रविवार, 15 अक्टूबर 2017

हम नहीं सुधरेगें रेल

मैने अपने रेल मार्ग द्वारा यात्रा की शुरूआत संभवत वर्ष 1994 में 14 वर्ष की आयु में बिहार प्रान्‍त के मुँगेर जिले के धरहरा रेलवे स्‍टेशन से विक्रमशिला मगध एक्‍सप्रेक्‍स से दिल्‍ली जाकर किया था। उसके बाद से लेकर आज तक भारत के अधिकांश मुख्‍य रेल मार्गो पर थोड़ी बहुत यात्रा कर चुका हूँ। 24 से लेकर 50 घंटे 2 एसी से लेकर स्‍लीपर क्‍लास तक का सफर रेल द्वारा किया। इन 22 सालो में मैने रेलवे की तमाम व्‍यवस्‍थाओं को काफी नजदीक से देख। रेलवे की व्‍यवस्‍थाओं पर रेलमंत्री का कैसा असर होता है, इसको काफी नजदीक से अनुभव किया है।
रेल यात्रियों को पर्याप्‍त आरक्षण उपलब्‍ध नहीं करा पाना और ट्रेनो का परिचालन समय से नहीं कर पाना तो शायद रेलवे की खानदानी बीमारी है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। उसे दूर करना तो रेलवे के प्रतिष्‍ठा के खिलाफ है। ऐेसे में यदि ये कहा जाये कि भला हो दलालो, '(क्षमा करेगें एजेन्‍टों ) का जिनकी कृपा से कुछ लोगो को मजबूरी में लक्ष्‍मी मॉं की कृपा से टिकटें मिल जाती है,वरना भगवान ही मालिक है आम आदमी का। न जाने नो रूम दिखाने वाले ट्रेनो में उनको कैसे जगह मिल जाती है। जो आरक्षण क्‍लर्क आपको घंटो लाइन में लगे रहने के बाद टिकट नहीं देता, वह उन देवताओं को चन्‍द पल में कहा से टिकट दे देता है। ये बात आज तक समझ में नहीं आई।
आईये फिर जुड़ते है मेरी बात से। टिकटो और लेट-लतीफी के बाद भी रेलयात्रियों की कितनी समस्‍या है, और उनको किन-किन हालत से गुजरना पड़ता है इसको समझने और दूर करने का काम शायद तथाकथित रेलवे को लूटने वाले, चारा घोटाला करने वाले भ्रष्‍ट रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव से अच्‍छा किसी ने नहीं किया होगा। रेल यात्रियों के दर्द को किसी ने नहीं समझा होगा। सीधे तोैर पर यात्री सुविधाओं को प्रमुखता देने वाले इस रेल मंत्री की खनक रेलवे के अधिकारीयों में कार्यवाही का डर था, चाहे वह उत्‍तर भारत का हो, दक्षिण भारत का हो, मध्‍य भारत का हेा, पूर्वोत्‍ार का हो या पश्चिमी भारत का हो गैग मैन से लेकर डी0आर0एम और जी0एम और अन्‍य उच्‍च पदो पर बैठे अधिकारीयों क्‍यों न हो। मंत्रालय का खौफ उनकी ऑंखो में में साफ दिखाई देता थी । मैं ये तो नहीं कहता कि यात्रीयाें की 100 प्रतिशत समस्‍या समाधान उस समय हो गया था , मगर रेलवे की कुछ जरूरी आदत जिसमें ट्रेनो में पानी, सफाई, और सबसे आफत ही की समस्‍या ट्रनो के आने से पहले एैन वक्‍त पर प्‍लेटफार्म का बदला, और बेबजह घंटो आउटर पर ट्रेनो को रोक देना तो सुधर ही गई थी।
मैं गत वर्ष दक्षिण भारत की यात्रा 05 फरवरी 2016 को कर के लौटा और पुन: विगत 29 अप्रैल 2017 को चेन्‍नई तक की यात्रा कर के लौटा हूँ। आप यकीन मा‍नीये (शायद भाजपा और माननीय मनोज सिंन्‍हा रेल राज्‍यमंत्री सर्मथक न माने ) हालत सुधरने की जगह बिगड़ते ही दिखाये दिये है। मैं यह मानता हूँ कि आज ट्रेनो की संख्‍या पहले के मुकाबले अधिक हुई, मगर आज पहले के मुकाबले तकनीक भी बढी है, श्रम भी बढ़ा है।
