रविवार, 17 फ़रवरी 2019

गजगमिनियॉं है दोषी

रावण के साथ जल गई सैकड़ो परिवार की जिन्‍दगीयॉं। हम एक दूसरे पर दोषारोपण करते रह गये। दोषी कौन था इसकी तलाश करते रह गये। सही पूछीये तो दोषी न रेल प्रशासन है, न वह ड्राइवर, न पुलिस, न प्रशासन और ना ही आयोजक। दोषी तो मैं हूँ, अखंड दोषी है इस घटना का,क्‍योंकि वही तो गया था, अपनी गरीबी भूल चंद खुशियों के पल जीने को, ढेले पर बिकते चाट-पकौड़े को पॉंच सितारा होटल के लजीज व्‍यंजन की भॉंति खाने को। वह अखंड भूल गया था कि एक-एक मत पाकर, जिले के, प्रान्‍त के और देश की कमान संभालने वालो की सुरक्षा में लगे सैकड़ो शासन-प्रशासन के कर्मचारीयाें को गरीब जनता की सुरक्षा से कोई सरोकार नहीं।
हादसो का क्‍या है होते रहेगें, जिसका लिखा है वह जाता रहेगा, यह होनी-अनहोनी तो सब काल का चक्र है, इसके लिए क्‍यों कोई दोषी। दोषी हो भी कैसे अखंड जैसे गरीबो के लिए तो संविधान में इतने छेद हैं जिसको देख कर शायद चलनी भी शर्म से पानी-पानी हो जाये।
अखंड को समझना चाहिए था कि रेलवे ट्रैक रेल के लिए होता है, इंसानो के लिए नहीं, उसे समझना चाहिए था कि रावण के जलने के बाद होने वाले धमाको से बचने के लिए वह कहॉं जायेगा। ये गलती उसकी है कि वह ट्रेन की आवाज क्‍यों नहीं सुना। आयोजक, पुलिस तो मुख्‍यअतिथि के सेवा में रहेगें, वह तो बिन बुलाया मेहमान है, जो शायद आयोजको को एक रूपये चंदा भी नहीं दे सकता, ऐसे में अखंड किस अधिकार से किस हक से अपनी सुरक्षा के लिए शासन- प्रशासन पर निर्भर है। दोष अखंड का था सजा उसे मिली, खुद को गँवाकर, अपने परिजनो को गवॉं कर, अपने अंग भंग करा कर। उसे तो खुश भी होना चाहिए कि उसकी गलती पर भी लाशो के सौदागर उसकी लाशो को रूपये से उसे तौल रहे हैं। दिन रात खोज रहे हैं कारण इस घटना का, अपने घर से घटना स्‍थल एक किये हैं, एक दूसरे पर दोषारोपण जैसा महान कार्य कर रहे हैं, ऐसे में आप उनके इस महान कार्य को समझे, उस पर पानी न डाले, उनकी भावनाओं उनके अरमानो को उनपर दोषरोपण कर व्‍यर्थ न जाने दें। मैं जनता से अपील करता हूँ कि गलती किसी की नहीं, गलती केवल उस पागल अखंड की हैं जो अपने खुशियों के चंद पल तलाशने अपने पैरो पर गया था और न जाने किस पर लौट कर आया, अपने घर को सूना कर, चिरागों को बुझा कर।

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