मंगलवार, 3 अगस्त 2021

आदरणीया मेरी प्‍यारी सासू मॉं जी

 आदरणीया मेरी प्यारी सासू माँ जी,
होश में रहो..
मुझे आशा नहीं पूर्ण विश्वास से की आप पूर्ण रूप से कुशल होगीं। कुशलता को अपना सिर नहीं नोचवाना है तो वह आप से दूर जाये। हाँ सारी कुशलता पर जब आप कुडंली मारे बैठी हैं तो मैं कहाँ से कुशल रहूँगी।
आज रमधनियाँ चाची मिली थी। मटकियापुर आई हैं। आपकी तरह वो भी  पूरी स्वादी बुढ़िया हैं, ना ना करते करते गपतालिस गुलगप्पके खा गई ऊपर से खाने में एक थरिया भाय। खूब तारीफ आपने किया है मेरी उनसे है न?
अन्त समय है राम राम करो सासूँ माँ, काहे मेरी दिमाग की दही कर रही हो।
जब से व्याह कर आई हूँ देख रही हूँ, बहुत पटर पटर मुहँ चलाती हैं। दिन भर मेरे मोबाइल के पीछे पड़ी रहती हैं। जलती हैं आप मेरे मोबाइल से। आपके जमाने में मोबाइल नहीं था न इस लिए। कोई काम धाम तो था नहीं, बस सुबह 5 बजे ही सबकी नींद खराब करके गाय की लैट्रिन से पूरे किचन और आँगन को धो दिया। छी गंदी चीज से पूरा घर गंदा और तो और तो और चुल्हे पर ही उसे लगा दिया।  अन्दी गंन्दी लकडिय़ों से खाना बना कर सुबह सुबह रख दिया। काम खत्म । कपड़ा धोने और नहाने के बहाने गंदे पोखरे या  कुएँ पर दस घंटा परपंच करती रहती थी।  यहाँ तो जैसे तैसे नहाने को समय नही और कहती हैं कि क्या करती हो। हम लोग आपके तरह नहीं। सैकड़ो वाटस्प समूह हैं। मंडली है। संस्थान है। आना जाना पड़ता है। समाजसेवा करनी पड़ती है। अभी कल ही मैं, मटमलिया, फटकलिया, बिलखलिया, सतखलिया ने दिन भर चार लोगों को कबंल बाटे,। जल जाओगी बुढ़िया देख कर मेरी बड़ी बड़ी फोटो छपी है।  हम दिन का उपयोग करते हैं। आप लोग के पास तो कोई काम था नहीं। दुपहर हुआ नहीं कि सब एक जगह बैठ गई। गप्पे मारने तो जूएं निकालने-निकलवाने। और नही तो  बैठ गई चार चर गिराने दो घर उठाने, दो सलाई पर घर दो
- दो घर घटाने। शाम को फिर वही धन्धा। न बच्चों की सफाई, न पढ़ाई कुछ नहीं करना। कपड़े भी कैसे कैसे पहनाती थी बच्चो को, एक ही कपड़े का सबको, जैसे लगता था किसी कम्पनी का प्रचार कर रही हो।
मेरी परम स्नेही सासू माँ जी ये तुम्हारा जमाना नहीं जब चार फीट के घुघँट में बहूँ रहती थी और कुछ बोलती नहीं थी। पति से बात करने के लिए सोचना पड़ता था, कहीं आना जाना तो उसके साथ सपना था।  पति के साथ जा नहीं सकती थी, बस साँस ससुर की सेवा देवर ननद की सेवा।
 ये नया जमाना है, मेरी बभकबेलनी सासू। देखो मैं तो एक महीने में चली आई, वहा रहती तो मेरी सूरत की नोटी बोटी हो गई होती।  खत रमधनियाँ चाची के हाथों भेज रही हूँ। जो जो हमारे बारे में मुहँ फाड़ी हो उसका जबाब लिखा है। आँखे  फाँड़ फाँड़ कर पढ़ लेना। पढ़ना आता है न? और सुनो
हमेशा रोकना टोकना बंद करो नहीं तो नरेटी चीप दूँगी, टे बोल जाओगी, समझी।

तुम्हारी बहू.. नाम बताने की जरूरत नहीं खुद सोच लो कौन है?  हाँ मेरा नाम याद रखना। अखंड गहमरी की पूर्व प्रेमिका गजगमिनियाँ। ठीक से नाम देखो। गजगमिनियाँ।

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