AKHAND GAHMARI
सोमवार, 14 मार्च 2022
बुरा न मानो होली है गहमर रेल का बिगड़ा खेल
शुक्रवार, 5 नवंबर 2021
वाह रे कामाख्या मंदिर प्रशासन
मेरी समझ से इसका तो बस तीन कारण हो सकते हैं। मंदिर के प्रति उत्थान की सोच नीजी स्वार्थ के नीचे दबना, मंदिर प्रशासन का संवेदनाहीन होने के कारण महातमो का निरंकुश होना और तीसरा धन की कमी ।अरे महाराज धन की कमी कहॉं है ? दीपावली के केवल 1 सप्ताह पूर्व तक के ही दान में प्राप्त राशि को यदि रोक दिया जाता तो मंदिर परिसर की भव्य सजावट हो जाती। इस लिए धन की कमी तो मेरी समझ में से है ही नहीं । शेष इनमें से कौन सा कारण है ?वह तो मंदिर प्रशासन ही बतायेगा, लेकिन मेरा दावा है कि मॉं अपनी उपेक्षा एक सीमा तक ही बर्दाश्त करेगी, इसके पहले की वह सीमा टूट जाये, इस धरती का कोई भी इंसान इसमें जिम्मेदार हो अपने गैर जिम्मेदाराना हरकत को स्वीकार कर भूल सुधार ले, वर्ना आखों की रौशनी अश़्को के बहाव से चली जायेगी,मगर अश़्क आने का जो कारण होगा वह घटेगा नहीं बल्कि बढ़ता ही जायेगा। इस लिए कम से कम मॉं कामाख्या के मंदिर को अपनी दुनियादारी से दूर रहते हुए यहॉं ऐसा कुछ करीये जिससे विश्व में यहॉं की पहचान बन सके, यहॉं की व्यवस्था का गुणगान हो सके नहीं। वरर्ना भक्त तो मॉं के दरवार में लाठी खाकर, भूखे रह कर, लाइनो में लग कर भी, कष्ठ सह कर भी हाजिरी लगायेगेें, अपनी अरज गरज कहेगें लेकिन इसका खामियाजा उठायेगें आप मंदिर सीमिति के लोग, वहॉं की व्यवस्था में लगे लोग, मंदिर को अपनी जागीर समझने वाले लोग।
अखंड गहमरी
शनिवार, 18 सितंबर 2021
मेरा गहमर इंटर कालेज
बुधवार, 4 अगस्त 2021
जो मैं लिखने जा रहा हूँ
मैं जो लिखने जा रहा हूँ गजगमिनियाँ उसे सुन कर और सुन कर क्या पढ़ कर क्योंकि सुनती तो वह भगवान की भी नहीं पढ़ कर सरेआम मेरी धुलाई अपने बाटा के चरणपादुका से करेगी। क्योंकि एक तो उसका मूड 01 फरवरी से पहले ही खराब है दूसरे मेरा यह लेख। उसे मेरी सेवा करते देख दिल में दर्द छुपाये रमेश तिवारी कि बहुत सोशलमीडिया पर हमको खींचता है, दो चार चप्पल रसीद करने से नहीं चुकेगें।रमेश तिवारी ही क्या, पंयायत के विरोध में लिखने के कारण मेरी ग्राम प्रधान भी इस सुनहरे मौके का लाभ उठाने से नहीं चुकेगीं। वैसे तय है कि मेरी पूर्व प्रेमिका द्वारा सरकार से विकास परक देश उत्थान कार्य , रोजगार बढोत्तरी जैसे अनेक विशेषता वाले कार्य करने हेतु महापुरुष की उपाधि देने वाली मेरी माँग के कारण सरेराह लतियावनपुर चौराहे पर होती पिटाई में कई समाजसेवी व संस्थान के साथ बहुत लोग भी बहती गंगा में हाथ धोयेगा। महिलाएं तो मुझे किसी कीमत पर न नहीं छोड़ेगीं। मेरी माँग न जाने क्यों पूर्व प्रेमिका को नागवार लगी जब कि मेरी बात 100 प्रतिशत सही है।
अब देखीये उसके द्वारा किये इस कार्य से कम से कम दो काले कोट का न सिर्फ व्यवसाय चरम पर होता है बल्कि उन को पूरी दुनिया उनके नाम जान जायेगी। न्यायालय के जजों की छोटी से छोटी हलचल पर देश की निगाहें। अब निगाहें रखने वाली जानता की नज़र कमजोर होगी तो वह चश्मा तो खरीदेगा ही, भले टीन का हो। न्यायालय में स्टेशनरी, ओवर टाइम वहाँ आने जाने वाले के लिए संसाधन की व्यवस्था करने वाला, अब जो दिन भर न्यायालय में रहेगा वो भी अपने पेट के साथ अन्याय तो करेगा नहीं तो चाय पान नासँते वालो की चाँदी। अब इतना कुछ होगा तो मीडिया का काम भी बढ़ेगा और इतना बढ़ेगा कि उसके पत्रकार से लेकर एंकर तक सुबह से शाम तक भागते फिरेगें। नेताओं से लेकर समाजसेवक तक को सुबह से शाम तक दौड़ भाग करने का मौैका जिससे आटो वाले, पेट्रोल पंप वाले, नास्ता-पानी वाले सबका विकास सबका फायदा। डाक्टरों का फायदा, पुलिस का फायदा। शासन, प्रशासन, नेता, व्यवसायी सबका फायदा। अब आप बताईये इतने लोगो को फायदा देने वाला इस कार्य को करने वाले को लटका कर देश की अर्थव्यवस्था को चौपट करना कहाँ की समझदारी है। समझदारी तो इसमें है कि छेदों की न सिर्फ संख्या बढ़ा दी जाये, बल्कि उसे और अधिक बड़ा किया जाये ताकि बड़े से बड़े यह कृत्य करने वाले आसानी से निकल जायें।.
अरे इससे एक परिवार ही तो परेशान होता है, न्याय केवल एक को तो नहीं मिलता, और न्याय ऐसे की जरूर ही क्या? जो होना था वो हो गया, भवावेश में। अब समझना चाहिए कि किसी का दिमाग सनक सकता है, परन्तु होश में आने के बाद उसे भी न्याय का हक है। उसके साथ भी वोट देने वाले हैं। वह भी भारत का ही नागरिक है। तो फिर एक तरफा बात क्यो? सही कहा न मैनें? आपको भी गजगमिनियाँ की तरह मेरे ऊपर गुस्सा आ रहा है कि नही?
नहीं आ रहा है। मैं जानता हूँ कि आप अपने प्यारे-प्यारे अखंड गहमरी पर गुस्सा कर ही नहीं सकते। करना भी चाहें तो कैसे करेगें? आप का गुस्सा तो कैंडल मार्च, सोशलमीडिया पर भड़ास, नेताओं और व्यवस्था को गाली देकर निकल चुका है। आप तो अभी तक यह भी नहीं समझ पाये होगें कि मैं इतनी देर से किस विषय पर , किस माँग पर लिखा हूँ जिसे पढ़ कर गजगमिनियाँ ने मेरा हाल बेहाल करने की तैयारी की। समझ तो बस हैदराबाद पुलिस पाई, गुस्सा तो बस उसे आया और उसने मेरे शासन से माँग पर ऐसी प्रतिक्रिया दी जिससे एक निर्भया की माँ को अदालत के चक्कर नहीं काटना पड़ा। एक निर्भया की माँ को सड़क के किनारे बैठ कर न्याय के लिए रोना नहीं पड़ा। किसी नेता को मौका ही नहीं मिला कि वह अपनी राजनीतिक गोटी सेकें। हैदराबाद पुलिस को मेरे ऊपर इतना गुस्सा आया कि उसने मेरी माँग के राजकुमार को इस लायक ही नहीं छोड़ा कि वह अपने चंद लोगो के द्वारा भारतीय न्याय पद्धति को अपने हाथो की कठपुतली बना सके और तारिक पर तारिक और नाबालिग और क्षमायाचना का खेल , खेल सके।
गुस्सा हैदराबाद पुलिस को जिसने जड़ से ही जड़ को साफ कर दिया। आप मेरे पर गुस्सा करना चाहो तो करो मगर जरा अपने गुस्से की आँच का प्रयोग कर उस कमीयों को जलाने का प्रयास तो कर दो जिसकी छाया में दामिनी का दामन दागदार करने वाले लुकाछिपी का खेल खेल रहे हैं और अखंड गहमरी न्यायालय, मीडिया, एवं अन्य के जेलों और जेलरो को करोड़ो का लाभ देने वाले, जल्दाल को पहचान देने वाले , उस जूताखोर दुश्कर्म जैसा धिनौने कृत्य करने वाले और कार्य को बलात्कारियों को जूतियावन सम्मान से सम्मानित करने की माँग शासन से करता है।
अखंड गहमरी
आदरणीय केशव भैया
आदरणीय केशव भैया प्रणाम
हम लोग तो अभी तक कुशल हैं और आशा करते हैं कि आप भी कुशल ही होगें।
भैया जी वर्ष 2017 के विधान सभा चुनाव के दौरान जब गाजीपुर आये थे तो आप ने कहा था कि ''यदि भाजपा की सरकार बनी तो समाजवादी और बसपा के भ्रष्टाचारी जेल में नज़र आयेगें''। आपकी सरकार बनने के बाद मैं इस बात को पूरी तरह स्वीकार कर चुका था और हूँ कि भाजपा के राज में भ्रष्टाचार खत्म तो नहीं कम जरूर हो गये । भैया चूकि मैं भारत के संविधान में प्रदत नागरिकों की श्रेणीयों में निचले पायदान पर आने वाले आम आदमी के श्रेणी में आता हूँ इस लिए पूरे प्रदेश की बात कर नहीं सकता था। क्योंकि जानकारी का अधिकार नही है।
