रविवार, 17 फ़रवरी 2019

बापू इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी हम आपको नहीं भूलें। आप के दिये जख्‍़मों की आग में हम आज भी जल रहे हैं-अखंड गहमरी

        बापू इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी हम आपको नहीं भूलें। आप के दिये जख्‍़मों की आग में हम आज भी जल रहे हैं। परन्‍तु आज भी अखंड गहमरी सहित पूरा विश्‍व आपका जन्मदिवस धूमधाम से मना रहे हैं। आज भी हम सब आप के जन्मदिवस पर पूर्व प्रधानमंत्री स्‍व0 लाल बहादुर शास्‍त्री जी को गौण कर आपको राष्ट्रपिता कहते हुए यह भूल कर तिरंगे को गगन में फहरा रहे हैं कि आपने किस तरह तिरंगे के नीचे आने वाले हिन्दुओँ और तिरंगे के नीचे से चाँद-तारे के नीचे जाने वाले लोगो के लिए कैसे अपने रूप को बदला। आप जहाँ कहीं, जिस धर्म, जिस जाति में हैं मेरी तरफ से अपने पूर्व अथवा पूर्व के पूर्व जन्मदिवस की बधाई एवं शुभकामनाएं स्वीकार करें। मैनें पूर्व के पूर्व शब्‍द का प्रयोग इस लिए किया कि मोहन दास करम चंद्र गाँधी के रूप में आप अपनी काया नाथू राम गोड़से जी  की कृपा से 30 जनवरी 1948 को त्याग चुके हैं। 

        उस समय को बीते पूरे 72 साल 9 महीने हो चुके हैं। कलयुग में इतना लम्बा जीवन कम ही लोग पाते हैं और कही मैनें पढ़ा था कि आपके मरने पर देवता भी जमीन पर आकर रो रहे थे तो निश्चित ही आप दुबारा- तिबारा क्या अन्नत काल तक मानव में ही जन्म लेगें इस लिए मैने पूर्व के पूर्व वाक्‍य का प्रयोग किया।वैस देवताओं के आप के मृत्यु पर आने पर मुझे संदेह है, इस लिए क्योंकि जिस व्यक्ति के सर पर देवता होने के साथ लाखो हिन्दूओ के साथ नाइंसाफी करने का तथाकथित आरोप लगा हो देवता तो दूर यमराज भी न आवें, वो अखंड गहमरी जैसे किसी पागल को आपको लेने भेज देगें।
स्व. मोहनदास करमचंद गाँधी जी आपका भारत द्वारा पाकिस्तान को पैसे देने, भारत में मस्जिदो में शरण लिये हिन्दूओं को जाड़े की रात की कपकपाती सर्दी में बाहर निकालने और लाशो की शक्ल में आते हिन्दुओ पर पाकिस्तान के प्रति आप का रूख क्या था। मैने सुना है, पढ़ा है, हाँ देखा भले नहीं कि किस प्रकार आपका आजादी पूर्व से लेकर आजादी के बाद भी आपका योगदान हिन्दुओं के विरोध में कम नहीं था । यदि हिन्द के टुकड़े और सरहद पार से आती लाशों का यदि परीक्षण हो, तो शायद उन लाशों के एक-एक रोम से यही निष्कर्ष निकलेगा कि आप भी उनकी हत्या में शामिल हैं। आपको देवता बनने का शौक था। आप जानते थे कि आज 70 प्रतिशत हिन्दू आबादी उसके साथ है अन्ध-भक्त है, ऐसे में यदि इतनी ही मुसलमानो की आबादी को अपने पक्ष में करने में कामयाब हो जायेगें तो जो अपने द्वारा खीचीं गई सरदह पार भी अपने आपको देवता की श्रेणी में स्थापित कर लेगें। मगर आपकी इच्छा, इच्‍छा ही बन कर रह गई। पाकिस्तान ने जीते जी आपको दूध की मक्खी की तरह निकाल फेंका और तो और आपकी मौत के बाद आपकी अस्थियों को पाक की सिन्धु नदी में विसर्जित तक करने नहीं दिया।
पुराने लोग कहते हैं कि उनके जमाने में बच्चे अपने बाबा-पिता-चाचा तो दूर गाँव के हर आदमी से डरते उनका सम्मान करते, वो आज के जमाने की तरह कलयुगी नहीं होते थे ऐसे में आप जो खुद संस्कारी थे, आप के पुत्र और पौत्र के कुपुत्र होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती तो फिर बी.बी.सी को दिये अपने साक्षात्कार में गोपाल दास गाँधी ने क्यों कहा कि आप के पुत्र देवदास गाँधी ने नाथू राम गोड़से की सजा रूकवाने के लिए पूरे तीन महीने तक प्रयास किया। कोई पुत्र अपने पिता के हत्‍यारे को सजा क्‍यों नहीं दिलवाना चाहेगा यह क्‍या सेाचने का विषय नहीं है।
भारत की आजादी की लड़ाई में लाखों शहीद हो गये, सभी के अपने अपने योगदान थे, कोई शान्तिपूर्ण ढ़ग से, कोई उग्रता को अपना कर तो कोई किसी समूह का नेतृत्व कर अपना योगदान परतंत्रता की बेडियां खुलवाने में दिया। किसी का योगदान कम नहीं था, मगर जिस प्रकार आपको आपके तथाकथित योगदान का प्रतिफल मिला, उसके आगे सभी के योगदान बौने सिद्ध हो गये। 

