काश वो लड़की न होती
15 जनवरी 2019 को मैं दिलदारनगर से 14056 डा0 ब्रहमपुत्र मेल के बी बन की बर्थ संख्या 01 पर सवार हुआ। मैं अपनी बर्थ पर बैठ सकता नहीं था क्योकि मीडिल बर्थ पर एक अंकल साेये हुए थे, मैं भी लेट गया। गाडी बक्सर रेलवे स्टेशन से खुली, अभी कुछ ही दूर गई होगी कि एक लड़की जिसकी उम्र मुझे 24-25 साल लगी, बदहवास सी आई, और बडबडाने लगी। ट्रेन में चल रहे टी0टी0 और पुलिस दोनो उसके पास थे। मेरे सामने बर्थ नम्बर 7 पर वो बैठ गई।
उसने सबको बताया कि उसका और उसके पिता जी का रिजेर्वशन 10 मिनट पहले गई हरिद्वार हावडा में था, मगर काफी भीड के कारण वह चढ नहीं पाई, उसका पैर स्लिप कर गया वह ट्रेन के नीचे जाती, इसके पहले किसी लडके ने उसे खीच लिया, उसके पिता जी ट्रेन में चढ गये। वह अब इस ट्रेन से आगे जाकर पिता जी से मिलेगी। सहयात्रियों ने उसे बैठने की जगह दी, और टी0टी0 महोदय ने अगले स्टेशन पर सूचना देकर उसके पिता जी को आरा में उतर जाने का मैसेज कराया, क्योंकि उस लडकी का मोबाइल काम नहीं कर रहा था। इसके साथ ही टी0टी0 ने रेलवे के नियम के विरूद्व जाते हुए मानवीय आधार पर उसके एवं उसके पिता को एसी कोच में बैठने की व्यवस्था भी कर दिया।
इन सारे सुविधाओं के बाद जब लडकी कुछ रिलेक्श हुई तो उसके मुहँ से निकले शब्द सारे यात्रीयों के दिल में छेद कर गये, मगर मेरे सामने के बर्थ पर बैठे एक बंगलादेशी मुल्ले परिवार ने उसका समर्थन कर दिया।
उसके शब्द थे कि इंडिया में इसी प्रकार की व्यवस्था है, गंदगी भीड भाड़़ इस लिए मैं यहॉं आना नहीं चाहती, आई हेट इंडिया। जब उसे तीसरी बार यह शब्द दुहराया तो मुझसे बर्दाश्त नहीं हुआ मैं बोल पडा कि अगर तुम लडकी न होती तो मैं तुम्हें ट्रेन से बाहर फेंक देता, इसकी शिकायत उसने टीटी से किया मगर मेरे ऊपर भी उन्होनें कुछ नहीं कहा, बस उस लडकी को इतना ही कहा कि आप यहॉं से चले। आपके शब्द सब बर्दाष्त नहीं कर पायेगा। बक्सर में चढने के कारण मुझे अंदाज तो यह हो गया कि वह यही कही कि रहने वाली है, मगर जिस प्रकार उसने आई हेट इंडिया,आई हेट इंडिया बार बार कहा मुझे उसके शिक्षित और आधुनिक होने पर भी शर्म आई।
15 जनवरी 2019 को मैं दिलदारनगर से 14056 डा0 ब्रहमपुत्र मेल के बी बन की बर्थ संख्या 01 पर सवार हुआ। मैं अपनी बर्थ पर बैठ सकता नहीं था क्योकि मीडिल बर्थ पर एक अंकल साेये हुए थे, मैं भी लेट गया। गाडी बक्सर रेलवे स्टेशन से खुली, अभी कुछ ही दूर गई होगी कि एक लड़की जिसकी उम्र मुझे 24-25 साल लगी, बदहवास सी आई, और बडबडाने लगी। ट्रेन में चल रहे टी0टी0 और पुलिस दोनो उसके पास थे। मेरे सामने बर्थ नम्बर 7 पर वो बैठ गई।
उसने सबको बताया कि उसका और उसके पिता जी का रिजेर्वशन 10 मिनट पहले गई हरिद्वार हावडा में था, मगर काफी भीड के कारण वह चढ नहीं पाई, उसका पैर स्लिप कर गया वह ट्रेन के नीचे जाती, इसके पहले किसी लडके ने उसे खीच लिया, उसके पिता जी ट्रेन में चढ गये। वह अब इस ट्रेन से आगे जाकर पिता जी से मिलेगी। सहयात्रियों ने उसे बैठने की जगह दी, और टी0टी0 महोदय ने अगले स्टेशन पर सूचना देकर उसके पिता जी को आरा में उतर जाने का मैसेज कराया, क्योंकि उस लडकी का मोबाइल काम नहीं कर रहा था। इसके साथ ही टी0टी0 ने रेलवे के नियम के विरूद्व जाते हुए मानवीय आधार पर उसके एवं उसके पिता को एसी कोच में बैठने की व्यवस्था भी कर दिया।
इन सारे सुविधाओं के बाद जब लडकी कुछ रिलेक्श हुई तो उसके मुहँ से निकले शब्द सारे यात्रीयों के दिल में छेद कर गये, मगर मेरे सामने के बर्थ पर बैठे एक बंगलादेशी मुल्ले परिवार ने उसका समर्थन कर दिया।
उसके शब्द थे कि इंडिया में इसी प्रकार की व्यवस्था है, गंदगी भीड भाड़़ इस लिए मैं यहॉं आना नहीं चाहती, आई हेट इंडिया। जब उसे तीसरी बार यह शब्द दुहराया तो मुझसे बर्दाश्त नहीं हुआ मैं बोल पडा कि अगर तुम लडकी न होती तो मैं तुम्हें ट्रेन से बाहर फेंक देता, इसकी शिकायत उसने टीटी से किया मगर मेरे ऊपर भी उन्होनें कुछ नहीं कहा, बस उस लडकी को इतना ही कहा कि आप यहॉं से चले। आपके शब्द सब बर्दाष्त नहीं कर पायेगा। बक्सर में चढने के कारण मुझे अंदाज तो यह हो गया कि वह यही कही कि रहने वाली है, मगर जिस प्रकार उसने आई हेट इंडिया,आई हेट इंडिया बार बार कहा मुझे उसके शिक्षित और आधुनिक होने पर भी शर्म आई।
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