रविवार, 15 अक्टूबर 2017

अंतिम सलामी

आज मैं उसे अपने हाथो से सजा रहा था। बिन्दियां, मेहंदी सब आज मैने ही लगाये, झुका तो महावर लगाने के लिए भी, मगर उसे प्यार के बीच भी धर्म का ज्ञान था, मुस्कुराते हुए मेरे हाथ पकड़ कर बस सर को हल्का कष्ट दिया। मैं उसे गोद में उठाये आइने के पास पहुँचा, मगर ये क्या,आईना तेज आवाज़ के साथ टूट गया और मेरी नींद टूट गई। मैं तेजी से बदहवास भागना चाहा मगर भाग नहीं सका, वो तेज आव़ाज आईना टूटने की नहीं, मेरे बगल में बम फूटने की थी।
युनिट के जवानो की चीखों और खून के लोथड़ो के बीच मैं बर्फ में पड़ा आसमान की तरफ देख रहा था, शायद कोई मदद आ जाये, मगर अधिक देर तक देख भी नहीं सका, आँखें बंद होने लगी, आँखो में वो चेहरा उभर कर आने लगा, जिसके पास आने का ख्वाब मैं देखते देखते आज चैन की नींद सोने जा रहा हूँ। हाथों ने जरा सी हिम्मत दिखाई और माँ भारती को अंतिम सलामी देने का ख्वाव पूरा कर दिया। मेरी आँखे बंद होने लगी, उसकी तस्वीर धुधँली,धुधँली..और धु$$धँ....।।
अखंड गहमरी..

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