10 मार्च 2021 को गाजीपुर जनपद में ग्राम पंचायत चुनाव आरक्षण के विरोध में पड़ने वाली आप्पतियों के निस्तारण का अंतिम दिन था। जनपद की कुल 3221 ग्राम सभा में ग्राम प्रधान पद पर 542 आप्पति पड़ी। जिसमें किसी आप्पति पर पुन: विचार नहीं हुआ। मैने भी गहमर ग्राम सभा के प्रधान पद को SC हेतु आरक्षित किये जाने पर आप्पति डाली थी। उसका भी निस्तारण भी 10 मार्च को श्रीमान जिलाधिकारी की मौजूदगी में किया गया। सबकी तरह मेरी आप्पति पर भी आरक्षण को लेकर पुन: विचार नहीं किया गया। कोई विचार करता भी तो क्या करता? यदि पूर्ण चुनाव में आरक्षण के क्रम की बात करता तो, गहमर पिछली बार सामान्य महिला था इस बार पिछड़ी हो जाता। यदि मतदाताओं की संख्या को आधार बनाता मेरा गॉंव तब भी पिछ़डी हो जाता, क्योंकि सामान्य से अधिक पिछ़डी है। अब तीसरी रास्ता जो बचा था उसका जिक्र र्मैं आगे करूँगा।
आप्पति के क्रम में जब भदौरा ब्लाक की बारी आई और अंदर हाल में पहुँचा तो मैं गहमर से संभवत: अकेला था। संभवत: का प्रयोग इस लिए किया कि हो सकता है कोई ऐसा हो जिसे मैं नहीं पहचानता हूँ। अपने अकेलेपन पर मुझे बहुत आर्श्चय हुआ। जब तक प्रधान पद आरक्षित नहीं था गहमर गॉंव के दर्जनों सर्वण प्रत्याशी कर्मठ, इमानदार, विकास पुरूष, अन्यास से लड़ने वाला, सुख-दुख का साथी और न जाने क्या-क्या कह कर लम्बे चौड़े बैनर बनवाये घूमने वाले एक भी नज़र नहीं आये। इस आधार पर मैं कह सकता हूँ कि लगभग 25 हजार मतदाता वाले गॉंव से आरक्षण के विरोध में एक आप्पति । हो सकता है अगर संख्या बल रही होती तो कुछ प्रभाव होता । संख्या बल के आभाव में रेलवे ठहराव की तरह प्रधानी भी गई।मेरी समझ में नहीं आया कि पूर्व भावी प्रधान प्रत्याशीयों को उनको किस बात का डर था? कही ऐसा तो नहीं था जिस अनुसुचित जाति के लोगो को सभी प्रधान प्रत्याशी अपने पाकेट में बता कर दिन रात उनकी बस्तीयों में तन मन धन से सेवा कर रहे थे उनके खफा होने का डर था? यदि ऐसा है तो जब सीट आरक्षित हो गई तो कैसा डर? वो कहावत है न कि ''भइल बियाह मोर करवा का'', । फिर यह कैसा डर था, जो लड़ी चोच छूटवाने का नाम नहीं ले रहा था? कही ऐसा तो नहीं कि हमारे दिग्गज पूर्व भावी प्रधान पद प्रत्याशी लोग अनुसुचित जाति के डमी उम्मीद्वार खड़ा कर के उनके कंधो पर अपना बंदूक रख कर चलाने का सपना संजोय उनकी नाराजगी से डर रहे हो? यदि ऐसा है तो एक बार दुर्गा चौरसिया और मुरली कुशवाहा के चुनाव पूर्व लंगोटीया यार और उन्हें अपने पाकिट में रखने वालो का हश्र देख लें, कैसे चुनाव के बाद दूध की मक्की की तरह निकाल कर फेंका ही नहीं बल्कि मसल दिया। अब तो सर्वण जाति के 'पूर्व भावी प्रधान प्रत्याशी जी' लोगों ने जिसको अपना वोट बैंक मानकर पाकिट में रखने का दावा किया, खूब खडंजा-पटंजा खिला पिला कर तैयार किया वही अब उनके सामने आकर कहेगा कि ''मलिकार आप के त हम संगे रहनी अउर बटलो बानी, हम त आपके हई, हमरे के जितवाई, आपे के नाम व शासन चली जइहसन आप कहब बइसने होई'' । गाहे बजाये हर पूर्व भावी प्रधान प्रत्शासी को सुनना पड़ेगा, लेकिन अब तो भावी प्रधान प्रत्याशी जी आपका ताे धन भी गया, धर्म भी गया, समय भी गया।