गहमर का कार्यक्रम-- अपने मन की बात आपके लिए।।
साहित्यकार नहीं मेरा परिवार आता है जो कार्यक्रम नहीं एक उत्सव मनाता है।
आप सभी लोगो के आशीर्वाद से गहमर का कार्यक्रम समाप्त हुआ। तमाम परेशानीयों के बावजूद भोपाल से कान्ति मॉं का आना इस कार्यक्रम को सफल बना गया, वह और अरूर्ण अर्णव खरे जो जितनी परेशानीयों का समाना करके गहमर पहुँचे उनका एक प्रतिशत भी मैं उनका स्वागत सत्कार नहीं कर पाया।
कान्ति मॉं का आना न सिर्फ मेरे लिए बल्कि मेरे पूरे परिवार के लिए एक सुखद एहसास रहा, कसक रही तो बस इतनी की हम दोनो एक पल भी साथ बैठ न पाये, यहॉं तक कार्यक्रम में आने के 12 घंटे बाद मेरी उनसे मुलाकता हो पाई। क्या सेवा हुई नहीं हुई मैंं खुद भी नहीं जान पाया लेकिन उन्होनें भावुक इतना कर दिया कि ऑंखे संभाले नहीं सभल पाती थी।
गत वर्ष की तमाम परेशानीयों को नजर अंदाज कर, सुभाष चंदर सर, जो इस बार ट्रेन के देरी और भारी बारिस के कारण कैसे गहमर पहुँचे इसका एहसास खुद उनको नहीं है, मैं उनको और उनके स्नेह को प्रणाम करता हूँ। परेशानीयों को नजर अंदाज और अपना स्नेह लिए प्यास अंजुम सर, रमा दीदी, सुनील कुमार नवोदित, अशोक व्यग्र, गोया दानिश जी, समीर परिमल जी, नीलम श्रीवास्तव जी, डा0 संदीप अवस्थी जी भी न सिर्फ दुबारा आये, बल्कि खुद ही इस कार्यक्रम के आयोजक की भूमिका निभाई।
इस बार कार्यक्रम में आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद लडीवाल जी, एवं चन्द्रावती नागेश्वर जी की पुस्तक का लोकापर्ण भी हुआ।
कार्यक्रम में गहमर की माटी से जुड़े कुमार संजय का आना सुखद रहा, उनके साथ आये विनोद सवॉंरिया जी, और मनोज शुक्ला, जी को भी मैं,, ह़दय से नमन करता हूँ।
गहमर के कार्यक्रम में परिचर्चा के बाद हुए काव्य पाठ इस बार भी पूरे भारत को संदेश देने में कामयाब रहा कि यदि योग्यता हो तो कोई कवि बिना लतीफे, चुटकुले के सहारे जनता को बाध सकता कर बात सुना और समझा सकता है।
कार्यक्रम के दौरान
गत वर्ष की तरह इस वर्ष भी महिला अतिथियों के रहने की व्यवस्था अपने आवास पर किया, जिससे मेरे घर में एक उत्सव का माहौल बन गया, रमा दीदी, आशा ओझा दीदी, आराधना जी, नीलम आन्टी, चन्द्रावती आन्टी, उर्मिला जी, सरिता भाटिया, वीणा श्रीवास्तव जी, उर्मिला शुक्ला जी, रेखा दूबे जी ने बच्चो के साथ मिल कर ऐसा अपनत्व दिखाया कि भूलाये नहीं भूलता है, न कहना बेमानी होगी, कि आशा पान्डें ओझा दीदी की नकल आज भी मेरी बेटी उतारती है, उनका हर बात में गाना गाना वह भी सीखने की कोशिश करती है। गहमर के मंच संचालक ने तो उनको महिला लीडर का नाम तक दे दिया। रमा दीदी के जो इतनी दूर रहते हुए भी पूरे साल बच्चों के दिमाग से उतरी ही नहीं, कार्यक्रम के शुरू होने से पहले से ही उनके नाम को लेकर आने न आने की शर्ते लगना शुरू हो गई थी। मैं आप सब का आभार जता कर आपके स्नेह को कम नही करना चाहता लेकिन इतना जरूर कहूॅगा कि अगर जिन्दगी चार दिन की ही है तो यह दो दिन आप सब के स्नेह से पूर्ण रूप से सफल हुआ।
