रविवार, 15 अक्टूबर 2017

मुझे लिखना नहीं आता,

मुझे लिखना नहीं आता, कहॉं मालूम दुनिया को ।
कलम बस मैं पकड़ता, गीत उसकी याद लिख देती।
अखंड गहमरी

न आवे रात पूनम की, कभी जीवन में अब मेरे।
तुम्‍हारा अक्‍श दिखता है, मुझे जब चॉंद हो पूरा।।
अखंड गहमरी

शहीदो पे सियासत तेज, जब से हो गई तब से।
कफ़न की चाह भी रखना, सिपाही छोड़ बैठे हैं ।
अखंड गहमरी

मुझे मानव न कह देना, मैं हूँ जानवर ऐसा।
सरे बाजार पल्लू खीच, कर भी मुस्कुराये जो।।
अखंड गहमरी।

बचा कर लाज बहनों की, निभाना फर्ज राखी का।
सरे बाजार लुटती है, बहन यह दर्द राखी का।।
सभी को आज राखी की,बधाई गहमरी दे पर..
चुका सकता न जीवन में , कभी वो कर्ज राखी का।।
..


मुझे दिल्‍ली कहा जाता, मै तो दिल हूँ भारत का।
मगर पहचान मेरी आज भी गाँवो से है यारो ।।
दिल्लीवासीयों को समर्पित.
अखंड गहमरी।


न आँखो में दिखा था प्यार, न अपना पन दिखा मुझको।
मुझे तुम भूल जाओ अब, तुम्हारा प्यार झूठा है।
अखंड गहमरी।।

जरा तुम पास आओ घड़कनो को बात करने दो।
अभी तो रात बाकी है, चली जाना जला कर दिल ।।
अखंड गहमरी


कहॉं पर दर्द बिकता है, सनम मुझको बता देना।
दिया जो दर्द है तुमने, भरा उससे नहीं ये दिल।।
अखंड गहमरी, गहमर, गाजीपुर।।

दिया जो जख्म गाँधी ने, दवा उसकी नहीं कोई।
मिला कर हाथ मुल्लो से, किये दो भाग भारत के।।
अखंड गहमरी..



दिया जो जख्म

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