हमारे बीच से एक ऐसा सितारा जिसने दुनिया को अपना लोहा मनवाया, गुमनामी की चादर ओढ़े चल दिया।
मेरी सरकार ने न उसकी सुध ली और न अखंड गहमरी ने कभी जानने की कोशिश किया कि नासा के कम्प्यूटर को धता बता कर अपनी अँगुलियों पर गणना कर देने वाले इस शख्स की समस्या क्या थी। करोड़ो रूप बेफजूल खर्च कर देने वाली संसाधनों से भरी सरकार के पास उसके समुचित इलाज के लिए कुछ नहीं था। दोष सरकार का नहीं है, दोष तो अखंड गहमरी जैसे हिन्दी साहित्य और साहित्यकारों के उत्थान की दिशा में काम करने वाले का है, जिसने कभी अतित के आइने पर पड़ी धूल को साफ कर अतित के विलक्षणों की वर्तमान हकीकत भविष्य को दिखलाने और उनके लिए दस कदम चलने को प्रेरित ही नहीं किया। मैं बहुत ही नम्रता से आज उन साहित्यकारों से पूछना चाहता हूँ जो आज स्व० वशिष्ठ नारायण सिंह जी की मौत के बाद पटना मेडिकल कालेज के व्यवहार पर लेखनी को चला रहे हैं उन्होंने कभी उनकी सुधि लेने की कोशिश की?
क्षमा भी मत करीयेगा मुझे पटना और पटना के आसपास के साहित्यकार और पत्रकार बंधुओं , आप के नाक के नीचे एक विलक्षण प्रतिभा का धनी व्यक्ति सालों से बिमार रहा, उपेक्षित रहा मगर आप लोगों ने कभी उसे न्याय दिलाने के लिए 5 कदम चलना जरूरी नहीं समझा। पटना में दर्जनों शिक्षा और साहित्य के कार्यक्रम रोज होते रहे मगर किसी भी कार्यक्रम में उनके विषय में चर्चा आपने नहीं किया। विडंबना है कि वर्तमान में आपके पटना में लम्बा चौड़ा पुस्तक मेला चल रहा है, देश विदेश से लोग पहुँचे मगर शायद ही इस मेले में किसी ने इनकी चर्चा किया हो। शायद ही कभी पटना या अन्य जगहो के ऐसे साहित्यकार और शिक्षाविदों की चर्चा हुई हो जो अपने जीवन में कई उपलब्धिया हमें दिये और आज गुमनाम बिमार पड़े हैं, उनकी सुधि लेने वाला, उनके लिए दो कदम चलने वाला कोई नहीं। आज जिस हिसाब से प्रिंट/सोशल/इलेक्ट्रॉनिक मीडिया इस घटना को उछाल रही है, निंदा , आन्दोलन कर रही है समय रहते की होती तो कहानी कुछ और होती। मैं दावे के साथ कहता हूँ कि यह घटना यदि बिहार सरकार पर एक कलंक है तो पटना के साहित्यकारों और शिक्षाविद भी इस कलंक से बच नहीं सकते हैं।
मैं आज के साहित्यकारों को स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि आप भी किसी गलतफहमियां न पाले, जिस दिन आप पटल से गायब हुए उस दिन यदि आपके पास धन न हुआ तो आपकी भी सुधि लेने वाला कोई नहीं रहेगा, आपके अश्क पोछने वाला कोई नहीं होगा, आपके पास बैठने वाला कोई नहीं होगा, आपकी चर्चा करने वाला कोई नहीं होगा, क्योंकि समाज और साहित्य की गति के साथ साथ भूलने की गति आज से दुगनी तेज हो जायेगी और तब शायद आपको आभास होगा इस कष्ट का लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।
एक बात और मैं 2004 के बाद आये साहित्यकारों से कहना चाहूँगा कि कभी बैठ कर शांति मन से ईमानदारी से मुल्यांकन कीजिएगा तो आपको पता चलेगा कि 19वीं शताब्दी लिखना और प्रसिद्धि पाना कितना कठिन और 20वीं शताब्दी में लिखना और प्रसिद्धि पाने कितना आसान है। उस समय घर से बारहवें मकान तक आपकी योग्यता की खुशबू पहुँचने में वर्षो लग जाते थे, एक किताब लिखने में कई लीटर केरोसीन आयल लालटेन में जल जाते थे। उसे छपवाने में बाटा के कई चप्पल जूते घिस जाते थे। आज सब काम न सिर्फ चुटकियों में हो रहे है बल्कि देश-विदेश तक आपके कार्य मिनटों में पहुँच जा रहे हैं। आप प्रसिद्ध हो जा रहे हैं आपकी दर्जनों किताबे आ जा रही हैं। इस लिए 19वीं शताब्दी के साहित्यकार और शिक्षाविद आपके इस 20वीं शताब्दी के शिक्षाविद आप से हर मामले में श्रेष्ठ माने जायेगें।
मैं पूरे समाज से कहना चाहूँगा कि अभी भी समय है हम दूर नहीं तो कम से कम अपने घर के आस पास के श्रेष्ठ साहित्यकारों , शिक्षाविदों जिसने हमें लेस मात्र कुछ दिया हो और आज गुमनाम, लाचार, बिमार हों उनके लिए दस लाइनें लिख कर, आंदोलन चला कर उनकी मदद करें ताकि फिर किसी वशिष्ठ नारायण सिंह की हालत इस तरह न हो। उनके पार्थिव शरीर का इस प्रकार का हाल न हो। जो पूरे के पूरे साहित्य और शिक्षा के लिए कलंक हो।
आज मैं पहली बार देश के समकालीन श्रेष्ठ अग्रज साहित्यकारों से आग्रह करता हूँ कि वह हम नवयुवकों के कंधो पर कुछ ऐसी व्यवस्था बना कर जिम्मेदारी सौपें जिससे देश को कुछ देने वाला कोई भी साहित्यकार, शिक्षाविद गुमनाम न रहे, उसकी लाश ठेले पर न पड़ी रहे।
अखंड गहमरी
मंगलवार, 3 अगस्त 2021
हमारे बीच से एक सितारा चला गया
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