अगर कार्यक्रम में मानसिक मनोबल की बात हो और आदरणीय विकल जी, संजीव निगम जी, विजय कुमार मिश्र दानिश जी अपनी सुविधा पर मेरे दौड़ने पर और बैठने के लिए ही परेशान रहते, वह कार्यक्रम के हर चरण पर अपनी निगाह रखें रहें। संजीव निगम जी सर और विकल गुरू जी ने तो लौटने समय मुझे अपने सीने से लगा लिया और मैं पागल कुछ बोल भी न पाया बस, देखता ही रह गयाा ।कार्यक्रम में अगर मैने भोजन किया ताे उसका श्रेय सुनील कुमार नवोदित जी को ही जाता है, अपनी थाली रख कर जबर्दस्ती सब काम रोक कर मुझे खाना खिलाये बिना हटते ही नहीं थे।
मैं दोषी भी हूँ कार्यक्रम में आये रमेश कुमार सिंह जी का, अंकुल शुक्ला जी का, हमेन्त कुमार कीर्ण जी का,डा कैलास नाथ मिश्र जी, बसंत कुमार शर्मा जी का जिनकी उपस्थिती का लाभ पूर्ण रूप से हम सब नहीं उठा सके। बसंत जी के साथ तो मैं एक पल बैठ भी नहीं पाया और न तो उनकी कोई व्यवस्था ही देख पाया मैं। साथ ही मैं सुरेश कुमार जसाला जी, देव नारायण शर्मा जी का , हरि जोशी जी का, विशेष आभारी हूँ जो स्वास्थ ठीक न होते हुए भी कार्यक्रम में आकर मेरा मान बढायें। हरि जोशी सर तो अपनी बिमार जीवनसंगनी के साथ गहमर आये। उनका भी हार्दिक आभार।
पाडृव तो एक होकर काम किये क्योकि वह भाई थे मगर मेरे कार्यक्रम में भी संजय कुमार गिरी, प्रदीप भटट, सागर सूद, देव कान्त शुक्ला, और राजकिशोर प्रताप गढी के रूप में मौजूद थे, मैं भले कुछ न कह पाया उस समय मगर व्यवस्थाओं को संभालते, उत्सावर्धन करते मैने अपनी आखो से देखा।
हद तो तब हो गई जब पंजाब से आये सागर सूद ने पूरे जीवन बैगन की सब्जी नहीं खाई थी और गहमर आकर 4 टाइम बैगन की सब्जी प्रेम से खाई, और कभी कभी बैगन पर व्यंग्य कर माहौल और थकावट को दूर करते, वह समय आनन्द को छोड कर और कुछ नहीं देता।
इस वर्ष गहमर के कार्यक्रम में उस व्यक्ति का आना भी सुखद रहा जिसके घर में गहमर के कार्यक्रम की नीवं पडी चर्चा चली वह कोई और नहीं सिवनी से आये हुए मेरे बड़े भाई, प्रद्युम्न चतुर्वेदी प्रसित जी, स्वयं कार्यक्रम में मौजूद हुए।
कार्यक्रम में आये शांति कुमार स्याल जी से तो मिल कर लगा कि मेरी कुछ बाते केवल उनके मार्गदर्शन का इंतजार कर रही है, कार्यक्रम के अगले दिन काफी विस्तार से चर्चा कर कई बातो को समझाना, बताना ऐसा लगा ही नही कि वह किसी अन्य जगह आये हो और अन्य से बाते कर रहे हो, उनको भी मैं ह़दय से प्रणाम करता हूँ।
अगर मेरी एक लापरवाही किसी पर भारी पड़ी तो वह थे विजय शंकर मिश्र दानिश जी, जिनको ट्रेन के गलत समय की जानकारी देने के कारण उनकी ट्रेन छूट गई और उनको दिल्ली होकर जयपुर की लम्बी यात्रा करनी पड़ी जिसका मुझे आजीवन कष्ट रहेगा, मगर उन्होनें ने एक शब्द नहीं कहा यह उनकी महानता थी।
