मैं एशिया महाद्वीप के सबसे बड़े गाँव में स्थित अखंड गहमरी का गहमर इन्टर कालेज हूँ। आज आपको बताता हूँ इस कोरोना काल में अपनी कुछ व्यथा। जो आपके इस अखंड गहमरी के गहमर इंटर कालेज के दिल में तीर की तरह चुभ रही है। आज मेरा यानि गहमर इंटर कालेज का प्रबंध तंत्र कहता है कि वर
मरे या कन्या मुझे चाहिए दक्षिणा , क्योंकि मैं हूँ गहमर इंटर कालेज का
प्रबंधतंत्र हूँ जनाब। मैं इस काल में भी अपने भवन शुल्क जिसे आप बिल्डिग
फीस के रूप में जानते हैं उसके के लालच को कम नहीं कर सकता हूँ। अब आप ही
बताईये मैं करूँ भी तो क्या?
भारतीय
जनता पार्टी जिस तरह काँग्रेस की सरकार में पेट्रोल- डीजल और एलपीजी गैस
को लेकर हंगामें करती और सत्ता में आने के बाद खुद गैस और पेट्रोल के दाम
कारणों की विस्तृत व्याख्या कर के बढ़ाती है। उसी प्रकार बिल्डिंग फीस,
विकास और अनुशासन के नाम पर मेरी पूर्व रघुराज सिंह ऊर्फ हेराम सिंह की
प्रवंधन समिति को घेरने वाली मेरी वर्तमान कमेटी खुद उसी राह पर चल रही
है।आज भी प्रतिछात्र 500 रूपये बिल्डिंग फीस जिसका नाम बदल दिया गया है
लेती है। वो भी पूरे प्यार और नियम से। बकायदा नये समिति के अधिकारी-
पदाधिकारी मौजूद रहते हैं ताकि एक भी बच्चा गलती से छूट न जाये।
अब आईये जानते है कि इस शुल्क के पीछे तर्क क्या है तो तर्क यह है कि शासन द्वारा गहमर इंटर कालेज में
अध्यापकों की नियुक्तियां नहीं की जा रही हैं तो प्राइवेट अध्यापक रख कर
पठन-पाठन का का काम कराते हैं, जिसके लिए हमें पैसे की जरूरत होती है, वह
पैसा अनुदान के रूप में हम अभिवावकों से लेते हैं। ये बहुत अच्छी बात है
सरकार की उपेक्षा के बाद भी प्रबंधनतंत्र अपनी जिम्मेदारी निभा रहा है।
बच्चों का भविष्य बचा रहा है।अब देखते हैं कितनी फीस ली जाती है और कितना
व्यय होता है। तो इसके लिए पहले हम दो जानकारी मेरे यानि गहमर इंटर कालेज के प्रधानाचार्य से प्राप्त करते हैं।
पहली कुल छात्रो की संख्या वर्ष 2019-20 में, व दूसरी कुल ली हुई बिल्डिंग फीस
तो गत वर्ष प्रधानाचार्य के हिसाब से लगभग 2100 बच्चे थे, जिनसे कुल शुल्क प्राप्त हुआ 2100x500=1050000
(दस लाख पचास हजार रूपये मात्र)
तो
दस लाख पचास हजार की शुद्ध आमद हुई, अब आते हैं अध्यापकों की संख्या पर व
उनको मिलने वाली राशि पर। तो मेरे यहॉं कुल प्राइवेट अध्यापकों की संख्या 8
है जिनको एक मजदूर की दैनिक मजदूरी 400 से 150 कम 250 रूपये प्रतिदिन
मिलता है। कुल 60000 रूपये प्रतिमाह अध्यापकों की सेलरी पर खर्च होता है जो केवल 10 महीने दिया जाता है जो
रकम साल में 6 लाख होती है। बाकि दो महीने ये अध्यापक पूरे परिवार के साथ
हिमालय की कंदराओं में चले जाते हैं जहाँ न उनको भूख लगती न प्यास न दैनिक
आवश्यकता की चीजों की जरूरत पढ़ती है।
1050000
रूपये की धनराशि मेरे बच्चों के अभिवावकों से प्राप्त की गई जिसमें 6
लाख रूपये मेरे गैर शासकीय अध्यापकों को दिया गया। 1050000 में से 600000