अब जब गाजीपुर जिले में मेरे गाँव गहमर में मेरे सामने एक सरकारी काम शुरू हुआ तो निगाह गई, वो भी सरकारी काम आप के ही मंत्रालय का जिसके मंत्री आप हैं। काम भी हजारों में नहीं लाखो में वो भी 90 लाख के समकक्ष मात्र 700 मीटर लम्बी और लगभग 6 मीटर चौड़ी एक छोटी सी ताड़ीघाट-बारा मुख्य मार्ग से गहमर रेलवे स्टेशन तक सड़क व नाला निर्माण का काम।
भैया जी मई के प्रथम सप्ताह में लाकडाउन की अवधि में 89 लाख के जिस कार्य में सड़क का चौड़ीकरण एवं नाले का निर्माण शुरू हुआ है उसका ताड़ीघाट-बारा मार्ग से स्टेट बैंक तक 350 मीटर सड़क अप्रैल 2008 में सीसी करा कर उसका दोहरीकरण किया जा चुका है। 2013 में इस सड़क का पुन: निर्माण पूर्व कबीना मंत्री ओम प्रकाश सिंह के द्वारा मुख्य मार्ग से स्टेशन तक तारकोल वाली सड़क के रूप में कराया गया, उस समय भी यह मुख्य मार्ग से स्टेट बैंक दोहरा किया गया।
आश्चर्य होता है आपके विभाग के उस इंजीनियर या स्टीमेट बनाने वाले व्यक्ति पर जिसने सभी धान को 7 रूपया सेर बेच दिया। शायद भैया वह अंधा था जो उसे दिखाइ नही दिया पहले से बनी और नहीं बनी सड़क। अब ऐसे में आधी दोहरे सड़क को दुबारा दोहरा करना कुछ तो संदेह देगा ही।ऐसे में जरा आपके द्वारा उस बकलोल की क्लास लेना जरूरी है।
भैया जी आप उप मुख्यमंत्री एवं लोक निर्माण विभाग के कैबिनेट मंत्री दोनो हैं। आपके पूर्व कि सरकारों में जो कार्य प्रणाली थी वह इस बार भी निर्माण में सड़क प्रारंभ से ही दिखाई दे रही है, जो आपके विचारो आपके मानको का विरोध कर रही है। सड़क की खुदाई मानक के अनुसार न हो कर मह़ज 2 से तीन इंच खोद कर और खोदी क्या गई केवल तारकोल का लेयर हटा कर कर उस पर डाला गिट्टी की जगह धूल भरी गिट्टी 700 मीटर में डाल दी गई है। और तो और ट्रको से धूल ला ला कर सड़क पर डाली जा रही है। स्टेट बैंक से आगे दक्षिण की तरफ दोनो तरफ हल्की हल्की खुदाई कर उसमें धूल वाली गिट्टी डाल कर उसकी चौड़ाई बढ़ा दी।
भैया जी आप तो जानते हैं कि मैं किसी दल का नहीं, कोई गोल का नहीं, न मेरे साथ कोई आने वाला, मैं तो बस आपका और योगी बाबा का अंधभक्त हूँ। योगी बाबा राज्य के रथ का सारथी आप हैं और आप भ्रष्टाचारीयों को जेल की बात कर चुके हैं, तो बताना अपना फर्ज समझता हूँ। मैं तो संजय की भाँति ठीकेदार रूपी धृतराष्ट्र को सच दिखाने का कार्य कर रहा हूँ। उन धृतराष्ट्रों को जिन्हें आप 2017 में समझा चुके हैं। वैसे यह भी जानता हूँ कि जो 90 लाख का ठीका लिया है आम आदमी तो होगा नहीं, कई दलो में पहुँच रखता होगा, काफी अनुभवी भी होगा। बेईमान तो पूरा है, इसमें कोई शक नहीं। हमें अपने स्नेही स्वजनो के पास बुला कर डटवा सकता है, समझवा सकता है कुछ भी करा सकता , सांसे बंद करा सकता है। कहा ही गया है कि ''सोर्स इस द फोर्स, मनी इज द पावर।
लेकिन जो हो आपको बताना था ही सो बता दिया। फिर मत कहीयेगा केशव भैया कि गहमरीया तूने बताया नही कि यह सड़क शुरू से भष्टाचार का अखाड़ा बनी तू देखता रहा। सच दिखाया नहीं। खाली पकर पकर करता है। ये नहीं बताया कि
इस 700 मीटर सड़क के पश्चिमी छोर पर उत्तर से दक्षिण तक तो क्रमसः जूनियन हाई स्कूल, माँ का डिग्री कालेज, गहमर इन्टर कालेज, भारतीय स्टेट बैंक, पोस्ट आफिस, दूर संचार विभाग, दो व्यवसायिक काम्पलेक्स, गेहूँ क्रय केन्द्र एवं रेलवे स्टेशन परिसर है वही पूरब दक्षिण से उतर रिहायशी कालोनी, पिक्चर हाल, एक व्यवसायिक काम्पलेक्स,कुछ नीजी मकान, आरा मशीन, पंचायत भवन और गहमर थाना है।
आपकी सेवा में कुछ फोटो और वीडियो भैया जी आपके अवलोकानार्थ प्रेषित कर रहा हूँ। जरा देख लीजियेगा समय निकाल कर।
शेष बातें फिर कभी, अब नींद आ रही है, सोते हैं। इस लाकडाउन में सब कम्पयूटर सम्पियूटर जल गया है।
अब विशेष क्या कहें समय तो जीवन के प्रतिकूल है, बच बचा के रहीयेगा। काढ़ा साढ़ा दिन में तीन बार पीजियेगा।
आपका छोटा भाई
अखंड गहमरी
व्याकुल मन
आज कई दिनो से मन व्याकुल है। दिमाग परेशान है। कभी बायीं आँख तो कभी बाँया हाथ फड़क रहा है।
दिल का कोना-कोना सुस्त पड़ा है। हालत ऐसी हो गई है कि देख कर मजनूँ भी परेशान था कि यदि कहीं इसका यही हाल रहा तो इतिहास मेरे नाम के ऊपर व्याइटनर लगा कर इसका नाम लिख देगा। मेरी हालत देख कर वाइफ होम ने भी कपड़े सुखाने का काम कम कर दिया। अब मेरे जिम्मे केवल झाडू-पोछा, चौका-बर्तन और कपड़ो की सफाई ही रह गया था।
आज मैनें फैसला कर लिया कि आज अपनी हालत सुधार कर रहूँगा, चाहे इसके लिए कुछ भी करना पड़े।
मैं तीन बजे सुबह उठ कर सारे काम निपटाने लगा। खटर-पटर सुन कर वाइफ होम की नींद खुल गई।
अब आधी नींद पर उठने पर तो फूल भी बम बन जाता है, आप समझ लें मेरी हालत क्या हुई होगी? मगर मर्द को दर्द नहीं होता। मैं लाल चेहरा छुपाये तैयार होकर पहुँच गया गहमर के रूप श्रंगार महल के अरूण सिंह के घर। सुबह सुबह मुझे आये देख कर वह बाहर आये, हाथो में लिये बीम बार को किनारे लगाये। कहो भाई कैसे सुबह सुबह? ये चेहरा क्यों छुपाये हो? उन्होंने साल हटा कर पूछा।
मेरे चेहरे को लाल देख कर थोड़ा उदास होते बोल पड़े, इसमें छुपाना क्या? मेरी भी यही कहानी है, बर्तन धोते समय गिलास गिर पड़ा और फिर एक भी बेलन नीचे नहीं गिरा, उन्होने अपनी पीठ दिखाते कहा।
मैं गर्व से बोला भाई अपनी तुलना मुझसे न करीये मैं सीने पर खाता हूँ, पीठ पर नहीं।
राम की मेहरबानी से चाय आ गई। मैनें बातो बात में अपनी समस्या बताई और मदद स्वरूप एक दिन के लिए चूड़ी,बिंदी सहित श्रंगार के सामान माँगे।
उन्होनें मेरी मदद की, सामान दिया, भगवान उनकी मदद कर और कुछ धोने वाले कपड़ो के गट्ठर बढ़ा दे।
मैं सब सामान ले आया, एक लकड़ी के संदूक में रखा, एक मलीन सी धोती पहनी और गली में श्रृंगार के समान बेचने वाले का रूप बनाया और चुपचाप चल पड़ा।
गली -गली, चौबारे-चौबारे होता मैं पहुँच गया अपनी मंजिल पे।
मंजिल पर पहुँचते ही मेरा हर्ट हर्ट हो गया। वहाँ रोज गूँजने वाली लटकिनिया-भटकिनिया, तोड़ा-मोड़ा जैसे सिरियलो कि आवाज नदारद थी। मेरी मंजिल के 36 घंटे खुले रहने वाले खिड़की दरवाजे बंद थे।
मैं किसी अनहोनी की कल्पना से काँप उठा और दिल को बाँस-बल्ली के सहारे रोक कर दरवाजे पर आवाज दी ''चूड़ी ले लो”, चूड़ी ले लो"।
दरवाजे पर कोई हलचल नहीं हुई।
मैने हार नही मानी फिर जोर लगाया रंग-बिरंगी चूड़ियाँ ले लो, सिनर्जी टेलीकाम की डिजाइनदार चूड़ियाँ।
दरवाजे पर हलचल हुई। दरवाजा खुला। अहोभाग्य मेरे स्वच्छ, सुन्दर, तड़कीली, भड़कीली मेरी पूर्व प्रेमिका गजगमिनियाँ मेरे सामने थे।
हफ्तो बीत गये थे उसकी एक झलक पाने को। वो तो मैं पहले से राँची और आगरा रिर्टन था ही, अब तेजपुर से भी रिर्टन हो गया तो इस दर्द को सह गया।
भागो यहाँ से नहीं चाहिए चूड़ी- तूड़ी।
उसकी तेज आवाज से मैं यर्थाथ मैं लौटा।
ले लो न मैडम जी, तुम्हारे पर बहुत खिलेगीं ।
कह दिया न नहीं चाहिए भागो शोर मत करो , बेटे की परीक्षा है, डिस्टर्ब हो रहा है।
मैं मन ही मन बुदबुदाया परीक्षा तो तुम मेरी ले रही हो प्रिय अपने लाटू बलम की..।
मैं आँखो में अश्क भर बोल पड़ा ले लो आन्टी ....