कार्यक्रम में दौरान आये गंगटोक से अमर बानियॉं लोहोरो जी, अर्जुन राई जी ने तो उत्तर को पूर्वोतर से पूरी तरह से जोड दिया, काफी संभ्यताआंे की जानकारी, भाषा की जानकारी बहुत कुछ सीखने को मिला।
इसके साथ ही मैं नागेश्वर शाडिल्य जी, शैलेन्द्र जी, अंचला पान्डेय जी और जिनका संबोधित नही कर पाया हूँ उनका योगदान भी कार्यक्रम मेंं मुझसे अधिक रहा, यह कार्यक्रम आप सब का था, आपने इस को अपनाया।
कार्यक्रम के ठीक पहले बुरी तरह बिमार पडे गुरूवर जिनकी आवाज सुन कर मैने स्वयं आने से मना किया प्रोफेसर विश्वम्भर शुक्ला जी, और भाई ओम प्रकाश जी और लता आन्टी एवं डा0 देवेन्द्र नाथ साह का का पूरी तैयारी के बाद अंतिम समय पर नही पहुँच पाना बहुत ही कष्टदायक रहा। साथ ही मेरे अग्रज और मार्गदर्शक मेरे गुरू डा0 कमलेश द्विवेदी जी का भारत में नहीं रहने के कारण कार्यक्रम में मौजूद न हो पाना एक बहुत बडी कमी रहा। वही गाजीपुर के हरीश नारायण हरीश जी का स्वास्थ कारण से न पहुँच पाना कार्यक्रम के संचालन में व्यवधान उत्तपन किया।
अन्त में मैं यही कहना चाहूँगा कि यह कार्यक्रम सफल या असफल रहा इसका मुल्याकंन तो आने वाले लेकिन इस वर्ष मैं अपनी व्यस्था से 50 प्रतिशत संतुष्ठ रहा, वही गत वर्ष के कार्यक्रम के पूर्व तनाव से भी इस बार आप सब एवं विशेष रूप से कान्ति मॉं के कारण तनाव मुक्त रहा। इस वर्ष भी कार्यक्रम के दौरान भारी बारिस ने बहुत परेशान किया। मगर आप सब का सहयोग और प्यार ने बारिस की बूँदो को भी मुझे हराने नहीं दिया। साथ ही इस कार्यक्रम के विषय में कई लोगो द्वारा की जा रही गंदी राजनीति से भी मुझे लडने का बल दिया, राजनीति करने वाले लोग आप सब की मेहनत से जमीन पर आये।
यह बाते मेैं मंच से कहना चाहता था, मगर न जाने क्या हो जाता हैं अपने अंतिम व्यतव्य के समय ऑंखो से लाचार हो जाता हूँ, छुपाने से भ्ी नहीं छुपते न रोके से रूकते है। क्योकि मैं कार्यक्रम नहीं एक उत्सव करता हूँ, और साहित्यकार नहीं अपना परिवार बुलाता हूँ। अपने मार्गदर्शक बुलाता हूँ, अपने अग्रज बुलाता हूँ।। जो हमेशा स्नेह के बोल ही बोलते है,और दुख में भी आशीर्वाद ही देते है।
एक बात और कहना चाहूँगा उनके लिए जो तैयारी के बाद भी यहॉं नहीं आ पाये कि गहमर कामाक्षी क्षेत्र है, और गहमर के कार्यक्रम में सबसे महत्वपूर्ण कामाख्या दर्शन होता है, इस लिए यहॉं के कार्यक्रम में जब तक मॉं का बुलावा नहीं हो आप लाख यतन करके भी नहीं पहुँच सकते, इस लिए न पाने का दोषी खुद को न समझे। जब मॉं का बुलावा आयेगा तो आप सारी परेशानीयों को पार करके गहमर आ जायेगें।
आप सब को हुई असुविधा के लिए आप सब क्षमा मॉंगते हुए अपनी बात समाप्त करता हूँ। आपके स्नेह ककी आशा में अखंड गहमरी गहमर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें