मंगलवार, 3 अगस्त 2021

आदरणीय ग्राम महोदया

आदरणीया ग्राम प्रधान महोदया, आदरणीया विधायक महोदया, आदरणीय सांसद महोदय।
   आप सभी को चरण स्पर्श, प्रणाम, नमन, वंदन, नमस्कार, सत श्री आकाल।
बड़े ही दुःख के साथ आपको सूचित करना पड़ रहा है कि आज मौनी अमवस्या के दिन मेरी वाइफ होम एवं मेरी पूर्व प्रेमिका गजगमिनियॉं ने सुबह-सुबह मेरी कई बार खाटी पिटाई कर दी, जिससे मैं पूरी तहर अखंड से खंड-खंड हो गया हूॅं। मेरी आत्मा को दिल की गहराईयों तक कष्ट हुआ है। वैसे मेरे दिल की गहराई भी अब मॉं गंगा की गहराई की तरह काफी कम हो गई है और ऑंखो का पानी भी मॉं गंगा के पानी की तरह पूरी तरह सूख चुका है। जिस प्रकार मॉं गंगा में अब नदी नालो का ही पानी रह गया है उसी प्रकार मेरी ऑंखो में भी केवल जलन, दुर्भावना और अंहकार का ही पानी रह गया है।
 वैसे मुझे अपनी वाईफ होम के द्वारा पीटे जाने का दुःख नहीं हैं, क्योंकि यह सामान्य प्रक्रिया है, दैनिक कार्य है। मैं चोरियन न्यूज चैनल और पत्नी पीड़ित संघ के अध्यक्ष डा. रमेश तिवारी के उस सर्वे और विचार जिसमें कहा गया है कि ‘‘ सुबह-सुबह पत्नी से पिट कर घर से निकलने वालो के सफलता का प्रतिशत 90 प्रतिशत अधिक होता’’ पर न सिर्फ विश्वास करता हूॅं बल्कि उसका पालन करता हूॅं। मुझे तो गम अपनी पूर्व प्रेमिका गजगमिनियॉं के हाथो दो बार पिटने का है।
आदरणीया/आदरणीय मेरी वाइफ होम ने तो मुझे बस इस लिये पीटा की आज सुबह सुबह मैं चार बजे उसकी हूॅं हॉं जो वह मुहॅं की आवाज की जगह सॉंसो में बोल रही थी उसे समझ नहीं पाया और उसे गंगा स्नान के लिए ले जाने के लिए भी अपने नीयत समय से नहीं उठ पाया। मौनी अमवस्या होने के कारण उसे बिना गंगा नहाये कुछ बोलना नहीं था, लिहाजा उसकी सॉंसो की आवाज मैं सुन नहीं पाया, जब उसके चरण पादुका ने मेरे सिर से चार बार प्रेम किया तो मुझे उसकी सारी बातें समझ में आ गयी, मैं चल पड़ा गंगा स्नान कराने।
गंगा घाट पर पूरा अॅंधेरा था, मैं किसी तरह उसे लेकर नीचे पहुॅंचा, उसे बैठाया तभी मेरी पूर्व प्रेमिका गजगमिनियॉं का वास्टप संदेश आ गया।
संदेश पढ़ कर तो इस कडा़के की ठंड में भी पसीना आ गया, ऐसा लगा कि हजारो सूरज चमक पड़े हो। मैं भागा भागा गंगाघाट के ऊपरी छोर पर आ गया। मेरी गजगमिनियॉं मेरे सामने थी, वो भारी सी गठरी उठाये चल रही थी, गंगाघाट पर इतना अॅंधेरा कि कुछ दिखाई नहीं दे रहा था, उसके पैर सीढीयों पर ठीक से नहीं पड़े और वह गिरते गिरते बची, मैं भी अंधकार में उसे देख नही पाया जब तक समझता वह न केवल संभल चुकी थी बल्कि अपने नाजुक नाजुक हाथो का प्रेम कोमल कोमल गालो से प्रेम करा चुकी थी।
