मंगलवार, 3 अगस्त 2021

विश्‍व पुस्‍तक मेले में गहमर

 

विश्व पुस्तक मेले में आखिर जासूसी उपन्यास और जासूस शब्द के जनक स्व0 गोपाल राम गहमरी ने अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी। 10 जनवरी 2018 मेरे लिए एक ऐतिहासिक दिन था।
अगर मैं ईमानदारी पूर्वक इस उपस्थित का श्रेय दूँ तो केवल दो नाम सामने आते हैं, श्री सुभाष चन्दर जी और श्री गीरिश पंकज जी। इन दोनो ने न सिर्फ मुझे मेले में आने एवं परिचर्चा कराने के लिए आदेशित किया, बल्कि अपने विशिष्ठ से विशिष्ठ कार्यक्रमों को छोड़ कर इस कार्यक्रम के मुख्यअतिथि, अध्यक्ष बन कर कार्यक्रम को ऊँचाई दिया। यही नहीं कार्यक्रम कैसे संचालित होगा क्या होगा इसकी पूरी व्यवस्था सुभाष चन्दर सर ने किया।
मैं आयोजक था 10:45 पर हाल में प्रवेश किया और ये अतिथि थे 10:30 आकर पर व्यवस्था बना रहे थे।
सरिता भाटिया जी जो एक स्वयं में हस्ती है मेरे साथ बैनर लगवा रही थी और जिन्दगी में पहली बार मंच के संचालन की बागडोर संभाली।
पुस्तक मेले में जहाँ तक मैनें देखा आज का यह कार्यक्रम चंद उन कार्यक्रमों में था, जहाँ किसी प्रकार का आडम्बर नहीं था। किसी किताब की समीक्षा नहीं थी, किसी बड़ी हस्सी के स्वागत में लोगो की भीड़ नहीं थी। यह कार्यक्रम एक ऐसा कार्यक्रम था जहाँ आज भारत का सबसे बड़ा आलोचक/व्यंगयकार सुभाष चन्दर, भारत का प्रसिद्ध उपन्यासकार गिरीश पंकज, भारत का प्रसिद्ध नवगीत का हस्ताक्षर राधेश्याम बंधु और दिल्ली की प्रसिद्ध महिला समाजसेवी सरिता भाटिया नतमस्क होकर उस महान आत्मा को अपने शब्दो से नमन करते हुए दिखाई दिये।
अगर हम बात वक्तव्यों की करें तो सुभाषचन्दर जी जैसा लेखक कहते सुना गया कि भारत के गद्य साहित्य की दिशा और दशा सुधारने वाले को हम वह सम्मान नहीं दे पाये जिसका वो हकदार है, और इसका दोषी पूरा साहित्य समाज है।
गीरिश पंकज जी जैसा उपन्यासकार कहता है कि हम गोपालराम गहमरी जैसा उपन्यास लिखना चाहते हैं पता नहीं प्रयास कहाँ तक सफल हो। वह यह अपील करता है कि आज के प्रकाशक समकालिन लेखको रचनाकारो के साथ-साथ गोपाल राम गहमरी जैसे पुरोधाओं को अपने प्रकाशन में स्थान दें।
मैं तो फिर भी मैं हूँ बिच्छु का मंत्र न जानते हुए भी साँप के बिल में हाथ डालता हूँ। आज विश्व पुस्तक मेले में इस आयोजन से मैने बहुत कुछ सीखा-समझा, जाना वह अनुभव लेकर मैं अपने गाँव लौट रहा हूँ, मगर इतना तय है कि अगर परमात्मा का दिया जीवन रहा तो एक नये जोश, नये उमंग और नये तैयारी के साथ फिर अगले साल विश्व पुस्तक मेले में ही नहीं बल्कि राज्यो और कसबो में गोपाल राम गहमरी पर कार्यक्रम लेकर हाजिर रहूँगा।
मैं उनमें से नहीं जो असफता-सफला को लेकर जीते हैं मैं तो उनमें से हूँ जो असफता और सफलता से परे पर चलना जानते हैं चलते रहना जानते हैं।
अन्त में मैं एकबार फिर आज के अपने मार्गदर्शक सुभाषचन्दर सर, गिरीश पंकज सर, राधेश्याम बंधु सर एवं सरिता भाटिया जी के चरणो में एक सफल एवं उद्देश्य पूर्ण कार्यक्रम सम्पनन कराने पर प्रणाम निवेदित करता हूँ। आशा करता हूँ कि भविष्य में भी आप यूँ ही मार्गदर्शन करते रहेगें।
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