रविवार, 17 फ़रवरी 2019

गाजीपुर वाले हो क्‍या

होटल चाहिए भाई साहब,तकधनिया रेलवे स्टेशन उतरते एक अंजान आवाज आई।
नही चाहिए , कह मैं आगे बढ़ गया।
देख लो भाई साहब एक से एक होटल हैं.वह शायद मुझे बड़ा आदमी समझ बैठा और मेरे पीछे पड़ गया।
नहीं भाई नहीं चाहिए, मैं डायमेट्री की औकात रखता हूँ मैं बोल चल दिया।
वह आगे बढ़ मेरा बैग पकड़ देख लो साहब. ।
मुझे गुस्सा आ गया, मगर पीते हुए बोला हाँ चाहिए बोलो दिलाओगे।
हाँ दिलायेगें..कैसा चाहिए ? वह ताव में बोला।
मैने अपनी डिमांड बताई..
वो पूस की सुबह आया पसीना पोछते हुए ऐसा होटल तो नहीं मिलेगा तकधनिया में।
बनवाना होगा मुझे, उसने व्यगंय कसते हुए कहा।
मैं जेब से एक दस का नोट निकाल उसे देते हुए
यह लो जब आदमी कोई निर्माण कार्य, बच्चों का शादी-व्याह करता है तो अपनो और गैर से मदद लेता है.. ये लो 10 रूपये
मेरी तरफ से सहयोग और जब होटल बन जाये तौ एक कमरा मैरा परमानेन्ट बुक रखना।
अब वह कभी मुझे देख रहा था कभी उस नोट को.
बड़ी मुश्किल से वह इतना ही कह पाया
गाजीपुर वाले हो क्या?
मैं मुस्कराते हुए बोला हाँ, मगर वह जबाब सुनने के लिए मौजूद नही थाः मैं सामान उठाया और चल दिया रेलवे डारमेट्री की तरफ।।

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