उसके गले से मधुर आवाज निकल कर वातावरण में फेल चुके थे,
क्या कर रहे हो मोबाइल से टार्च तक नहीं दिखा सकते, देखते नहीं पूरा घाट अधेरे में डूबा है। मैं एक हाथ से अपना गाल पकड़े दूसरे हाथो से उसे सहारा दिये नीचे उतारने लगा, मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि गंगाघाट पर अॅंधेरा होने की सज़ा मुझे मिली है या सुबह सुबह ठंड में उठ कर आना पड़ा इसकी सजा उसने दिया है। खैर कोई बात नहीं जो प्यार करता है वही पीटता भी है। अब इश्क किया है तो सजा हो या प्यार मुझे ही मिलेगी न की आप प्रधान जी, विधायक जी और सांसद जी को।
अभी सूरज देव के दर्शन नहीं हुए थे इस लिए मेरे गालो की लाली किसी को दिखाई दे इसका डर नहीं था। मैं सीना ताने चल रहा था।
मेरी गजगमिनियॉं नीचे पहुॅंच कर स्नाना इत्यादि कर दान पुण्य भी कर चुकी थी, मैं तो मारे ठंड के उससे दूर ही रहा, इधर उधर मोबाइल से फोटोग्राफी करता रहा, न जाने कब उसका फरमान हो जाये गंगा में डूबकी लगाने का, खैर कसम से तड़तडीयॉं देव की ऐसा कोई फरमान नहीं आया। अब वह घर लौटने को तैयार, मैं सोशलमीडिया पर फोटो डालने को तैयार। तभी तड़ तड़ की आवाज से पूरा ईलाका थर्रा उठा, मैं अगल बलग देखने लगा। तभी मेरी समझ में आया कि यह आवाज मेरी गजगमिनियॉं के चरण पादुका और मेरे गाल तथा पीठ के आपसी मुहब्बत से निकली है। मैं आर्श्चय चकित हो गया, दर्द का एक झोंका महसूस होता इसके पहले एक, आप र्ककश कह सकते हैं, मैं नहीं मेरे लिए तो फूल सी आवाज आई। देखते नहीं हो सामने वह माता जी गिर रही है अॅंधेरे में, उनको पकड़ नहीं सकते। मैं दौड कर माता जी को पकड़ा उठाया, तब तक वह चोट खा कर बैठ चुकी थी। मैं कभी उसकी तरफ देखता तो कभी माता जी की तरफ। मैं धीरे से अॅंधेरे का फायदा उठा कर वहॉं से फरार हो गया। अब मैं अॅंध्ेरे को कोष रहा था, अपने ऑंखो से अश्क गिरा रहा था। तभी न जाने कहॉं से वह फिर पहुॅंच गई। मेरे हाथो को अपने हाथो में देकर प्रेम से बोली में लतखनियॉं प्रेमदेव आज मैंने तुम्हारी दो बार ठुकाई कर दी। मैने कहा कोई बात नही प्रिय एक बार और कर दो। प्रधान जी, विधायक जी, सांसद जी कहा जाता है कि मनुष्य के जुबान पर दिन में एक बार सरस्वती का वाश होता है वह जो कहता है सही हो जाता है, इसका उदाहरण मुझे तत्काल देखने को मिलेगा मैने कल्पना भी नहीं की थी। उसकी निगाह गंगाघाट पर लगे बड़े-बड़े लाइटो एवं सोलर लाइट पर चली गई। अब तो उसका गुस्सा सातवें आसमान पर था। सबके सामने मुझ पर तीसरी बार प्रहार करते हुए बोली‘‘ 9 बजे तक सोयोगें तो तुमको समस्या क्या पता चलेगी।
मैने धीरे से कहा, तेज बोलने की तो औकात नहीं थी, मैने धीरे से कहा‘ प्रिय मेरे 9 बजे तक सोने और यहॉं अॅंधेरे का क्या संबंध।