        आजादी की लड़ाई में अपने अपने से आगे होते क्रांतिकारीयों को मौत के मुहँ में धकेल दिया और अपने स्वभाव और अपने अभिमान को नैतिकता का नाम देकर क्रांतिकारीयों के लिए फाँसी की रस्सी का निर्माण किया। मुझे एक बात नहीं समझ में आई ही नहीं कि आजादी की लड़ाई में भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद, मैगर सिंह, सुभाषचंद्र बोस जैसे लाखो उग्र और शांतिपूर्ण आजादी के दिवाने सिपाही अँग्रेजो का शिकार बने वही अपको आपके खतरनाक कामो के बाद भी अँग्रेजो ने केवल बार-बार जेल ही भेज कर छोड़ दिया, न कभी आपको फाँसी की सजा हुई और न कभी अँग्रेज सिपाहियों की गोली आपको छू कर निकली।आजादी के समर में आपके योगदान वास्तव में भूलाया नहीं जा सकता, आपके योगदान को भूलाना माँ भारती का अपमान करने जैसा होगा , परन्तु मगर इतिहास के निष्पक्ष लेखको की माने तो उनके कृत्यों को भी नहीं भुलाया जा सकता।
            आदरणीय मैं सैनिक तो नहीं और न युद्धों के नियम कायदे जानता हूँ परन्तु एक सैनिक बहुल्य गाँव में रहने के कारण लड़ाई का एक निमय जानता हूँ कि हारा हुआ सिपाही, हारा हुआ देश, हारा हुआ राजा कभी शर्त रखने की स्थित में नहीं होता, तो अगर फिरंगियों लड़ाई आपसे हार चुके थे तो फिर कैसे न उन्होंने आजादी के बटवारे की शर्त रखा और मनवाया भी, यही नहीं उन्होंने भारत को आजाद भी नहीं किया, बल्कि 99 साल वर्ष 2046 तक के लिए केवल सत्ता-शासन का हस्तांतरण किया। अब यह भविष्य के गर्भ में है कि 2046 के बाद भी हम आजाद रहेगे या पुनः अंग्रेजो का शासन स्वीकार करेगें। यह तो वही बात हुई आसमान से गिरे खजूर पर लटके।
        आज आधुनिक समाज में जब इतिहास और इतिहासकारों द्वारा श्रेष्ठ लिखे गये कार्यो की विवेचना होने लगी इतिहास के हर पर्त से धूल हटती हुई दिखाई दे रही है। इस हटती धूल के नीचे की चीजों को कोई मान रहा है कोई नहीं मान रहा है।ऐसे परिवेश में जब गाँधी जी आपके जीवन के तमाम राज दूध का दूध पानी का पानी हो रहे हैं, अच्छे -बुरे, जख्म-मलहम, झूठ-सच सब समाने आ रहे हैं, इतिहा और वर्तमान को देखते हुए ये कथन बिल्कुल सत्य हो जाता है कि "बापू हम तुमको नहीं भूले"। हस कर या रोक, आपके दिये जख्मों को नासूर बनता देख कर 'बापू तुमको नहीं भूले।

जय हिन्द
अखंड गहमरी गहमार गाजीपुर।



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