कुछ ही दिनों के बाद हमारे देश में आपसी भाईचारे का एक प्रमुख त्यौहार ईद-उल-जुहा यानी बकराईद
आ रहा है जिसे हम बकरीद के नाम से भी ही अधिकाशं जानते हैं। बकरीद
हजरत इब्राहिम की कुर्बानी की याद में मनाया जाता है. हजरत इब्राहिम
अल्लाह के हुकुम पर अपनी वफादारी दिखाने के लिए बेटे इस्माइल की कुर्बानी
देने को तैयार हुए थे। उन्हीें के राह पर चलते हुए अब किसी जानवर की कुर्बानी प्रतिकात्मक पुत्र बना कर अल्लाह को दी जाती है।
यदि देखा जाये तो बकरीद के जहॉं कई फायदे हैं जिसमें प्रमुख रूप से आपसी मेल मिलाप होता है, हिंदु मुस्लामन का भेद-भाव खत्म कर आपस में मेल जोल कर एक साथ सबको बुलाया जाता है और बैठ कर खाया जाता है। गरीबों के घर भी कुर्बानी के नाम पर आदान प्रदान हुए मॉंस से कुछ अच्छा भोजन बन जाता है, वही इस कुर्बानी से पर्यावरण को कुछ नुकसान भी पहुँचता है। जैसे क़ुर्बानी के बाद लाखों लीटर पानी सफ़ाई में बर्बाद हो जाता है। मीट के अलावा जानवर का बाक़ी शरीर का हिस्सा जो नहीं खाया जाता है गंदगी के रूप में चारो ओर फैलता है, जिससे बिमारी का खतरा बढ़ जाता है। खाने के बाद हड्डीयॉं इधर उधर फेंकने से जानवर उन्हें उठा ले जाते हैं और किसी के घर किसी के दरवाजे पर छोड़ देते हैं। जिससे गंदगी भी बढ़ती है और बिमारी का खतरा। सफाई के नाम पर जो लाखो लीटर पानी बहता है वह आपके आस-पास ही जमा होता, जो सड़गल कर डेगु,मलेरिया जैसे घातक मच्छरों को जन्म देकर जीवन पर खतरा बढा देता है। ऐसे में जिस प्रकार वायु प्रदूषण के कारण दिपावली पर पटाखों का, जल प्रदूषण और पानी की बर्बादी रोकने हेतु होली में पानी व केमिकल के रंगों का कम प्रयोग होना शुरू हुआ, दुर्गापूजा में बनी प्रतिमाओं का गंगा में विर्सजन रोक कर ईको फ्रेन्डली मूर्तियों का निर्माण हुआ जो कि प्रदूषण का कारण बन जाता था। सावन में दूध की बर्बादी बचाने के लिए रूद्वाभिषेक का चलन कम हुआ उसी तरह हम पर्यावरण और स्वास्थ को बचाने के लिए आईये इस बार मनाते हैं ईकोफ्रैन्डली ईद-उल-जुहा यानी बकराईद। इस लिये सभी लोग आगे बड़े आकार के मिट्टी के बकरे की क़ुर्बानी दें। जिससे बाद में मिट्टी, मिट्टी में मिल जाये, परम्परा भी पूरी हो जाये और हमारे पर्यावरण का भी नुकसान न हो।
तो आईये हम सब एक होकर भारत के पर्यावरण की रक्षा और बिमारीयों से बचाव के लिए ईकोफ्रैन्डली ईद-उल-जुहा यानी बकराईद मनाये और मिट्टी का बकरा क़ुर्बान करें। हम आपस में हिंदु मुस्लिम मिल कर गंगा यमुनवी तहजीव को बरकार रखें और ईकोफ्रैन्डली त्यौहारों की मान्यता पर बल देकर उसे अपनी परम्पराओं में सामिल करें। जिससे हम भी स्वस्थ रहें हमारे आने वाली पीढ़ी भी स्वस्थ रहें, देश भी स्वस्थ रहे।
यदि देखा जाये तो बकरीद के जहॉं कई फायदे हैं जिसमें प्रमुख रूप से आपसी मेल मिलाप होता है, हिंदु मुस्लामन का भेद-भाव खत्म कर आपस में मेल जोल कर एक साथ सबको बुलाया जाता है और बैठ कर खाया जाता है। गरीबों के घर भी कुर्बानी के नाम पर आदान प्रदान हुए मॉंस से कुछ अच्छा भोजन बन जाता है, वही इस कुर्बानी से पर्यावरण को कुछ नुकसान भी पहुँचता है। जैसे क़ुर्बानी के बाद लाखों लीटर पानी सफ़ाई में बर्बाद हो जाता है। मीट के अलावा जानवर का बाक़ी शरीर का हिस्सा जो नहीं खाया जाता है गंदगी के रूप में चारो ओर फैलता है, जिससे बिमारी का खतरा बढ़ जाता है। खाने के बाद हड्डीयॉं इधर उधर फेंकने से जानवर उन्हें उठा ले जाते हैं और किसी के घर किसी के दरवाजे पर छोड़ देते हैं। जिससे गंदगी भी बढ़ती है और बिमारी का खतरा। सफाई के नाम पर जो लाखो लीटर पानी बहता है वह आपके आस-पास ही जमा होता, जो सड़गल कर डेगु,मलेरिया जैसे घातक मच्छरों को जन्म देकर जीवन पर खतरा बढा देता है। ऐसे में जिस प्रकार वायु प्रदूषण के कारण दिपावली पर पटाखों का, जल प्रदूषण और पानी की बर्बादी रोकने हेतु होली में पानी व केमिकल के रंगों का कम प्रयोग होना शुरू हुआ, दुर्गापूजा में बनी प्रतिमाओं का गंगा में विर्सजन रोक कर ईको फ्रेन्डली मूर्तियों का निर्माण हुआ जो कि प्रदूषण का कारण बन जाता था। सावन में दूध की बर्बादी बचाने के लिए रूद्वाभिषेक का चलन कम हुआ उसी तरह हम पर्यावरण और स्वास्थ को बचाने के लिए आईये इस बार मनाते हैं ईकोफ्रैन्डली ईद-उल-जुहा यानी बकराईद। इस लिये सभी लोग आगे बड़े आकार के मिट्टी के बकरे की क़ुर्बानी दें। जिससे बाद में मिट्टी, मिट्टी में मिल जाये, परम्परा भी पूरी हो जाये और हमारे पर्यावरण का भी नुकसान न हो।
तो आईये हम सब एक होकर भारत के पर्यावरण की रक्षा और बिमारीयों से बचाव के लिए ईकोफ्रैन्डली ईद-उल-जुहा यानी बकराईद मनाये और मिट्टी का बकरा क़ुर्बान करें। हम आपस में हिंदु मुस्लिम मिल कर गंगा यमुनवी तहजीव को बरकार रखें और ईकोफ्रैन्डली त्यौहारों की मान्यता पर बल देकर उसे अपनी परम्पराओं में सामिल करें। जिससे हम भी स्वस्थ रहें हमारे आने वाली पीढ़ी भी स्वस्थ रहें, देश भी स्वस्थ रहे।
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