मेरे शब्द मेरे मुहँ में ही रह गये, उसने चिल्लाते हुए कहा ''क्या बोला आन्टी , अरे अन्धे मैं किस एंगल से तुझे आन्टी लगती हूँ?'' उसने मुझे धकेला।
मैं उसका यह रूप देख कर इतना तो समझ गया कि जो है ठीक है। मैं खुशी से झूम से झूम गया। तभी उसकी निगाहें मेरी निगाह पुरानी फिल्मी स्टाइलिंग में टकरा गई। वह चीख पड़ी अरे मेरे लतखोर बलम, ये क्या हाल बना रखा है।
अब मेरे आँखो के पानी से भारत सरकार की नदी भरो परियोजना सफल होती दिखाई देने लगी। वह पिघलने लगी, पास पड़े गाड़ी साफ करने वाले कपड़े से मेरी आँखे साफ की और बैठ गई चूडियाँ देखने।
मैने धीरे पूछा कहाँ रहती हो आज कल? मेरे प्यार की बगिया के फूल तुम्हारे चरणरज के आभाव में मुरझा रहे हैं।
क्या करूँ? मेरे खनकरू बलम बेटे की हाईस्कूल की परीक्षा जो सर पर आ गयी, उसने मेरे श्रृगांर बक्से में रखे सामानो पर अँगुलियाँ फेरते हुए कहा।
मैं आश्चर्यचकित हो कर उसकी तरफ देखा, न मिल पाने का दर्द उसे भी था..मैने धीरे से कहा ''आज कल मोबाइल भी आफ रहता है, आन लाइन भी नहीं होती हो।
मेरे बक्से में रखी 2:6 की चूडियों को अपनी कलाई में डाल चुडियों की सुन्दरता बढ़ाते हुए बोली, क्या करूँ मेरे धनसोई बलम? बेटे की परीक्षा के कारण आज कल नेट और डिस रिचार्ज सब बंद हैं, इस लिए आन लाइन भी नहीं आती।
मैं ठहरा हाईस्कूल बार बार फेल आदमी मुझे ये सब समझ नहीं आ रहा था। आखिर बेटे की परीक्षा से ऐसा कौन सा बबाल हो गया जो सारे काम बंद।
मेरे मनोभाव को गजगमिनियाँ पूरी तरह समझ रही थी, परन्तु वह मुझे कैसे समझाये उसे भी नहीं समझ में आ रहा था।
मेरे बक्से से वह कई रंगो की ओठ लाली निकाल कर अपने ओठो पर सजा लिया था, उसके ओठ अब सतरंगी दिख रहे थे। जिसे मैं छुपे कैमरे से कैद करता जा रहा था, ओठलाली नीचे रखते हूए कहा .कन्टोरी मल बेटे की पढ़ाई ऐसे नहीं होती, त्याग करना पड़ना है। हम लोग कही शादी व्याह, आर्टी-पार्टी में नहीं जाते। बस उसकी पढ़ाई पर ध्यान देते हैं।
मैं उसकी बात सुनना और समझ में न आना मेरे राँची, आगरा और तेजपुर रिर्टन होने पर मुहर लगा रहे थे।
मेरी सूरत देख कर मुस्कुरा पड़ी ऐसे लगा जैसे हजारो जरमुंडी के फूल वातारण में बिखर गये। हजारो कप प्लेट आपस में खनकते लड़ पड़े। अपने टुप्पटे को संभाल कर बोली' तुम को समझ में नहीं आयेगा, आज के जमाने में.परीक्षा देता बेटा है , तैयारी पूरा घर करता है। तुम ये पकड़ो । उसने अपने हाथ में मेरे आईने को लेकर पवित्र कर नीचे रखते हुए कहा।
मेरी निद्रा टूटी उसके हाथ में 200 का नया नोट चमक रहा था।
ये क्या है?
ये तुम्हारी चूडियो और लिपिस्टिक की कीमत और अब जाओ, परसो मिलते हैं लतियावन दादा के ढाबे पर , तब समझायूँगी।
मैंने पैसे लेने से इन्कार किये, वह नहीं मानी, पैसे मेरे जेब में डाल कर मुस्कुराती हुई उठी, तिरछी नज़र मुझ पर डाली और बोली मेरे लतखोर बलम ये रूप अच्छा लग रहा है। झक्कास लग रहे हो।
मेरा सीना 57 इंच का हो गया..
परसो पक्का?
हाँ बाबा पक्का. कहते हुए वह अंदर चली गई और दरवाजा बंद कर लिया।
मैं अपना बक्सा उठाये चल पड़ा अरूण भैया के दुकान की तरफ मगर मेरे दिल में गजगमिनियाँ के खुश रहने की खुशी और दिमाग में इस सवाल की खोज की चल रही थी कि आखिर आज की परीक्षा में ऐसी क्या बात है जो पूरा घर अस्त-व्यस्त हो जाता है।
कब होगी परीक्षा समाप्त और होगी मेरी गजगमिनियाँ से रोज मुलाकात।
अखंड गहमरी।
जिद पर अड़ी गजगमिनियॉं
जिद पर अड़ी अपनी गजगमिनियॉं को अपनी कंगाली हालत बता कर तौहीन नहीं करना चाहता था। वैसे भी प्रेमिकाओं के आगे मेरी रेपोटेशन अच्छी नहीं है। मेरे प्रेम तो ऐसे टूटते है, जैसे मंन्दिरो में मन्नत के नारियल। कल से वो 7 सितारा होटल में मेरे साथ मुर्ग-मुस्लम खाकर पापिंग डान्स करने की जिद किये बैठी थी। काफी देर बातो में विश्व की सैर तो करा कर उसे अपने कांगल बैंक का ही आटा खिलाना चाहा मगर वह कहॉं मानने वाली थी। प्रेम के आगे हार कर चल तो दिया मैं लुटेरपुर 7 सितारा होटल की तरफ उसके गले में हाथ डाले, मगर अभी दिल्ली दूर थी। प्रेम के समुन्दर में गोता लगाते हुए मैं संभावित विकल्प तलाशते चला रहा था। तभी बैंड बाजे की आवाज सुनाई दी, शायद नये जमाने की बारात थी। स्त्रियॉं अर्धनग्न जिस्म प्रदर्शन के साथ-साथ हाथो में जाम और सिगरेट के घुँए छोड़ते अपने अपने साथ्ाी से लिपटती थिरकती जा रही थी। मैने भी आव देखा न ताव,अपनी गजगमिनियाँ को खीचते पहुँच गया, नागिन डान्सरों के बीच। एक दूसरे के आँखो में आँख डाले पोपिंग पोपिंग डाँन्स करने। मेरे नागिन डान्स के आगे सब फेल, वैसे भी कोई गहमरी से मुकाबला करें हो नही सकता। बड़ी तालियाँ बजी, फ्लैश लाइटे चमकी, बारात मेरी कम गजगमिनियाँ की दिवानी अधिक हुई सब गजगमिनियाँ के हाथो में हाथ डाल कर चलना चाहते थे।
अब हम भी बारात का हिस्सा हुऐ चल दिये शानदार भोजन महल की तरफ। कोई समझता हम वर तो कोई समझता हम कन्या पक्ष के नव ब्याहे युगल हैं। समझता भी क्यो नहीं मेरे जमाने में तो सिन्दूर रेखा की तरह नहीं बिन्दु की तरह लगाकर जुल्फों की छाँव में छुपा दिया जाता है और चुडियाँ तो बस एक ही काफी से भी अधिक है। कुऑंरी और विवाहिता में अन्तर विवाह संस्कार जैसे मौको पर गहनों के बोझ से ही समझा जा सकता है। छपाक ! मेरी खाने की खुशी समाप्त। किसी ने अपने मसाले लगे हाथो से पानी का गिलास मेरी तरफ उछाल दिया। मेरे झामलाल धोबी से उधार मॉंग कर पहने हुए सूट की तेरही हो गई। मैंने गुस्से से उस तरफ देखा जिधर से गिलास आई थी। अगले ने हड़वडाते हुए कहा स्वारी जेैन्टलमैंन, मैंने यूज एंड थ्रो गिलास को डस्ट बिन में फेका, निशान चूक गया, और आप के कपड़े खराब हो गये''। मैने मन ही मन बडबड़ाया'' गुस्साया मगर संभल कर बोला ओके ओक मैं कोई बात नहीं, हो जाता है, गलती आपकी नहीं हवा की और मेरे बदन की है जो आपके गिलास और डस्टबिन के बीच आ गया। मेरी गजगमिनियॉं अभ्ाी तक खाने में व्यस्त थी, उसे जाते ही बोली आज लोगो को पता नहीं कैसे किधर क्या फेंकना चाहिए, बताओं आपके इतने मँगहें कपड़े खराब हो गये। मैने अपनी गजगमिनियॉं से प्यार से बोला ऐसा नहीं जानेमन, हो जाता है, आदमी प्रयोग के बाद हर चीज फेकता तो दूर ही है मगर फेकी चीज किसी दूसरे से लिपट जाती है। अब तो जमाना ही यूज एंड थ्रो का है, कहॉं तक लड़ते फिरोगी। तुम पागल हो नहीं जानते है, कुछ लोगा अपने आपको बहुत बड़ा समझते है, एडवॉंस समझते है इस लिए हरकत कर जाते है, गजगमिनियॉं गुस्से में बोली।
