दशहरे के मेले की भीड़ भाड़ से निकल कर मैं जल्दी से जल्दी घर पहुँच
जाना चाहता था। बच्चों को धुमाते धुमाते काफी थक चुका था, यहॉं तक की
बच्चों और पत्नी के जिद के कारण मैने मेले में काफी कुछ खा लिया था और
नींद हावी हो रही थी।
जल्दी चलो मैने छोटी को डाँटते हुए कहा जो रूक रूक कर मेले के झूलो की तरफ देख रही थी।
तभी मैन्ो देखा कि एक बुढिया मेरे कार को अपने अपने ऑंचल से पोछ रही थी, मैं चिल्लाया '' ये बुढि़या ये क्या कर रही है, क्यो मेरी कार को गंन्दा कर रही है।
मेरी आवाज सुन कर वह घबड़ा भागने लगी मगर भाग न पाई और ऑंचल से सिर छुपा कर हाथ जोड़ बोली ''कुछ नहीं साहेब बस अपनो की खुश्बु महसूस हुई सो ऑंचल लगा दिया''।
तभी वहॉं उसकी उम्र के कुछ लोग जो शायद उसके साथ के आकर उसे सहारा देकर उठाने लगे।
मैं अपनी कार में सवार हो कर उसकी हेड लाइट जलाया ही था कि मुझे उस औरत का चेहरा नज़र आ गया। मैं जड़वत हो गया, वो वही औरत थी जिसका असली सहारा तो मैं था, मगर वो आज गैरो के सहारे, एक अन्जान जगह पर है और मैं उसके बनाये आशियाने में शान से।
जल्दी चलो मैने छोटी को डाँटते हुए कहा जो रूक रूक कर मेले के झूलो की तरफ देख रही थी।
तभी मैन्ो देखा कि एक बुढिया मेरे कार को अपने अपने ऑंचल से पोछ रही थी, मैं चिल्लाया '' ये बुढि़या ये क्या कर रही है, क्यो मेरी कार को गंन्दा कर रही है।
मेरी आवाज सुन कर वह घबड़ा भागने लगी मगर भाग न पाई और ऑंचल से सिर छुपा कर हाथ जोड़ बोली ''कुछ नहीं साहेब बस अपनो की खुश्बु महसूस हुई सो ऑंचल लगा दिया''।
तभी वहॉं उसकी उम्र के कुछ लोग जो शायद उसके साथ के आकर उसे सहारा देकर उठाने लगे।
मैं अपनी कार में सवार हो कर उसकी हेड लाइट जलाया ही था कि मुझे उस औरत का चेहरा नज़र आ गया। मैं जड़वत हो गया, वो वही औरत थी जिसका असली सहारा तो मैं था, मगर वो आज गैरो के सहारे, एक अन्जान जगह पर है और मैं उसके बनाये आशियाने में शान से।
अखंड गहमरी, गहमर गाजीपुर उत्तर प्रदेश।।
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