क्या है प्रेम,
पूछते रह गये।
क्या हैं प्रेम,
सोचते रहे गये।के
क्या है ,परिभाषा प्रेम की,
खोजते रह गये।
ना मिली थी, ना मिलेगी,
परिभाषा प्रेम की।
प्रेम तो बस शायद नाम है,
ऑंखो मे बस जाने का,
दिल में सम्मान का,
हमारे समर्पण का,
त्याग अंहकार का,
बलिदान स्वार्थ का ,
मन में चाहत का,
नेह लगाने का,
हमें तो लगता यही है प्रेम,
हो सकता है यहीं हो प्रेम,
यही हो प्रेम की परिभाषा,
जिसकी तलाश में ,
भटक रहा अखंड है।
भटक रहा अखंड है।
[06:45, 12/31/2020] साहित्य सरोज: खुशखबरी खुशखबरी, साहित्यकारों के लिए धमाकेदार विशेष खुशखबरी
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[06:45, 12/31/2020] साहित्य सरोज: हास्य
अखंड गहमरी
[06:46, 12/31/2020] साहित्य सरोज: भुलाऊँ भी अगर चाहूँ, न भूलूँ उस फसाने को।
किया था रात दिन इक मैं, तुम्हें कैसे मनाने को।
दिखाया था बताया था, तुम्हें मैं जिन्द़गी का सच.
मग़र मेरा जलायी दिल, तू दिल अपना बहलाने को।।
अखंड गहमरी
[06:46, 12/31/2020] साहित्य सरोज: मुझे आवारा जाहिल ही, बताई तुम जमाने को।
बसी तस्वीर भी अपनी , कही दिल से मिटाने को।
मगर ऐ जिन्द़गी मेरी, जरा तुम देखो वो दुनिया..
खड़ी जो प्यार से दिल में, मुझे अपने बसाने को।।
अखंड गहमरी
[06:46, 12/31/2020] साहित्य सरोज: तुम्हारी याद में आसूँ, न जाने क्यों छलक जाते।
कभी गम की वो दरिया से, नहीं साहिल पे हैं आते।
कभी गर हाल भी मैने, लिया जो पूछ अश्कों से..
बहुत खुश हूँ बताने को, वो मेरी ही कसम खाते।।
अखंड गहमरी
[06:46, 12/31/2020] साहित्य सरोज: किसी के इश्क में ऐसा, जला खुद को भुला बैठा।
खुशी हर जिन्द़गी की खुद, मैं हाथो से मिटा बैठा।।
अजी जब आप भी हस कर, लगे कहने मुझे पागल.
तो अपने आशियाने को, मैं शूलों से सजा बैठा।
अखंड गहमरी
[06:46, 12/31/2020] साहित्य सरोज: क्या है प्रेम?
पूछते रह गये।
क्या हैं प्रेम?
सोचते रहे गये।
क्या है परिभाषा प्रेम की?
खोजते रह गये।
ना मिली थी, ना मिलेगी,
परिभाषा प्रेम की।
प्रेम तो शायद नाम है,
ऑंखो मे बस जाने का,
दिल में सम्मान का,
हमारे समर्पण का,
त्याग अंहकार का,
बलिदान स्वार्थ का ,
मन में चाहत का,
मन से मन के मिलन का
मुझे तो लगता यही है प्रेम,
हो सकता है यहीं हो प्रेम?
यही हो प्रेम की परिभाषा,
जिसकी तलाश में ,
आज तक
भटक रहा अखंड है।
भटक रहा अखंड है।
ये भी अभी उस मानक पर नहीं हैं क्योंकि यह मैने तब लिखी थी जब मैं साहित्य और लेखन की दुनिया में मज़ह 1 महीने का था, उदाहरण इस लिये दिया कि यह मेरी हैं, और प्रिय है
इसके साथ एक यह भी देखें
नीचे
मॉं!
एक शब्द?
एक संबोधन?
एक रिश्ता?
क्या हैं,मॉं?
नहीं समझ पाया
नहीं जान पाया
नीम अंधकार से निकला मैं
खुली पलकें
मखमली गोद में
सिर पर स्नेह की छाया
सीने से लग कर
क्षुधार्त की शांति
क्या यही हैं मॉं
या मॉं हैं
हाड़ मॉंस की एक पुतली
जिसके अनेकों रूप
जाने अंजाने कितने
बेटी,बहन,बहू पत्नी
आसानी से बनते रिश्ते
मगर मॉं
दिर्घावधि तक
वेदना,पीड़ा,कष्ट
सह कर
एक सुख की आशा ,
तोतले जुबान से
म, म, मा ,मॉं
सुनने की आशा
जीवन की निराशा से
उभरने की आशा
शायद अखंड
यही है मॉं
त्याग,बलिदान,कर्तव्य
और नेह की एक देवी
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