वह चीखते बोली ‘ देखते नहीं यहॉं  इतनी लाइटे लगी हैं, सोलर लगा है , मगर सब बेकार, तुमको पता नहीं था कि आज मौनी अमवस्या है दूर दूर से महिलाएं आयेगीं, पुरूष और बच्चे आयेगें सब अॅंधेरे में गिर के चोटील होगें, ठीक नहीं करवा सकते थे।
प्रिय मैं क्या हूॅं, तुम तो जानती हो कि एक आम आदमी की कीमत आम से भी कम है। मैं भला इसमें क्या कर सकता हॅं, आम आदमी की ताकत तो संविधान में है, हकीकत में क्या है ? तुम ही कहो प्रिय, मैने अपने दर्द को पीते हुए कहा।
अब वह पिघल चुकी थी, उसने अपने गीले पल्लू से मेरे ऑंखो को साफ करते हुए बोली, सही बात है इसमे तुम क्या सकते हो, तुम्हारा क्या कसूर, जाने दो जो हुआ सो हुआ, वह गंगा घाट पर ही वट वृछ की पूजा करने के लिए चल दी, मैं उसे देखने लगा, तभी वह पीछे घूमी मैं खुश हुआ कि वह फिल्मी स्आईल में मेरे पास आयेगी और गले लग जायेगी, मुझसे क्षमा मॉंगेगी, मगर क्या कहें जो हुआ प्रधान जी,विधायक जी एवं सांस्द जी उसने मेर बालो को पकड़ लिया और खीचते हुए बोली कि सुबह उठते, यहॉं आते तो पता रहता न कि यहॉं लाइट नहीं जल रही है उसे लिखते, सबको बताते, जगाते, क्या यह कम था। उसने थोडे सी मंद आवाज में कहा मैं तो हमेशा लिखता हूॅं परन्तु क्या होता है, मैने उसकी बात का जबाब दिया।
सही कर रहे परन्तु जब तुम्हारे जन प्रति ऑंखो में तेल और कानो में रूई डाल कर बैठे हुए हैं तो क्या तुम्हारा फर्ज नहीं उनको जगाने का और प्रयास करों, मैं कुछ नहीं जानती कमी तुम्हारी है तो है। वह मुझे बिना कसूर के सजा देकर छम-छम पायल बजाती वहॉं से चल पड़ी।
अजी सुनते हो कहॉं हो, एक तेज आवाज मेरे कानो में टकराई।
आता हूॅं इतना कह कर मैं गंगाघाट के नीचे भागा।
कहा चले गये थे, ये कपड़े कौन साफ करेगा और ये गंगा जल का डिब्बा कौन ले जायेगा।
मैं धीरे से बोला मेरी प्राण प्रिय तुम चलो मैं सब निपटा कर और मॉं गंगा में डूबकी लगा कर आता हूॅं।
वह चल पड़ी उपर वट वृक्ष पर 51 फेरे लगाने और मैं खड़ा खड़ा सोचने लगा चलो गनीमत है कि मुझे बिना कसूर के फिर  पिटने की नौबत नहीं आई। मैं बच गया, बाल बाल बच,जिसके लिए
भगवान को धन्यवाद दिया, मुहॅं में पान डाला और चल अपने अपने वाइफ होम की सेवा में।
अन्‍त में  आदरणीया प्रधान जी, आदरणीया विधायक जी, आदरणीय सांसद जी  मैं आप सब के स्‍वस्‍थ एवं सुखी जीवन की कामना करते हुए अपना पत्र समाप्‍त करता हूँ। आशा है कि आप हमारे पत्र को कचरे के डिब्‍बे की शोभा बढ़ाने हेतु प्रयोग करेगें।
आपका अखंड गहमरी,
प्रणाम स्‍वीकार करेंा

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