सोमवार, 27 जुलाई 2020

हिंदी साहित्‍य की नई लेखन विधा-गज़लोगीत, इतिहास में हीरे के अक्षरों से दर्ज हुआ अखंड गहमरी का नाम।

मैं अपने जीवन के 70 बसंत तो पार कर ही चुका हूँ। सारी उम्र गीत, गज़ल, छंद, दोहा, मुक्‍तक लिखने में बीत गई। कहानी, लेख भी खूब लिखा। परन्‍तु अपने शहर में क्‍या मुहल्‍लें में भी कोई नहीं जान पाया कि मैं कोैन हूँ। मंच की राजनीति में सेध लगाकर कुछ रूतवा तो कमाया मगर वो बात नहीं बनी जिससे मेरा नाम भी हिंदी के पुरोधाओं में शामिल हो सके। लोग हमारे भी भक्‍त बन सकें। हमारा नाम संगमरमर की चार दिवारी पर सुनहरे अच्‍छरों में खोदा जा सके। हिंदी गद्य व पद्य की जितनी प्रमाणिक विधाएं है सब पर तो इतना काम हो चुका हैं कि हम कितना भी काम करें हमारा नाम ऊपर तो आ ही नहीं सकता।  रोज-रोज इतने नये साहित्‍यकार आ रहे है कि पूछो मत। नित्‍य नये तकनीकी, नये-नये प्रयोग कर रहे हैं। किसी तरह जुगाड़ नाथ की कृपा से मैनें एक पुस्‍तक तो छपवा लिया है मगर वो भी ससुरी आधी तो सप्रेम भेेंट में ही चली गई। बाकी घर की जगह घेरे हैं यह उलहना रोज अपनी धनिया से सुनता हूँ।
सबके मुहँ से फेशबुक, वाटस्‍एप,टिविटर का नाम सुन रहा था। एक दिन मैनें सोचा क्‍यों न सोशलमीडिया से मैं भी जुड़ जाऊँ। पकी दाड़ी, पके बाल और चेहरे की झुर्रीयों का फायदा उठाऊँ। पटपटनियॉंगंज जाकर शानदार, जानदार वजनदार एक फोन खरीद लाया। अखंड गहमरी को खिला पिला कर उसे चलाना सीख गया। अपने कुछ पुराने मंचों के फोटो, कुछ रचनाएं पोस्‍ट कर दिया। क्‍या कमाल की चीज हैं यार ये सोशलमीडिया।
धडा-धड़ लोग जुड़ने लगे। मैं तो जितनी प्रसिद्वि 69 सालो में नहीं पाया। उम्र के पहले साल में इस क्षेत्र में काम नहीं किया। केवल केहा केहा कर के रोता था। उसके बाद तो बेसुरी आवाज में गाना गुरू ही कर दिया था, लिखना भले बाद में सीखा।रातो रात मेरा भाव बाजार बढ़ गया। अब मैं भारत ही नहीं विश्‍व का ख्‍याति प्राप्‍त, अन्‍तराष्‍ट्रीय, महाकवि बन गया हूँ। गीत गज़ल मुक्‍तक कहानी व्‍यंग्‍य सिखाता हूँ। मेरे भी भक्‍त बन गये हैं। भक्‍तों ने मुझे आचार्य, गुरूवर, गुरूदेव जैसे न जाने कितने उपाधियों से नवाजा है। अब कुछ नया करने को मन करता है, बहुत हो चुका काम। परन्‍तु अभी तक वो नहीं हुआ जिससे मेरा नाम रेत के महल पर पर संगमरमर के पत्‍थर पर लिखा जाये। यह सोच कर अपनी आत्‍मा को समझाता हूँ कि अभी पैर कब्र की तरफ बढ़ रहे हैं, लटके नहीं हैं। भक्‍तों ने कुछ किताबें तो छपवा दिया है लेकिन कब तक बासी प्रसाद खाते रहेगें ये भक्‍त। कही उनका दिमाग एकाग्र हो गया तो वह तकनीकी का सहारा लेकर बहुत आगे निकल जायेगें हमें छोड़ कर।यह बातें मुझे रात दिन परेशान करती हैं।

