मंगलवार, 3 अगस्त 2021

लिए मुस्‍कान ओठो

 लिए मुस्कान ओठो पे,  वो मेरे पास आती थी।
भुला कर गम सभी अपने,मुझे हसना सिखाती थी।

नजर उसकी कटीली थी, करे घायल सभी को वो।
करुँ तारीफ उसकी तो, मुझे पागल बताती थी।

खुले जो लब कभी उसके, लगे कोयल  चहकती हो ।
घटाओ से धनी जुल्फे, हवा में वो उड़ाती थी।।

उसे मैं देखता रहता, जमाने की बचा नज़रे।
समझ कर हाले दिल मेरा, वो छुप छुप मुस्कुराती थी।।

न थी बस प्यार वो मेरा, वही थी जिन्‍दगी खुशियाँ।
छुपा पाता न  कुछ उससे, कहे बिन जान जाती थी।

कुड़ी  थी वो बड़ी की प्यारी, नज़ाकत चाल में उसके
अदाए वो दिखा अपनी, मुझे  पल-पल सताती थी।

व़फा था नाम उसका पर , वफ़ा का दुश्मन
मगर शिकवा न करती ,अश छुपाती थी

अखंड गहमरीb

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