मोदी चचा के राज में भारत की उन्नति, तरक्की और विश्व में बढ़ते प्रभाव का असर इतना तेज है कि विरोधियों की जलन से उठता धूआँ पूरे वातारण को अपने आगोश में ले लिया है। विरोधी इस बात को मानने को तैयार नहीं वो तो इसे शीत-कालीन कुहरा बता रहे हैं। जबकि हकीकत तो आप सब जानते हैं कि विरोधीयों के जलन का असर है।
जले भी क्यों नही बेचारे आज तक बुलेट ट्रेन की बात सोच नहीं पाये और मोदी जी चलवाने की राह पर आ गये। हमसफर, विकल्प और न जाने कौन-कौन ट्रेन शुरू कर दिये। अब वो समय से न चलें तो इसमें मोदी जी की कौन गलती। भाई अटल जी और मोदी का शासन छोड़ कर 1947 से आज तक सिर्फ लूट ही तो हुई है देश में। तो विदेशो जैसी तकनीकी रेल की कैसे बने। देर से तो चलेगी ही। अब इसमें मोदी, गोयल और मनोज सिन्हा का करें। भले कुहरे से पहले 56 जोड़ी ट्रेने निरस्त की जाये, जो चले वो 12 से 22 घंटे देर से चले किसी का क्या? दूर-दराज से ट्रेन के समय पर मजबूरी में स्टेशन आये यात्री कड़कडाती ठंड में स्टेशन पर रहने को मजबूर रहे, परेशानी झेले क्या फर्क है, वातानुकूलित कमरे में बैठे मंत्री और अधिकारियों को क्या फर्क है। पैसे तो रेल ने ले ही लिया जिससे विकास होगा।
अब अखंड गहमरी जैसे यात्री ठंड से बिमार हो जाये, 12 धंटे का सफर 24 धंटे में न पूरा करें तो किसी का क्या बिगड़ेगा, डाक्टर और पंडित थोड़े न कहते हैं रेल में चलो। भारत बढ़ रहा है तो कष्ट तो होगा ही। बुलेट ट्रेन के आने के बाद सब ठीक होगा, जैसे विदेशो में बर्फ में डूबी पटरी पर भी रेल दौड़ती है, भारत में भी दौड़ेगी।
अभी इन्तजार करो। बंद करता हूँ भाई नहीं तो मोदी और मनोज भक्त मेरी बैन्ड बजा देगें डर लगता है।
हाँ इतना जरूर कहेगें जरा अपने देश के ही प्रतिभाओं को आजादी देकर विकल्प और तकनीक तलाशने को कहों , कुहरा ट्रेनों की रफ्तार भारत में भी नहीं होक पायेगा।
जय हिन्द
मंगलवार, 3 अगस्त 2021
मोदी चाचा के राज में
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