भगवान के घर में देर हैं अँधेर नही, एक दिन मैं अपनी वर्तमान पत्‍नी के साथ दातो का सेट नया लगवाने गया था। लौटते समय गलटनिया का होटल दिख गया। यादें ताजा हो गईं। सोचा तीनों की भॉंति इस नई दुल्‍‍हनियॉं को भी क्‍योंं न कैन्‍डल लाइट डिनर करा  दूँ, खुश हो जायेगी, मेरी भी यादें ताजा हो जायेगीं। सबसे कोने की एक खाली टेबुल देख कर बैठ गया, उस पर पड़ा मीनू ऐसे उठाया जैसे मोदी जी चाइना को भगाने के लिए बम उठाते हैं।
मीनू देख कर अपनी पसंद की खाना आर्डर ही करने वाला था कि एक मिक्स भेज दिखाई दिया। मैं सोचा कोई नई सब्जी आइ है। उसका भी आर्डर दे दिया और उसके आने का ऐसे इंतजार करने लगा जैसे मंडप में बैठा दुल्हन का  इंतजार कर रहा होता है। इंतजार की घड़ी समाप्त हुई, मेरा मिक्स वेज मेरे सामने था।
मैने मिक्स वेज देख कर वेटर को बुलाया और पूछा ये क्या है? मिक्स वेज कहाँ है? उसने कहा यही तो है मिक्स वेज, सभी सब्जीयों को मिक्स कर दिया हो गया नया डिस मिक्स वेज। अनायास ही मुहँ से निकला वाह! रे मिक्स भेज।
तभी मेरे दिमाग की बत्ती जली. मैं मुस्कुराया और जी भर खाया और खाते खाते सोचता रहा जब सब्जी मिक्स वेज हो सकती है तो काव्य मिक्‍स क्यों नही हो सकता।
अब मैं बनूगाँ नये विधा का जन्मदाता, और हर विधा को तोड़ मोड़ कर एक नई विदेशी विधा बनाऊँगा। अपने शिष्यों को सिखाऊँगा। हमारे मूल काव्यो से नई पीढ़ी का भटकाव होता है तो होता रहे। साहित्य का ब़टाधार होता है तो होता रहे। तभी मेरी बेगम जो तीन बेगमों के किचन में भुन जाने के बाद चौथी आई थी, शायद मेरे बार बार किचन और मिक्‍स वेज का नाम ले ले कर मुस्‍कुराने से डर पड़ी कि कही पुरानी घटनायें दुर्भाग्‍य बन कर उसके साथ ही तो नहीं आ रहा है, खैर वह चेहरे पर मुस्‍कान लिए बोली ।अरे जनाब हाथ तो धोईये..क्यों मुस्कुरा रहे हैं। मगर मैं तो अपनी धुन में था। मेरे सपनो में दो यह चल रहा था कि कैसे नये नये पद्वितीयों की परिभाषा बनाई जाये।
मेरे अनुभवों के आधार पर कई रूप आये कभी मैं शब्‍दों को घंटी के आकार में लिखने की विधा घंटोबजे पद्वति, तो धनुष के आकार का लिख कर धनुषोआकार पद्वति का गठन किया। कुछ बनी बनाई पद्वतियॉं भी मेरे काम आई। जैसे गीतोग़जल विधा,गीतोदोहा विधा, दोहा दोहा विधा, गज़ल के शब्‍द बदल कर हिंदी गज़ल, अंग्रेजी गज़ल, ऊदूँ गजल, गीतिकागज़ल, तो कभी ताजमहल विधा तो कभी दिव्‍याभारती विधा। धीरे धीरे अपने ख्‍यालो में खोया मैं चलता रहा मेरी बीबी के चेहरे पर हवाईयॉं उड़ती रही।
मैं घर आया चादर तान के सो गया। सुबह नेट गायब मैं टहलता रहा। शाम बीत गई, रात आ गई। तभी नेट आया।
मैं दौड़ कर आनलाइन आया। हजारो  भक्‍तों को मेरे गायब होने की चिंता थी। मैं ने भी गर्म तवे पर रोटी सेंका, भक्‍तों को बताया कि मैं नई विधाएं खोज रहा था सालो से रिर्सज कर रहा था। पूरा हुआ। भक्‍तों को खूब समझाया, वाह वाह हुई सभी ने इस नई विधा को पंसद किया। समझाते समझाते मुझे नींद आ गई मैं सो गया।
सुबह दिमाग काफी हल्‍का था,मैं गाडफादर की राह पर चल पड़ा था। नास्‍ता इत्‍यादि खाकर जब कम्‍प्‍यूटर खोला तो मन प्रसन्‍न हो गया मेरे भक्‍तों ने मेरी विधाओं पर अलग अलग समूह बना कर उसका प्रचार प्रसार शुरू कर दिया।
किसी ने मुझे आचार्य तो किसी शास्‍त्री ताे किसी साक्षत शिव की संज्ञा दे रखी थी। जो काम जीवन भर नहीं कर सका मैं वह सोशलमीडिया जी ने चंद महीनो में करके दिखा दिया। अब मेरा भी नाम बुर्गखलीफा के सबसे ऊपर हीरे के पत्‍थर पर लिखा जायेगा।
जय हिंद जय भारत
अखंड गहमरी












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