अब कैसे रिकवरी होगी? क्योंकि खिलाने-पिलाने के बाद जो लिफाफा आपने दिया है न उसे आप स्वीकारेंगे और न आपके पास इसका कोई सबूत ही है। अब 5 साल फिर उल्टा हो जाईये, चद्दरें तानें एक गहरी नींद लें।मुझे तो नहीं लगता है कि अब आप लोग समाज सेवा के नाम पर एक कचरा भी उठवायेंगें? अब आपकी कर्मठता, ईमानदारी, विकासशीतला इत्यादि-इत्यादि तो 5 साल बाद ही दिखाई देगी, तब तक क्या अपने खडंजा-पटंजा देने के लिए किये गये खर्च के रिकवरी का कोई प्लान बना रहे हैं या "क्या लेकर आये थे? क्या लेकर जायेगें ?'' जैसी आधात्मिक बातें कह कर गम को भुलायेगें।
अरे हाँ इन सब में तो गहमर की सबसे भ्रष्टाचारी, बच्चों के एम डी एम में 25 से 30 प्रतिशत जबदस्ती कमी+शन खाने वाली वर्तमान प्रधान मीरा चौरसिया को तो भूल ही गया वैसे प्रधान जी आप पर तो लिखना शुरू करूॅ तो यह आटिकल उसी पर केन्द्रीत हो जायेगा, बहुत जल्द आप अगल से ताकि आप का हाथ जिस पर हो वह चुनाव हार जाये। आप जरूर इस बात से डर रही होगी कि जिस प्रकार उन्होनें भ्रष्टचार की हर सीमा को पार कर कभी सपा और कभी भाजपा के सहयोग से खुद को बचाये रखा, एक करोड 84 लाख के गलत प्रयोग को स्वीकार किया उसकी भरपाई का वादा किया, विरोध के बाद भी आरक्षण नहीं बदला तो यह विरोध उनको भारी पड़ेगा। इस लिए वह भी इससे दूर ही रहे।
आप्पति को लेकर कुछ लोग कहेंगें कि हम जानते थे कि कुछ होना नहीं है, तो क्यों डालते आप्पति? तो एक सवाल "क्या एक दम यह निश्चित कर विवाह करते है कि विवाह बाद झट-पट लड़का ही होगा? अगर ऐसी बात है तो तब तो मैं मान लिया कि आप अंजाम से वाकिफ थे इस लिए कर्म को गौड़ कर दिये।
हमारे बहुत से लोग वर्तमान विधायक की तरफ इस आशय से निगाह डाले बैठे थे कि जब विधायक जी ने उन्हें विजयी भव का आशीर्वाद गाहे-बगाहे दे दिया है तो वह उस आशीर्वाद की लाज रखने को गहमर को सामान्य करायेगीं, मगर उनकी नज़रे भी उस बूढ़ी मॉं की तरह पथरा गई जिसका पुत्र अगली बार आकर शहर ले जाकर ऑंख बनवाने का वादा किया था।
वैसे भी विधायक के लिए तो हर वर्ग उनका ही है और जहॉं तक मेरी समझ और ऊपर लिखा तीसरा कारण बलवति होता है तो शासन सत्ता कितनी भी ईमानदार हो जाये सूप तो नहीं हो सकती, जो गॉंव विधायक का पैत्रिक गॉंव है उसके विषय में कोई निर्णय जिले का कोई आलाधिकारी केवल नियमों के आधार पर नहीं सकता। कम से कम एक बार तो वह विधान सभा सदस्य से जरूर पूछा ही होगा, अब जबाब उसे क्या मिला होगा ?यह तो हम नहीं जानते लेकिन इतना तो अपने अनुभव से कह ही सकते हैं कि कही न कही गहमर का अनुसुचित जाति का आरक्षण या विधायक के चाहत अस्षट प्रमाण दे गया और भारत का वह गॉंव जिसका इतिहास भी शानदार है भूगोल भी शानदार है, साहित्य, सैनिक व धर्म की अनुठा संगम है उसे उनकी जिसकी जान है गहमर आन है गहमर शान है मौजूदगी में गहमर आरक्षण की बेड़ियों में जकड़ गया और वह खुशी या गम के अश्क लिये देखते रहे।
जय हिंद जय भारत
मंगलवार, 3 अगस्त 2021
पंचायत चुनाव के विरोध में
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