चल पडा उसके कार के पीछे, कुछ दूर जाने पर उसने मेरा स्कूटर साइड कराया और मुझै बैठा लिया अपने कार में। काफी देर मलतनियॉंगंज से खलतनियॉं चौराहे घूमते घूमते प्यार मुहब्ब्त की बाते करते, पकघरिया चाट वाले की चाट खाते हम दुबारा उसी जगह पर आ गये जहॉं मेरा स्कूटर खड़ा था, मैं उतरने लगा तो उसने घीरे से कहॉ सही कह रहे थे मेरे पटकमरिया प्रेमी, आज हम अपने स्वार्थ में बच्चो की कोमल भावनाओं का ख्याल नहीं करते, हम उनकी तैयारी, उनके सपने केवल मुख्यअतिथि के सम्मान की भेट चढा देते हैं, और मुख्यअतिथियों का तो देर करना एक फैंशन बन गया है और उनकी शान में कार्यक्रम को विलम्ब करना एक उनकी मेहमानबाजी का तरीका। हम कैसे बच्चों के कोमल मन को मसल देते हैं इसका आभास हमें होते हुए भी नहीं होता। मैने उसे शांत कराया और विदा किया उसके घर की तरफ और खुद अपना बाबा आदम के जमाने का स्कूटर निकाला और चल पडा अपनी वाइफ होम के चरण पादुका द्वारा पूजे जाने के पराम्परिक कार्यक्रम के श्रीगणेश के लिए अपने आशियाने की तरफ, अपने महल की तरफ जहॉं मेरी दिलजानी, मेरी महरानी मेरी वाइफ होम रहती है। अखंड गहमरी
मैं आप सुबह सुबह तीन बजे उठ कर घर ही झाडू पोछा किया, बर्तन की सफाई कर अपनी बाइफ होम की सेवा में बेड टी प्रस्तुत कर उससे दिन के सफल होने का आर्शीवाद लेते हुए शाम को स्कूल से विलम्ब से घर लौटने की परमिशन ग्रांट करने की अर्जी लगाई। परमीशन ग्राटं हुआ मैं खुश हुआ।
परमीशन पाकर आज मैने कचंनीयाँ वाशिंग पाउडर से रगड़-रगड़ कर नहाया, पलटनियॉं सेन्ट, और धडकनीया पाउडर मार कर सूटेड-बूटेड हुआ और चल पड़ा अपनी मंजिल की तरफ, लेकिन तभी बिल्ली रस्ता काट गई। मेरी वाइफ होम टोक गई। उसने अपनी सुर-मधुर आवाज में चरण पादुका दिखाते हुए कहा कि अगर लाटसाहब को लौटने में देर हो तो लटकनियॉ ढाबे से रात का खाना लेते आना, भूलना मत, नहीं तो यह देख लो, 9 नम्बर की है, एक तरफ 9 दूसरे तरफ 6 हो जायेगी। मरता क्या न करता, शाम को होने वाली दुर्घटना की कल्पना मात्र से अपने प्यारे प्यारे गालो को सहलाया और वही से देवी को प्रणाम करते हुए या जल्द आने या खाना लाने का बचन दिया दिया।
घर से निकल कर स्कूल पहुॅच चुका था। खास बात यह थी कि अब चुहे से शेर हो चुका था, पहुँचे दहाड़ा, दो विकेट गिरते पड़ते पहुँचे। सारी तैयारी हो चुकी है ? मैं शेर की मानिंद दहाड़ते हुए पूछा। जी सारी तैयारी हो चुकी है, माला, स्मृति चिन्ह, अंग वस्त्र, नास्ते सब आ चुके है, चपरासी ब्रजेश ने जबाब दिया। मैं स्कूल में ब्रजेश को बहुत परेशान करता। करता भी क्यों नहीं ? वह बिहारी घर में मुझे चैन से रहने नहीं देता। सिकन्दर जो ठहरा। अब आप कहेंगें कि इस जमाने में सिकन्दर कहॉं से आ गया ? तो भाई पुरानी कहावत है कि जिसकी बहन अन्दर उसका भाई सिकन्दर। घर में वह अपनी बहन के साथ मेरा जीना हराम करता और मैं यहॉं मौका मिलते उसका। ये बात अलग थी कि उसको परेशान करने की सजा मुझे घर पहँचते मिल जाती मगर जंगल में मोर नाचा किसने देखा ?
