शायद हाथो ने अब उस खत को पकड़े रखने की ताकत खो दिया था, तभ्ाी तो मेरी जीवन की आधार हीन बना देने वाले उस खत जिसे मैं सुबह से कई बार पढ़ चुका था, हवा के हल्के झोके ने उड़ा कर उस दरिया में पहुँचा दिया। अच्छा ही हुआ, मेरे अश्को से अपने मूल रूप खोते शब्द जो शायद उसने तब लिखे थे, जब उसे यह महसूस होने लगा कि अब वह धीरे धीरे प्रेम बंधन के उस जाल में बधँती जा रही है, जिसे वह कभी स्वीकारना तो कभी अस्वीकार करना चाहती थी।
वर्षो की चाहत दिल में छुपा कर रखे मैं उसे बता नही पाया, मगर शायद मेरे दिल की आवाज, मेरे दिल का संगीत उस तक पहुँच गया।
कभ्ाी इकरार कभी इनकार के दोराहे पर खड़ी जिन्द़गी का अन्त उसके आज के पत्र में था, जिसमें बस एक डरावने स्वपन की दुहाई देकर इतना ही लिखा
भ्ाुला, मिटा देना, सनम तुम याद को मेरे।
जला तस्वीर भी देना, बनाये दिल में जो अपने।।
अखंड गहमरी।।
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