मैं समझ चुका था कि अब मेरी यह प्रेमिका राज खोलवा कर ही दम लेगी, कि हम बेगानी शादी में अब्दुल्ला दिवाना है, बिन बुलाये मेहमान है। मैने कहा सुनो डालिंग मैनें उसे समझाने की दुबारा कोशिश की, देखती नहीं मैं जिससे कोई काम लेना होता है उससे बहुत प्यार करता हूँ, सैकड़ो बार फोन करता हूँ, मगर काम निकल जाने के बाद या कोई उससे अच्छा मिलने के बाद उसे याद रखता हूँ , नहीं न। कितनो को याद रखॅू, कितनो को साथ रखूँ, उसी तरह आदमी पानी पीने के बाद यदि गिलास को अपने पास रखेगा तो कितना रखेगा। वह तो फेंकेगा ही अब अलग बात है कि वह किसी उपर गिरे या कचरे के डिब्बे में और फिर गलत जगह गिर पड़े तो अंग्रेजो का बनाया '' स्वारी'' शब्द तो जिन्दाबाद है ही। चलो अपने उदास से चेहरे को ठीक करों हम चलते है लुटेरपुर 7 सितारा होटल में, डिनर करेंगें, बॉंहो में बाँहें डाल पापिंग पापिंग डान्स करेंगें एक दूसरे को प्यार करेगें। मुझे कही नही जाना है मैं चली अपने घर। चलो मुझे घर छोड़ो। मैं तो यह सुन कर खुशी से उछल पड़ा है रब ने मेरी पुकार सुन ली। मैने मन ही मन लवगुरू को प्रणाम किया, धन्यवाद दिया और उदास मन से कहा '' चलो जैसी तुम्हारी इच्छा'' मैं तो सीट भी रिर्जव करा दिया था होटल में। इस बारात ने सारा मूड खराब कर दिया। इसके पहले वह कुछ कहती या मूड बदलती मैने तेजी से आटो रोका, नबाबगंज।
अखंड गहमरी, गहमर गाजीपुर।।
एक त ससुरो भवति ना
एक त ससुरो भवती ना।
बोल्वले प अउती ना ।।
इस कहावत पर भले सभ्य लोग कुछ कह सकते हैं, परन्तु आज मुझ पर और मेरी वाइफ होम पर बैठ रही है सटीक। खास तौर पर आपके अखंड गहमरी पर तो ऐसे बैठ रही है जैसे इमरान खान की गेंद कपिल देव के बल्ले पर चपक सुरीली धुन देते हुए सीमा पार ।
17 फरवरी को जब बंगलौर से गहमर का सीधा आरक्षण नहीं मिला तो अधिक कूद-फांद करने की जगह यशवंतपुर से हाबड़ा सुपर फास्ट एक्सप्रेस में यह सोच कर टिकट ले लिए कि चलो भाई यह ट्रेन 19 को सुबह हाबड़ा पहुँच जायेगी। साथ में वाइफ होम हैं, कुछ बागवां वाला सीन क्रियेट करेंगे।
अभय चाचा के घर जायेगें, सामान-वामान रखेगें खाना पीना खायेगें, काली जी का दर्शन पूजन होगा, कुछ कोलकाता घूमेगें शाम को बैग उठा कर पंजाब मेल या बिभूति से गहमर पहुँच जायेगें।
वैसे भी मैं तो कहीं घूमता नहीं केवल आता जाता हूँ। जाने वाले शहर के या तो रेलवे स्टेशन से परिचित हूँ या फिर यदि प्रमुख देवस्थल है तो वहाँ माथा टेका है। वह तो भला हो कांति माँ का कि एक बार उन्होनें भोपाल भ्रमण का जबर्दस्ती कार्यक्रम बना दिया। वरना भोपाल के दार्शनिक स्थल भी अखंड गहमरी के दर्शन से वंचित रह जाते।
गहमर के फजीहत भैया के साथ महीनों कलकत्ता रहा। वह पैसा देकर, हड़का कर थक गये मगर क्या मज़ाल जो गहमरी होटल छोड़ दे।
जब घुमने की सोचा तो हुआ क्या ? बागवान के अमिताबच्चन और हेमामालिनी की जोड़ी में बच्चे विलयन थे और यहाँ हमारे घूमने के प्रोग्राम में विलनय बन गयी श्रीश्री पियुष गोयल की रेल पार्टी। एक तो मैं घूमने का कार्यक्रम बनाता नहीं और बनाया भी तो पियूष गोयल एंड पार्टी मेरे सारे घूमने का कार्यक्रम मेरे सुपरफास्ट ट्रेन के लेट लतीफी से धोकर रख दिया। और लेटलतीफी भी ऐसी वैसी नहीं। ना आँधी, ना पानी, ना ट्रैक की खराबी, ना कोई बंद, रूट की सारी ट्रेने या तो राइट टाइम या तो एक से डेढ़ घंटा लेट।
और मेरी ट्रेन हा हा हा हा हा हा हा हा पूरे के पूरे ग्यारह घंटे अठ्ठाइस मिनट अंक में बोले तो 11 घंटे 28 मिनट।
सुबह 6:45 की जगह पहुँची शाम 05:53 पर मेरी गहमर की ट्रेन से महज 2 घंटा 7 मिनट पहले।
और इस लेट का कारण आप सुनेगें तो आप को यह एहसास हो जायेगा कि बस पियुष गोयल एंड कम्पनी ने कोई दुश्मनी निभाई है, मेरे घुमने के कार्यक्रम को तोड़ कर। ओम प्रकाश शुक्ल भैया यह आपकी रेल ने मेरे साथ न जाने कितनो को सुना दिया।
दिल के टुकड़े टुकडे़ कर के मुस्कुराते चल दिये। बस गनीमत यह रही कि देर आये पर दुरूस्त आये।
कहानी की शुरुआत ही देर से हुई यशवंतपुर से मात्र 20 किमी आते आते यह सुपर फास्ट ट्रेन 20 मिनट लेट हो गई। ट्रेन में यशवंतपुर से सवार मेरी वाइफ होम बिल्कुल दिलवाले दुल्हनिया लें जायेगे़ की तरह कोच के गेट पर हाथ बढ़ाये खड़ी थी जैसे मैं कृष्णाराजपुरम में दिखाई दिया बोगी की तरफ खींच लिया। अब आप सोचते होगें मैं दूसरे स्टेशन पर खड़ा वो दूसरे स्टेशन से ट्रेन में सवार ? तो यह बड़ी दुख भरी कहानी है। ससुराल में साले दिलकुश की करस्तानी है। पूछीये मत वरना आँखो से आसू आ जायेगें। मैं लिख नहीं पाऊँगा। दिल पर पत्थर कर लिख रहा हूँ।
कहानी की शुरुआत ही देर से हुई यशवंतपुर से मात्र 20 किमी आते आते यह सुपर फास्ट ट्रेन 20 मिनट लेट हो गई। ट्रेन में यशवंतपुर से सवार मेरी वाइफ होम बिल्कुल दिलवाले दुल्हनिया लें जायेगे़ की तरह कोच के गेट पर हाथ बढ़ाये खड़ी थी जैसे मैं कृष्णाराजपुरम में दिखाई दिया बोगी की तरफ खींच लिया। अब आप सोचते होगें मैं दूसरे स्टेशन पर खड़ा वो दूसरे स्टेशन से ट्रेन में सवार ? तो यह बड़ी दुख भरी कहानी है। ससुराल में साले दिलकुश की करस्तानी है। पूछीये मत वरना आँखो से आसू आ जायेगें। मैं लिख नहीं पाऊँगा। दिल पर पत्थर कर लिख रहा हूँ।
कृष्णापुरम से ट्रेन चली , अरमान चले। अरमान हवा से बात कर रहे थे और ट्रेन रूप श्रंगार महल के अरूण सिंह की मोपेड से। बेखबर अंजान रात भर वाटस्प फेशबुक चलाता मैं ट्रेन का रनिंग स्टेटस देखता जा रहा था। ट्रेन की रफ्तार घट रही थी। विलंबित घंटे बढ़ रहे थे। दोपहर होते होतै ट्रेन पूरे चार घंटे लेट और रफ्तार 50-55 किलोमीटर प्रतिघंटा के बीच। अब 110 किमी प्रतिघंटा की रफ्तार की ट्रेन 50-60 चले तो संदेह लाजिमी था। पता चला कि एक जनरल बोगी में तकनीकी खराबी है। यशवतंपुर में मेंटेनेंस में मरम्मत नहीं हुआ था, विजयवाड़ा, विजयनगर वही बागवान वाला विजयनगर, सब बीत गये लेकिन इस समस्या का समाधान नहीं हुआ। ट्रेन धीरे गति से चलती लेट होती गई। विशाखापत्तनम, भुवनेश्वर, कटक, और न जाने कितने ऐसे स्टेशन रास्ते में आये जो रेलवे के तकनीकी गढ़, कई ट्रेनो जिसम़े गरीबरथ, दुरन्तो, राजधानी जैसी महत्वपूर्ण ट्रेनो के प्रारंभिक एवं समापन स्टेशन थे। न बोगी की मरम्मत की गई न उसे निकाला गया। हजारो यात्रियों को लाचार छोड़ दिया गया। यात्रियों को इस देरी से हुई फजीहत का किसी भी रेल कर्मचारियों को दिक्कत नहीं हुई।
एसी कोच के यात्री तो फिर भी आराम से थे। जरा सोचीये जनरल बोगी में बैठे यात्रियों की क्या हालत हुई जो भेड़ बकरियों की तरह एक दूसरे पर चढ़े हुए थे।
किसी होनी अनहोनी रुकावट पर इस तरह की लेटलतीफी तो चल जाती है परन्तु जब इस प्रकार की लापरवाही और अधिकारियों की गैर संवेदनशील दिखाई दे तो दिल के अरमा आँसूओं में बह ही जाते है। ट्रेन 17 फरवरी की रात यशवतंपुर से चल कर भले 19 फरवरी की सुबह की जगह शाम को पहुँची। कटक और जाजपुर रोड के बीच जब स्पीड बढ़ाने की कोशिश की गई तो पूरी ट्रेन काँप कर खड़ी हो गई।