स्कूल में सारी तैयारी हो चुकी थी। मैं खुद ही सारी तैयारी का जायजा ले रहा था। लेता भी क्यों नहीं ?आज पटलनियॉं दिवस के अवसर पर मेरी पूर्व प्रेमिका गजगमिनियॉं जो मुख्य अतिथि बन कर आ रही थी। जिसकी खुशी में मैं उस दिन से ही पागल था जिस दिन से मुझे प्रिरिंनिसिपल साहेब ने बताया था। स्कूल की कई दिवारो पर ईट से दिनो की लकीरे बनाई थी, रोज एक लकीर काटता। मन तो करता कि सारी लकीरे एक ही दिन काट दूँ और उसके आने का दिन जल्दी से आ जाये, मगर यहॉं अल्ताफ रजा का गाना ईश्क और प्यार का मजा लीजिए भारी पड़ रहा था।
मैं बार बार घडी देख चुका था अाज जल्दी दस भ्ाी नहीं बज रहा था, रोज तो दस ऐसे बजता जैसे ऑंखे मटकती थी, मगर आज घडी की सूई ऐसे चल रही थी जैसे चीटीं। भॉंवो के उतार चढाव के बीच दस बज कर गया, माइक से बार बार उद़घोषण हो रही थी कि मुख्य अतिथि आने वाली हैं -आने वाली है। स्कूल के बच्चे परेशान हो रहे थे और मेरी गजगमिनियॉं मेरे दिल का भी ख्याल न करते हुए ऐसे चल रही थी जैसे दौरी में पैर। धीरे धीरे बारह बजने को हुए तभी कार की हार्न सुनाई दी, मैं दौड कर गेट पर पहुँचा। कार अन्दर आ चुकी थी। मैने तड़ से गेट खोला, वह बाहर निकली। ऩजरे चार हुई , कुछ वो शर्माइ कुछ मैं।उसके साथ चलते हुए मैं मंच तक पहुँच चुका था। संचालक महोदय मेरी गजगमिनियॉं के शान में मेरे लिखे कसीदे पढ़ रहे थे, जिसे सुन कर मेरी गजगमिनियॉं बार बार मेरी तरफ देख रही थी, शायद उसे अंदाज हो गया था कि भाषा तो उसके झनझनियॉं प्रेमी की है भले बोल कोई और रहा है।उसके साथ चलते हुए मैं मंच तक पहुँच चुका था। संचालक महोदय मेरी गजगमिनियॉं के शान में मेरे लिखे कसीदे पढ़ रहे थे, जिसे सुन कर मेरी गजगमिनियॉं बार बार मेरी तरफ देख रही थी, शायद उसे अंदाज हो गया था कि भाषा तो उसके झनझनियॉं प्रेमी की है भले बोल कोई और रहा है।
अब तो स्वागत का दौर शुरू हो चुका था। विद्यालय में 24 घंटे में 48 घंटे 60 मिनट दर्शन देने वाले योद्वा माल्यापर्ण के लिए बुलाये जा रहे थे। स्वागत का दौर खत्म हुआ, अब बारी स्वागत भाषण की थी, बाई गाड क्या बखान हो रहा था मेरी गजगमिनियॉं का, मेरा सीधा तो 59 इंच का हो रहा था। अब बारी आई स्मृति चिन्ह देने की, बुलाया गया मैं। बिल्कुल वैसे तैयार होकर चल दिया जैसे पर जयमाल स्टेज पर पहुँच कर जयमाल होने की वाला हो। जैसे शादी मे साली जयमाल देते है वैसे ही चपरासी ने मुझे स्मृति चिन्ह दिया, मैनै उस साफ स्मृति चिन्ह को जेब से रूमाल निकाल कर और साफ किया। रूमाल मे साथ एक गुलाब भी उसके साथ निकला। मैने स्मृति चिन्ह के नीचे छुपा कर उसे भेट किया, उसने स्वीकर किया।मगर मेरी किस्मत खराब निकली, वाइफ होम से पिटने का जुगाड कर देती, फूल देते समय मेरे चोर से साले ने देख लिया। मैने भी सोचा जो होगा बाद में होगा, पहले तो गुड़ खाया जाये, कान तो बाद में छिदेगा।
अब शुरू हुआ बच्चों के कार्यक्रम का दौर। बीस दिन से बच्चे तैयारी में लगे थे। एक से एक कार्यक्रम प्रस्तुत होने लगे, सभी खुश थे।तालीयॉं बज रही थी। मैं तो केवल अपनी गजगमिनियॉं देखने में बीजी था। होता भी क्यों नहीं बहुत दिनो के बाद जो मिली थी आज। मैं उसकी तरफ देखते हुए इस बात का इंतजार कर रहा था कि कब उन बच्चों को बुलाया जाये जिन्हें मैने अपने प्रेमगीत गाने को दिये थे। इन्तजार की घडीयॉं बढ रही थी, उधर बच्चे बार बार संचालक के पास पहुँच रहे थे। संचालक महोदय समय कम है समय कम की बार बार रट लगा रहे थे। तभी कुछ बच्चे मेरे पास अा गये, सर जी सर जी मेरा कार्यक्रम नहीं होगा, मेरा कार्यक्रम नहीं होगा। मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। संचालक महोदय के पास पहुँचा तो पता चला कि विलम्ब होने के कारण बच्चों के कई कार्यक्रम रद्व कर दिये गये है।