मंगलवार, 3 अगस्त 2021

गहमर का महाविद्यालय

 

*बहती है गहमर में उल्टी गंगा,स्नातक से कान्वेन्ट का सफर*
मैं पढ़ाई में कितना तेज था इसका अंदाज इस बात से लगा सकते हैं कि मुझे कक्षा 10 से कक्षा 13 यानि B.A प्रथम वर्ष में पहुँचने में कुल 9 साल लग गये। अपनी झुन्नी मौसी की कृपा से किसी तरह बिहार के मुँगेर जिला स्थित कुमसार गाँव से हाई स्कूल पास किया। परीक्षा मेरी थी मगर मेरे साथ लगे थे मेरे मामा हेमन्त, मेरे मौसी के देवर, मेरी मौसी के ननद के लड़के, मेरे बड़े मामा राधेश्याम सिंह के साढू, और न जाने कौन कौन, जैसे सोयेब मलिक को शतक बनबाने में पूरी पाक टीम। वह तो शतक नहीं बना पाया मगर में 59.98 प्रतिशत से पास हो गया।
इन्टर में भी कुछ ऐसा हुआ 4 सालो की जद्दोज़हद के बाद मैं 33 प्रतिशत अंक लेकर यूपी इन्टरमीडिएट बोर्ड पर एस्हसान करते हुए उसका पीछा छोड़ दिया। अब मैं स्नातक का छात्र 2002 में हो गया। मम्मी के जिद आगे मुझे बी.ए में एडमिशन गहमर के माँ कामाख्या महाविद्यालय में लेना पड़ा। माँ कामाख्या महाविद्यालय में प्रवेश लेता भी क्यों नही? घर से नजदीक, योग्य अध्यापक, हिन्दी, अँग्रेजी, इतिहास, समाजशास्त्र, जैसे अन्य विषय उपलब्ध, प्रतिदिन क्लास, लगभग 900 बच्चे, खेल का साजो सामान, अनुशासन, सब कुछ तो था।
मैं पढ़ने लगा , और पढ़ने क्या लगा बस सब जानते थे व्यवसायी है, तो क्लास से नदारद रहना जन्मसिद्ध अधिकार है। इसी बीच शादी हो गई, मैं ठहरा पढ़ने में पीछे से नम्बर एक, बीबी ठहरी आगे से नम्बर एक।
कक्षा 12 की परीक्षा दे रही थी , परीक्षा के दौरान ही शादी थी, एक पेपर तो शादी के बाद भी था, फिर भी 80 प्रतिशत से 12 पास l मैं 33 प्रतिशत से 12 पास वो 80 प्रतिशत से। अब वो भी माँ कामाख्या की स्टूडेंट और मैं भी। समय बीतने लगा, सबको आशा थी कि अब महाविद्यालय में विषयो की संख्या में बढ़ोत्तरी होगी, स्नातकोत्तर की उपाधि मिलेगी। पर यहाँ तो उल्टी गंगा बहने लगी, गहमर रेलवे स्टेशन से 400 और बस स्टेशन से 200 मीटर, एक तरफ गहमर इन्टर कालेज, दूसरी तरफ जुनियर हाई स्कूल, सामने पंचायत भवन, गहमर का स्टेशन रोड होने के बावजूद यह महाविद्यालय बैक गेयर लगा बैठा। भवन बढ़े, मुख्य गेट पर कार्यालय बना, मुख्य गेट का सुन्दरी करण हुआ, दुकाने भी बनी और इसके साथ एक तरक्की और हुई, माँ कामाख्या महाविद्यालय ने एक कदम पीछे बढ़ाया और शुरू किया, माँ कामाख्या किड्स के नाम से माँ कामाख्या कान्वेंनट स्कूल।
महाविद्यालय के जिन कमरों में, जिन भवनो में कभी स्नातक छात्र पढ़ा करते थे वहाँ अब नन्हें मुन्हें बच्चे पढ़ने लगे, वहाँ कृर्षि एवं अन्य विशेष कार्य होने लगे। मध्य दोपहरिया में जहाँ स्नातक के बच्चे निकलते थे वहाँ अब नन्हें मुन्हें बच्चे निकलने लगे। पूरी ग्रेजुएट की पढ़ाई व्यवस्था चौपट हो गई। विद्यार्थियों के नाम रजिस्टर पर चलने लगे। जो छात्र-छात्रा क्लास भी करना चाहें, उन्हें बच्चों के न आने का बहाना बना दिया गया।
हालात यह हुए माँ कामाख्या डिग्री कालेज संसार के चंद ऐसे महाविद्यालय में सामिल हो गया जिसमें बच्चों की संख्या केवल परीक्षा के समय दिखाई देती है। 70-75 उपस्थिति पर परीक्षा दे पाने की अनिवार्यता सुविधा शुल्क के नीचे दब गई। गहमर की विशेष तौर पर बच्चीयो के उच्चशिक्षा पर ग्रहण लग गया। महाविद्यालय का प्रवंधन अपने पहुँच के बल पर अपने स्वार्थ सिद्धि में लगा हुआ है और बर्बाद कर रहा है गहमर के बच्चों खास तौर से बच्चीयो का भविष्य जिनके पास कोई विकल्प नहीं।
बाप सेना में कार्यरत है, बेटी गाँव में है, आज के हालात को देखते हुए किसी बाप के पास इतना कलेजा नहीं जो बेटीयों को शहर में अकेले छोड़ कर उच्च शिक्षा ग्रहण कराये और जो गाँव में स्नातक विद्यालय है उसकी दशा यही है वह प्रवंधन कमेटी के मनमानी से 1990 के दशक से चला 2010 के दशक में और पीछे ही हो गया। सब जानते हुए भी सरकार, यूजीसी और पूर्वाचंल विश्वविद्यालय का कोई नुमाइंदा पूछने वाला नहीं, जनता भी परीक्षा सुविधा में मस्त।
स्नातक से स्नातकोत्तर का सफर , स्नातक से कानवेंट की व्यवस्था पर आ गया..महाविद्यालय के वर्ष 2019-2020 के प्रवेश रजिस्टर में सैकड़ो छात्र-छात्राओ का नाम दर्ज हो चुका होगा, रकम खातो में जमा हो चुकी होगी, और हकीकत के धरातल पर पढ़ाई आप खुद देख लें आ कर।
इतने के बाबजूद मिल कर नारा लगाये
#बेटी बचाओ, #बेटी पढ़ाओ
अखंड गहमरी, गहमर गाजीपुर।।

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