पानी जीवन का अाधार पानी है, मगर रेलवे न पीने की पानी की व्‍यवस्‍था में सफल है, न चलती ट्रनेा में आवश्‍यक कार्य हेतु उपलब्‍ध करा पाने में। संघमिश्रा एक्‍सप्रेक्‍स जैसे लम्‍बी दूरी की ट्रेन के 2 एसी में पानी की समस्‍या तब रहती है जब विजयवाडा जैसा बडा स्‍टेशन महज कुछ देर पहले बीता हो, रात से ही पानी की कमी, जिसको सुबह तक दूर नहीं किया जा सका। मदुरै- दिल्‍ली सम्‍पर्क क्रान्त्‍िा आप अवगत हो कि सम्‍पर्क क्रान्ति ट्रेन भारत की नामचीन ट्रनो में है, जो किसी राज्‍य की राजधानी से भारत की राजधानी को जोड़ती है, किसी स्‍लीपर क्‍लास में पानी नहीं, जबकि सुबह 9 बजे वह ट्रेन चेन्‍नई एगमोर जैसे प्रमुख सुविधा पूर्ण स्‍टेशन से गुजरी। यही नहीं रास्‍ते में कई रेलवे स्‍टेशनो पर नल तो लगे थे मगर उन नलो में जल नहीं था।
अब एसी कोच की बात करता हूँ, एसी जैसी महँगी व्‍यवस्‍था में आदमी इस लिये चलता है कि उसे शांति का एहसास हो, उसे सुरक्षा मिले, उसे आराम मिले। मगर ऐसा कुछ नहीं हैं, अगर आप कोच अटेन्‍डेन्‍ड के पास बार बार जाने की क्षमता नहीं रखते है तो आपको सुविधा भी नहीं मिलेगी। एसी कोच में पूरे रास्‍ते आप को अवैध रूप से सामान बेचने वाले बड़ी आसानी से आते जाते दिखाई देगें चाहे वह रात के 2 क्‍यो न बज रहा हो, जिनके शोरगुल से न अपकी शांति भंग हो जाती है, बल्कि आपके सामान चोरी होने का खतरा बहुत बढ़ जाता है, खास तौर से तब जब आपकी सीट साइड लोअर हो।
रेलवे के कर्मचारी/सुरक्षाकर्मी एसी में सफर करना अपनी शान समझते है, यूपी बिहार तो बदनाम है, हालत पूरे देश में यही है। वो आकर बड़ी आसानी के साथ आकर आपकी सीट पर बैठ जाते है, और आप लेटे भी तो आपको उठकर बैठना पड़ता है। यात्रीयों की सीटो पर किनारे कर, हटा कर बैठना ये रेलवे के कर्मचारीयों का जन्‍मसिद्व अधिकार है, आप उस पर ग्रहण नहीं लगा सकते। कोई भी कार्यवाही ऐसे रेलकर्मीयों या दैनिक यात्रीयों पर होती ऩजर नहीं आती है।
रेलवे अकसर ये इल्‍जाम लगाता है कि ट्रनो के देरी में यात्रीयों का मुख्‍य हाथ होता है, जगह जगह चैन-पुलिंग से ट्रेने नहीं चल पाती, मगर मैं पूछना चाहता हूँ रेल विभाग के मंत्री से और रेल अधिकारीयों से संघमित्रा जैसी ट्रेन बक्‍सर से राइट टाइम खुलती है और वह सुबह होते है होते 2 घंटे से ऊपर लेट हो जाती है, कौन सा चैन पुलिंग होता है। मदुरै- दिल्‍ली सम्‍पर्क क्रन्ति जैसी ट्रेन जिसका अत्‍यधिक कम ठहराव है राइट टाइम खुलने के बाद कैसे 4-4 घंटे ले हो जा रही है, जबकि न कुहरा, न बरसात। ट्रेने घंटो आउटर पर खड़ी हो जा रही है। रास्‍ते में भी जहॉं खड़ी हो रही है वही खड़ी रह जा रही है, चाहे वह एक्‍सप्रेक्‍स हो, मेल हो स्‍पेशल ट्रेने सबका वही हाल है। ट्रेनो के लेट लतीफी का उदाहरण देने लगूँ तो दिन बीत जायेगें। एक छोटा सा उदाहरण 28 अप्रैल को पंजाब मेल सुबह तक 30 मिनट देर, लखनऊ आटर आते आते 1 घंटे देर और लखनऊ प्‍लेटफार्म पहुॅचते पहुॅचते 2 घंटे देर। लखनऊ से मैं सवार हुआ 2 घंटे देर पर और रास्‍ते में कही चैनपुलिंग नहीं हुई और वह ट्रेन गहमर आई रात के 1 बजे। आखिर कौन जिम्‍मेदार, यात्री अधिकारी या मंत्री।