समय कम है समय कम है कहते कहते पूरी बच्चो की भावनाओं को ख्याल न करते हुए काॅट छॉंट करते हुए मुख्यअतिथि और विशिष्ठ अतिथि महोदय को आशीर्वाद के लिए बुलाया गया। विशिष्ठ अतिथि महोदय ने तो अपने दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर पलटटनिया पुर के अपने दल के वार्ड मेंम्बर तक का नाम लेते हुए समय कम है अधिक समय न लेते हुए, समय कम है अधिक समय न लेते हुए पूरी रामायण सुना डाली और अंत में वह अधिक क्या बोलूँ बच्चों का कार्यक्रम है कह कर किसी तरह बैठे। अब बारी थी मेरी गजगमिनियॉं की उसने तो समय के नाम पर बस एक घंटे ही लिये, सावन से भादो कम क्यों रहे, उसने भी वहॉं मौजूद एक एक बच्चे तक का नाम लेते हुए क्या नहीं कहा उसने, अपने दल की पुरी कहानी, खैर चूना लगा लगा कर मात्र 50 मिनट में सुनाई, शेष 10 मिनट वह समय कम है समय कम है, और धन्यवाद कहती रही। बीच बीच में मेरी तरफ देखने से भी नही चुकती। मेरी तरफ देख कर मुस्कुराती जैसे उसकी मुस्कुराहट पूछ रही हो कि कहो मेरे झकझनियॉं प्रेमी मैं ठीक बोल रही हूँ न ? अब मेरी कहॉं औकात तो कह देता कि तलतनीयॉं डीयर तुम तो ठीक बोल रही हो, तुम्हारे पहले वाले भी ठीक बोले, मगर उन बच्चों का क्या कसूर जो तुम्हारे सामने अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन का करने की तैयारी एक माह पहले से कर रहे थे, और तुम्हारा विलम्ब से आना, और मेरे विद्यालय की चमचागिरी ने पूरे बच्चों का मन तोड़ कर रख दिया। खैर उन बच्चों का क्या ? उनकी भावना जाये तेल लेने मगर मुख्यअतथि का सम्मान तो होना चाहिए। मगर गजब की बात देखीये, आपको जलन होने लगेगी, मेरे मन की बात मेरी गजगमिनियॉं तक पहुँच। वाह रे दिलेरी धडधडी वह अपनी बात समाप्त कर बैठी। उत्सव खत्म हुआ, सारे पीछे पीछे उसे कार में छोडने आ गये, वह कार में बैठ चुकी थी, कार र्स्टाट होने वाली ही थी कि उसने मुझे देखा और ऑंखो ही ऑंखो में मिलने का ईसारा किया, मैं उसके साथ जाने को तैयार ही था कि मेरी घड़ी ने भी शाम होने का एलार्म बज दिया यानि शेर से चुहा बनने के समय की सूचना पूर्व चेतावनी दिया। उसमें भी आज मुझे अपनी वाइफ होम के हाथो पिटना ही। मैं चल पडा उसके कार के पीछे, कुछ दूर जाने पर उसने मेरा स्कूटर साइड कराया और मुझै बैठा लिया अपने कार में। काफी देर मलतनियॉंगंज से खलतनियॉं चौराहे घूमते घूमते प्यार मुहब्ब्त की बाते करते, पकघरिया चाट वाले की चाट खाते हम दुबारा उसी जगह पर आ गये जहॉं मेरा स्कूटर खड़ा था, मैं उतरने लगा तो उसने घीरे से कहॉ सही कह रहे थे मेरे पटकमरिया प्रेमी, आज हम अपने स्वार्थ में बच्चो की कोमल भावनाओं का ख्याल नहीं करते, हम उनकी तैयारी, उनके सपने केवल मुख्यअतिथि के सम्मान की भेट चढा देते हैं, और मुख्यअतिथियों का तो देर करना एक फैंशन बन गया है और उनकी शान में कार्यक्रम को विलम्ब करना एक उनकी मेहमानबाजी का तरीका। हम कैसे बच्चों के कोमल मन को मसल देते हैं इसका आभास हमें होते हुए भी नहीं होता। मैने उसे शांत कराया और विदा किया उसके घर की तरफ और खुद अपना बाबा आदम के जमाने का स्कूटर निकाला और चल पडा अपनी वाइफ होम के चरण पादुका द्वारा पूजे जाने के पराम्परिक कार्यक्रम के श्रीगणेश के लिए अपने आशियाने की तरफ, अपने महल की तरफ जहॉं मेरी दिलजानी, मेरी महरानी मेरी वाइफ होम रहती है। अखंड गहमरी
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