किसी स्टेशन पर यदि विभाग चाहता तो बोगी बनाई या काट कर दूसरी लगाई जा सकती थी मगर कोई व्यवस्था नहीं की गई की क्योंकि टिकट के पैसे लिये जा चुके थे। अधिकारों कर्मचारियों के वेतन मिलेगा ही। किसी को क्या फर्क पड़ता है। स्वच्छ और सुविधा जनक यात्रा का पोस्ट लगा ही है, दुकान ऊँची है ही और जो भुक्तभोगी हैं वो लाचार हैं ही, जेब में उतने पैसे ध हो तो भूखे तड़पेगे ही। कधेक्टिंग ट्रेन हो तो छूटेगी ही और जाने कितने कैसी कैसी समस्या से जूझेगें। मर कर जी कर लात खाकर जब आप पहुँचायें तब पहुँचेगें ही भले वह पहुँचने के बाद किसी काम के न रहें या बीबी् से लात खायेगें ही। खून के आँसू रोयेगें क्योंकि वह हैं , विश्व की बेहतरीन रेल व्यवस्था म़ें एक बुलेट ट्रेन चलवाने वाली भारतीय रेल के आम यात्री । जिसकी अपनी इच्छा नहीं होती और होती भी है तो बस टूटने के लिए। माननीय नये मकान शौख से बनाये मगर जरा इतिहास की ,अपने नीव की मरम्मत भी कर दें। नहीं तो वी.आई.पीओं को भी सड़क पर आते देर नही लगती। इतिहास गवाह है।
जय हिंद जय भारत
अखंड गहमरी
वेबसाइट और पत्रकार बनाने के नाम पर होती धाँधली।
वेबसाइट और पत्रकार बनाने के नाम पर होती धाँधली।
उल्लू बना रही लोगो को कुकरमुत्तों की तरह उगी कम्पनीयाँ।
आज हर काम आनलाइन हो रहा है। वर्तमान परिस्थिति में बहुत से धंधे डूब चुके हैं। मानव 4 रोटी, 01 मकाझ़नन, 02 जोड़ी कपड़े और दवा में संतुष्ट है। बढ़ती आनलाइन व्यवस्था को देखते हुए तमाम कम्पनीयाँ वेबसाइट बनाने, मोबाइल एप्लीकेशन बनाने की काम में जुट गई है। ऐसे लोग जिनको साइवर की दुनिया का ककहरा नहीं मालूम वह लोग मोबाइल के माध्यम से तरह तरह के मैसेज जिसमें सस्ती बेवसाइट बनाने, एस एम एस पैक देने का मैसेज भेज रहे हैं। कुछ तो आपका न्यूज चैनल बना कर आपको पत्रकार बनाने का दावा ठोक रहे हैं। ऐसी कम्पनीयाँ अपने विज्ञा, ण क्षक्षक्ष,पनो में आपकी अच्छी बेवसाइट बनाने की शुरूआत 2000- 2500 में करने का दावा क क्षर रहती है। आपको तरह तरह के प्रलोभन और चौबीस घंटे एक काल पर सपोर्ट का दावा करती हैं। आप भुगतान करके , जैसे जैसे उनके जाल में फँसते जाते हैं वह अपने सुरसा की तरह मुँह खोलने लगते हैं। हालत आपकी ऐसी हो जाती है कि आप लौट भी नहीं सकते। आपके कि हालत का वह जम कर फायदा उठाते हैं, आप के सारे कन्टेन्ट को अलग थलग कर दिया जाता है।
ये कम्पनीयाँ किसी नामचीन कम्पनी से आपका डोमेन नेम रजिस्टर्ड करा कर आपको विश्वास में लेती हैं। जब दस बीस मुल्ले फँस जाते हैं तो किसी अन्य कम्पनी से सर्वर स्पेश खरीद कर आपकी बनाई बेवसाइट उस पर लाँच कर देती है। ये कम्पनीयाँ खुद तो अनलिमिटेड स्पेश को पूरी तरह स्पेश को अनलिमिटेड समझती हैं मगर आपसे एक पेज, एक कालम बढ़ाने के भी पैसे माँगती हैं। यदि आपकी साइट चल जाती है तो यह आपकी साइट में खुद ही तरह तरह की समस्याएं पैदा कर आपसे पैसे माँगती हैं। समस्या आने पर न यह आपके फोन काल को रिसीव करती हैं, न मेल और वाटस्प का जबाब देती है।
इस लिए आनलाइन बिजनेश शुरू करने से पहले और बेबसाइट बनबाने से पहले कुछ बातो का अवश्य ध्यान रखें.
(01) जिस कम्पनी से आप अपनी साइट बनवा रहे हैं, वह कम्पनी किस शहर में है? उसके आफिस की स्थिति क्या है? उसका मालिक/प्रवंधक खुद कितना जानकार है? उसकी योग्यता क्या है? कम्पनी सेवा देने के लिए सरकार से रजिस्टर्ड है कि नही? इत्यादि जैसी महत्वपूर्ण जानकारी प्रथम चरण में प्राप्त कर लें, केवल मोबाइल पर वार्तालाप पर निर्भर न रहें।
(02) जिस कम्पनी से आप अपनी बेवसाइट बनवा रहे हैं उसने पहले से किस-किस की बेवसाइट बनाई है? संभव हो तो उसके वर्तमान ग्राहको से उसके सपोर्ट, सर्वर, सेवा , व्यवहार की जानकारी लें।
(03) साइट बनवाने से पहले उस पर लगाने वाले सारी कन्टेंट, आपनी चाहत, अपने डिजाइन , प्रदत्त सुविधा का खाका तैयार कर लें जब सब कुछ फाइनल हो जाये तब सेवा देने वाली कम्पनी से विस्तार से बात करें एक एक प्वाइंट पर चर्चा करने और फाइनल रकम तय करें।
(04) जब भी बात करें पूरे साल आने वाले खर्च जिसमें मेन्टेनेंस चार्ज, रिनिवल के साथ साथ यह भी बात कर ले कि भविष्य में पेज, स्पेश या अपडेशन में क्या खर्च आयेगा।
(05) आपको पत्रकार बनाने वाली कम्पनीयाँ आपको गूगल से रजिस्टर्ड बताती है, जबकि गूगल भारत में पत्रकारिता का कोई रजिस्ट्रेन नही करता। वह केवल आपके न्यूज पोर्टल के नाम से सर्वर, डोमेन रजिस्टर्ड कराती हैं।
भारत में केवल RNI ही आपके समाचार पत्र को रजिस्टर्ड करती है।जिसका चरण आपके जिलाधिकारी से शुरू होकर आर.के.पुरम सेक्टर 8 नईदिल्ली तक के 4 चरणों में पूरा होता है। रजिस्ट्रेन नम्बर आने के बाद आपकी योग्यता के आधार पर समाचार पत्र का वह संपादक जो RNI में रजिस्टर्ड है अपने हस्ताक्षर से संवाददाता बना सकता है। इसके बाद ही आप मान्यता प्राप्त पत्रकार की श्रेणी में आ सकते हैं।
क्रमसः
अखंड गहमरी।
राणा की बहू
पूरी रात बदन दर्द से परेशान रहा। पानी का गिलास क्या हाथ से छूट कर टूटा वाइफ होम ने हड्डियों का कचूमर ही निकाल दिया। सुबह उठ कर सबसे पहले लाकडाउन में घर रहने के टैक्स स्वरूप अपने कर्तव्यों की पूर्ति कर संतोष के दुकान पर पान खाने निकल गया। अभी मलतनियापुर चौराहे पर पहुँचा भी नही था कि मेरे एक वरिष्ठ, गरिष्ठ, विशिष्ठ पत्रकार श्री श्री दुखन्ती,परेशन्ति रोवन्ति सत्या उपाध्याय अपने सेव की तरह लाल लाल चेहरा लिए अखाड़े में कूदते पहलवान की तरह तमतमाते चले आते दिखाई दिये। मुझे देखते ही जैसे पुराने जमाने की रेल इंजन चीखता हो वह चीखे ''कहाँ है आपकी पूर्वप्रेमिका गजगमिनियाँ?'' मैं डर के मारे खड़ी ट्रक के नीचे घुस गया। दिमाग की नशे सुन्न हो गई कि कहीं यह आवाज ब्रह्मांड में गूजँते गूजँते मेरे घर के अंदर राणा सिंह एडवोकेट की बिहारी बहू मेरी वाइफ होम तक पहुँच गई तो वह वैज्ञानिक पागल हो कर अपने उस शोध पत्र को फाड़ कर फेंक देगा जिसमें उसने मानव शरीर में पायी जाने वाली हड्डियों की संख्या अपनी खोज के बाद लिखी थी। वह आगे कुछ बोलते मैं ट्रक के पीछे से भागने लगा, मगर दुर्भाग्य देखीये अभिता बच्चन की तरह लम्बे पत्रकार महोदय ने मेरे गर्दन को ऐसै पकड़ा जैसे मैं अपने प्यारे गदहे बच्चों के मामा का पकड़ता हूँ। मुझे दो हाथ जमीन से ऊठाते फिर चीखे भागते कहाँ हो खंड खंड गहमरी
आज तो पुदीने के पेड़ से कूद
आज तो पुदीने के पेड़ से कूद जाने का जी कर रहा था। जुल्म ढा रही थी मेरी पूर्व प्रेमिका गजगमिनियाँ। कसम वाइफ होम की मैं अगर झूठ बोलू तो मेरे मुहँ में कटहल का आचार चला जाये। मैं उसे देख रहा था, वो मुझे देख रही थी। मेरे और उसके प्यार के दुबारा दीप जल रहे थे, मगर सोमरूआ का दिल जल रहा था। वो गजगमिनियाँ के सामने ही मुझे लंगूर उसे हूर कह कर जले दिल को ठंडा करने और अपने उस अपमान का बदला लेने की असफल कोशिश किया , जब अपनी वाइफ फस्ट को लेकर गंगा किनारे टहलते हुए यह भूल गया कि वह अपनी शेरनी के साथ है, मेरी गजगमिनियाँ पर फितरे कस बैठा । कसम गजगमिनियाँ की आखों की उसकी सुन्दरी ने अपने सुन्दर सुन्दर चरणपादुका का प्रयोग कर उसे मस्त कर दिया।