रेलवे ने तो जैसे कसम खा लिया हो कि वह ट्रेन आने से ठीक पहले प्‍लेटफार्म बदलने की आदत छोड़ेगा ही नहीं। दिनॉंक 27 अप्रैल 2017 मध्‍यप्रदेश की राजधानी भोपाल के रेलवे स्‍टेशन पर भोपाल ' लखनऊ 01683 डा0 आने की सूचना बार-बार प्‍लेटफार्म नम्‍बर 4 पर की जा रही थी। उस ट्रेन को 10 बजे खुलना था और ट्रेन आने के ठीक 2 मिनट पहले उसका प्‍लेटफार्म बदल कर 3 नम्‍बर कर दिया गया। ऐसे में हजारो की जनता 4 से 3 पर जा रही है, सीढीयों पर भगदड़ मची है, एक तरफ तो ट्रेन से उतने वाले यात्री और दूसरी तरफ ट्रेन में चढ़ने वाले यात्री एक ही प्‍लेटफार्म पर । जिनके पास सामान था, साथ में बच्‍चे- बुढे उनकी हालत क्‍या होगी, इसकी कल्‍पना शायद रेलवे अधिकारीयों को नहीं। यह घटना केवल भोपाल में उस दिन नहीं घटी, बल्कि यह घटना देश के सैकड़ो रेलवे स्‍टेशनो पर रोज होती है। रेलवे की इस लापरवाही और गैर जिम्‍मेदाराना कार्य से कितनी जाने चली जाती है। रेलवे के अधिकारीयों में न यात्री सुविधा की चिन्‍ता न मंत्रीयों के कार्यवाही का खौफ।
वर्तमान में रेलमंत्री हो या रेल राज्‍यमंत्री दोनो को ईमानदारी का तगमा मिला हुआ है, कर्मठता का तगमा मिलाा है, मगर ऐसी ईमानदारी और कर्मठता किस काम की जिसमें आपके कर्मचारीयों में ही आपकी हनक न हो, आपके नाम से आपके कार्यवाही से वह न कॉंप जाये, यात्री व्‍यवस्‍था न सुधार दें। लापरवाही का आलम इस कदर हो जाये कि एक ही मार्ग पर लगातार हादसे हो रहे हो कोई सबक नहीं। जी हॉं झासी कानपुर मार्ग पर लगातार हादसे हुए मगर कोई सबक नहीं, बस आश्‍वासन। इस लिए मुझे अब यह कहने में जरा भी संकोच नहीं हैं कि आज से अच्‍छा तो वह तथाकथित बेईमान, घोटाले बाज रेलमंत्री लालू ही था, कम से कम यात्रीयों को यात्री सुविधा क्‍या हेाती है इसका एहसास तो कराया, अधिकारीयों में अपनी खनक तो पैदा किया।
आज हालत यह है कि भारत के रेलमंत्री राज्‍य के गृह जनपद में ही जब समस्‍याओं का बोलबाला है, कही टी0टी0 गर्भवती महिला को मार रहा है, तो कही रेलवे स्‍टेशनो पर पानी हैं, तो पूरे भारत की कल्‍पना आप किजीए। आखिर बड़ी-बड़ी परियोजनाओं को लागू करने वाला रेल-मंत्रालय यह क्‍यों नहीं समझ पा रहा है कि जिन्‍दा रहने के लिए पहले सॉंसे जरूरी है, तब भोजन-पानी।
माननीय मंत्री जी अपनी ईमानदारी के साथ साथ रेलवे अधिकारीयों में जिम्‍मेदारी का एहसास कराईये, उनके अन्‍दर डर कार्यवाही का डर पैदा कीजिए, नहीं तो भारत के इतिहास में यात्री सुविधाओं के प्रति नकारा साबित हुए मंत्रीयों में आप दाेनो का नाम र्स्‍वण अक्षरो में लिखा जायेगा। जय हिन्‍द, जय गहमर।
अखंड प्रताप सिंह ऊर्फ अखंड गहमरी, गहमर, गाजीपुर उत्‍तर प्रदेश 9451647845

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