घट गया तो बचा 450000। अब इस पैसे को लेकर मेरा प्रबंध तंत्र कहता है कि इस
पैसे से मेरे भवनो को निर्माण, मेरे अन्दर होने वाले आयोजनो, शासन के
आदेश पर जो व्यवस्था करनी होती है वह, सामानो की खरीद, लैबोट्ररी का खर्च
इत्यादि हम इस पैसे से करते हैं। अब मेरे समझ में नहीं आता कि यह सारे
खर्च तो पहले भी रहे होगें। खैर आगे की देखते हैं।
मैं
एक बात पूछना चाहता हूँ कि प्रत्येक विद्यालय में प्रबंन्ध समिति इस लिए
होता है कि वह विद्यालय के विकास हेतु कार्य करे। विकास हेतु शासन
प्रशासन, राजनेताओं से मिल कर, स्थानीय स्तर पर प्रयास कर अपने विद्यालय
के लिए धन की व्यवस्था करें। यदि सब कुछ विद्यालय को बच्चों के ऊपर
शुल्क लगाकर ही व्यवस्था करनी हो तो क्या जरूर है प्रबंध समिति की उसके
लिए तो विद्यालय का एक चपरासी ही प्रर्याप्त है, आप उसी को पैसा दे दे तो
वही सारे काम करा देगा। प्रंबंध समिति के नाम पर विद्यालयों को उटापटक का
अखाड़ा बनाने की क्या जरूरत है। मैं गहमर इंटर कालेज एक अर्ध शासकीय
विद्यालय हूँ, जहॉं अध्यापको से लेकर कर्मचारीयों के वेतन तक की कोई
जिम्मेदारी प्रंबंध तंत्र की नहीं हैं। कुछ तो पैसा शासन से जरूर आता होगा
विद्यालय में खर्चो के नाम पर। मैं यहॉं आज विद्यालयों में बनने एम डी एम
का जिक्र नहीं करूँगा।
आज हमारे प्रवंन्धक महोदय जो समाज हित की बात करते हैं, ईमानदारी का
प्रतिमान बने हुए हैं। जो विद्यालय के विकास में मिले पैसे को कमीशन मॉंगे
जाने के कारण नहीं लाते हैं। उच्चन्यायालय के विद्यालय परिसर में
व्यसायिक दुकाने नहीं रहेगी कि आदेश के पूर्व बनी 2 दो दर्जन दुकाने अपने
सख्त नियमों के कारण बुक न करने वाले एवं तरह तरह के व्याख्यान देने एवं
मानवीय संवेदनाओं का दंभ भरने ववाले प्रबंन्धक को इस वैश्विक महामारी
कोरोना काल में बच्चों के अभिवावकों की दुश्वारियॉं दिखाई नहीं देती। वह
इस बार भी उसी जोश के साथ गहमर इन्टर कालेज में उसी प्रकार विकास शुल्क
यानि बिल्डिंग फीस ले रहे हैं जैसे आम दिन हो। उनको अपने मूल खर्च के हिसाब
से इस शुल्क में कटौती करना दिखाई नहीं दे रहा है।
गहमर
एक मध्यवर्गी किसानों एवं सैनिकों को गॉंव है। किसानों में ही किसी ने
अपने दैनिक खर्चो की पूर्ति के लिए छोटी मोटी दुकानें खोल रखी हैं तो किसी
ने अन्य संसाधन अपना रखें हैं जो इस कोरोना काल में पूरी तरह बंद हैं।
जुलाई अगस्त का महीना किसानों के लिए खर्च का महीना होता है वह अपनी सारी
जमाँ पूँजी किसानी में लगा देता है। ऐसी परिस्थित में मेरे प्रधानाचार्य
जी जो भवन शुल्क में अतिगरीबो को छूट का प्राविधान रखें हैं शासना आदेश पर
वह कितना इस क्षेत्र को लाभ दे पायेगा इसके विषय में तो मैं खूब जानता हूँ
यह ऊँट के मुहँ में जीरा से भी कम होगा। क्या नैतिकता की दुहाई देने वाले
प्रबंन्धक महोदय को इस कोरोना काल में मानवीय संवेदनाओं के आधार पर तो
कुछ कार्यवाही करनी ही चाहिए। अखंड गहमरी
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