मेरा और उसका प्यार तो गंगा की तरह पवित्र और निर्मल है, जो कल-कारखानों की गंदगी जैसे गंदे सोमरूवा से दूषित नहीं हो सकता। और फिर जब मेरे जैसा विद्वान, सुन्दर-सुशील, गबरू नौजवान जब अपनी पूर्व प्रेमिका के साथ बैठा हो तो लोग नज़र लगा ही देते हैं, और उसका खामियाजा आपके इस सीधे साधे भोले अखंड गहमरी को भोगना पड़ता है। आज भी कुछ ऐसा ही हुआ। न जाने कहाँ से मेरी प्रेमिका के हाथ गौमुख और गंगासागर की वीडियो लग गई। अब वह उसे देख कर जिद पकड़ ली कि हम दोनो जगह जायेगें।
पहले तो वह अपनीं अदाओं से रिझा कर अपनी बात मनवाना चाहती और जब मैं नहीं माना तो वह माँ गंगे में कूदने की धमकी देने लगी। मरता क्या न करता तैयार हो गया चलने को..मेरे तैयार होते ही उसने मेरी तरफ हजारो उछाल दिये.. मैं भी धन्य हो गया।
चल पड़ा मैं सिर पर कफन बाधें। वैसे इसके पहले भी मैं अपनी एक पूर्व प्रेमिका मजगमिनियाँ के साथ आ चुका था, मगर इस बार का मंजर काफी बदला हुआ था
गौमुख से गंगोत्री का मार्ग काफी सरल था, गंगा के किनारे किसी प्रकार का प्रदूषण नहीं था। मैने महसूस किया कि जल की मात्रा भी पहले से तीन गुना अधिक है।
हम लोग एक दूसरे के हाथो में हाथ डाले न जाने कितनी दूर चले आये पता ही नहीं चला। यह तो होना ही था। एक तो गंगा का किनारा दूसरे चाँद हाथो में, दिमाग कहाँ काम करेगा।
हम दोनो रिषिकेश, हरिद्वार होते हुए कानपुर पहुँच चुके थे, जून के महीने में भी कानपुर में गंगा माता के पाट को स्वच्छ और निर्मल जल से भरा देख कर आँखे खुली की खुली रह गई, गंगा में कोई नाला, केमिकल नहीं गिरता देख मैं और गजगमिनियाँ एक दूसरे की आँखो को मलने लगे कि कहीं स्वपन तो नहीं, परन्तु यह स्वपन नहीं था।
माँ गंगे को प्रणाम कर हम आगे बढ़े और इलाहाबाद पहुँचे।
वाह क्या दृश्य था संगम तट का, चारो तरफ रौशनी, हजारो मटकी लिये नवयौवनाएं, कोई पानी भर रहा है कोई लेकर जा रहा है।
विश्वास ही नहीं हुआ कि आज आरो के युग में ''गंगा का पानी''।
हमने भी अपनी पूर्व प्रेमिका गजगमिनियाँ के साथ संगम में डूबकी लगाई और चला पड़ा बनारस की तरफ।
बनारस के अस्सी घाट पर आते ही मेरे बाबा का चेहरा सामने आ गया जब वह तैराकी सिखाने के लिये हमें गंगा में फेंक दिया करते थे और हम छपर छपर करते किनारे आ जाया करते। आज यहाँ भी गंगा की निर्मलता, पानी और घाटो की सफाई का वर्णन शब्दो में बया ही नहीं कर पा रहा हूँ। हम दोनो अभी बैठे ही थे कि तेज शोर सुनाई दिया, शायद गंगा आरती शुरू हो चुकी थी, हम दोनो माँ गंगे की आरती देख कर
मोटरसाइकिल स्टार्ट कर पटना चल दिये। पटना में भी गंगा अपने पुराने स्वरूप में लौट चुकी थी, घाटो से दूर गंगा घाटो को चूम रहीं। इतनी लम्बी यात्रा में मैं यह नहीं समझ पा रहा था जब हर जगह गंगा इतनी पावन हो गई हैं तो मेरे प्रेमस्थल में गंगा इतनी मलीन क्यो? वहाँ घाटो से दूर क्यों? गन्दगी का अंम्बार क्यो?
इन सवालो का जबाब तलाशते हम दोनो सुल्तानगंज पहुँच चुके थे।मुझे क्या मालूम था सुल्तानगंज जिस अजगैबीनाथ कहा जाता है, वहाँ मेरी पिटाई होने वाली है। सुल्तानगंज पहुच कर अभी हम गंगाघाट पर नजारा देखने ही जा रहे थे कि डबल डेकर ट्रेन जैसी काया की स्वामी मेरी वास्तविक पत्नी की प्रतिरूप मेरी आधी घरवाली ''नीतू'' (वास्तविक नाम) ने अपनी बहन से बेवफाई का दाग मेरे दामन पर लगाते हुए एरियल सर्फ से मेरी सफाई शुरू कर दी.. वो डबल स्टोरी, मैं सिंगल चेचिस किसी तरह कसम वसम खा खुद और गजगमिनियाँ को बचाया।
मगर आप जानते हैं न जो सुधर जाये वो अखंड गहमरी नही..दुनिया सुधर जाये मगर हम नहीं सुधरेंगे।
हम दोनो चोट खाये प्राणी का आगे सफर जारी रख पाना शायद नहीं निश्चित तौर पर असंभव था। किसी तरह गिरते पड़ते हम लोग सुल्तानगंज के घाटो पर पहुँचे, चारो तरफ गंदगी का अंबार था, पानी भी कोसो दूर, समझ में नहीं आ रहा था कि गंगोत्री से पटना तक गंगा की हालत सच थी या पटना से आगे।
मैं सोच में पड़ा हुआ था , परेशान था, कहूँ तो किससे? मेरी इस उलझन को शायद गजगमिनियाँ जान चुकी थी। वह मेरे चेहरे को अपने हाथो में लेकर बोली '' मेरे मोहन तुम जो सोच रहे हो गलत भी है और सच भी''।
सत्तर सालो से गंगा मैली थी, प्रदूषित थी, लोग उनके नाम पर करोडों खा रहे थे। मगर अब चार साल से गंगा माँ की हितैषी पार्टी की सरकार बनी है। हमारे दौरा मंत्री जी और इन चार सालो में इतनी दूर तक गंगा को निर्मल कर दिये, जलयुक्त कर दिये। अब क्या चाहते हो मेरे जानू मेरे जानम? थोड़ा सब्र रखो गंगा पूरी तरह साफ हो जायेगीं, भागिरथ खुश हो जायेगें, उन्हें गंगा को धरती पर लाने का अफसोस नहीं होगा। दुबारा मोदी जी का करो वेट, अभी नहीं हुआ है लेट।
उसकी बातो में मुझे सच्चाई नज़र आ रही थी, मोदी जी ने चार साल में 70 प्रतिशत गंगा की दूरी पूरी तरह शुद्ध कर दिया तो आगे मौका देने पर तो पूरा हो ही जायेगी। मैं मोदी चचा की जय जय करता अपनी गजगमिनियाँ के ज्ञान पर इतराते हुए उसे लगे से लगा लिया, तभी सामने फिर अपनी डबल डेकर काया वाली साली नीतू को हाथो में दुखहरण सुखदाता लिये आते देखा। मरता क्या न करता जानता था वह तैर तो सकती नहीं, मैं गजगमिनियाँ को लिए गंगा में कूद पड़ा और तैरते हुए गुनगुनाने लगा '' मोदी तेरी गंगा साफ हो गई '।
अखंड गहमरी, गहमर गाजीपुर।
अखबार में एक वाहन चालक
आप के मन में निश्चित कई दिनो से तहलका मचा है कि मैं अखबार में एक वाहन चालक की नियुक्ति का विज्ञापन देखकर वह क्यों बार- बार अपने मित्र के पापा के भाई के बेटे के ससुर की बेटी की बहन के पीछे पड़ा हुआ था? वाहन चालक की पोस्ट को पाने के लिए भटकनियाँगंज से लटकनीयाँगंज, लटकनीयाँगंज से खटकनीयाँगज दौड़ रहा था ? सभी असुरो को मना रहा था। मोदी-योगी जी से क्यों यह विनती कर रहा था कि पूरे भारत में उसका ड्राइविंग लाइसेंस छोड़ कर सभी का ड्राइविंग लाइसेंस निरस्त कर दें। तो इसका सीधा जबाब है कि क्या आपने कभी किसी से प्यार किया है ? नहीं ? तो तुरंत करीये। तब आपको पता चलेगा कि वर्तमान भविष्य में भूत बन जाता है तो दिल के समुन्द्र में कितना बड़ा तूफान आता है। आँखो से सुनामी बह कर गालो को खराब करती गले से नीचे कपड़ो को भीँगाती चली जाती है। रैमंड में बनने वाला रूमाल भी काम नहीं आता है। आप वह काम कर जायेगें जो अखंड गहमरी यानि मैं कर रहा हूँ। तब बातों की हकीकत पता चल जायेगी।
