रविवार, 15 अक्टूबर 2017

मेरे पॉंव

दबते ही चले जा रहे थे, एक्सीलेटर पर मेरे पाँव। कार को मन की गति से भी तेज चलाना चाह रहा था मैं, मगर भगवान की बनाई चीज की बराबरी इन्सान तो कर नहीं सकता, इस लिए मैं हार जा रहा था, अपनी गाड़ी को गति दे पाने में। एक नहीं सैकडों ऐसे उदाहरण हैं जब भगवान की बनाई चीजों के आस-पास भी इन्सान नहीं पहुँच पाया है। भगवान ने मानव के अन्दर जो दिल जलाने की कला दी है, वो पेट्रोल और माचिस दोनो मिल कर नहीं पा सकती। जलाते -मारते दोनो हैं मगर माचिस और पेट्रोल तो डींग-डांग, डिसूम और क्लीयर, हरी कार पर चार कन्धों की सवारी, गंगा मिलन, अग्नि से दोस्ती और नारायण मिलन।
''बिल्कुल आज के जमाने की तरह फास्ट।
धटती महँगाई की वज़ह से लो कास्ट''।।
मगर इन्सान की इन्सान को जलाने की कला की बात ही निराली हैं और उसमें भी प्यार में जलाना हो तो फिर क्या पूछने। जलाने की सारी कला पर
वंत न्यौछावर कर देता है।
वैसे मैं प्यार पर कुछ लिख भी सकता, इसकी दो वजहे हैं ।
पहला की जब भगवान मुझे बना रहे थे उनको एक अबला का फोन आ गया और मेरा दिल दिल बनाने और नसीब लिखना छोड़ वह उसकी सुनने चले गये और मैं वेटिंग में रह गया। लौट कर आये तो मुझे भूल गये और शेष दुनिया बनाने लगे। मैं वेटिंग का वेटिंग। जाने कैसे उनको मेरी याद आई, तब तक सब कुछ वो दे चुके, हर चीज बना चुके थे। अब करें तो क्या करें, मेरे नसीब में क्या लिखें, दिल बनाये तो कैसे।
जी.एस.टी लग जाने के कारण बाजार से जरूरत की चीजें गायब थी, जो थी भी उनका दाम बढ़ जाने से मेरा नसीब लिखने और दिल बनाने की कीमत अधिक आ रही थी, ऐसे में वह भी संभव नहीं था।
भगवान ने मंत्रीमंडल की मिटिंग बुलाई, रिसर्च कराया मगर नतीजा नहीं निकला कि मेरे नसीब में क्या लिखा जाये, दिल कैसे बनाया जाये? तभी उन्हें न जाने कैसे गाजीपुर- बारा टी.बी रोड की याद आ गई, जो नेताओं के बीच फुटबाल बनी हुई है। जिससे सब दूसरे के पाले में फेंकते हैं और उसका झुनझुना बजा कर सभी को मस्त कर देते हैं। सबका मनोरजंन करते हैं और बेचारी सड़क रोज एक ही गीत गुनगुनाती है,’'
आयेगा आयेगा आने वाला आयेगा।
भगवान को आई गहमर रास्ते की याद ने इस गहमरी के दिल और नसीब लेखन की समस्या को दूर करने का रास्ता दे दिया। उन्होंने मेरे दिल को टी0वी0 रोड की तरह बना दिया। सब की चाँदी हो गई। दुनिया को तोड़ने वाला दिल मिल गया और भगवान को उनकी समस्या हल।
अब टी0बी0 रोड की तरह सब पास आते, दो चार जख़्म भरते, मुझसे प्यार की बाते करते,सपने दिखाते और फिर दूसरे की अमानत या मेरे नसीब में जख़्मी रहना लिखा बता कर , उपेक्षा और इल्जामों के ओवर लोड ट्रक चला कर दर्द के गढ्ढे बड़े करते चले जाते। मेरा दिल फटेहाल रह जाता।
नसीब तो मेरा भगवान ने सबसे शानदार लिखा बिल्कुल गरीब की किस्मत की तरह। जैसे गरीब के पास कोई जाना नहीं चाहता और न ही उसकी समस्या दूर करना चाहता है। सभी बस वादों का झुनझुना थमा देते। मोदी दादा, माया बुआ, ममता दीदी, मुलायम बाबा, सोनिया माई से लेकर सभी कभी-कभी पास आते , अपना कहते हैं, मदद देने को कहते हैं, मगर फिर भूल जाते हैं। कभी याद दिलाने पर डाँट बैठते है, कभी आधात्म सिखाते हैं। गरीब परेशान मत करो, तुम्हारे लिये फिलिंग आयेगी इन्तजार करो या कोई इल्जाम लगा कर दूर कर देते हैं। वैसे ही मेरी किस्मत लिख दिया, लोग पास आते, भावनाओं को समझते, स्वीकार करते, मुझे अपना बनाने का स्वपन दिखाते, वादो का झुनझुना पकड़ाते और फिर कुछ मेरी ही कमियाँ कुछ मेरे ही दोष या फिर कोई अपनी मजबूरी दिखा कर वापस चल देते अपने रास्ते। मेरा नसीब तड़पता रहता, घायल कहराता था और इन्तजार करता फिर नये हादसे का, क्योंकि नित्य नये हादसे ही मेरे नसीब का नसीब था। अश्क, उदासी, जलन, तड़प उसके साथी, इसमें कसूर किसी का नहीं था, क्योंकि भगवान ने ही ऐसा लिखा था।
दूसरी वजह ये थी कि मेरी सूरत और उल्लू की सूरत में फर्क ही नही था इस लिए कोई नजदीक आता नहीं प्यार करता नहीं।
मैं अपने ख्यालो में खोया जल्दी अपनी मंजिल पर पहुँच कर, उस अनाथालय जिस में अखंड गहमरी जैसे कुपुत्र के कारण अपने वर्षो की मेहनत से बनाये आशियाने में रोटी के चंद टुकडों और स्नेह को दो बोल से उपेक्षित उम्र के अंतिम पड़ाव पर पड़े हाड़-माँस के पुतले, किसी गैर के एहसान पर ही सही दो निवाले सकून से खाते हुए आपस में गम गीला कर चैन की नींद सोते थे, निकालने जा रहा था, जिसे तोड़ कर मैखाना बनाने जा रहा अखंड गहमरी जैसा एक सिरफिरा।
कार की गति को मन की गति से तेज भगाने और किसी की सूरत बार- बार आने के कारण आँख़ो के सामने से आती तीव्रगति की ट्रक देख नहीं सका और जब देखने के काबिल हुआ तो देखा, योगी के गढ्ढा मुक्तक आदेश के अनुपालन कार्य की तरह मेरे भी शरीर के गढ्ढे सफेद पट्टियों से ढक दिये गये थे। दिल को चारो तरफ से मजबूत पट्टे से बाँध दिया गया था, जिससे वह दुबारा किसी के पास जा न सके।
मैं अपनी असफलता के गम और दिल के जख़्मी होने पर खुशियाँ मनाता, हमेशा के लिए चैन की नींद सो चुका था।
अब मैं भी हिन्दी दिवस की तरह गाजे बाजे, बड़े- बड़े पड़ालो के बीच शानदार तरीके से साल में एक दिन अपनाया जाऊँगा, मेरा महिमामंडन होगा और अगले दिन ढ़केल दिया जाऊँगा गुमनामी के अँधेरे में।
''शिकायत मैं नहीं करता, किसी से टूटने का दिल।
न खुद को दूर ही रखता, जमाने की मुसीबत से ।
अखंड गहमरी, गहमर गाजीपुर।।

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