मंगलवार, 3 अगस्त 2021

ग्‍वालन को फोन

 लघुकथा
ग्वालन को फोन नही
गुस्से म़े आकर मोबाइल उठाया और सीधे अपने ससुराल का नम्बर मिलाया। मन में उमंग तरंग दोनो थी कि सरहज या साली उठायेगी फोन, बनावटी गुस्से पर हसी का मलहम लगेगा। हुआ उल्टा फोन सासू माँ ने उठाया
मैने भी गुस्से की आग में साली का तड़का डाला और बिना प्रणाम पाती के बोला
सास जी आपकी बेटी का दिमाग खराब है।
आज मुझे  सूर्यास्त तक व्रत रहना था आपकी बेटी ने मुझे कुछ खाने को नह़ी दिया बस सुबह 8-9 रोटी दिया, दोपहर में एक किलो ककड़ी चार खीरा ले आया, बस वही खा कर गुजर किया।
उधर से आवाज आई यह तो सरासर अन्याय किया बेटा जी मैं उससे बात करती हूँ।
मैं तो सूखे पत्ते की तरह काँप गया और जल्दी से बोला
नहीं-नहीं माता जी अब मैं सासू माँ से माँ पर आ चुका था, वाइफ होम से लात खानें का खतरा जो मड़राने लगा था..।
उसका हृदय परिवर्तन हुआ अभी शाम को एक कटोरा मखाना और मूगंफली के साथ एक गिलास चाय दिया, जरा रात म़ें देख ले क्या करती है?
ठीक है बेटा देख लो फिर बताना, उनकी आवाज में मेरी तरफदारी थी।
म़ै भी भावना म़े बह गया और बोल बैठा ''अब आप बताईये, इतने से पेट्रोल से गाड़ी चलेगी? नहीं न? आप समझदार है, मगर मेरी वाइफ होम समझती ही नहीं''
वह तो पाग.....अभी शब्द पूरे भी नहीं हुए थे कि मेरे सर पर एक जोरदार प्रहार हुआ, पटल कर देखा तो वाइफ होम साक्षात काली के रूप में थी और हाथ म़ें कान्फ्रेंस पर मेरी चुडैल सासू थी।
मुझे चक्कर आ रहा था, मैं गिर पड़ा और गिरते गिरते कान पकड़ कर कसम खाया अब गाय की शिकायत ग्वालन से नहीं करूँगा मनोज को फोंन किया, मलहम पट्टी के लिए।

अखंड गहमरी

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