सटखनीयाँ चाचा के आशीर्वाद से जब मैनें एवरेस्ट फतह कर लिया और बन गया देश की विख्यात, कुख्यात, प्रख्यात, अस्त, व्यस्त, पस्त और लस्त देश के मंचों की बहुत बड़ी कवयित्री की गाड़ी का ड्राइवर । तब यह राज खोल रहा हूँ मैं अपनी पूर्व प्रेमिका गजगमिनियाँ के जिंन्दगी की गाड़ी का ड्राइवर नहीं बन सका इस लिए उसकी गाड़ी का ड्राइवर बनना चाह रहा था । क्यों कि ऐसे समय में जब लोग केवल दो फायदे के लिए परेशान रहते है मुझे तल्काल ब्रहम्मा, विष्णू, महेश की तरह तीन फायदे होते और हुए भी । सबसे पहला और बड़ा फायदा तो यह हुआ कि अब मैं अपनी पूर्व प्रेमिका गजगमिनियाँ के साथ दिन भर रहता हूँ। गाड़ी के बैक मिरर में मैं उसे देखता, वह मुझे देखती। उसकी पंसद का संगीत गाड़ी में बजा देता तो वह भी झूमती और मैं भी झूमता। जहाँ- जहाँ, जिस- जिस रेस्ट्रोरेंट में हमने लंच डिनर ब्रेकफास्ट किया था, वहाँ फिर जाने लगें। भुगतान पहले भी वह करती आज भी वही करती। बताईये हुआ न फायदा ? दूसरा फायदा यह हुआ कि इस होली के अवसर पर जब कवियों और कवयित्री को सीजन चल रहा है तो मैं उसके साथ । उसे सम्मान मिलता वह सब लेती तो मैं चट से इधर से हाथ बढ़ाता वह भी उधर से बढ़ाती, कहा जाता है स्पर्श से स्नेह बढ़ता है तो यह काम भी हो जाता है। मैं उसको मिले सम्मान को अपने हाथो में ऐसे उठाता जैसे हिमालय पर्वत इस दौरान लिये गये अखबारी फोटो में मैं भी रहता जिससे कई बार मेरी फोटो भी कुत्ते चाट चुके हैं। यही नहीं मैं उसका टेंड-पेंन्ट का सामान लिये कार्यक्रम शुरू होने के बाद ठीक सामने कुर्सी पर बैठ जाता और यकीन जानीये जब वह काव्यपाठ शुरू करने से पहले मुझे मंच पर बुलाती तो मेरा सीना 5894 इंच का हो जाता। मैं अपने आपको कार्यक्रम की मुख्य अतिथि से कम नहीं समझता। सीना तान कर मंच पर जाता । वह अपने हसीन से मुखड़े का डेंट-पेंट करती, मैं शीशा लिये खड़ा रहता उसे निहारता और फिर लौट आता दर्शक दीर्घा में। मुझे उस समय अपनी कुर्सी जाने का भय नहीं रहता। कुर्सी की लडाई तो आजकल भाजपा वाले करते हैं काव्य मंचो पर तो कुर्सीयाँ खाली ही रहती है। अब तो वह समय आने वाला है जब दर्शक पैसे और सम्मान देकर बुलाये जायेगें, कवि उनका सम्मान करेगें। वैसे कवि आज भी दर्शक का बहुत सम्मान करते हैं। आयोजक चाहे लाख पैसा दें दे, व्यवस्था दे दें, वह माईक तक नहीं आयेगें। जब संचालक महोदय उनकी वीरगाथा पढ़ने के बाद दर्शको की चमाचागिरी करेगें कि आप ताली बजाकर उनको मंच पर आने का आदेश दें वह तभी आयेगें। कार्यक्रम की समाप्ती पर मैं उसके साथ-साथ चलता तो भीड़ मेरे पीछे रहती , मैं उसके साथ साथ। वह थकी हुई कभी कभी कार में सोती तो मेरे बाहों में आ जाती । मुझे कितना सुख मिलता होगा। वैसे जलीये मत ये मेरी बात है। याद है न पत्नी से पिटने का मज़ा वाली बात। तो वाइफ होम से पिटा मैं तो सुख भी तो मेरा। वैसे मेरी गजगमिनियाँ कोई बहुत बड़ी कवयित्री नहीं है, उसका लेखन और गला भी वैसा नहीं मगर संचालक की कृपा है। वह विशलेषणो से परे विशलेषण है। और जब उसका विशलेषण शुरू होता है तो मेरा सीना 9590इंच का हो जाता है। दो चार बार दर्शको की ताली का आदेश मिलने के बाद ही वह मंच पर आती है। वह मंच पर क्या आती है पूरा मंच ही हिला जाती है। आने के साथ पाँच मिनट तो वह आयोजक और संचलाक और मेरे नाम पर तालीयों का शोर करा ही देती है। इस कला पर मैं तो लट्टू हूँ। वह काव्य पाठ शुरू करने के लिए आदेश के लिए भी ताली बजवाती है। 4अक्षर बोलने के बाद फिर वह ताली बजवाती है। खड़ी तो खड़ी, अंतिम पक्ति तो, नई कविता शुरू तो यहाँ तक की समाप्त करने व बैठने के लिए भी ताली बजवाती है। इधर बेचारे संचालक महोदय अपनी छवि बिगड़ते देख कर कुछ देर के लिए कवि सम्मेलन के मंच को कौव्वाली का मंच बना कर एक दूसरे पर पर बम का गोला फेंकते हैं। वो कहते है न कि सवाल-जबाब करते है। बेचारे दर्शक को फिर संचालक महोदय के लिए भी ताली बजाकर इस बात के लिए आदेशित करना पड़ता है कि वह मेरी गजगमिनियाँ के बात का जबाब दें। पूरे मंच से ताली के रूप में आदेश चाहते हैं। हमारे वीर रस के कवि रमेश तिवारी तो हमारी गजगमिनियाँ से भी आगे हैं। अपनी पत्नी के साथ हुए झगडे़ को ऐसे चीख-चीख कर ऐसे बतायेगें जैसे पाकिस्तान के साथ जंग लड़ रहे हो। वह बात बात में पाकिस्तान को लेकर वीरता की बातें करके दर्शको से अनुरोध करते है कि इतनी तेज ताली बजाये कि उनकी ताली की गूँज लाहौर और इस्लामाबाद में सुनाई दें। उनकी वीरता के शब्दो को सुनकर मंच और माइक तो नहीं हिलता मगर उनकी चीख सुनकर पड़ोस में सोये बच्चें जग जाते है और वह किसी के सांस्कृतिक कार्यक्रम में व्यवधान पैदा कर देते हैं। यह बात मैनें एक कवि सम्मेलन में ही जानी । वह कितने मजबूत है यह आप सब जानते ही है मगर वह मंच पर जरूर कहते हैं कि आपकी तालीयाँ कमजोर हैं। एक दिन वह तालियों के लिए हास्य कवि गजोधरन से लड़ बैठे। वाक्या बस इतना था कि गजोधरन खडे़ हुए लगातार दस बीस लतीफे पढ़े और कुछ आयोजक पर, कुछ संचालक पर कुछ खुद पर तो कुछ उठ कर जाने वालो पर कमेंट शुरू कर तालीयों पर तालीयॉं पिटवाये जा रहे हैं। अब गजोधर भाई की दुकान जब लतीफो पर चल रही है कविता पाठ वो क्या करेगें। इस मेरी ताली तो मेरी ताली पर भीड़ गये दोनो। वो तो भला हो गजगमिनियाँ का जो बीच में आकर मामले को संभाल ली, नहीं तो व्यंग्य के कवि पलटनीया मिश्रा के आने से पहले ही तंम्बू उखड़ जाता।
बेचारे पलटनीया कवि जी आये पहले तो उन्होनें बड़े ही प्यार से कई विधाओं की टाँगें तोड़ना प्रारंभ किया और बार बार वह इस बात को लेकर ताली बजवाने लगें कि उनकी आवाज को सदन में मोदी योगी राहुल माया तक पहुँचे। पहली लाइन के बाद ताली बजवाने के बाद तुरंत वह तपाक से बोल देते हैं कि तालीयाँ तो अब इस बात पर चाहिए कि हम गीदड़ हैं। मतलब पंक्ति के पहले मध्य में बाद में बस तालीयों का शोर होना चाहिए।
एक दिन कवि सम्मेलन से लौटते समय फटफटीयाँ चौराहे गाड़ी हमारे प्यार की तरह ब्रेकडाउन हो गई। मैं आव न देखा ताव बनाने लगा, गाड़ी। मेरी हालत देख वह रो पड़ी। तुरन्त मैकेनिक को फोन किया। गाड़ी बनती तब तक पर दोनो आइसक्रीम खाने चल दिये। वही सामने एक और कवि सम्मेलन हो रहा था। आइसक्रीम खाते हुए मैनें कवि द्वारा तालीयाें का डिमांड का कारण पूछ ही लिया। वह बड़े ही प्रेम से बोली मेरे साँवरे बलम तुम नहीं समझोंगें इस प्रथा को। जब तुम कवि सम्मेलनो में जब माइक बजाया करते थे तो उस समय लेखन हुआ करता था। दर्शक हुए करते थे। गरिमा हुआ करती थी। अब कुछ नहीं बचा, अब तो आरकेस्ट्रा और कव्वाली के मंचों के बराबर यह कवि सम्मेलन का मंच हो गया है। तुम मुझे देखें मेैं कब कि कवयित्री थी, लेखन में हजारो दोष हैं मगर आज मैं मारर्केट में बिक रही हूँ, चल रही हूँ, नाम पैसा शोहरत सब हैं। प्रकाशक आयोजक पीछे हैं, क्योंकि मुझे मक्खन लगाना आता है, मैं राजनीति समझती हूँ। मैनें घीरे से कहा देखो माई डीयर पटकनीया बलम कई मंचो पर संचालक का काम देख रहा हूँ वह तो बस दूसरो के शेर पढ़ कर, तारीफे करके, ताली बजवाकर , और कवियों पर कमेंट पास कर के चार पाँच कवियों के बराबर समय ले मंच पर खडे़ अपने प्रतिभा का प्रदर्शन करते हैं। इस लिए मुझे संचालक ही बनवा दों। खुदा कसम मेरी इस बात पर उसकी जो हंसी आई डोनाल्ड्र ट्रम्प का जेट विमान हिल गया। उसने मेरे चाँद से मुखडे़ को हाथो में लेते हुए कहा मेरे लतखोर बलम यह काम इतना आसान नहीं, इसके लिए कलेजा चाहिए, तालमेल चाहिए, मक्खन बाजी चाहिए, दूसरो की रचना पढ़ना पडेगा तब रात भर चीखना पडेगा और इस बात का समझौता करना पडेगा कि आज हम जितना पुलिंदा आपका बाँधे उतना मेरा बॉंधो। फिर तुम आयोजक कहाँ से लाओगे। अब मंच संचालन संचालन नहीं मंचो की राजनीति का सिरमौर हो गया है। इस लिए मेरे साँवरे बलम इस का चक्कर छोड़ो चलो गाड़ी चलाओं आज मैं तुम्हारे साथ बैठती हूँ यह लो और आईसक्रीम खाओं और भूल जाओं कवि सम्मेलन और तालीयों को क्योंकि अब कवि सम्मेलन में न कविता है न भाव है न संस्कृति है न साहित्य है। बचा है केवल तो वह है लेन-देन। कविता और मंच व्यापार हो गये इस लिए कवि जी श्रोता की जगह अब शबनम मौसी के रिश्तेंदारो के तलबगार हो गये। जो हर बात में कहें, हर बात में बोले...देअअअअताली, बअअअजा ताली..........। इतना सुनने के बाद मैं खुश हो गया कि चलो आज मैं इस भीड़ का हिस्सा नहीं, मृतुंजय चचा के स्वांत सुखाय का हिस्सा हूँ। अपनी प्रेमिका के प्रेम के पीछे भागता हूंँ । लोगो के प्यार का दिवाना हूँ।
अरे अरे जाइये मत मेरी ड्राइवरी का तीसरा फायदा तो आपने सुना ही नहीं। सही पकड़े बिल्कुल सही। अब मैं दिन भर अपनी पूर्व प्रेमिका के साथ रहूँ लेकिन मेरी बाइफ होम अब मुझे मारती नहीं। बस कपड़े बर्तन धुलवा कर, झाडू पोछा करा लेती है, खाना खुद बना देती है। तो अब बताईये इस ड्राइवरी के नौकरी के कितने फायदें है। तो जाईये प्रेमिका बनाईये, उसे पूर्व करीये, ड्राइवर की नौकरी लीजिए और मेरी तरह मजें कीजिए। हम अब चलते है फिर अपनी पूर्व प्रेमिका के बजबजहियॉं कवि सम्मेलन में। नमस्कार जय हिंद जय भारत।।
अखंड गहमरी
आज सुबह मैं बहुत खुश था
आज सुबह से मैं बहुत खुश हूँ, नहा धो कर इस्नो पाउडर पोत कर, कंधी-संधी करके मलतनियापुर के लातिंग-मुकिंग गार्डेन में.जाने को तैयार हो रहा था, जहाँ मेरी पूर्वप्रेमिका गजगमिनियाँ मेरा बेसब्री से इन्तजार कर रही थी। आज मेरी दोहरी खुशी का एक कारण यह भी था कि आज मुझे अपनी वाइफ होम के प्रताड़ना से सरकारी अवकाश मिला था। वह दो दिनो अपनी बहन की बेकरी की दुकान के उद्घघाटन के मौके पर तकधिनिया पुर गई थी। अब आप ये मत समझ लेना कि मेरी माई हाफ वाइफ यानि श्री श्री साली महोदया शमा बन कर दुकान खोल रही है तो परवाने मडरायेगे। उसके हाथो में तो बस कमान थी, नाचना तो सावन और बादल को है। तो आज इस हसीन पल का फादया उठाते हुए मैं गार्डन पहुँचा। सावला बदन, खुबसूरत काली साड़ी, काले लम्बे बाल, चेहरे पर महिला गैरेज के डेंटिग-पेटिंग का कोई निश़ा नही, फिर भी बला सी खूबसूरती लिये मेरी गजगमिनियाँ दूर से ही मेरे पूर्व के सफेद दाँतो की तरह चमक रही थी।
मैं उत्साहित होकर दूर से बाहे फैलाते उसकी तरफ दौड़ पड़ा , वह भी दौड़ी। बाहे फैलाये। दोनो एक दूसरे के गले लगने वाले थे कि बीच रमेश तिवारी जी आ गये , हम दोनो उनसे लिपट ही पडे। गनीमत यही रही कि कबीर दास की चौपाई '' दो पाटन के बीच में साबुत बचा न कोई '' की कहावत ठगस आफ हिन्दुस्तान'' फिल्म की तरह फ्लाफ कर गई, नहीं तो हम दोनो प्रेम की बगीया से लाल-घर पहुँच जाते।
वैसे भी आज मेरे प्यार पर मेरे साढ़ू विक्रम की नजर लग गई थी। पूरा इलाका जहाँ भूत का सन्नाटा रहता है, आज चारो तरफ भगवा ही भगवा, जय श्री राम के नारे से गूँज रहा था। चारो तरफ दो पल प्यार के गुजारने की चाह लिये हम शांत घूम रहे थे, शांत रहते भी क्यों नहीं , तेज आवाज में तो बस यही गूँज रहा था '' राम लला हम आयेगें , मंदिर वहीं बनाये। तभी मेरी निगाह दूर पेड़ पर बैठे दो आकृतियों पर गई, लगा जैसे मंदिर की परिकल्पना में हनुमान जी दल-बदल बैठे हैं। थोड़ा आगे जाने पर गजगमिनियाँ ने कहा सुनो मेरे तलियान डीयर लग रहा है ये भाजपा वाले कितनी बार आने को आना मानते हैं? मैने चट से बोला मतलब 'मेरी रसभरी'। चटाक! ,इसके पहले कि दूसरे भी गाल पर उसकी नाजुक क्लाईयाँ पहुँचती, मैं बोल पड़ा कि मैं मैं समझ गया मतलब.., मगर मेरी मधटपकी इस का जबाब तलाशते तलाशते तो मेरे पिता जी के पिता की समधी की बेटी के पति के बेटे की सास के लड़के के बाबा दहाड़न दास दुनिया से चले गये, पर तुम ये क्यों पूछ रही हो। उसने जबाब दिया मेरी तो खटिया खड़ी हो गई, हाँ राम को तो प्रतिक्षा करने की आदात तो उस समय से ही है जब वह अयोध्या में पैदा हुए। मेरी गजगमिनियाँ मुझे निपट अनाड़ी न समझे, मैं झटपट बोल पड़ा बिल्कुल सही कह रही हो, राजगददी के बाद सुग्रीव भी शायद राम को भूल गये थे। बिल्कुल सही मेरे लातन डारलिग तभी तो राम जी ने खबर भेजा था कि सुग्रीवहुं सुधि मोरि बिसारी। पावा राज, कोष पुर नारी।।
वैसी ही मोदी जी भी सत्ता पाने के बाद कालाधन वापस लाने , तीन तलाक बिल और एस सी, एसटी एक्ट में ऐसे उलझे है कि राम मंदिर की याद ही नहीं।
मैने धीरे से अपनी गजगमिनियाँ के जुल्फो को अपने हाथ में लिया और बोला प्रिय परेशान न हो बहुत जल्दी एस सी एस टी एक्ट और तीन तलाक जैसे मामलो पर आया बिल आया है राम मंदिर पर भी आयेगा और फिर मंदिर ही तो बनना है कहीं बने।
मेरी इस बात पर अचानक गजगमिनियाँ का चेहरा लाल हो गया, वह मुझे रूई समझ कर धुनिये की तरह धुन दी। मैं अपने वाक्य में गलतियां खोजने लगा तभी वह चिल्लाई.
ये बटोटरना के नाती तुमको मंदिर और जन्मभूमि में अन्तर नहीं समझ में आता? पागल नसपीटा चिल्लाते एक और झापड़ रसीद की , मंदिर हजारो होगें मगर जन्मभूमि केवल एक, वह राम जी की जन्मभूमि का मंदिर है न कि आम मंदिर, समझे पगले। मैं सर हिलाया, और कर भी क्या सकता था? प्रेमिका है और उसमें भी पूर्व लतिया देती है। मैने कहा छोड़ो डार्लिंग अंदिर मंदिर की बात *आओ प्यार करे, कुछ कुछ होता है
तभी खटाक मैं सिर पकड़ कर बैठ गया एक पत्थर लगा सिर। देखा तो कुछ लोग सफाई अभियान में सड़क का पत्थर साफ करते जा रहे हैं उनके हाथो में अयोध्या मंदिर की मनभावन तस्वीर थी।
मैंने प्रणाम किया, तस्वीर दर्द को खा गया, लेकिन गजगमिनियाँ का सवाल जहाँ का तहाँ था। मैं गम मिटाते हुए बोला प्रिय अभी तो भाजपा न्यायालय-न्यायालय का खेल खेल रही हैं, जैसे हम तुम चोर सिपाही खेलते थे।
गजगमिनियाँ ने हल्की मुसकान बिखेरी, मेरा दिल कुतुबमीनार से कूद पड़ा। मैं बाग बाग हो गया,मैने कहा मेरी फुलवारीहुभाजपा को जब जब आना होगा आयेगी, जाना होगा जायेगी, मगर जब वह राम मंदिर बना ही दे गी, तो तकधिनिया को लुभायेगी कैसे? फिर आयेगी?
ये तकधिनिया कौन है? तवे सा गर्म होते हुए गजगमिनियाँ ने पूछा।
मैं कुछ कहता तभी एक भीड़ राम लला हम आयेगें, मंदिर वही बनायेगें का शोर करते भागने लगी, शायद कोई आ गया।
मैने धीरे से गजगमिनियाँ की तरफ देखते हुए कहा..
राम लला हम आयेगें, मंदिर वही बनायें, लेकिन रखना याद, तारिक नहीं बतायेगें..
अब शोर काफी बढ़ता जा रहा था, सर दर्द होने लगा था।
हम दोनो आज अपने असफल प्रेमवाणी को विराम देते हुए चल पड़े अपनी अपने घरो की तरफ।
अखंड गहमरी।।